अध्याय 3
स्विन्तित्स्की
परिवार में क्रिसमस पार्टी
1
एक
बार सर्दियों में अलेक्सान्द्र अलेक्सान्द्रविच ने आन्ना इवानव्ना को उपहार स्वरूप
एक प्राचीन अलमारी दी. उसने इत्तेफ़ाक से इसे ख़रीदा था. आबनूस की अलमारी खूब लम्बी चौड़ी थी. वह किसी भी दरवाज़े से पूरी की
पूरी नहीं गुज़र सकती थी. उसके हिस्से अलग-अलग करके उसे लाया गया, घर के भीतर भी उसी अवस्था में लाया गया और सोचने लगे
कि उसे कहाँ रखा जाए. नीचे वाले कमरों के लिए, जो
काफ़ी विस्तीर्ण थे,
वह अपना उद्देश्य पूरा
नहीं कर सकती थी,
और ऊपर, जगह की कमी के कारण नहीं समा रही थी. अलमारी के लिए
मालिकों के शयनकक्ष के दरवाज़े के पास, भीतरी सीढ़ियों के ऊपर वाले लैण्डिंग का एक हिस्सा, खाली कर दिया गया.
अलमारी
को संयोजित करने के लिए दरबान मार्केल आया. वह अपने साथ छह साल की बेटी मरीन्का को
लाया था. मरीन्का को एक लॉली पॉप दिया
गया. मरीन्का ने नाक से उसे सूँघा और लॉली पॉप के साथ साथ चिपचिपी उँगलियाँ भी
चाटते हुए माथे पर बल डाले पिता के काम को देख रही थी.
कुछ
देर तक सब कुछ ठीक-ठाक होता रहा. आन्ना इवानव्ना की आँखों के सामने
अलमारी धीरे-धीरे बढ़ रही थी. अचानक,
जब सिर्फ ऊपर का टॉप लगाना ही बाकी था, उसके मन में मार्केल की मदद करने का विचार आया. वह
अलमारी के ऊँचे पेंदे पर चढ़ी और,
लड़खड़ाकर, किनारे वाली दीवार को धक्का दे दिया, जो सिर्फ लकड़ी की चूलों पर टिकी थी.
रस्सी
की ढीली गाँठ जो मार्केल ने अलमारी की दीवारों के चारों ओर जल्दी-जल्दी में बाँध
दी थी, खुल गई. फर्श पर गिरते तख़्तों के साथ आन्ना इवानव्ना
भी पीठ के बल गिरी और उसे काफ़ी चोट आई.
“ओह, मालकिन-माँ,” उसकी
ओर लपकते हुए मार्केल बोला,
“प्यारी माँ, आपको क्या पड़ी थी ये सब करने की? हड्डी तो सलामत है? पहले
हड्डी को छूकर देखिए. सबसे ख़ास है हड्डी, बाकी
चोट पर ध्यान न दीजिए,
वो तो जल्दी ठीक हो
जाएगी और, जैसा कहते हैं, उसका
कुछ नहीं है. अरे,
तू क्यों चीख रही है, जंगली कहीं की,” वह
रोती हुई मरीन्का पर बरसा.
“नाक पोंछ और भाग अम्मा
के पास, जा. ओह,
मालकिन-माँ, क्या मैं आपकी मदद के बगैर ये तख़्ते नहीं बिठा सकता था? आप सही सोचती हैं, पहली
नज़र में मैं चौकीदार ही लगता हूँ,
मगर सही सोचा जाए तो
हमारा ख़ानदान बढ़ई का है,
हम बढ़ईगिरी किया करते
थे. आप यकीन नहीं करेंगी,
कि ये फर्नीचर, ये अलमारियाँ – शो केसें,
हमारे ही हाथों के बने
हैं, मतलब पॉलिश से है या, फिर
महोगनी का, अखरोट का फर्नीचर...या
फिर, मिसाल के तौर पर, अमीर
दुल्हनें, मेरी ज़ुबान को माफ़ करें, माँ, नाक के सामने से गुज़र गईं, गुज़र
गईं. और इस सबकी वजह है – पीना,
कड़क दारू.
मार्केल
की सहायता से आन्ना इवानव्ना आराम कुर्सी तक पहुँची, जो वह
उसके लिए घुमाते हुए लाया था,
और बैठी, कराहते हुए, चोट
वाली जगह को सहलाते हुए. मार्केल बिखरे हुए हिस्सों को फिर से जोड़ने में लग गया.
जब ऊपर का ढक्कन लगा दिया गया तो वह बोला:
“बस, अब सिर्फ दरवाज़े, और बस, फिर चाहे नुमाइश में रख दीजिए.”
आन्ना
इवानव्ना को अलमारी पसंद नहीं आई. उसके आकार-प्रकार से वह किसी ताबूत जैसी या शाही
मकबरे जैसी लगती थी. वह उसमें डर की भावना पैदा करती थी. उसने उसे “अस्कोल्द की
कब्र” कहती थी. इस नाम से आना इवानव्ना का तात्पर्य प्रिन्स अलेग के घोड़े से था, मतलब,
उस चीज़ से, जो अपने मालिक की मृत्यु का कारण बनी थी. आन्ना
इवानव्ना ने बड़ी बेतरतीबी से खूब सारी किताबें पढ़ी थीं, और
इससे उसका ज्ञान गड्ड-मड्ड हो गया था.
इस
दुर्घटना के बाद से आन्ना इवानव्ना को फेफ़ड़ों की बीमारियाँ लग गईं.
2
सन् 1911 का पूरा नवम्बर
आन्ना इवानव्ना बिस्तर में ही पड़ी रही. उसे निमोनिया हो गया था.
यूरा,
मीशा गर्दोन और तोन्या अगले साल के बसन्त में क्रमशः विश्वविद्यालय
और उच्च महिला प्रशिक्षण पूरा करने वाले थे. यूरा डॉक्टर बनने वाला था, तोन्या – वकील, और मीशा – दर्शन शास्त्र विभाग में,
भाषाविद्.
यूरा की आत्मा में सब कुछ
हिल गया था और उलझ गया था, और सब कुछ बेहद
मौलिक था – उसका दृष्टिकोण, आदतें और झुकाव. वह अत्यंत
संवेदनशील था, उसकी अनुभूतियों के नयेपन को शब्दों में नहीं
बाँधा जा सकता था.
मगर कला और इतिहास के
प्रति उसका झुकाव चाहे कितना ही ज़्यादा क्यों न हो, यूरा को
व्यवसाय चुनने में कठिनाई नहीं हुई. उसका ख़याल था, कि कला
व्यवसाय के लिए योग्य नहीं है, उसी तरह, जैसे स्वाभाविक प्रसन्नता या उदासी के प्रति झुकाव को व्यवसाय नहीं बनाया
जा सकता.
उसे भौतिक विज्ञान और
प्रकृति विज्ञान में दिलचस्पी थी और उसने ये निष्कर्ष निकाला कि व्यावहारिक जीवन
में किसी सर्वोपयोगी विषय का अध्ययन करना चाहिए.
इसलिए वह चिकित्सा विज्ञान
की ओर गया.
चार साल पहले जब वह प्रथम
वर्ष में था, तो एक पूरा सेमेस्टर युनिवर्सिटी
के तलघर में मृत शरीरों पर एनाटॉमी (शरीर रचना) का अध्ययन करता रहा था. एक झुकी
हुई सीढ़ी से तहखाने में जाता. एनाटॉमी थियेटर के भीतर अस्त-व्यस्त विद्यार्थियों
के झुण्डों की भीड़ लगी रहती थी. कुछ रट्टा मार रहे थे, हड्डियों
को आसपास रखकर जर्जर किताबों के पन्ने पलट रहे थे, कुछ और
चुपचाप कोनों में चीरफ़ाड कर रहे थे, कुछ और मज़ाक कर रहे थे,
चुटकुले सुना रहे थे और चूहों का पीछा कर रहे थे जो मुर्दाघर के
पत्थर के फर्श पर बड़ी संख्या में भाग रहे थे. मुर्दाघर के आधे-अँधेरे में अनजान
लोगों के मुर्दा जिस्म, अज्ञात पहचान वाले जवान आत्मघातियों
के जिस्म, जो अभी तक सुरक्षित रखे गए थे और डूबकर मरने वालों के अभी तक अनछुए जिस्म अपने
नंगेपन के कारण फ़ॉस्फोरस की तरह चमक रहे थे.एल्युमिना साल्ट के इंजेक्शनों ने,
जो उन्हें दिए गये थे, भ्रामक गोलाई देते हुए उन्हें
जवान बना दिया था. मुर्दों की चीरफ़ाड़ की जाती, उनके जिस्म के
हिस्से अलग-अलग करके उनका परीक्षण किया जाता, और इन्सानी
जिस्म की ख़ूबसूरती हर हाल में बरकरार रहती, चाहे उसके कितने
ही बारीक टुकड़े किए जाएँ, इसलिए जस्ते की मेज़ पर चाहे कितनी ही
बेरहमी से फिंकी हुई मत्स्यकन्या को देखकर हुआ अचरज ख़त्म नहीं होता था, बल्कि उसके निकाल दिए गए हाथ या अलग की हुई हथेली पर चला जाता था. तलघर
फॉर्मेलिन और कार्बोलिक एसिड से गंधाता रहता, और हर चीज़ में
किसी रहस्य का एहसास होता रहता, इन बिखरे हुए शरीरों के
अज्ञात भाग्य से लेकर ख़ुद जीवन और मृत्यु के रहस्य तक, जो
यहाँ तलघर में ऐसे विराजमान थी जैसे अपने घर या अपने स्टाफ़-क्वार्टर में हो.
इस रहस्य की आवाज़ बाकी की
हर चीज़ को दबाते हुए यूरा का पीछा करती रहती, चीरफाड़
करने में बाधा डालती. मगर ठीक इसी तरह ज़िंदगी में काफ़ी कुछ उसे परेशान करता. उसे
इसकी आदत हो गई, और इससे वह व्याकुल नहीं होता था.
यूरा बहुत अच्छी तरह मनन
करता और बेहद बढ़िया लिखता था. स्कूल के दिनों से वह गद्य की,
ज़िंदगी का वर्णन करने वाली किताब के सपने देखता, जिसमें छुपे हुए विस्फोटक घोसलों के रूप में वह सब शामिल कर सके जो उसने
अब तक देखा था और जिस पर बहुत विचार किया था. मगर ऐसी किताब के लिए अभी वह बहुत
छोटा था, और इसलिए उसने किताब के बदले कविताएँ लिखना शुरू
किया, जैसा कोई चित्रकार विशाल चित्र के परिचय स्वरूप,
जिसका उसने सपना देखा हो, स्केचेस बनाता है. इन
कविताओं की उत्पत्ति के अपराध को यूरा ने उनकी ऊर्जा और मौलिकता के लिए क्षमा कर
दिया. ऊर्जा और मौलिकता, इन दो गुणों को यूरा कलाओं में
वास्तविकता के प्रतिनिधि मानता था, बाकी सब उद्देश्यहीन,
अनावश्यक और निरुपयोगी है.
यूरा समझता था कि अपनी
सामान्य चारित्रिक विशेषताओं के लिए वह मामा का कितना आभारी है.
निकलाय निकलायेविच लोज़ान
में रहता था. उसके द्वारा वहाँ रूसी में और अन्य
अनुवादों में प्रकाशित किताबों में वह अपने पुराने विचार को विकसित कर रहा था कि
“इतिहास – दूसरा ब्रह्मांड है”, जिसका निर्माण मानवता ने समय
और स्मृति की सहायता से मृत्यु नामक घटना के जवाब में किया है.
इन किताबों का सार था
ईसाइयत का नए तरीके से आकलन, उनका सीधा परिणाम
था – कला की नई संकल्पना.
यूरा से भी ज़्यादा उसके
मित्र पर इन विचारों का गहरा प्रभाव पड़ रहा था. उनके प्रभाव में मीशा गर्दोन ने
दर्शनशास्त्र को अपनी विशेषज्ञता के रूप में चुना. अपने विभाग में वह थियोलॉगी पर
भाषण सुनता और आगे चलकर वह थियोलॉजिकल अकादमी में जाने का विचार भी कर रहा था.
यूरा को मामा का प्रभाव
विकास की ओर ले जा रहा था और उसे आज़ाद कर रहा था, जबकि मीशा
को जकड़ रहा था. यूरा समझता था कि मीशा के इन चरम शौकों में उसकी पैदाइश की क्या
भूमिका है. (मीशा यहूदी था–अनु,) सावधानीवश वह
अपने विचित्र प्लान्स से हतोत्साहित नहीं करता था. मगर अक्सर उसका दिल मीशा को एक
अनुभववादी के रूप में देखने को चाहता, जो जीवन के करीब हो.
3
नवम्बर
के अंत में एक बार यूरा युनिवर्सिटी से देर से लौटा, बेहद
थका हुआ, उसने दिन भर कुछ नहीं खाया था. उसे बताया गया कि दिन
में बेहद ख़तरनाक परिस्थिति उत्पन्न हो गई थी, आन्ना
इवानव्ना को दौरे पड़ रहे थे,
कई सारे डॉक्टर्स आए, पादरी को बुलाने की सलाह दी गई, मगर फिर इस ख़याल को छोड़ दिया गया. अब वह बेहतर है, वह होश में है और उसने हुक्म दिया है कि जैसे ही यूरा
वापस आए, उसे फ़ौरन आन्ना इवानव्ना के पास भेजा जाए.
यूरा
ने सुना और, बगैर कपड़े बदले शयन कक्ष में गया.
कमरे
में हाल ही की उथल-पुथल के निशान थे. नर्स ख़ामोशी से बिस्तर के पास वाली तिपाई पर
कुछ रख रही थी. चारों ओर मुड़े हुए नैपकिन्स और कम्प्रेसिंग के लिए इस्तेमाल किए गए
गीले तौलिए बिखरे थे.
नीचे तसले में थूके गए
खून कारण पानी थोड़ा गुलाबी था. उसमें टूटी गर्दन वाली इंजेक्शन की बोतलों और रूई
के फूले हुए फ़ाहे पड़े थे.
मरीज़
पसीने से लथपथ थी और अपने सूखे हुए होठों को ज़ुबान के सिरे से गीला कर रही थी. जब
यूरा ने पिछली बार उसे देखा था,
तब के मुकाबले में वह
काफ़ी थकी हुई लग रही थी.
“रोग
के निदान में कहीं गलती तो नहीं है?”
उसने सोचा. “सभी लक्षण
तो लोबार निमोनिया के हैं. लगता है कि ये चरम संकट था. आन्ना इवानव्ना का अभिवादन
करके और उसका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए यूँ ही कुछ कहने के बाद, जो हमेशा ऐसे मौकों पर कहा जाता है, उसने नर्स को कमरे से बाहर भेज दिया. नब्ज़ पढ़ने के लिए
आन्ना इवानव्ना का हाथ अपने हाथों में लेकर, उसने
स्टेथोस्कोप निकालने के लिए दूसरा हाथ जैकेट के भीतर डाला. आन्ना इवानव्ना ने सिर
हिलाते हुए इशारा किया कि ये बेकार है. यूरा समझ गया कि वह उससे कुछ और चाहती है.
ताकत बटोरकर आन्ना इवानव्ना ने बोलना शुरू किया:
“चाहते
थे कि “कन्फेशन” करूँ...मौत मँडरा रही थी...हो सकता है किसी भी पल...दाँत निकलवाने
जाओ, डरते हो,
दर्द होगा, अपने आप को तैयार करते हो...मगर यहाँ दाँत नहीं, समूची,
समूची तुम को, समूची ज़िंदगी...खट्, और लो, जैसे
चिमटे से...मगर ये है क्या? ...कोई नहीं जानता...और मुझे पीड़ा होती है और डर लगता
है.”
आन्ना
इवानव्ना चुप हो गई. उसके गालों पर आँसुओं की धाराएँ बहे जा रही थीं. यूरा ने कुछ
नहीं कहा. एक मिनट बाद आन्ना इवानव्ना ने अपनी बात जारी रखी:
“तुम
हुनरमन्द हो... और हुनर,
ये...ऐसा नहीं, जो सबमें हो...तुम कुछ तो जानते हो...मुझसे कुछ कहो...मुझे
तसल्ली दो.”
“ओह, मैं क्या कहूँ,” यूरा
ने जवाब दिया,
वह बेचैनी से कुर्सी पर
कसमसाया, उठकर खड़ा हो गया, एक
चक्कर लगाया और फिर से बैठ गया. “पहली बात, कल
आपकी तबियत बेहतर हो जाएगी – ऐसे लक्षण हैं, वर्ना
आप मेरा सिर काट देना. और इसके बाद – मृत्यु, एक
एहसास है, पुनर्जन्म में विश्वास है...
“क्या
आप एक प्रकृति-वैज्ञानिक के रूप में मेरी राय जानना चाहती हैं? हो सकता है, किसी
और समय? फ़ौरन?
अच्छा, जैसा आप ठीक समझें.
मगर
फ़ौरन बताना, कठिन है.”
और
उसने उसे सद्यःस्फूर्त,
तात्कालिक भाषण दिया, उसे ख़ुद को भी अचरज हुआ कि वह ये कैसे कर सका.
“
पुनर्जन्म. उस सर्वाधिक फूहड़ रूप में,
जिसमें इसका प्रयोग सर्वाधिक
निर्बल लोगों को तसल्ली देने के लिए किया जाता है, मेरे
लिए अपरिचित है. और जीवित व्यक्तियों तथा मृतकों के बारे में क्राइस्ट के शब्दों
को मैंने हमेशा अलग ही रूप में समझा है. सभी सहस्त्राब्दियों में इकट्ठा हुई इस
भीड़ को आप कहाँ रखेंगी?
उनके लिए सृष्टि भी
पर्याप्त नहीं है,
और ख़ुदा को, भलाई को और अर्थ को दुनिया से दफ़ा होना पड़ेगा.
जानवरों
की इस लालचभरी धक्कामुक्की में उन्हें कुचल दिया जाएगा.
मगर
पूरे समय एक और वो ही अंतहीन,
एक जैसा जीवन सृष्टि को
भरता रहता है और हर घण्टे अनगिनत संयोजनों और परिवर्तनों के साथ उसमें नयापन आता
रहता है. तो,
आपको डर है कि आपका
पुनर्जन्म होगा या नहीं,
मगर आपका पुनर्जन्म तो
हो चुका है, जब आपका जन्म हुआ था, और
आपने इस ओर ध्यान नहीं दिया था.
क्या
आपको दर्द होगा,
क्या जिस्म को अपने
विनाश महसूस होगा?
मतलब, दूसरे शब्दों में, आपकी
चेतना का क्या होगा?
मगर चेतना क्या है? देखेंगे. जानबूझकर सोने की इच्छा करना – सचमुच की
अनिद्रा है. अपने पाचन तंत्र के कार्य में जानबूझकर एकरूप हो जाना –
निश्चित ही उसकी कार्यप्रणाली में खराबी आ जाना है. चेतना – ज़हर है, उस व्यक्ति के लिए आत्म-ज़हर (self poisoning) का साधन है, जो उसे
ख़ुद पर इस्तेमाल करता है. चेतना
- बाहर की ओर निकलता हुआ
प्रकाश है, जो हमारे सम्मुख रास्ते को प्रकाशित करता है ताकि हम
ठोकर न खाएँ. चेतना भागते हुए इंजिन की सामने वाली बत्तियाँ हैं. उन्हें रोशनी
समेत भीतर को मोड़ो और तबाही मच जाएगी.
तो, फिर आपकी चेतना का क्या होगा? आपकी. आपकी. मगर आप हैं कौन? सारी गुत्थी इसीमें है. देखते हैं. आप स्वयम् को किस
रूप में याद रखते हैं,
अपनी संरचना के किस अवयव
को जानते हैं?
अपने गुर्दे, यकृत,
रक्तवाहिनियाँ? नहीं,
चाहे जितना याद करें, आपने स्वयम् को हमेशा अपने बाह्य रूप में, गतिमान रूप में ही पाया है, अपने
हाथों के कामों में,
परिवार में, औरों में.
और, अब ज़्यादा ध्यान से. अन्य लोगों में मनुष्य की
उपस्थिति ही मनुष्य की आत्मा है. वही आप हैं, वही है
जिससे आपकी चेतना जीवन भर साँस लेती रही, पलती
रही, तृप्त होती रही. आपकी आत्मा से, आपके अमरत्व से, औरों
के भीतर के आपके जीवन से. तो फिर क्या?
औरों के भीतर आप थे, औरों के भीतर ही रहेंगे. और इससे आपको क्या फ़र्क पड़ता
है, कि बाद में इसे ‘स्मृति’ के नाम से जाना जाएगा. ये होंगे आप, जो भविष्य की संरचना में प्रवेश कर चुके होंगे.
अंत
में, आख़िरी बात. किसी भी बात के बारे में परेशान नहीं होना
है. मृत्यु नहीं है.
मृत्यु
हमारे हिस्से में नहीं है. और, आप कहती हैं ‘हुनर’, ये एक अलग बात है, ये
हमारा है, हमारे लिए उपलब्ध है. और हुनर – सर्वोच्च, विस्तीर्ण अर्थ में जीवन का उपहार है.
मृत्यु
नहीं होगी, ऐसा एवांजेलिस्ट जॉन कहते हैं, और आप उनके तर्क की सादगी देखिए. मृत्यु नहीं होगी
क्योंकि विगत बीत चुका है. ये लगभग वैसा ही है : मृत्यु नहीं होगी, क्योंकि इसे पहले ही देख चुके हैं, ये पुरानी बात है और इससे बेज़ार हो चुके हैं, और अब ज़रूरत है कुछ ‘नये’ की,
और ये ‘नया’
है – चिरंतन जीवन.
वह
कमरे में चहल कदमी करते हुए ये सब कह रहा था. “सो जाइए”, पलंग के पास जाकर आन्ना इवानव्ना के सिर पर हाथ रखकर
उसने कहा.
कुछ
मिनट बीते. आन्ना इवानव्ना को झपकी आने लगी.
यूरा
हौले से कमरे से बाहर निकला और उसने ईगरव्ना से कहा कि वह शयन कक्ष में नर्स को
भेज दे. “शैतान जाने क्या बात है,”
वह सोच रहा था, “मैं कोई नीम-हकीम बन रहा हूँ, सम्मोहन डालता हूँ, हाथ से
छूकर इलाज करता हूँ.”
दूसरे
दिन आन्ना इवानव्ना की तबियत बेहतर हो गई.
4
आन्ना इवानव्ना की तबियत
सुधरती गई. दिसम्बर के मध्य में उसने उठने की कोशिश की,
मगर अभी वह बेहद कमज़ोर थी. उसे सलाह दी गई कि अच्छी तरह आराम करे.
वह अक्सर यूरा और तोन्या
को बुलवा लेती और घंटों उन्हें वरीकिनो में अपने दादा की जागीर में बिताए बचपन के
बारे में बताती रहती, जो युराल में रीन्वा नदी पर
स्थित है. यूरा और तोन्या वहाँ कभी नहीं गए थे, मगर आन्ना
इवानव्ना के शब्दों से यूरा आसानी से इस पंद्रह हज़ार एकड़ प्राचीन, अभेद्य वन की कल्पना कर सकता था, जो रात की भाँति
काला था और जिसे दो-तीन जगहों पर अपने तीखे मोड़ों से चाकू की तरह घोंपती हुई क्र्युगेरोव्स्की
तट पर पथरीले तल और सीधी ढलान वाली तेज़ नदी घुसती थी.
इन दिनों यूरा और तोन्या
के लिए पहली बार पार्टियों वाली ड्रेस सिलवाई गई थी, यूरा के
लिए काला टू-पीस सूट और तोन्या के लिए – हल्के सैटिन की, कुछ
खुली गर्दन वाली ईवनिंग ड्रेस. वे इन ड्रेसों को सत्ताईस तारीख को स्विन्तीत्स्की
परिवार में हर साल होने वाली पारंपरिक क्रिसमस पार्टी में पहनने वाले थे.
मर्दों वाले वर्कशॉप और
ड्रेसमेकर के यहाँ से ये पोषाकें एक ही दिन आईं. यूरा और तोन्या ने उन्हें पहनकर
देखा, वे संतुष्ट थे और पोषाकों को उतार भी नहीं पाए
थे कि ईगरव्ना आन्ना इवानव्ना के पास से उन्हें बुलाने के लिए आई. वैसे ही,
नये कपड़ों में, यूरा और तोन्या आन्ना इवानव्ना
के पास गए.
उनके आते ही वह कुहनियों
के बल उठी, उन्हें किनारे से देखा, पीछे मुड़ने को कहा और बोली:
“बहुत बढ़िया. एकदम अद्भुत.
मुझे मालूम ही नहीं था, कि ये तैयार है. ओह, हाँ, तोन्या, एक बार और. नहीं,
कोई बात नहीं. मुझे ऐसा लगा कि जोड़ पर कुछ सिलवटें पड़ रही हैं. पता
है, मैंने आप लोगों को क्यों बुलाया है? मगर पहले कुछ लब्ज़ तुम्हारे बारे में, यूरा.”
“मैं जानता हूँ,
आन्ना इवानव्ना. मैंने ख़ुद ही आपको वह ख़त दिखाने के लिए कहा था. आप,
निकलाय निकलायेविच की तरह सोचती हैं, कि मुझे
इनकार नहीं करना चाहिए था. एक मिनट धीरज रखें, बात करने से
आपको नुक्सान हो सकता है.
मैं आपको अभी सब समझाता
हूँ. हाँलाकि आपको ये सब अच्छी तरह मालूम है.
तो,
पहली बात. झिवागो की विरासत का मामला है – सिर्फ वकीलों को खिलाने
के लिए और अदालत की फीस देने के लिए, मगर असल में कोई विरासत
है ही नहीं, सिर्फ कर्ज़े और उलझनें, और
इस सबके साथ सतह पर तैरती गन्दगी.
अगर किसी चीज़ को धन में परिवर्तित
करना संभव होता, तो क्या मैं उसे वकीलों को भेंट
चढ़ाने के बदले ख़ुद ही न इस्तेमाल कर लेता? मगर यही तो बात है,
कि ये ‘केस’ – झूठा है,
और इसमें गहरे जाने के बदले यही बेहतर था कि अस्तित्वहीन जायदाद पर
अपने अधिकारों को त्याग देना और उसे कुछ झूठे प्रतिस्पर्धकों और ईर्ष्यालु
बहुरूपियों को दे दिया जाए. किसी एक मैडम एलिस के दावे के बारे में, जो बच्चों के साथ ‘झिवागो” उपनाम
से पैरिस में रहती हैं, मैं काफ़ी पहले सुन चुका हूँ. मगर कुछ
नए दावेदार भी प्रकट हुए हैं, और पता नहीं आप उनके बारे में
जानती हैं या नहीं, मगर मुझे ये सब हाल ही में बताया गया है.
शायद,
मम्मा की ज़िंदगी में ही पिता एक स्वप्नदृष्टा, पगली-सी राजकुमारी स्तल्बूनवा-एन्रित्सी की ओर आकर्षित हुए थे. इस महिला
का मेरे पिता से एक बेटा है, उसकी उम्र अब दस साल है,
उसका नाम है एव्ग्राफ़.
राजकुमारी – एकान्तवासी
है. वह ओम्स्क के बाहरी इलाके में अज्ञात संसाधनों के सहारे अपने बेटे के साथ
आलीशान घर में रहती है. कभी घर से बाहर नहीं निकलती. मुझे इस हवेली की तस्वीर
दिखाई गई थी. ख़ूबसूरत, एक पल्ले वाली पाँच खिड़कियों
वाला घर है, और कार्निस पर सिमेन्ट के मेडल्स लगे हुए. मगर
पिछले कुछ समय से मेरे मन में ये ख़याल आ रहा है, जैसे अपनी
पाँचों खिड़कियों से ये घर मेरी ओर दुष्टता से देख रहा है – हज़ारों मील की दूरी से,
जो रूस के यूरोपीय भाग को साइबेरिया से अलग करते हैं, और कभी ना कभी मुझ पर बुरी नज़र डालेगा. तो, फिर ये
सब मुझे किसलिए चाहिए : काल्पनिक सम्पत्ति, कृत्रिम ढंग से
खड़े किए गए प्रतिस्पर्धी, उनकी बदनीयती और ईर्ष्या? और एडवोकेट्स.”
“फ़िर
भी, मना नहीं करना चाहिए था,” आन्ना
इवानव्ना ने प्रतिकार किया. “पता है,
मैंने तुम लोगों को
क्यों बुलाया है,”
उसने फिर से दुहराया और
आगे कहने लगी:
“मुझे
उसका नाम याद आ गया है. याद है,
कल मै लकड़हारे के बारे
में बता रही थी?
उसका नाम था वाक्ह . है
न अपनी ही तरह का?
काली, जंगली डरावनी चीज़, भौंहो
तक दाढ़ी से ढँका हुआ,
और – वाक्ह! उसका चेहरा
विद्रूप था, उस पर भालू ने हमला कर दिया था, मगर वह छिटक कर आ गया. और वहाँ सब ऐसे ही हैं. ऐसे ही
नामों वाले. एक पदांश वाले. जिससे खनखनाते हुए और स्पष्ट, भारी भरकम लगें. वाक्ह. या लूप्प. या, जैसे,
फ़ाव्स्त. सुनो, सुनो. किसी ऐसे नाम के बारे में घोषणा की जाती. आव्क्त
या फिर कोई फ्रोल,
दादू की दुनाली बंदूक से
छूटी गोलियों की तरह,
और हम फ़ौरन झुण्ड बनाकर
बच्चों के कमरे से किचन में भाग जाते. और वहाँ, सोचिए, कोई ज़िंदा भालू के चेहरे वाला कोयला मज़दूर या कोई
खदान-मज़दूर जो किसी खनिज का नमूना लाया है. और दादू – सबको पर्चियाँ देते. दफ़्तर
में जाने को कहते. किसी को पैसे,
किसी को रवा, किसी को गोला-बारूद. और जंगल खिड़कियों के सामने ही था.
और बर्फ, बर्फ! घर से ऊँची!” आन्ना इवानव्ना खाँसने लगी.
“रुक
जाओ, मम्मा,
तुम्हें इससे नुक्सान हो
रहा है,” तोन्या ने आगाह किया.
यूरा
ने उसका समर्थन किया.
“कोई
बात नहीं. बकवास. हाँ,
बात निकली है तो कहती
हूँ. ईगरव्ना ने चुगली की है,
कि आप तय नहीं कर पा रहे
हैं कि परसों क्रिसमस पार्टी में जाना चाहिए या नहीं.
मैं
फिर ऐसी बेवकूफ़ियाँ न सुनूँ! शर्म कैसे नहीं आती तुम लोगों को. और तुम यूरा, ऊपर से अपने को डॉक्टर कहते हो? तो,
फ़ैसला हो गया. आप लोग जा
रहे हैं, बिना ना-कुकर किए. तो, वाक्ह
की ओर लौटते हैं. ये वाक्ह जवानी में बढ़ईगिरी करता था. एक झगड़े में उसकी आँतें टूट
गईं. उसने अपने लिए नई आँतें बना लीं,
लोहे की. कैसे अजीब हो
तुम, यूरा. क्या मैं समझती नहीं हूँ? ज़ाहिर है,
शब्दशः नहीं. मगर लोग ऐसा
कहते थे.”
आन्ना
इवानव्ना फिर से खाँसने लगी,
इस बार काफ़ी देर तक.
दौरा ख़तम नहीं हुआ. वह साँस नहीं ले पा रही थी.
यूरा
और तोन्या उसी पल उसके पास पहुँचे. वे उसके पलंग के पास कंधे से कंधा लगाए खड़े थे.
खाँसते हुए आन्ना इवानव्ना ने उनके एक दूसरे को छूते हुए हाथों को पकड़ा और कुछ देर
तक वैसे ही जोड़े हुए पकड़े रही. फिर,
आवाज़ और साँस पर काबू
पाकर, कहा:
“अगर
मैं मर जाऊँ,
तो एक दूसरे से जुदा मत
होना. तुम एक दूसरे के लिए बने हो. शादी कर लेना. देखो, मैंने
तुमको राज़ी कर ही लिया,”
उसने आगे कहा और रोंने
लगी.
5
सन् 1906 के बसन्त में ही,
स्कूल की अंतिम कक्षा में जाने से पहले, कमारोव्स्की
के साथ उसके संबंध लारा के सब्र का इम्तिहान ले रहे थे. वह बड़ी चालाकी से उसके
अवसाद का फ़ायदा उठाता, और जब ज़रूरत होती, तो बिना दिखाए बड़ी बारीकी और सफ़ाई से उसके बलात्कार की याद दिला देता. ये उल्लेख
लारा को उस उलझन में ले जाते, जो कामुक व्यक्ति को औरत से
अपेक्षित होती है. ये उलझन लारा को अधिकाधिक विषय-लालसा के दुःस्वप्न की गिरफ्त
में ले जातीं, जिनसे होश में आने पर उसके बाल खड़े हो जाते.
रात के पागलपन के
विरोधाभास किसी “काली किताब” की तरह अगम्य थे. वहाँ सब कुछ उलटा-पुलटा और तर्क के
विरुद्ध था, चुभती हुई पीड़ा रुपहले ठहाकों से
प्रकट होती, संघर्ष और इनकार सहमति दर्शाते और पीड़क के हाथ
को कृतज्ञता के चुम्बनों से ढाँक देते.
लगता था,
कि इसका कभी अंत ही नहीं होगा, मगर बसन्त में,
शिक्षा-सत्र की आख़िरी कक्षाओं में से एक में, इस
बारे में सोचते हुए कि गर्मियों में यह उत्पीड़न कितना बढ़ेगा, जब स्कूल में पढ़ाई नहीं होगी, जो कमारोव्स्की से
मुलाकातों से बचने का आश्रय स्थल था, लारा फ़ौरन एक निष्कर्ष पर
पहुँची जिसने हमेशा के लिए उसकी ज़िंदगी को बदल दिया.
एक गरम सुबह थी,
तूफ़ान आने वाला था. कक्षा में खिड़कियाँ खुली रखकर पढ़ाई हो रही थी.
दूर शहर भिनभिना रहा था, पूरे समय एक ही सुर में, जैसे छत्ते में मधुमक्खियाँ भिनभिनाती हैं. कम्पाऊण्ड से खेलते हुए बच्चों
की चीख आई. धरती से आती घास की सुगंध और कोमल हरियाली से सिर दर्द कर रहा था,
जैसा वसंतोत्सव पर वोद्का और पैनकेक के धुएँ से होता है.
इतिहास के शिक्षक नेपोलियन
के इजिप्ट-अभियान के बारे में बता रहे थे. जब वह फ्रेझ्क्यूस के घेरे तक पहुँचे,
तो आकाश काला हो गया, चटक गया और गड़गड़ाहट और
बिजली के प्रहार से मानो टूट गया, और कक्षा में खिड़कियों से
ताज़ी ख़ुशबू के साथ-साथ रेत और धूल के बवण्डर भी घुस आए. दो चापलूस बच्चे खिड़कियाँ
बंद करने के लिए चपरासी को बुलाने फ़ौरन कॉरीडोर में भागे और जब उन्होंने दरवाज़ा
खोला, तो हवा कमरे में घुस गई और सभी डेस्कों पर कापियों से
ब्लॉटिंग पेपर्स बिखेर दिये.
खिड़कियाँ बंद कर दी गईं.
शहर की गन्दी, धूल भरी बारिश की झड़ी लग गई.
लारा ने अपनी नोटबुक से एक पन्ना फ़ाड़ा और बेंच की अपनी पड़ोसन नाद्या
कलाग्रीववा को लिखा:
“नाद्या,
मुझे मम्मा से अलग ज़िंदगी बनानी है. कुछ अच्छी ट्यूशन्स ढूँढ़ने में
मेरी मदद करो. अमीरों के बीच तेरी काफ़ी पहचान है”.
नाद्या ने उसी तरह जवाब
दिया:
“लीपा के लिए शिक्षिका ढूँढ़
रहे हैं. हमारे यहाँ आ जा. बढ़िया रहेगा! तुझे तो मालूम है कि मम्मा और पापा तुझे
कितना प्यार करते है”.
6
कलाग्रीवव
परिवार में लारा तीन साल से ज़्यादा इस तरह रही जैसे किसी पत्थर की दीवार के पीछे
रह रही हो. कहीं से उस पर कोई हमले नहीं किए गये, और माँ
तथा भाई ने भी, जिनके प्रति उसके मन में बेहद परायेपन की
भावना थी, अपने बारे में उसे याद नहीं दिलाई.
लव्रेन्ती
मिखाइलविच कलाग्रीवव एक बहुत बड़ा उद्योजक था, नई किस्म
का व्यावहारिक व्यक्ति, हुनरमन्द और बुद्धिमान. उसे
जीर्ण-शीर्ण व्यवस्था से दोहरी किस्म की नफ़रत थी : शानदार रूप से रईस की नफ़रत,
जो सरकारी ख़ज़ाने को ख़रीद सकता है; और दूर
परियों के देश में विचरण कर रहे, सामान्य जनता से निकले
व्यक्ति की नफ़रत. वह अपने यहाँ गैरकानूनी लोगों को छुपाता, राजनैतिक
मुकदमों में दोषी पाये गए लोगों के लिए वकील रखता और जैसा कि मज़ाक में लोग कहते,
कि क्रांति को आर्थिक मदद करते हुए, ख़ुद को ही
एक मालिक के रूप में उखाड़ फेंकता, और अपनी ख़ुद की ही
फैक्ट्री में हड़तालें करवाता. लव्रेन्ती मिखाइलविच एक अचूक निशानेबाज़ था और उसे
शिकार का बेहद शौक था और सन् 1905 की सर्दियों में हर इतवार को वह ‘सिल्वर वुड्स’ और ‘मूस आइलैण्ड’
पर निगरानी समिति के सदस्यों को गोली-बारी की ट्रेनिंग देता.
यह
एक असाधारण व्यक्ति था. सिराफ़ीमा फिलीपव्ना, उसकी
पत्नी भी पूरी तरह उसके योग्य थी. लारा के मन में इन दोनों के प्रति प्रशंसायुक्त
आदर का भाव था. घर में हर कोई उसे अपना ही समझ कर प्यार करता था.
लारा
के परेशानी से मुक्त जीवन के चौथे वर्ष उसके पास भाई रोद्या किसी काम से आया. अपनी
लम्बी टाँगों पर छिछोरों की तरह झूलते हुए और सिर्फ शान दिखाने के लिए नकीली आवाज़
में शब्दों का उच्चारण करते हुए और कृत्रिम रूप से उन्हें खींचते हुए, उसने बताया कि उसके बैच के कैडेट्स ने बिदाई-समारोह पर
स्कूल के डाइरेक्टर को तोहफ़ा देने के लिए पैसे इकट्ठा किए और उन्हें रोद्या को
देकर तोहफ़ा लाने के लिए कहा. तीन दिन हुए, वह ये
पूरे पैसे जुए में हार गया. इतना कहकर रोद्या अपने दुबले-पतले शरीर समेत आराम
कुर्सी में धँस गया और रोने लगा.
ये
सुनकर लारा का जिस्म ठण्डा पड़ गया. हिचकियाँ लेते हुए रोद्या ने आगे कहा:
“कल
मैं विक्तर इपालीतविच के पास गया था. उसने इस बारे में मुझसे बात करने से इनकार कर
दिया, मगर ये कहा, कि अगर
तुम चाहो...वह कहता है,
कि हाँलाकि तुम हम लोगों
से अब प्यार नहीं करतीं,
मगर तुम्हारा प्रभाव अभी
भी उस पर बहुत ज़्यादा है…लारच्का,
बस, एक ही लब्ज़ काफ़ी है...तुम समझ रही हो ना, कि ये कितनी अपमानजनक बात है और कैसे अफ़सर की वर्दी के
सम्मान पर कलंक लगाएगी?,,,उसके पास जाओ...आख़िर तुम ये तो नहीं चाहोगी कि मैं इस
हेरा-फेरी की कीमत अपने खून से चुकाऊँ”.
“खून
से चुकाऊँ....अफ़सर की वर्दी का सम्मान,”
उत्तेजना से कमरे में
घूमते हुए लारा क्रोध से दुहरा रही थी. “और मैं वर्दी नहीं हूँ, मेरी कोई इज़्ज़त नहीं है, और
मेरे साथ जो चाहो वो किया जा सकता है. तू समझ रहा है, कि
क्या करने को कह रहा है,
तुमने सोचा भी कि वह
तुम्हारे सामने क्या प्रस्ताव रख रहा है? सालों
साल, जी-तोड़ मेहनत करके बनाओ, उसे संभालो, नींद पूरी न करो, और ये
आया है, और उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वह सब कुछ धुँए में उड़ा
रहा है, थूक रहा है और सब खाक हो जाता है! जहन्नुम मे जा! अपने
आप को गोली मार ले,
प्लीज़! मुझे क्या करना
है? कितना चाहिए तुझे?”
“छह
सौ नब्बे और कुछ चिल्लर,
चलो, हिसाब के लिए सात सौ गिन लेते हैं,” रोद्या ने कुछ हिचकिचाहट से कहा.
“रोद्या!
नहीं, तू पागल हो गया है! मालूम भी है, क्या कह रहा है? तू सात
सौ रूबल हार गया?
रोद्या! रोद्या! क्या
तुझे मालूम है कि मेरे जैसे एक साधारण इन्सान को ईमानदारी से इतना पैसा कमाने में
कितना वक्त लगता है?”
कुछ
देर के बाद उसने ठंडेपन और पराएपन से आगे कहा:
“ठीक
है. मैं कोशिश करूँगी. कल आना. और अपने साथ रिवॉल्वर लेता आ, जिससे तू अपने आप को गोली मारना चाहता था. तू रिवॉल्वर
मुझे देगा, मेरे पास रखने के लिए. अच्छे ख़ासे कारतूसों के साथ, याद रख.”
ये
पैसे उसने कलाग्रीवव से लिए.
7
कलाग्रीवव
परिवार की नौकरी ने लारा को स्कूल की पढ़ाई पूरी करने, नए
पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने,
उन्हें सफ़लतापूर्वक पूरा
करते हुए उन्हें समाप्त करने की ओर बढ़ने में कोई विघ्न नहीं डाला, ये पाठ्यक्रम उसे आगामी सन् 1912 में पूरे करने थे.
सन्
ग्यारह के बसन्त में उसकी छात्रा लीपच्का ने स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली.
उसका
पहले से ही मंगेतर भी था,
नौजवान इंजीनियर
फ्रिज़ेन्दान्क,
जो अच्छे, संभ्रांत परिवार से था. माता-पिता ने लीपच्का की पसन्द
का समर्थन किया,
मगर वे इस बात के ख़िलाफ़
थे कि वह इतनी जल्दी शादी करे,
और उन्होंने उसे इंतज़ार
करने की सलाह दी. इस बात पर बड़े नाटक हुए. लाड़-प्यार से बिगड़ी और कुछ सनकी, परिवार की लाड़ली लीपच्का, माँ-बाप
पर चिल्लाई और पैर पटकने लगी.
उस
अमीर घराने में,
जहाँ लारा को अपना ही
समझा जाता था,
उस कर्ज़ की कभी याद नहीं
दिलाई गई, जो उसने रोद्या की ख़ातिर लिया था. उसकी उन्हें याद भी
नहीं थी.
ये
कर्ज़ लारा काफ़ी पहले चुका देती,
अगर उसके अपने निरंतर
खर्चे न होते,
जिनके बारे में वह किसी
को भी नहीं बताती थी.
वह
पाशा से छुपकर उसके पिता,
अन्तीपव को पैसे भेजा
करती, जो निर्वासन में रह रहा था, और
उसकी अक्सर बीमार और झगडालू माँ की मदद करती. इसके अलावा उसने बड़े गुप्त तरीके से
ख़ुद पाशा के खर्चे भी कम कर दिए थे,
उसके अनजाने में उसके
मकान मालिक को उसके रहने और खाने के लिए कुछ अतिरिक्त पैसे दे दिया करती.
उम्र
में लारा से कुछ छोटा होने के कारण पाशा उसे दीवानगी की हद तक प्यार करता और उसकी
हर बात मानता था. उसके आग्रह पर उसने स्कूल समाप्त करते हुए उसने लैटिन और ग्रीक
इन अतिरिक्त विषयों की भी पढ़ाई शुरू कर दी, जिससे
युनिवर्सिटी में भाषाविद् के रूप में दाखिला ले सके. लारा का सपना था, कि साल भर बाद जब वे शासकीय परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर
लेंगे, वह पाशा से शादी कर लेगी और वे यहाँ से यूराल के किसी
प्रांतीय शहर में स्कूल में शिक्षक की नौकरी कर लेंगे – पाशा लड़कों के स्कूल में, और वह – लड़कियों के स्कूल में.
पाशा
जिस कमरे में रहता था उसे लारा ने ख़ुद ढूँढ़ कर ख़ामोश तबियत मालिकों से उसके लिए
किराए पर लिया था. यह एक नई बिल्डिंग थी,
कामेरगेर्स्की गली में,
आर्ट थियेटर के पास.
सन्
1911 की गर्मियों में लारा आख़िरी बार कलाग्रीवव परिवार के साथ दुप्ल्यान्का गई.
उसे यह जगह बेहद पसंद थी,
मालिकों से भी ज़्यादा, यहाँ वह अपने आप को भूल जाती थी. ये बात सबको अच्छी
तरह मालूम थी,
और गर्मियों की इन
यात्राओं के लिए लारा के लिए एक अलिखित समझौता था. जब उन्हें लाने वाली गर्म और
धुँए से काली हो गई रेल आगे बढ़ जाती,
और असीमित—चौंका देने
वाली और महकती ख़ामोशी के साम्राज्य
में परेशान लारा अपनी वाक्-शक्ति खो बैठती, तो उसे
पैदल जागीर तक आने के लिए अकेला छोड़ दिया जाता, जब तक
उस छोटे से स्टेशन से घसीटते हुए गाड़ी पर सामान रखा जाता, और दुप्ल्यान्का का गाड़ीवान लाल आस्तीनों वाली कमीज़ पर
बिना बाँहों वाला गाड़ीवान का जैकेट पहने मालिकों को, जब वे
गाड़ी में बैठ जाते,
पिछले मौसम की स्थानीय
ख़बरें सुनाता.
लारा
रास्ते की बगल में पगडंडी पर चल रही थी, जो
मुसाफ़िरों और भक्तमंडलियों के पैरों से कुचली गई थी, और
जंगल को जाने वाले घास के पट्टे पर मुड़ जाती थी. यहाँ वह रुकी और, आँखें सिकोड़ कर, उसने
आसपास की विस्तीर्णता की परेशान-महकती हवा को अपने भीतर खींच लिया. वह माँ और बाप
से भी ज़्यादा अपनी थी,
प्रेमी से बेहतर और
किताब से ज़्यादा विद्वान थी.
एक पल के लिए लारा के
सामने अस्तित्व का अर्थ फिर से स्पष्ट हो गया. “वह यहाँ,” – उसने सोचा,
“इसलिए है, कि इस धरती की मदमाती सुंदरता को समझ सके और हर चीज़ को
नाम दे सके, और अगर यह उसकी सामर्थ्य से परे हो, तो जीवन के प्रति प्यार के कारण अपनी संतानें उत्पन्न
करे, जो उसके स्थान पर ये करेंगी”.
इन
गर्मियों में लारा खूब काम करके,
जो उसने ख़ुद पर लाद लिया
था, बेहद थककर आई थी. वह जल्दी से परेशान हो जाती. उसके
भीतर शक की भावना पनपने लगी,
जो पहले उसके स्वभाव में
नहीं थी. इससे लारा के चरित्र में कुछ ओछापन आ गया, जिसमें
सदा से खुलापन था और सतर्कता का नामोनिशान नहीं था.
कलाग्रीवव
परिवार ने उसे जाने नहीं दिया. उनके यहाँ उसे पहले जैसा ही प्यार मिलता था. मगर जब
से लीपा अपने पैरों पर खड़ी हुई,
लारा इस घर में ख़ुद को
अनावश्यक समझने लगी. उसने तनख़्वाह लेने से इनकार कर दिया. उसे ज़बर्दस्ती तनख़्वाह
दी गई. ऊपर से इन पैसों की लारा को ज़रूरत थी, और ‘मेहमान’
के रूप में रहकर
स्वतन्त्र रूप से कुछ कमाना अटपटा-सा लगता और व्यावहारिक रूप से ये संभव भी नहीं
था.
लारा
को अपनी स्थिति बनावटी और बर्दाश्त से बाहर लगती थी. उसे लगता, कि वह सब पर बोझ है मगर कोई दिखाता नहीं है. वह ख़ुद भी
अपने आप पर बोझ ही थी. उसका दिल चाहता,
कि जहाँ सींग समाएँ, भाग जाए,
अपने आप से और कलाग्रीववों
से भाग जाए, मगर लारा का ख़याल था कि इससे पहले कलाग्रीववों को पैसे
लौटाने चाहिए,
मगर ये पैसे उसे कहीं से
भी नहीं मिल सकते थे. पैसों की हेरा-फेरी वाले रोद्या की बेवकूफ़ी भरी हरकत के कारण वह ख़ुद को कलाग्रीववों
के पास गिरवी समझती थी और इस नपुंसक आक्रोश से बचने के लिए उसके पास कोई जगह नहीं
थी.
उसे
हर बात में लापरवाही के लक्षण दिखाई देते. कलाग्रीववों के घर आये परिचित यदि उसकी
ओर ज़्यादा ध्यान देते,
तो इसका मतलब होता, कि उसे आसानी से जाल में फँसने वाली “आश्रित” समझा जा
रहा है, जो शिकायत नहीं करेगी. और जब उसे अकेला छोड़ दिया जाता, तो ये सिद्ध होता, कि
उसका कोई अस्तित्व नहीं है और किसी ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया है.
चिंतोन्माद
के दौरों ने लारा को दुप्ल्यान्का में आए हुए बड़े समुदाय के साथ ख़ुशियाँ मनाने से
नहीं रोका. वह तैरने के लिए जाती,
नौका विहार करती, नदी के उस पार रात की पिकनिकों में हिस्सा लेती, सबके साथ मिलकर आतिशबाजी करती और नृत्य भी करती. वह
शौकिया थियेटर के नाटकों में भाग लेती और ख़ास तौर से छोटे माउज़ेर राइफल्स से
निशानेबाज़ी की प्रतियोगिताओं में भाग लेती, जिनके
मुकाबले में उसे रोद्या की हल्की रिवॉल्वर ज़्यादा अच्छी लगती. वह उससे अचूक निशाना
लगाती, और मज़ाक में अफ़सोस करती कि वह औरत है और एक
साहसिक-द्वंद्वयोद्धा का पेशा उसके लिए नहीं है. मगर जितना ज़्यादा वह आमोद-प्रमोद
में व्यस्त रहती उतना ही उसकी बेचैनी बढ़ती जाती. वह ख़ुद भी नहीं जानती थी, कि क्या चाहती है.
शहर
में लौटने पर यह एहसास ख़ास तौर से और बढ़ गया. यहाँ लारा की मुसीबतों में पाशा के
साथ छोटे-मोटे झगड़े भी शामिल हो गए (गंभीरता से उसके साथ झगड़ा करने से लारा बचती
थी, क्योंकि उसे अपना अंतिम सहारा मानती थी). पिछले कुछ
समय से पाशा में कुछ आत्मविश्वास प्रकट होने लगा था. उसकी बातचीत में आलोचनात्मक
लहज़ा आ गया था जिससे लारा को हँसी भी आती और वह परेशान भी हो जाती.
उसके
दिमाग़ में पाशा,
लीपा, कलाग्रीवव परिवार, पैसे –
यही सब घूमता रहता. लारा को ज़िंदगी से नफ़रत होने लगे. वह
अपने दिमाग़ से काबू खोने लगी.
उसका
दिल चाहता कि हर जानी-पहचानी और भुगती हुई चीज़ फेंक दे और कुछ नया शुरू करे. इस
मानसिक अवस्था में सन् 1911 के क्रिसमस के समय पर उसने एक दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय
लिया. उसने फ़ौरन कलाग्रीववों से अलग होकर अकेले ही और स्वतंत्र रूप से किसी तरह
अपनी ज़िंदगी बनाने का फ़ैसला किया, और इसके लिए आवश्यक धनराशि कमारोव्स्की से माँगने का
फ़ैसला किया. लारा को ऐसा लगा,
कि जो कुछ भी उनके बीच
हुआ था और इसके बाद मुश्किल से प्राप्त किए गए आज़ादी के वर्षों के बाद उसे बड़े दिल
से लारा की मदद करनी चाहिए,
किन्हीं भी स्पष्टीकरणों
की माँग न करते हुए,
निःस्वार्थ भाव से, बिना कोई कीचड़ उछाले.
इस
उद्देश्य से सत्ताईस दिसम्बर की शाम को वह पित्रोव्स्की लाईन्स की ओर चल पड़ी और, निकलते हुए अपनी आस्तीन में रोद्या का भरा हुआ
रिवॉल्वर सेफ्टी लॉक बन्द करके छुपा लिया, इस
इरादे से कि अगर विक्तर इपालीतविच ने उसे इनकार किया, उसे
गलत समझा या किसी तरह अपमान किया तो वह उसे गोली मार देगी.
वह
त्यौहार के उपलक्ष्य में जगमगाते रास्तों पर भयानक उलझन में जा रही थी और आस-पास
की किसी चीज़ पर उसका ध्यान नहीं था. गोली की काल्पनिक आवाज़ उसकी आत्मा में अभी से
गूँज रही थी,
इस बात की उसे बिल्कुल
फ़िक्र नहीं थी कि वह किस पर चलाई गई थी. ये गोली की आवाज़ ही एकमात्र चीज़ थी, जिसका वह अनुभव कर रही थी. जैसे वह पूरे रास्ते उसे
सुन रही थी, और ये निशाना था कमारोव्स्की पर, ख़ुद अपने आप पर, अपने
भाग्य पर और लॉन में खड़े बलूत के पेड़ पर जिसके तने पर निशानेबाज़ी के लिए एक लक्ष्य
खुदा हुआ था.
8
“बाहों को हाथ न लगाना,”
उसने ‘ओह, आह’ करती एम्मा एर्निस्तोव्ना से कहा. जब उसने लारा को गर्म कपड़े उतारने में
सहायता करने के लिए लारा की ओर हाथ बढ़ाए.
विक्तर इपोलीतविच घर में
नहीं था. एम्मा एर्निस्तोव्ना लारा को भीतर आने और ओवरकोट उतारने के लिए मनाती
रही.
“मैं नहीं आ सकती. मैं
जल्दी में हूँ. वह कहाँ है?”
एम्मा एर्नेस्तव्ना ने कहा
कि वह क्रिसमस पार्टी में गया है. हाथों में पता लिए लारा उदास,
हर चीज़ की स्पष्ट याद दिलाती, खिड़कियों पर
रंगबिरंगे डिज़ाइनों वाली सीढ़ी से भागी और बेकरी स्ट्रीट पर स्विन्तित्स्की के घर
की ओर चलने लगी.
सिर्फ अभी,
दूसरी बार रास्ते पर निकलने पर, लारा ने चारों
ओर नज़र डाली. सर्दियाँ थीं. शहर था. शाम थी.
बर्फीली ठण्ड थी. रास्ते
काली बर्फ से ढँक गए थे, जो टूटी हुई बीयर की बोतलों
के पेंदे जितनी मोटी थी. साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी.
हवा बर्फ के भूरे,
नुकीले कणों से सराबोर थी, और ऐसा लग रहा था,
कि वह गुदगुदी कर रही है और नुकीले ब्रश जैसी चुभ रही थी, ठीक उसी तरह जैसे लारा की बर्फ बन चुकी फर की कॉलर उसके मुँह में घुस रही
थी. तेज़ी से धड़कता दिल लिए लारा ख़ाली सड़कों पर चली जा रही थी. रास्ते में चायख़ानों
और शराबखानों के दरवाज़ों से धुँआ निकल रहा था. आने जाने वालों के बर्फ से सुन्न
हुए, सॉसेज जैसे लाल चेहरे, और दाढ़ियों
वाले घोड़ों के थोबड़े और बर्फ के कणों में लिपटे कुत्ते कोहरे से प्रकट होते. हिम
और बर्फ की मोटी तह से ढँकी घरों की खिड़कियों पर जैसे किसीने खड़िया फेर दी थी,
और उनकी अपारदर्शी सतह पर जगमगाते क्रिसमस ट्रीज़ की रंगबिरंगी
रोशनियाँ और ख़ुशी मनाते लोगों की परछाइयाँ चल रही थी, जैसे
सड़क पर चल रहे लोगों को घरों के भीतर से जादुई लैम्प के सामने टंगी सफ़ेद चादरों पर
धुँधली तस्वीरें दिखाई जा रही हों.
कामेर्गेर्स्की पर लारा
रुकी. “मैं और नहीं कर सकती, मैं बर्दाश्त
नहीं कर सकती,” उसके मुँह से लगभग ज़ोर से निकला. “मैं ऊपर
जाऊँगी और उसे सब कुछ बता दूँगी,” अपने आप पर काबू पाकर,
दर्शनीय भाग का भारी दरवाज़ा खोलते हुए उसने सोचा.
9
प्रयत्न
करते-करते लाल हो चुका पाशा,
ज़ुबान को गालों के बीच
दबाकर आईने के सामने संघर्ष कर रहा था,
वह कमीज़ का कॉलर लगाने
की और मुड़े हुए कफ़-लिंक्स को कमीज़ के सामने के हिस्से के कलफ़ लगे बटनहोल में
घुसाने की कोशिश कर रहा था. वह बाहर जाने की तैयारी कर रहा था और अभी भी इतना साफ़
और अनुभवहीन था,
कि जब लारा ने बिना
खटखटाए भीतर आकर उसे ऐसी अवस्था में पाया, तो वह
परेशान हो गया. उसने फ़ौरन लारा की परेशानी को भाँप लिया. उसके पैर लड़खड़ा रहे थे.
वह एक-एक कदम अपनी पोषाक को धकेलती चल रही थी, जैसे
उसे पार कर रही हो.
“तुझे
क्या हो गया है?
हुआ क्या है?” उसने उसके पास भागते हुए आशंका से पूछा.
“मेरे
पास बैठो. जैसे हो,
वैसे ही बैठो.
सजने-सँवरने की ज़रूरत नहीं है.
मैं
जल्दी में हूँ. मुझे अभी जाना होगा,
कोट की बाँह न छूना.
रुको.
एक मिनट के लिए पीछे मुड़ो.”
उसने
बात मान ली. लारा ने अंग्रेज़ी ढंग का सूट पहना था. उसने जैकेट उतारा, उसे कील पर टाँग दिया और रोद्या की पिस्तौल को कोट की
बाँह से निकाल कर जैकेट की जेब में रख दिया. फिर दीवान के पास आकर बोली:
:अब
देख सकते हो. मोमबत्ती जलाओ और बिजली बुझा दो.”
लारा
को आधे-अँधेरे में शमा की रोशनी में बातें करना अच्छा लगता था.
पाशा
हमेशा उसकी ख़ातिर मोमबत्तियों का पूरा पैकेट रखता था.
उसने
शमादान से जला हुआ मोम निकालकर उसमें एक नई मोमबत्ती रखी, उसे खिड़की की सिल पर रखा और जला दिया. लौ स्टेरिन के
कारण घुटने लगी,
फिर उसमें से चटचटाहट के
साथ चारों तरफ चिनगारियाँ फूटने लगीं और वह तीर की तरह तीक्ष्ण हो गई. कमरा नर्म
प्रकाश से भर गया. खिड़की पर जमी बर्फ मोमबत्ती की ऊँचाई पर एक काली आँख बनाते हुए
पिघलने लगी.
“सुनो,
पतूल्या,” लारा ने कहा. “मैं मुसीबत में हूँ.
उनसे निकलने में मेरी मदद
करनी होगी. घबराओ नहीं और मुझसे कुछ न पूछो, मगर अपने
दिमाग़ से ये ख़याल निकाल दो, कि हम औरों की तरह हैं. शांत न
रहो. मैं हमेशा ख़तरे में हूँ. अगर तुम मुझसे प्यार करते हो और मुझे मौत से बचाना
चाहते हो, तो देर करने की ज़रूरत नहीं है, जल्दी से शादी कर लेंगे.”
“ये तो हमेशा से मेरी
ख़्वाहिश रही है,” वह उसकी बात काटते हुए बोला.
“फ़ौरन दिन तय करो, मुझे किसी भी दिन शादी करने में ख़ुशी होगी,
जो तुम चाहोगी. मगर मुझे आसान लब्ज़ों में और साफ़-साफ़ बताओ, कि तुम्हें हुआ क्या है, पहेलियों से मुझे दुखी न
करो.”
मगर सफ़ाई से सीधे जवाब से
बचते हुए लारा उसे एक ओर को ले गई. वे काफ़ी देर तक उन विषयों पर बातें करते रहे
जिनका लारा के दुख वाले विषय से कोई संबंध नहीं था.
10
इन
सर्दियों में यूरा युनिवर्सिटी के गोल्ड-मेडल के लिए रेटिना के नर्वस-एलिमेन्ट्स
(तंत्रिका-तत्वों) पर वैज्ञानिक आलेख लिख रहा था. हालाँकि यूरा ने सामान्य थेरेपी
का कोर्स पूरा किया था,
मगर आँख के बारे में वह
भावी नेत्र-चिकित्सक की भाँति जानता था.
दृष्टि
की इस कार्यपद्धति (फिज़िओलॉजी) में दिलचस्पी यूरा के स्वभाव के अन्य पहलुओं को
प्रकट करती थी – उसके रचनात्मक झुकाव और कलात्मक छवि के सार पर उसके विचारों को और
तार्किक विचार की संरचना को.
तोन्या
और यूरा किराए की स्लेज में स्विन्तीत्स्की परिवार की क्रिसमस पार्टी में जा रहे
थे.
दोनों
ने बचपन के अंतिम और किशोरावस्था के आरंभिक, इस तरह
कुल छह साल कंधे से कंधा लगाकर गुज़ारे थे. दोनों एक दूसरे की छोटी से छोटी बात भी
जानते थे. उनकी आदतें एक जैसी थीं,
छोटे-छोटे मज़ाक सुनाने
का और जवाब में हँसने का अपना अपना तरीका. ऐसे ही वे अभी जा रहे थे, चुपचाप,
ठण्ड में होंठ भींचे और
छोटे-छोटे फ़िकरे कसते हुए. और उनमें से हरेक अपनी ही किसी बात के बारे में सोच रहा
था.
यूरा
याद कर रहा था कि प्रतियोगिता का समय समाप्त होने को आ रहा है और अपने आलेख को
जल्दी से पूरा करना चाहिए,
और गुज़र रहे साल के
उत्सव की गहमा-गहमी में,
जो रास्तों पर महसूस हो
रही थी, इन विचारों से दूसरे विचारों पर उछल रहा था.
गर्दोन
के विभाग में विद्यार्थियों की हेक्टोग्राफिक पत्रिका निकलती थी, गर्दोन उसका सम्पादक था. यूरा ने बहुत पहले उसे
अलेक्सान्द्र ब्लोक के बारे में एक लेख देने का वादा किया था. ब्लोक का नशा दोनों
राजधानियों के सभी नौजवानों पर छाया था, और
यूरा तथा मीशा तो उसके औरों से भी ज़्यादा दीवाने थे.
मगर
ये विचार भी यूरा की चेतना में कुछ ही देर रहे.
वे
जा रहे थे, ठोढ़ियों को अपनी कॉलर में छुपाए और ठण्ड खा गए कानों
को सहलाते हुए;
और अलग-अलग बातों के
बारे में सोच रहे थे. मगर एक बात पर उनके विचारों में समानता थी.
आन्ना
इवानव्ना के पास हाल ही में हुई घटना ने मानो दोनों को फिर से जन्म दे दिया. जैसे
वे परिपक्व हो गए और एक दूसरे को नई नज़र से देखने लगे.
तोन्या, ये पुरानी दोस्त, ये समझ
में आने वाला,
किसी भी स्पष्टीकरण की
माँग न करने वाला अस्तित्व,
उन सबमें सर्वाधिक
अप्राप्य और जटिल निकला जिनकी यूरा कल्पना कर सकता था, वह एक
महिला निकली.
कल्पना
शक्ति पर थोड़ा ज़ोर डालकर यूरा स्वयम् की अरारात पर्वत चढ़ने वाले नायक के रूप में, एक फ़कीर के रूप में, विजेता
के रूप में, याने चाहे जिस रूप में कल्पना कर सकता था, मगर सिर्फ औरत के रूप में नहीं.
और
इस सबसे कठिन और सबको मात देने करने वाली समस्या का बोझ तोन्या ने अपने दुबले-पतले, कमज़ोर कंधों पर उठा लिया (उस पल से वह यूरा को अचानक
दुबली-पतली और कमज़ोर लगने लगी थी,
हालाँकि वह पूरी तरह
स्वस्थ्य लड़की थी). और उसका दिल तोन्या के प्रति ऐसी स्नेहपूर्ण सहानुभूति और
सकुचाहट भरे अचरज से लबालब हो गया,
जिससे जुनून की शुरुआत
होती है.
ऐसा
ही, कुछ अनुरूप परिवर्तनों सहित, यूरा के प्रति तोन्या के रुख में हुआ.
यूरा
सोच रहा था कि वे बेकार ही घर से निकले. कहीं उनकी अनुपस्थिति में कुछ हो न जाए.
और उसे याद आया.
ये
पता चलते ही कि आन्ना इवानव्ना की तबियत ज़्यादा बिगड़ गई है, वे,
बाहर निकलने को तैयार, उसके पास आये और कहने लगे कि रुक जाते हैं. उसने पहले
जैसी ही तीव्रता से इसका विरोध किया और माँग की कि वे क्रिसमस पार्टी में जाएँ.
यूरा और तोन्या पर्दे के पीछे खिड़की के गहरे आले में ये देखने के लिए घुसे कि मौसम
कैसा है. जब वे आले से बाहर आए तो लेस के परदे के दोनों हिस्से उनकी नई, अनछुई ड्रेस से चिपक गए. हल्का, चिपका हुआ कपड़ा कुछ कदम तक तोन्या से उलझा रहा, मानो दुल्हन के पीछे-पीछे घूँघट हो. सब हँसने लगे, शयन कक्ष में सभी ने इस समानता पर गौर किया.
यूरा
चारों ओर देख रहा था और उसने भी वही सब देखा जो कुछ ही देर पहले लारा ने देखा था.
उनकी स्लेज असाधारण रूप से शोर मचा रही थी, जो
बागों में और मार्गों पर बर्फ से जम गए पेड़ों के नीचे से असाधारण रूप से लम्बी
गूँज उत्पन्न कर रही थी.
घरों
की बर्फ से ढँकी खिड़कियाँ,
जो भीतर से प्रकाशित थीं
धुँधले टोपाज़ की बेशकीमती मंजूषाओं जैसी लग रही थीं. उनके भीतर मॉस्को का क्रिसमस
का माहौल गर्मा रहा था,
क्रिसमस-ट्रीज़ जगमगा रहे
थे, मेहमान झुण्ड बनाए लुका-छिपी और ‘पास द रिंग’ खेल
रहे थे.
अचानक
यूरा ने सोचा कि ब्लोक रूसी जीवन के सभी क्षेत्रों में क्रिसमस का ही रूप है, उत्तरी शहर की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में और अत्याधुनिक साहित्य
में, आधुनिक रास्ते के सितारों से ढँके आसमान के नीचे और इस
शताब्दी के अतिथि-कक्ष में जगमगाती क्रिसमस ट्री के चारों ओर. उसने सोचा कि ब्लोक
के बारे में किसी लेख की आवश्यकता नहीं है, बल्कि
सिर्फ मजूसी (Magi)
के सम्मान में रूसी
प्रशंसा दिखाना ही काफ़ी है,
जैसा हॉलेण्ड में
प्रदर्शित करते हैं,
बर्फ से, भेड़ियों से और अंधेरे देवदार के जंगल से.
वे
कामेर्गेर्स्की से होकर जा रहे थे. यूरा ने बर्फ से ढँकी एक खिड़की पर एक काली
पिघलती हुई झिरी को देखा.
इस
झिरी से शमा की रोशनी आ रही थी,
किसी आँख के चैतन्य से
रास्ते पर झाँकती हुई,
जैसे लौ आने जाने वालों
को देख रही थी और किसी का इंतज़ार कर रही थी.
“जले
शमा एक मेज़ पर. जले शमा...” यूरा अपने आप से बुदबुदाया, जो
किसी धुँधली, अस्पष्ट कल्पना का आरंभ था, इस उम्मीद में कि आगे का विचार अपने आप आ जाएगा, बिना कोशिश किए. मगर वह नहीं आया.
11
पुराने ज़माने से ही स्विन्तीत्स्की के यहाँ
क्रिसमस पार्टी का आयोजन इस तरह किया जाता था. दस बजे, जब
बच्चे अपने अपने घरों को जा चुके होते,
तब नौजवानों और बड़ी उम्र
के मेहमानों के लिए दूसरी क्रिसमस ट्री प्रकाशित की जाती, और मेहमान सुबह तक ख़ुशी मनाते रहते. कुछ ज़्यादा उम्र
के लोग सारी रात तीन दीवारों वाले पोम्पेइ शैली के ड्राइंग रूम में, जो मुख्य हॉल का ही विस्तार था और जिसे ताँबे की
बड़ी-बड़ी रिंग्स पर लगे भारी परदे से अलग किया गया था, ताश
खेलते रहते. भोर होते-होते सब लोग एक साथ डिनर करते.
“आप
इतनी देर से क्यों आए?”
स्विन्तीत्स्की के भतीजे
जॉर्ज ने उनसे पूछा,
जो भागते हुए प्रवेश
कक्ष से घर के भीतर अपने चाचा और चाची के पास जा रहा था. यूरा और तोन्या ने भी
वहां जाकर मेज़बानों का अभिवादन करने का निश्चय किया और चलते-चलते, गरम कपड़े उतारते हुए हॉल में नज़र डाली.
प्रकाश
बिखेरती धाराओं की अनेक कतारों में लिपटे, गर्म
साँस छोड़ते क्रिसमस ट्री के पास से पोषाकों की सरसराहट के बीच एक दूसरे के पाँव पर
पाँव रखते बातों में मगन, टहलते हुए लोगों की एक काली दीवार बढ़ी चली जा रही थी, ये लोग नृत्य नहीं कर रहे थे.
गोल
के बीच में नृत्य करते हुए लोग बेतहाशा गोल-गोल घूम रहे थे. उनका संचालन, लिसेयुम का विद्यार्थी कोका कर्नाकोव कर रहा था, जो कॉम्रेड एडवोकेट का बेटा था. वह उन्हें गोल घुमाता, जोडों में
संयोजित करता और एक कड़ी में जोड़ता. वह नृत्यों का संचालन कर रहा था और हॉल के एक
कोने से दूसरे कोने तक ज़ोरदार आवाज़ में चिल्लाता : “ग्रान्ड राउण्ड! चाइनीज़ चेन!”-
और हर चीज़ उसके आदेश के मुताबिक की जाती. “वाल्ट्ज़, प्लीज़!”
उसने पियानो वादक से चिल्लाकर कहा और पहले राउण्ड के आरंभ में अपनी महिला साथी को
“दो कदम, तीन कदम” अपनी गति को कम करते हुए और स्टेप्स (कदमों)
को छोटा करते हुए कहा,
जिससे कि लोग मुश्किल से
एक ही स्थान पर कदम रख रहे थे,
और ये अब वाल्ट्ज़ नहीं
रह गया था, बल्कि उसकी गूंज रह गई थी. सबने तालियाँ बजाईं, और इस आगे बढ़्ती हुई, घिसटती
हुई और चहचहाती हुई भीड़ को आइस्क्रीम और शीत पेय पेश किए गए.
जोश
से सराबोर नौजवान लड़कों और लड़कियों ने एक मिनट के लिए चिल्लाना और खिलखिलाना बंद
कर दिया, वे फ़ौरन ठण्डी आइस्क्रीम और लेमन जूस गटकने लगे और
प्यालों को ट्रे पर वापस रखते ही,
उन्होंने फिर से हँसना
और चीखना शुरू कर दिया,
पहले से दस गुना ऊँची
आवाज़ में, जैसे उन्हें कोई उत्तेजक पेय पिलाया गया हो.
हॉल
में प्रवेश किए बिना तोन्या और यूरा घर के पिछले हिस्से में मेज़बानों के पास गए.
12
स्विन्तीत्स्की के घर का
भीतरी हिस्सा फ़ालतू चीज़ों से अटा पड़ा था, जिन्हें
अतिथि कक्ष और हॉल में जगह बनाने के लिए बाहर निकाला गया था.
यहाँ था मेज़बानों का जादुई
किचन, उनका क्रिसमस का गोदाम. यहाँ पेन्ट की और गोंद
की गंध थी, रंगीन कागज़ में लिपटे पैकेट्स पड़े थे और कतिलियन (एक
प्रकार का नृत्य – अनु,) स्टार्स और क्रिसमस ट्री
वाली मोमबत्तियों के डिब्बों के ढेर लगे थे.
वृद्ध स्विन्तीत्स्की
दम्पत्ति उपहारों के पैकेट्स पर नंबर लिख रहे थे, डिनर के
लिए नियत जगह के कार्ड्स और किसी प्रस्तावित लॉटरी के टिकिट्स बना रहे थे. जॉर्ज
उनकी सहायता कर रहा था, मगर वह नंबर लिखने में अक्सर गलती कर
देता, और वे चिढ़कर उस पर भुनभुनाते. यूरा और तोन्या को देखकर
स्विन्तीत्स्की दम्पत्ति बहुत ख़ुश हो गए. उन्हें उनके बचपन की याद थी, उन्होंने कोई औपचारिकता नहीं दर्शाई और आगे कुछ कहे बिना उन्हें इस काम पर
बिठा लिया.
“फिलित्साता सिम्योनव्ना
समझती नहीं है कि इसके बारे में पहले ही सोचना चाहिए,
न कि ऐसी भागदौड़ के समय, जब मेहमान आ चुके
हों. आह, तू भुलक्कड़-परास्केवा (परास्केवा- एक प्राचीन देवता
का नाम- अनु.), तूने, जॉर्ज ये
क्या कर दिया है नम्बरों के साथ!
तय ये हुआ था कि चॉकलेट
चिपके उपहारों के डिब्बे मेज़ पर रखना है, और ख़ाली
वाले – दीवान पर, मगर हमारे यहाँ सब गड़बड़ हो गया और सब
उलट-पुलट हो गया.”
“मुझे बहुत ख़ुशी है कि
अनेता की तबियत बेहतर है. मैं और प्येर उसके लिए इतना परेशान हो रहे थे.”
“हाँ,
मगर, प्यारी, उसकी तबियत
लगातार बिगड़ती जा रही है, समझ रही हो, तुम्हारे
साथ हमेशा हर चीज़ उल्टी-पुल्टी हो जाती है.”
यूरा और तोन्या ने आधी शाम
जॉर्ज और वृद्ध दम्पत्ति के साथ क्रिसमस-पार्टी से पीछे ही बिताई.
13
उस
पूरे समय, जब वे स्विन्तीत्स्की दम्पत्ति के साथ थे, लारा हॉल में थी. हालाँकि उसने नृत्य की पोषाक नहीं
पहनी थी और वह वहाँ किसी को भी नहीं जानती थी, उसने
अनचाहे ही, मानो नींद में हो, कोका
कर्नाकोव को अपने साथ नृत्य करने दिया,
या, हतोत्साहित-सी,
बेमतलब ही पूरे हॉल में डोलती रही.
लारा
एक या दो बार हिचकिचाते हुए अनिर्णय की स्थिति में मेहमानखाने की देहलीज़ पर रुकी, इस उम्मीद से कि हॉल की तरफ़ मुँह किए बैठा कमारोव्स्की
उसे देख लेगा. मगर वह अपने ताश के पत्तों पर नज़र गड़ाए रहा, जिन्हें उसने बाएँ हाथ में, अपने
सामने, ढाल की तरह पकड़ा था, और या
तो उसने सचमुच में लारा को नहीं देखा था, या फिर
न देखने का नाटक कर रहा था. अपमान से लारा की साँस रुकने लगी. इसी समय हॉल से
मेहमानख़ाने में एक युवती ने प्रवेश किया जिसे लारा नहीं जानती थी. कमारोव्स्की ने
आने वाली की ओर ऐसी नज़र से देखा,
जिसे लारा भली-भाँति
जानती थी.
चापलूसी
की गई लड़की कमारोव्स्की की ओर देखकर मुस्कुराई, जोश
में आ गई, उसका चेहरा चमकने लगा. यह
देखकर लारा की बस चीख ही निकल गई. मानो किसी ने अपमान का गहरा रंग उसके चेहरे पर
उँडेल दिया हो,
उसका माथा और गर्दन लाल
हो गए. “नया शिकार”,
उसने सोचा. लारा ने मानो
अपने आप को और अपने पूरे इतिहास को आईने में समूचे रूप में देखा. मगर उसने अभी तक
कमारोव्स्की से बात करने के विचार को दिमाग़ से निकाला नहीं था और, इस कोशिश को किसी योग्य समय तक स्थगित करने का निर्णय
करके उसने स्वयम् को शांत किया और हॉल में वापस लौटी.
कमारोव्स्की
के साथ एक ही मेज़ पर और तीन लोग खेल रहे थे. उसके पार्टनरों में से एक. जो उसकी
बगल में बैठा था लिसेयुम के छैले
विद्यार्थी का बाप था,
जिसने लारा को वाल्ट्ज़
के लिए आमंत्रित किया था. इसके बारे में लारा ने दो-तीन शब्दों से ही अंदाज़ लगा
लिया, जिनका उसने अपने साथी के साथ हॉल में चक्कर लगाते हुए
आदान-प्रदान किया था. और काली पोषाक में, शरारती, चमकीली आँखों वाली और साँप जैसी अप्रिय गर्दन वाली
साँवली महिला,
जो हर मिनट मेहमानखाने
से हॉल में बेटे की गतिविधियों के क्षेत्र में और वापस मेहमानखाने में ताश खेलते
हुए पति के पास आ-जा रही थी,
कोका कर्नाकोव की माँ
थी. आख़िर में ये भी पता चल गया कि वह लड़की जो लारा के दिल में उलझे हुए विचारों का
सबब थी, कोका की बहन थी और लारा की नफ़रत के लिए अब कोई वजह
नहीं बची थी.
“कर्नाकोव,” कोका ने बिल्कुल शुरू में लारा को अपना परिचय दिया था.
मगर तब वह समझ नहीं पाई थी. – “कर्नाकोव,” उसने
अंतिम राउण्ड में लारा के साथ फिसलते हुए उसे कुर्सी तक लाते हुए कहा, और अभिवादन किया.
इस
बार लारा ने उसकी बात सुनी. – “कर्नाकोव, कर्नाकोव,”
वह सोचने लगी. – कुछ
जाना-पहचाना सा लगता है. कुछ अप्रिय सा.
फिर
उसे याद आया. कर्नाकोव – मॉस्को के ‘कोर्ट ऑफ लॉ’ का
कॉम्रेड प्रोसिक्यूटर. उसने रेल्वे कर्मचारियों के समूह पर मुकदमा चलाया था, जिनमें तिवेर्ज़िन भी था. लारा की विनती पर लाव्रेन्ती
मिखाइलविच उसे मनाने गया था,
कि वह इस मुकदमे को इतने
तैश से ना लडे,
मगर मना नहीं पाया. – तो
ये बात है! अच्छा,
अच्छा, अच्छा. दिलचस्प बात है. कर्नाकोव. कर्नाकोव.
14
रात के बारह या एक बज चुका
था. यूरा के कानों में अभी तक शोर था.
छोटे से अंतराल के पश्चात्,
जिसके दौरान डाइनिंग रूम में कुकीज़ के साथ चाय पी गई, नृत्य फिर से शुरू हो गया. जब क्रिसमस ट्री के ऊपर मोमबत्तियाँ पूरी तरह
जल गईं, तो किसी ने भी उनकी जगह पर नई मोमबत्तियाँ नहीं
लगाईं.
यूरा हॉल के बीच में अनमना
सा खड़ा था और तोन्या की ओर देख रहा था, जो किसी अपरिचित
के साथ नृत्य कर रही थी. यूरा के पास से गुज़रते हुए, तोन्या
अपने पाँव को हिलाकर अपनी काफ़ी लम्बी सैटिन की पोषाक के छोटे-से छोर को हटा देती
और, उसे उछालकर, मछली की तरह नृत्य
करने वालों की भीड़ में गुम हो जाती.
वह बेहद उत्तेजित थी.
अंतराल के दौरान, जब वे डाइनिंग रूम में बैठे थे,
तोन्या ने चाय से इनकार कर दिया और संतरों से अपनी प्यास बुझाती रही,
जिन्हें वह काफ़ी मात्रा में ख़ुशबूदार छिलके से अलग करके साफ़ कर चुकी
थी. वह हर मिनट अपने कमरबन्द से या छोटी सी आस्तीन से फल वाले पेड़ के फूलों जितना
नन्हा कैम्ब्रिक का रूमाल निकालती, और उससे होठों के किनारों
से और चिपचिपी उँगलियों के बीच से पसीने की लकीरें पोंछती. मुस्कुराते हुए और जोश
भरी बातचीत को जारी रखते हुए, वह यंत्रवत् रूमाल को कमरबंद
के पीछे या बॉडिस की झालर के पीछे खोंस देती.
अब,
अपरिचित साथी के साथ नृत्य करते हुए और मुड़ते समय मुँह बनाए, एक ओर को सरकते हुए यूरा को दबाते हुए तोन्या ने गुज़रते हुए उसका हाथ
शरारत से दबाया और अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराई. ऐसे ही एक हस्तांदोलन के समय रूमाल,
जो उसने हाथ में पकड़ा था, यूरा की हथेली पर रह
गया. उसने उसे होठों से लगाया और आँखें बंद कर लीं. रूमाल से संतरे की और तोन्या
की गर्म हथेली की ख़ुशबू आ रही थी, जो उतनी ही मोहक थी. ये
कुछ नया सा था यूरा की ज़िंदगी में, जिसे उसने कभी महसूस नहीं
किया था और जो ऊपर से नीचे तक चुभता चला गया. बच्चे जैसी मासूम ख़ुशबू दिल को छू
लेने वाली – भावपूर्ण थी, जैसे अँधेरे में फुसफुसाकर कहा गया
कोई शब्द. यूरा खड़ा था, आँखें बंद करके, होंठ रूमाल वाली हथेली में और उसकी ख़ुशबू महसूस कर रहा था. अचानक घर में
गोली चलने की आवाज़ आई.
सबने हॉल को मेहमानखाने से
अलग करने वाले परदे की ओर सिर घुमाए. एक मिनट तक ख़ामोशी रही. फिर भागदौड़ शुरू हो
गई. सब भाग दौड़ करने और चिल्लाने लगे. कुछ लोग कोका कर्नाकोव के पीछे गोली चलने की
जगह पर लपके. वहाँ से लोग आ रहे थे, धमकियाँ दे रहे
थे, रो रहे थे और, बहस करते हुए,
एक दूसरे की बात काट रहे थे.
“ये उसने क्या कर डाला,
ये उसने क्या कर डाला,” कमारोव्स्की बदहवासी
में दुहरा रहा था.
“बोर्या,
तुम ज़िंदा हो? बोर्या, तुम
ज़िंदा हो,” मैडम कर्नाकोव उन्माद से चीख रही थी. “ कह रहे थे
कि यहाँ मेहमानों में डॉक्टर द्रोकव है. हाँ, मगर वह कहाँ है,
कहाँ है वो? आह, छोड़िए,
प्लीज़!
आपके लिए सिर्फ एक खरोंच
है, मगर मेरे लिए मेरी पूरी ज़िंदगी का औचित्य है.
ओह, मेरे गरीब शहीद, इन सब गुनाहगारों
का पर्दाफ़ाश करने वाले! ये रही वो, ये रही वो घटिया औरत,
मैं तेरी आँखें नोंच लूँगी, कमीनी! अब वह भाग
नहीं सकती! आपने क्या कहा, महाशय कमारोव्स्की? आप पर? उसने आप पर गोली चलाई थी? नहीं, मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती. मुझे बहुत दुख हो
रहा है, महाशय कमारोव्स्की, होश में
आइए, मैं अभी बिल्कुल मज़ाक के मूड में नहीं हूँ. कोका,
कोकच्का, तू क्या कहता है! तेरे बाप
पर...हाँ...मगर ख़ुदा की मेहेरबानी...कोका! कोका!”
मेहमानखाने से भीड़ हॉल में
आ रही थी. बीच में, ज़ोर-ज़ोर
से मज़ाक करते हुए और सबको अपने पूरी तरह सही-सलामत होने का यकीन दिलाते हुए
कर्नाकोव चल रहा था, बाएँ हाथ की खून निकल रही खरोंच पर साफ़
टिश्यू पेपर दबाए. कुछ हटकर, दूसरे झुण्ड में, पीछे-पीछे लारा को हाथों से पकड़ कर ले जा रहे थे.
उसे देख कर यूरा सुन्न हो
गया. – वही है! और फिर से कैसी अजीब परिस्थितियों में! और फिर से यह सफ़ेद बालों
वाला. मगर अब यूरा उसे जानता है. ये मशहूर एडवोकेट कमारोव्स्की है,
उसका पिता की विरासत वाले केस से ताल्लुक था. अभिवादन करना उचित
नहीं होगा, यूरा और वह ऐसा दिखाते हैं, कि एक दूसरे को नहीं जानते. मगर वह...
तो,
गोली उसने चलाई? प्रोसिक्यूटर पर? शायद, राजनीतिक विचारधारा वाली है.
गरीब बेचारी. अब उसके साथ
अच्छा नहीं होगा. कितनी गर्वीली, कितनी अच्छी है!
और ये लोग! उसे घसीट रहे हैं, शैतान, हाथ
मरोड़ रहे हैं, जैसे किसी चोर को पकड़ा हो.
मगर तभी वह समझ गया कि
गलती कर रहा है. लारा की टाँगें डगमगाने लगीं. उसे हाथों का सहारा दिया गया,
जिससे कि वह गिर न जाए, और बड़ी मुश्किल से
घसीटते हुए नज़दीक पड़ी कुर्सी तक लाए, जिसमें वह ढह गई.
यूरा उसके पास भागा,
जिससे उसे होश में ला सके, मगर सुविधा की
दृष्टि से उसने पहले हमले के तथाकथित शिकार के पास जाने का फ़ैसला किया. वह
कर्नाकोव के पास आया और बोला:
“यहाँ डॉक्टरी सहायता के
बारे में पूछ रहे थे. मैं अपनी सेवाएँ पेश कर सकता हूँ.
मुझे आपका हाथ दिखाइए...ओह,
आपके सितारे अच्छे हैं. ये इतनी मामूली बात है
कि मैं पट्टी भी नहीं बाँधता. मगर, फिर भी थोड़ी आयोडिन से
कुछ बुरा नहीं होगा. ये रहीं फेलित्साता सिम्योनव्ना, हम
उनसे पूछते हैं.”
यूरा के निकट आती हुई
स्विन्तीत्स्काया और तोन्या के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. उन्होंने कहा,
वह सब कुछ छोड़कर जल्दी गर्म कपड़े पहन ले, उन्हें
बुलाने के लिए आए हैं, घर में कुछ बुरी बात हुई है. यूरा
घबरा गया, सबसे बुरी बात की कल्पना करके, और, दुनिया की हर चीज़ के बारे में भूलकर, वह कपड़े पहनने भागा.
15
जब
वे सीव्त्सेवो वाले प्रवेश द्वार से सीधे घर के भीतर भागे, आन्ना इवानव्ना दम तोड़ चुकी थी. मौत उनके पहुँचने से
दस मिनट पहले आई थी. उसकी वजह थी समय रहते फेफडों की भयानक सूजन का पता न चलना, जिसकी वजह से लम्बे समय तक मरीज़ का दम घुटता रहा.
शुरू
के कुछ घण्टे तोन्या चीख-चीख कर रोती रही, उसे
दौरे पड़ते रहे और वह किसी भी पहचान नहीं रही थी. दूसरे दिन वह कुछ शान्त हुई, धीरज से पिता और यूरा की बात सुनती रही, मगर जवाब सिर्फ सिर हिलाकर ही दे रही थी, क्योंकि जैसे ही वह मुँह खोलती, दुख उस पर पहले की ही तीव्रता से हावी हो जाता और उसके
भीतर से अपने आप चीखें निकलने लगतीं,
जैसे उसे किसी रूह ने
दबोच लिया हो.
वह
घण्टों घुटनों के बल मृतक के पास बैठी रहती, प्रार्थनाओं
के बीच ख़ूबसूरत लम्बे हाथों से ताबूत का कोना और उस मेज़ का किनारा छूती, जिस पर वह रखा था, और
पुष्प चक्रों को छूती जिनसे उसे ढाँका गया था, अपने
आस पास की किसी भी चीज़ पर उसका ध्यान नहीं जाता था.
मगर
जैसे ही उसकी आँखें निकट सम्बंधियों से मिलतीं, वह
फ़ौरन फ़र्श से उठ जाती,
सिसकियों को रोकते हुए, तेज़-तेज़ कदमों से हॉल से फिसल जाती, सीधे सीढ़ियों से ऊपर अपने कमरे में चली जाती और बिस्तर
पर गिरकर, तकिये में मुँह छुपा कर अपने भीतर धुमसती निराशा का
विस्फोट होने देती.
दुख
से, पैरों पर लम्बे समय तक खड़े होने और नींद पूरी न होने
से, गहरी आवाज़ में गाने से और दिन-रात जलती मोमबत्तियों की
चकाचौंध से, और इन दिनों लग गए ज़ुकाम की वजह से यूरा को अपने दिल में
एक मीठी उलझन,
आनन्दमय-भ्रांति, शोकपूर्ण उन्माद का अनुभव हो रहा था.
दस
साल पहले, जब माँ को दफ़नाया जा रहा था, यूरा बहुत ही छोटा था. उसे अब तक याद है, कि दुख और भय से हारा, वह
कितना रोया था,
उसे सांत्वना देना
मुश्किल था. उस समय कोई ख़ास बात उसमें नहीं थी. तब वह मुश्किल से ही कल्पना कर
सकता था, कि वह कोई-एक यूरा है, जिसका
स्वतंत्र अस्तित्व है,
और जिसकी कोई कीमत है, या जिसमें किसी को कोई दिलचस्पी है.
उस
समय ख़ास बात वो थी,
जो चारों ओर मौजूद था, बाहरी था.
बाहरी
दुनिया ने यूरा को चारों ओर से घेर लिया था, ये
दुनिया ठोस थी, अभेद्य थी और निर्विवाद थी, किसी
जंगल जैसी, और इसीलिए माँ की मृत्यु से यूरा इतना विचलित हो गया
था, कि वह उसके साथ इस जंगल में भटक गया और अचानक अकेला रह
गया, उसके बगैर. इस जंग़ल को दुनिया की सारी चीज़ें मिलकर बना
रही थीं – बादल,
शहर के इश्तेहार, और निगरानी-टॉवर्स पर लगे गोले, और गॉड-मदर की प्रतिमा वाले रथ के आगे-आगे घोड़ों पर
जाते हुए सेवक,
जिनके खुले सिरों पर, पवित्र माता की उपस्थिति में टोपियों के बदले कानों को
ढाँकने वाले मफ़लर बँधे होते थे. इस जंगल को बनाती थीं रास्तों पर दुकानों की
शो-केसेस और अप्राप्य,
ऊँचा रात का आसमान
सितारों वाला,
देवताओं और संतों वाला.
ये
ऊँचा आकाश जो पहुँच से परे था,
बच्चों वाले कमरे में
उसके पास नीचे-नीचे झुक आता,
आया के स्कर्ट में अपना
मुँह छुपा लेता,
जब आया ख़ुदा के बारे में
कोई कहानी सुनाती,
और बेहद नज़दीक महसूस
होता, आज्ञाकारी हो जाता, जैसे अखरोट
के पेड़ के सिरे,
जब अखरोट चुनने के लिए उसकी
टहनियाँ खाइयों में झुकाई जाती हैं. वह
मानो बच्चों के कमरे में सुनहरे घोल वाले बेसिन में डुबकी लगाता और, आग और सोने में नहाकर, नुक्कड़
वाले छोटे से चर्च में सुबह की या दोपहर की प्रार्थना में बदल जाता, जहाँ आया उसे ले जाती थी. वहाँ आसमान के सितारे दिये
बन जाते, ख़ुदा – पिता बन जाता और सबको उनकी योग्यता के अनुसार
जगह दी जाती. मगर ख़ास बात थी बड़े लोगों की वास्तविक दुनिया और शहर, जो जंगल के ही समान चारों ओर काला होता जाता. उस समय
यूरा अपने समस्त अर्ध-पशुवत् विश्वास से इस जंगल के ख़ुदा में इस तरह विश्वास करता
था, जैसे जंगल के रक्षक में करता हो.
इस
बार बात बिल्कुल अलग थी. स्कूल के ये पूरे बारह साल – माध्यमिक और उच्चतर स्कूल के
– यूरा प्राचीन काल और ईश्वरी नियमों का, लोककथाओं
और कवियों का,
पुरातन से संबंधित
विज्ञान और प्रकृति का अध्ययन करता रहा, जैसे
अपने घर-परिवार के इतिहास का,
जैसे अपने वंश-वृक्ष का
कर रहा हो.
अब
वह किसी बात से नहीं डरता था,
न ज़िंदगी से न मौत से, दुनिया का सब कुछ, सारी
चीज़ें उसके शब्दकोष के शब्द ही थे. वह स्वयम् को ब्रह्माण्ड के स्तर पर खड़ा पाता
था और आन्ना इवानव्ना के अंतिम संस्कार की प्रार्थनाओं को विगत में अपनी माँ की
प्रार्थना सेवाओं की तुलना में बिल्कुल भिन्न रूप से सुन रहा था.
तब
वह दर्द के कारण अनमना हो जाता,
डर जाता और प्रार्थना
करता. मगर अब वह अंतिम-संस्कार की प्रार्थनाओं को एक सूचना की तरह सुन रहा था, जो सीधे उसके लिए और उससे संबंधित थी. वह इन शब्दों को
गौर से सुनता और उनसे अर्थ की माँग करता, जो इस
तरह प्रदर्शित हो कि समझ में आ जाए,
जैसी कि हर काम से
उम्मीद की जाती है,
और स्वर्ग तथा धरती के
प्रति निरंतरता की उसकी भावना में, जिन्हें अपने महान पूर्वज समझ कर वह नमन करता था, पवित्रता से संबंधित कोई बात नहीं थी.
16
“पवित्र ख़ुदा,
पवित्र शक्तिमान, पवित्र चिरंतन, हम पर मेहेरबानी कर”. ये क्या है? वह कहाँ है?
उठा रहे हैं. जनाज़ा उठा रहे हैं. उठना चाहिए. सुबह छह बजे पूरे
कपड़ों में वह इस दीवान पर लुढ़क गया था. शायद उसे बुखार है. अब उसे पूरे घर में
ढूँढ़ रहे हैं, और किसी को भी ये अंदाज़ नहीं है कि वह
लाइब्रेरी में सो रहा है – दूर वाले कोने में, ऊँची-ऊँची,
छत तक पहुँचती किताबों की शेल्फों के पीछे – गहरी नींद में है.
“यूरा,
यूरा!” कहीं बिल्कुल पास दरबान मार्केल उसे बुला रहा है.
ताबूत ले जा रहे हैं,
मार्केल को नीचे रास्ते पर पुष्पचक्र ले जाना है, मगर वह यूरा को नहीं ढूँढ पा रहा है, और ऊपर से शयन
कक्ष में फँस गया है, जहाँ पुष्पचक्रों का पहाड़ लगा हुआ है,
क्योंकि शयनकक्ष के दरवाज़े को अलमारी के खुले दरवाज़े ने रोक रखा है
और वह मार्केल को बाहर नहीं जाने दे रहा है.
“मार्केल! मार्केल! यूरा!”
नीचे से उन्हें बुला रहे हैं.
मार्केल एक ही झटके में इस
रुकावट को हटा देता है और कुछ पुष्पचक्रों के साथ सीढ़ियों से नीचे भागता है.
“पवित्र ख़ुदा,
पवित्र शक्तिमान, पवित्र चिरंतन”. गली में
हौले से तैरते हुए उसीमें रह जाता है, जैसे हवा में किसी शुतुरमुर्ग
का नरम पंख तैर रहा हो, और हर चीज़ झूल रही है : पुष्पचक्र और
सामने से आते हुए लोग, पंख लगे घोड़ों के सिर, पुजारी के हाथ में चेन से बँधी धूपदानी, पैरों के
नीचे सफ़ेद धरती.
“यूरा! या ख़ुदा,
आखिरकार. उठो, प्लीज़,” – उसे ढूढ़ रही शूरा श्लेज़िंगर उसका कंधा पकड़कर झकझोरती है. “तुम्हें क्या
हुआ है?
जनाज़ा ले जा रहे हैं,
तुम हमारे साथ आ रहे हो?”
“बेशक.”
17
अंतिम-संस्कार प्रार्थना समाप्त
हुई. ठण्ड से कुड़कुड़ाते हुए, एक पैर से दूसरे
पैर पर हो रहे भिखारी दो कतारों में आगे बढ़ रहे थे, खुली
ताबूत गाड़ी, पुष्पचक्रों वाली गाड़ी, क्र्यूगर
की गाड़ी डोलते हुए कुछ आगे बढीं.
चर्च के पास गाड़ियों की
कतार थी. रोती हुई शूरा श्लेज़िंगर बाहर आई और उसने आँसुओं से भीगे अपने नकाब को
उठाकर गाड़ीवानों की कतार पर कुछ ढूँढ़ती-सी नज़र डाली. उनके बीच ब्यूरो से भेजे गए
ताबूत उठाने वालों को देखकर उसने इशारे से उन्हें अपने पास बुलाया और उनके साथ
चर्च के भीतर छुप गई. चर्च के भीतर से लोगों की भीड़ बाहर निकलने लगी.
“आन्ना इवान्निना
की बारी आ गई. इबादत का हुक्म दिया, निकल पडी, बेचारी, लम्बे सफ़र के लिए.”
“उड़ गई,
बेचारी. चली गई तितली, विश्राम करने.”
“आपके पास गाड़ीवान है या
आप ग्यारह नम्बर से जा रहे हैं?”
“पैर सुन्न हो गए हैं.
थोड़ी देर पैदल चलेंगे फिर गाड़ी से जाएँगे,”
“आपने गौर किया कि फुफ्कोव
कितना विचलित था? नई मृतका को देखे जा रहा था,
आँसुओं का सैलाब, नाक सुड़सुड़ा रहा था, जैसे उसे खा ही जाएगा. और बगल में ही शौहर खड़ा था.”
“वह पूरी ज़िंदगी उसकी ओर
आशिक-नज़रों से देखता रहा.”
ऐसी बातें करते हुए शहर के
दूसरे छोर पर स्थित कब्रिस्तान पहँचे. भारी बर्फबारी के बाद दिन साफ़ था. दिन
गतिहीन जड़ता से व्याप्त था, ये पाले से मुक्त
दिन था और गुज़र गई ज़िंदगी का दिन था, जैसे ख़ुद प्रकृति ने ही
दफ़न के लिए इसका निर्माण किया था.
गंदी हो गई बर्फ फेंकी गई
पन्नियों के पीछे से चमक रही थी, बागडों के पीछे
से गीले, काली पड़ गई चाँदी जैसे, फर
वृक्ष देख रहे थे, जैसे उन्होंने मातमी लिबास पहना हो.
ये वही,
यादगार कब्रिस्तान था, मारिया निकालायेव्ना का
विश्रांति-स्थल था. पिछले कुछ सालों से यूरा माँ की कब्र पर एक भी बार नहीं गया
था. “मामच्का”, दूर से उस तरफ़ देखते हुए वह ‘उन’ वर्षों के होठों से फुसफुसाया.
वे साफ़ किए हुए रास्तों पर
गंभीरता से और जैसे तस्वीर की भाँति बिखर रहे थे, जिनके
बेमालूम उतार-चढ़ाव उनके नपेतुले दुखभरे कदमों के अनुरूप नहीं थे. अलेक्सान्द्र
अलेक्सान्द्रविच तोन्या का हाथ पकड़ कर चल रहे थे. उनके पीछे क्र्यूगर दम्पत्ति थे.
मातमी पोषाक तोन्या पर फब रही थी.
गुम्बदों पर लगे सलीबों की
श्रृंखला पर, मॉनेस्ट्री की गुलाबी दीवारों पर
बर्फ लटक रही थी, दढ़ियल, शैवाल जैसी.
मॉनेस्ट्री के दूर वाले कोने में एक दीवार से दूसरी दीवार तक रस्सियाँ बाँधी गई
थीं जिन पर सुखाने के लिए धुले हुए कपडे फैलाए गए थे – भारी, फूली-फूली बाँहों वाली कमीज़ें, हल्के लाल रंग के
मेज़पोश, टेढ़ी, बुरी तरह निचोड़ी गई
चादरें. यूरा ने उस तरफ़ देखा और वह समझ गया कि मॉनेस्ट्री की धरती पर यह वही जगह
है, जहाँ तब तूफ़ान चिंघाड़ रहा था, जो
अब नए निर्माणों के कारण बदल गई है.
यूरा अकेला ही तेज़ी से
बाकी लोगों से आगे जा रहा था, कभी-कभी वह उनके
लिए रुक जाता. उसके पीछे धीरे-धीरे चलते हुए लोगों पर मृत्यु के कारण जो ख़ालीपन छा
गया था, उसके जवाब में यूरा का दिल बेतहाशा कहीं गहराई में
जाने को चाह रहा था, जैसे चोंगे में घूमता हुआ पानी गहराई की
ओर जाता है, उसका दिल कल्पना करना और सोचना चाह रहा था,
काव्य के रूपों पर काम करना, सौंदर्य की
उत्पत्ति करना चाह रहा था. इस समय, जैसा पहले कभी नहीं हुआ
था, उसके सामने स्पष्ट हो गया था कि कला हमेशा, बिना रुके, दो बातों में व्यस्त रहती है. वह निरंतर
मृत्यु के बारे में सोचती है और इससे निरंतर जीवन का निर्माण करती है. एक महान,
वास्तविक कला, वो, जिसे “सेंट
जॉन का रहस्योद्घाटन” कहते हैं, और वो, जो उसे पूरा करती है.
यूरा का दिल पूरी शिद्दत
से चाह रहा था कि वह दो-एक दिन के लिए घर के और युनिवर्सिटी के वातावरण से गायब हो
जाए और आन्ना इवानव्ना की याद के बारे में लिखी पंक्तियों में वह सब कुछ डाल दे,
जो उस समय उसके दिमाग में आएगा, हर बात जो यूँ
ही उसके दिमाग में आयेगी : मृतक के दो-तीन विशिष्ठ गुण, तोन्या
की शोकमग्न प्रतिमा; कब्रिस्तान से लौटते हुए रास्ते में
देखी गईं कुछ चीज़ें, उस जगह पर सूख रहे कपड़े, जहाँ बहुत पहले, कभी तूफ़ान चिंघाड़ रहा था और वह बचपन
में रो रहा था.
No comments:
Post a Comment