Thursday, 12 September 2024

हैम्लेट

 

 

हैम्लेट  

बरीस पस्तरनाक 

डा. झिवागो से  

 

थम गया शोर. आया मैं रंगमंच पर.

झुककर दरवाज़े की चौखट पर ,

सुनता हूँ दूर की आवाज़

क्या हो रहा है मेरे ज़माने में.

 

रात का धुंधलका केंद्रित है मुझ पर

हज़ारों दूरबीनों से.

ख़ुदाई बापयदि संभव है,

तो ले जा इस प्याले को.

   

तुम्हारी ज़िद्दी योजना पसंद है मुझे

और तैयार हूँ मैं यह भूमिका निभाने के लिये.

मगर अभी चल रहा है नया नाटक,

और इस बार मुझे बख़्श दे.

 

मगर अंकों का क्रम निश्चित हो गया है,

और रास्ते का अंत अपरिवर्तनीय है.

मैं अकेलासब कुछ डूब रहा है पाखण्ड में.

ज़िंदगी जीना  – खेत में टहलने जैसा नहीं है.

***** 

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