ग्रीष्म ऋतु शहर में
दबी आवाज़ों में बातें
और जल्दबाज़ी में
बालों को समेट कर ऊपर
सिर पर बनाया हुआ जूड़ा.
भारी कंघे के नीचे से
टोप वाली महिला देखती है
सिर को पीछे करके
अपनी चोटियों समेत.
बाहर गर्म रात
दे रही है बुरे मौसम का इशारा
और घिसटते हुए जा रहे हैं,
पैदल अपने अपने घरों को लोग.
सुनाई देती है अचानक बिजली की कड़क,
गूंजती हुई तेज़ी से,
और हवा से फ़ड़फ़ड़ाता है
खिड़की का परदा.
छा जाती है ख़ामोशी,
मगर होने लगती है पहले-सी उमस,
और पहले जैसी बिजलियाँ
मचाती हैं आसमान में उथल-पुथल.
और जब चमकती सुबह
फिर से उमस भरी
सुखाती है रास्ते के डबरे
रात की बारिश के बाद.
देखते हैं चिड़चिड़ेपन से
नींद पूरी न होने के कारण
सदियों पुराने, ख़ुशबूदार,
सदाबहार लिंडन वृक्ष.
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*मेल्युज़ेयेवो में लारा के साथ गुज़ारे हुए समय की ओर इशारा करती है
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