Friday, 16 April 2021

एक डॉक्टर की कहानी - 04

 

अध्याय 4

अवश्यंभावी कठिनाइयाँ (आसन्न अनिवार्यताएँ)

1

 

 लारा अर्धग्लानि में फेलित्साता सिम्योनव्ना के शयनकक्ष में पलंग पर पड़ी थी. उसके पास स्विन्तीत्स्की दम्पत्ति, डॉक्टर द्रोकव और नौकर फुसफुसा कर बातें कर रहे थे.      

स्विन्तीत्स्की का खाली घर अँधेरे में डूब गया था, और कमरों की लम्बी कतार के सिर्फ एक छोटे-से मेहमानखाने में दीवार पर टिमटिमाता हुआ लैम्प जल रहा था, जो इस कतार में सिर्फ एक दिशा में आगे-पीछे प्रकाश डाल रहा था.

इस रोशनी में विक्तर इपालीतविच निर्णायक और गुस्सैल कदमों से घूम रहा था, मेहमान की तरह नहीं, बल्कि जैसे अपने घर में हो. कभी वह शयनकक्ष में झाँक लेता, ये जानने के लिए कि वहाँ क्या चल रहा है, या कभी घर के दूसरे कोने की ओर रुपहले मोतियों वाली क्रिसमस-ट्री के पास से डाइनिंग हॉल तक जाता, जहाँ अनछुए व्यंजनों से मेज़ अटी पड़ी थी और वाइन के हरे जाम खनखना रहे थे, जब खिड़की के बाहर रास्ते पर कोई गाड़ी गुज़रती या मेज़पोश पर प्लेटों के बीच कोई चूहा भागता.

कमारोव्स्की तैश में था और बिफ़रा हुआ था. उसके सीने में विरोधी ख़यालों का जमघट था. कैसा लफ़ड़ा और कैसी बदनामी! वह क्रोध से पागल हो रहा था. उसकी स्थिति ख़तरे में थी. इस घटना ने उसकी प्रतिष्ठा को नुक्सान पहुँचाया था.

जब तक देर नहीं हो जाती, हर कीमत पर अफ़वाहों को फ़ैलने से रोकना होगा, और यदि ख़बर फ़ैल गई हो, तो अफ़वाहों को शुरू में ही रोकना होगा. इसके अलावा, उसने फिर से महसूस किया कि ये बदहवास, बेवकूफ़ लड़की कितनी सम्मोहक है. फ़ौरन पता चल गया था कि वह औरों की तरह नहीं है. उसमें कुछ असाधारण बात थी. फिर भी, स्पष्ट है, कि कितनी संवेदनशीलता से उसने उसकी ज़िंदगी को अपूरणीय क्षति पहुँचाई थी. तहस-नहस कर दिया था उसे! कैसी बदहवास हो जाती है वह, कैसे हर समय उठती है और विद्रोह करती है अपनी किस्मत को फिर से बनाने के लिए – अपने हिसाब से और अपने अस्तित्व की दुबारा शुरुआत करने के लिए.

हर लिहाज़ से उसकी मदद करनी होगी, हो सकता है, उसके लिए एक कमरा किराए पर लूँ, मगर किसी भी हालत में उसे छूना नहीं है, बल्कि, उससे पूरी तरह दूर रहना है, एक किनारे चले जाना है, जिससे तुम्हारी परछाईं भी न पड़े, वर्ना तो, पता ही है कि वो कैसी है, कुछ और हंगामा खड़ा कर देगी, कुछ कह नहीं सकते!

और आगे कितनी परेशानियाँ हैं! इसके लिए तुम्हें शाबाशी तो नहीं देंगे. कानून ऊँघता नहीं है. अभी तो रात है, और उस हादसे के बाद दो घण्टे भी नहीं बीते हैं, मगर दो बार पुलिस वाले आ चुके हैं, और कमारोव्स्की ने किचन में जाकर उनसे बात की और सब ठीक करके आया.

और, जैसे-जैसे समय गुज़रता जाएगा, सब कुछ और भी मुश्किल होता जाएगा. सुबूतों की ज़रूरत पड़ेगी ये सिद्ध करने के लिए कि लारा ने उस पर निशाना लगाया था, न कि कर्नाकोव पर. मगर इससे भी मामला काबू में नहीं रहेगा. लारा के ऊपर से आरोप का कुछ अंश हटा लिया जाएगा, मगर बचे हुए हिस्से के लिए उस पर कानूनी कार्रवाई तो होगी ही.

ज़ाहिर है, कि वह अपनी पूरी ताकत से इसका विरोध करेगा, और अगर मुकदमा चलाया गया, तो मानसिक रोगों के विशेषज्ञ की रिपोर्ट हासिल करेगा कि घटना के समय लारा को मानसिक दौरा पड़ा था और मुकदमा ख़त्म करवा लेगा.

इन ख़यालों से कमारोव्स्की कुछ शांत हुआ. रात गुज़र गई. प्रकाश की लकीरें एक कमरे से दूसरे कमरे में घुसने लगीं, चोर या गिरवी दलाल की तरह मेज़ों और दीवानों के नीचे झाँकते हुए.

शयनकक्ष से यह पता करके कि लारा की तबियत अभी ठीक नहीं हुई है, कमारोव्स्की स्विन्तीत्स्की के यहाँ से निकल कर अपनी एक परिचित महिला वकील और राजनीतिक उत्प्रवासी की पत्नी रुफ़ीना अनीसिमोव्ना वोइत-वोइत्कोव्स्काया के यहाँ गया. आठ कमरों वाला क्वार्टर अब उसकी सामर्थ्य के बाहर था. वह दो कमरे किराये पर देती थी. उनमें से एक, जो हाल ही में खाली हुआ था कमारोव्स्की ने लारा के लिए ले लिया. कुछ घण्टों बाद बुखार से तप रही और आधी बेहोशी की हालत में लारा को वहाँ ले जाया गया. उसे दिमाग़ी बुखार था.

 

2

रुफीना अनीसिमोव्ना एक प्रगतिशील महिला थी, पूर्वाग्रहों की शत्रु, हर उस चीज़ की शुभचिंतक, जिसे वह “सकारात्मक और व्यवहार्य” समझती थी.

उसकी अलमारी पर “एर्फूर्त-प्रोग्राम” की प्रति थी जिस पर संयोजक के हस्ताक्षर थे. दीवार पर लगे चित्रों में से एक में उसके पति , “मेरे अच्छे वोइत”, की तस्वीर थी, जिसे स्विट्ज़र्लैण्ड में प्लेखानव के साथ एक मेले में खींचा गया था. दोनों ऊनी कोट और पनामा हैट में थे.

रुफीना अनीसिमोव्ना को पहली ही नज़र में अपनी बीमार किराएदार पसन्द नहीं आई. वह लारा को पक्की बहानेबाज़ समझती थी. लारा के दिमागी दौरों को रुफीना अनिसीमोव्ना पक्का नाटक समझती थी. रुफीना अनिसीमोव्ना कसम खाने के लिए तैयार थी कि लारा काली कोठरी में बन्द मार्गारीटा का अभिनय कर रही है.

रुफीना अनिसीमोव्ना लारा के प्रति अपनी नफ़रत कुछ ज़्यादा ही खुलकर करती थी. क्वार्टर के अपने हिस्से के दरवाज़े वह धडाम् से बंद करती और ज़ोर-ज़ोर से गाती, बवण्डर की तरह घूमती और पूरे-पूरे दिन अपने कमरों में ताज़ी हवा आने देती.

उसका क्वार्टर अर्बात पर एक बड़ी बिल्डिंग की ऊपरी मंज़िल पर था.

शीतकालीन अयनांत से इस मंज़िल की खिड़कियाँ विस्तीर्ण, बाढ़ आई नदी जैसे नीले आसमान से लबालब भर जातीं. आधी सर्दियाँ क्वार्टर आनेवाले बसंत के लक्षणों से भरा रहता, उसके पूर्वागमन की सूचना देता.

वातायनों में दक्षिण से आती गर्माहट भरी हवा बहती, रेल्वे स्टेशनों पर भाप के इंजिन व्हेलों की तरह चिंघाड़ते, और, बीमार लारा, बिस्तर में लेटे हुए, आराम से पुरानी यादों में खो जाती.

अक्सर उसे करीब सात-आठ साल पहले की, अपने अविस्मरणीय बचपन की, वह शाम याद आती, जब वे युराल से मॉस्को आये थे.

वे किराए की गाड़ी में आधी-अंधेरी गलियों से पूरे मॉस्को का चक्कर लगाते हुए रेल्वे स्टेशन से होटल के कमरों में जा रहे थे. नज़दीक आते और दूर जाते स्ट्रीट-लैम्प उनके झुकी पीठ वाले गाड़ीवान की परछाईं इमारतों की दीवारों पर डाल रहे थे.

परछाई बढ़ती जाती, बढ़ती जाती, अलौकिक परिमाण धारण करती, फुटपाथ को और छतों को ढाँक देती, और टूट जाती. और सब कुछ फिर से शुरू हो जाता.

अँधेरे में सिर के ऊपर मॉस्को के सभी चर्चों की घंटियाँ सुनाई दे रही थीं, ज़मीन पर घोड़ागाड़ियाँ घंटियाँ बजाते हुए चल रही थीं, मगर चीखती हुए शो-केसेज़ और रोशनियाँ भी लारा को बहरा किए दे रही थीं, मानो घण्टियों और पहियों के समान वे भी अपनी ही कोई आवाज़ निकाल रही हों.

होटल के कमरे में मेज़ पर रखे बड़े-भारी तरबूज़ ने उसे चौंका दिया, ये उनके गृह-प्रवेश पर कमारोव्स्की का तोहफ़ा था. लारा को वह तरबूज़ कमारोव्स्की के स्वामित्व और उसकी अमीरी का प्रतीक लगा. जब विक्तर इपालीतविच ने चाकू के प्रहार से करकराते, काले-हरे, बर्फीले, मीठे गूदे वाले गोल अजूबे को दो हिस्सों में काटा तो भय से लारा की साँस रुक गई, मगर वह इनकार नहीं कर पाई.

उसने बड़ी मुश्किल से गुलाबी ख़ुशबूदार टुकड़ों को निगला, जो परेशानी के कारण उसके गले में अटक गए थे.

और महँगे खाने और रात की राजधानी के प्रति यह घबराहट, बाद में कमारोव्स्की के सामने उसकी घबराहट में अपने आप को दोहराती रही – यही मुख्य कारण था उस सबका, जो घटित हुआ था. मगर अब वह पहचाना नहीं जा रहा था. किसी भी चीज़ की माँग नहीं करता, अपने बारे में याद नहीं दिलाता और सामने भी नहीं आता था. और निरंतर दूर रहकर, बड़ी सज्जनता से अपनी मदद की पेशकश करता.

कलाग्रीवव का आना एकदम भिन्न था. लारा को लव्रेन्ती मिखाइलोविच के आने से बड़ी ख़ुशी होती. इसलिए नहीं कि वह इतना महान और कुलीन था, बल्कि इसलिए कि अपनी ज़िंदादिली और कौशल से जो उसके व्यक्तित्व से प्रदर्शित होती, अपनी चमकती आँखों और बुद्धिमान मुस्कुराहट से वह आधे कमरे को व्याप्त कर लेता था. कमरा छोटा लगने लगता.

वह लारा के पलंग के सामने हाथ फैलाए बैठा था. जब उसे पीटर्सबर्ग बुलाया गया था मिनिस्टरों की कौन्सिल में तो उसने वरिष्ठ अधिकारियों से इस तरह बात की थी जैसे वे शरारती स्कूली बच्चे हों. मगर यहाँ उसके सामने हाल ही तक उसके परिवार का एक हिस्सा पड़ा था, उसकी अपनी बेटी जैसा, जिन्हें, घर के अन्य लोगों की तरह, वह सिर्फ प्रसंगवश ही देख लेता और टिप्पणियाँ कर देता था (ये उनकी संक्षिप्त बातचीत का एक विशिष्ठ गुण था, दोनों पक्ष इस बारे में जानते थे). वह लारा से किसी वयस्क की तरह कठोरता और उदासीनता से पेश नहीं आ सकता था.

वह नहीं जानता था कि लारा से कैसे बातचीत करे जिससे उसका अपमान न हो, और उसने उससे हँसकर कहा, जैसे किसी बच्चे से कह रहा हो:

ये तुम क्या कर रही हो, माँ? इस सनसनीखेज़ नाटक की किसे ज़रूरत है?” वह चुप हो गया और छत और वॉल-पेपर पर पड़े नमी के धब्बों को देखने लगा. फिर, तिरस्कार से सिर हिलाकर आगे बोला:

“द्युसेलदोर्फ में अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी होने वाली है – पेन्टिंग, मूर्तिकला और बागवानी की. वहाँ जा रहा हूँ.

आपके यहाँ नमी है. और आप क्या लम्बे समय तक ज़मीन और आसमान के बीच टँगी रहने वाली हैं? यहाँ बिल्कुल जगह नहीं है. ये वोइतेसा, हमारी आपस की बात है, पक्की कचरा औरत है. मैं उसे जानता हूँ.

यहाँ से कहीं और चली जाइए. काफ़ी हो गया पड़े रहना. थोड़ा बीमार हुईं और ठीक है. अब उठने का समय आ गया है. कमरा बदल दीजिए, अपने विषयों पर ध्यान दीजिए, कोर्सेस पूरे कीजिए. मेरी जान-पहचान का एक कलाकार है. वह दो साल के लिए तुर्किस्तान जा रहा है. उसके वर्कशॉप में पार्टीशन डाला गया है, और, सही माने में, एक छोटा-सा क्वार्टर है. लगता है, कि वह उसे पूरे साज़ो-सामान के साथ किसी अच्छे इन्सान को देना चाहता है.

क्या आप चाहती हैं कि मैं इसकी व्यवस्था करूँ? और फिर एक और बात. माफ़ कीजिए, मैं कामकाज की बात कर रहा हूँ. मैं कब से ये चाहता था, ये मेरी पवित्र ज़िम्मेदारी है...जबसे लीपा...ये थोड़ी सी रकम है, उसके कोर्स ख़त्म करने की ख़ुशी में उपहारस्वरूप...

नहीं, प्लीज़, प्लीज़....नहीं, विनती करता हूँ, ज़िद न कीजिए...

नहीं, माफ़ कीजिए, प्लीज़...”

और जाते जाते, उसके ऐतराज़ को, आँसुओं को और थोड़ी-बहुत हाथापाई को न देखते हुए, उसे दस हज़ार का बैंक-चेक स्वीकार करने पर मजबूर कर गया.   

स्वस्थ्य होने के बाद लारा उस जगह पर चली गई, जिसकी कलाग्रीवव ने इतनी तारीफ़ की थी. ये जगह बिल्कुल पास में ही थी, स्मोलेन्स्क-मार्केट के पास. क्वार्टर दो मंज़िला, छोटी-सी, पुरानी, पत्थर की बिल्डिंग के ऊपरी हिस्से में था. नीचे व्यापारियों के गोदाम थे. घर में कबाड़ ले जाने वाले गाड़ीवान रहते थे. आँगन को पत्थरों से पक्का किया गया था और वह हमेशा बिखरी हुई जई और कूड़े से भरा रहता था. आँगन में गुटरगूँ करते कबूतर घूमते. जब चूहों की पूरी फ़ौज आँगन की नाली से गुज़रती, तो वे शोर मचाते हुए झुण्ड में ज़मीन से ऊपर उड़ते, लारा की खिड़की से ज़्यादा ऊँचाई पर नहीं जाते.

 

3

पाशा भी बहुत परेशान था. जब तक लारा गंभीर रूप से बीमार थी, उसे लारा के पास नहीं आने दिया गया. उसे कैसा महसूस हो रहा होगा? पाशा की समझ के अनुसार, लारा उस आदमी को मारना चाहती थी, जो उसके प्रति उदासीन था, और फिर इसी आदमी के संरक्षण में आई, हत्या के अपने असफ़ल शिकार के. और ये सब क्रिसमस की शाम वाली उनकी उस अविस्मरणीय बातचीत के बाद, जलती हुई मोमबत्ती के पास! अगर ये आदमी न होता, तो लारा को गिरफ़्तार करके उस पर मुकदमा चला दिया गया होता. उसने लारा को सज़ा से बचा लिया था. उसीकी बदौलत वह सही-सलामत बच गई. पाशा बेहद संतप्त और हैरान था.

जब तबियत कुछ सँभली तो लारा ने पाशा को अपने पास बुलवाया. उसने कहा:

“मैं बुरी हूँ. तुम मुझे नहीं जानते, मैं कभी तुम्हें बताऊँगी. मुझे बोलने में तकलीफ़ हो रही है, तुम देख रहे हो, आँसुओं से मेरा गला रुँध रहा है, मगर छोड़ो, मुझे भूल जाओ, मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ.”

अनेक हृदय विदारक दृश्य होते रहे, एक से बढ़कर एक बर्दाश्त से बाहर.

वोइत्कोव्स्काया – क्योंकि यह लारा के अर्बात पर वास्तव्य के दौरान हुआ था, -  रोते हुए पाशा को देखकर कॉरीडोर से अपने आधे हिस्से में भागी , दीवान पर लुढ़क गई और पेट में दर्द होने तक भयानकता से हँसती रही, और कहती रही : “ओय, नहीं, ओय बर्दाश्त नहीं कर सकती! ये सब वाकई में कहा जा सकता है...हा-हा-हा! हीरो! हा-हा-हा! एरुस्लान लज़ारेविच!”

पाशा को इस कलंकित संबंध से मुक्ति देने के लिए, उसे जड़ से मिटाने और पीड़ाओं का अंत करने के लिए लारा ने पाशा से कह दिया कि वह उससे पूरी तरह संबंध तोड़ रही है, क्योंकि उससे प्यार नहीं करती, मगर ये कहते हुए वह इस तरह हिचकियाँ ले रही थी, कि उस पर यकीन करना नामुमकिन था.

पाशा को उसके सभी दुनियावी गुनाहों के बारे में शक था, उसने उसके एक भी शब्द पर विश्वास नहीं किया, वह शाप देने और नफ़रत करने के लिए तैयार था, और उसे शैतानियत से प्यार करता था, और वह लारा के अपने ही विचारों से ईर्ष्या करता था, उस गिलास से ईर्ष्या करता था जिससे वह पानी पीती थी, और तकिये से जिस पर वह लेटी थी. पागल न हो जाए इसलिए जल्दी से कोई निर्णयात्मक कदम उठाना था.

उन्होंने बिना देर किए फ़ौरन शादी करने का फ़ैसला किया, इम्तिहान पूरे होने से पहले. ये सुझाव दिया गया कि ईस्टर के बाद वाले पहले इतवार को शादी की जाए.

लारा की विनती पर इसे फिर से स्थगित किया गया.

उनकी शादी डे ऑफ होली स्पिरिट (पवित्र आत्मा का दिन – अनु.), ‘ट्रिनिटी’ (त्रित्व) के दूसरे दिन हुई, जब ये पता चल गया कि उन्होंने सफ़लतापूर्वक परीक्षा समाप्त कर ली है. ल्युद्मीला कपितोनव्ना चिपूर्का, लारा की सहपाठी तूसी चिपूर्का की माँ सारा इंतज़ाम कर रही थी. तूसी चिपूर्का ने लारा के साथ ही पाठ्यक्रम पूरा किया था. ल्युद्मीला कपितोनव्ना उभरे हुए सीने और भारी आवाज़ वाली ख़ूबसूरत महिला थी, वह अच्छी गायिका थी और उसमें गज़ब की कल्पनाशक्ति थी. प्रचलित मान्यताओं और विश्वासों के साथ-साथ, जो उसे ज्ञात थे, वह अपनी भी कई सारी आशु-रचनाएँ गढ़ लेती थी.

शहर में भयानक गर्मी थी, जब लारा को “सुनहरे मुकुट के नीचे” ले जाया जा रहा था, जैसा लारा को तैयार करते हुए जिप्सी पानिन की गहरी आवाज़ में ल्युद्मीला कपितोनव्ना अपने आप से नकियाई. चर्चों के सुनहरे गुम्बदों और पगडंडियों पर बिछी ताज़ी बालू का पीलापन आँखों में चुभ रहा था. ट्रिनिटी डे की पूर्वसंध्या पर काटे गए बर्च वृक्षों की धूलभरी हरियाली चर्चों की बागडों पर एक ट्यूब की शक्ल में गोल-गोल होकर, उदासी से लटक रही थी, मानो झुलस गई हो. साँस लेना मुश्किल हो रहा था, और सूरज की चमक आँखों में चुभ रही थी. और ऐसा लग रहा था, जैसे आसपास हज़ारों शादियाँ हो रही हों, क्योंकि सारी लड़कियाँ घुँघराले बालों में और दुल्हन की तरह सफ़ेद लिबास में थीं, और सारे नौजवान, त्यौहार के उपलक्ष्य में बालों में पोमेड लगाए थे और तंग टू-पीस काले सूट पहने हुए थे. सब परेशान थे और सबको गर्मी लग रही थी.

लारा की एक अन्य सहेली की माँ लगोदिना ने लारा के पैरों के नीचे चाँदी के सिक्के बिखेरे, जब लारा ने भावी समृद्धि दर्शाने वाले कालीन पर पैर रखा, और ल्युद्मीला कपितोनव्ना ने इसी उद्देश्य से लारा को नसीहत दी कि जब वह मुकुट के नीचे खड़ी हो तो खाली हाथ से सलीब का निशान न बनाए, बल्कि उसे महीन रेशमी कपड़े या लेस से ढाँके. फिर उसने कहा कि लारा अपनी मोमबत्ती को ऊँचा रखे, तब वह घर में अपनी हुकूमत चलायेगी. मगर पाशा की ख़ातिर अपने भविष्य का त्याग करने के इरादे से लारा ने जितना संभव था, मोमबत्ती को नीचे रखा, मगर सब बेकार, क्योंकि उसने चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न की, उसकी मोमबत्ती पाशा की मोमबत्ती से ऊँची ही रही.

चर्च से सीधे पार्टी के लिए कलाकार के वर्कशॉप-स्टूडिओ में पहुँचे जिसकी अंतीपवों ने तभी मरम्मत करवाई थी. मेहमान चिल्लाए: कड़वा, कड़वा, नहीं पिया जाता”, - और दूसरे कोने से कोरस में जवाब मिला: “मीठा बनाना होगा”, - और जवान जोड़े ने, शर्माकर खिलखिलाते हुए, एक-दूसरे का चुम्बन लिया. उनके सम्मान में ल्युद्मीला कपितोनव्ना ने “अंगूर” दोहरे अंतरे के साथ गया “ख़ुदा तुम्हें दे प्यार और नसीहत” और “खुल जा घनी चोटी, बिखर जाओ सुनहरे बालों” ये गीत भी पेश किया.

जब सब चले गए और वे अकेले रह गए, तो पाशा को इस अचानक छा गई ख़ामोशी से असहजता महसूस होने लगी. आँगन में लारा की खिड़की के सामने खम्भे पर एक स्ट्रीट-लैम्प जल रहा था, और, लारा ने किसी भी तरह से परदा क्यों न बंद किया, एक पतली, छिले हुए लकड़ी के टुकड़े जैसी प्रकाश की पट्टी परदों के बीच से भीतर झाँक लेती थी. ये प्रकाश की पट्टी पाशा को चैन नहीं लेने दे रही थी, जैसे कोई उनकी जासूसी कर रहा हो. पाशा ने भयभीत होकर सोचा कि वह इस लैम्प पर ज़्यादा ध्यान दे रहा है बजाय ख़ुद के, लारा के और उसके प्रति अपने प्यार के.

इस रात, जो अंतहीन प्रतीत हो रही थी, हाल ही का विद्यार्थी अंतीपव, जिसे उसके साथी “स्तिपानीदा” और “सलोनी छोकरी” बुलाते थे, सौभाग्य के उच्चतम शिखर और बदहवासी के गर्त में डूबता-उतराता रहा. गुनाहों के बारे में उसके अनुमान लारा की स्वीकारोक्तियों तक पहुँचते और वापस लौट आते. वह पूछता, और लारा के हर जवाब पर उसका दिल डूबता जाता, जैसे वह खाई में गिर रहा हो. उसकी आहत कल्पना  नये रहस्योद्घाटनों के साथ नहीं जा पा रही थी.

 

वे सुबह तक बातें करते रहे. अंतीपव की ज़िंदगी में इस रात से ज़्यादा आश्चर्यजनक और आकस्मिक परिवर्तन आज तक नहीं हुआ था. जब सुबह वह उठा, तो एकदम दूसरा ही आदमी थी, अचरज करते हुए कि उसका नाम अब तक वही था.             

 

4

दस दिनों के बाद दोस्तों ने उसी कमरे में उनके लिए बिदाई-पार्टी का आयोजन किया. पाशा और लारा, दोनों ने एक जैसी बढ़िया सफ़लता से अपने कोर्स पूरे कर लिए थे, दोनों को युराल के एक ही शहर में नौकरी के प्रस्ताव भी मिल गए थे, जहाँ वे अगले दिन सुबह जाने वाले थे.

फिर से पीते रहे, गाते रहे और शोर मचाते रहे, मगर इस बार सिर्फ नौजवान ही थे, बड़ों के बगैर.

पार्टीशन के पीछे, जो रिहायशी हिस्से को वर्कशॉप से अलग करता था, जहाँ मेहमान इकट्ठा हुए थे, सामान का बड़ा संदूक और लारा की एक मध्यम आकार की टोकरी, सूटकेस और बर्तनों का बक्सा रखा था. कोने में कई सारी थैलियाँ थीं. सामान बहुत था. कुछ सामान मालगाड़ी से अगली सुबह जाने वाला था. करीब-करीब सब कुछ रखा जा चुका था, मगर पूरी तरह नहीं. बक्सा और टोकरी खुले हुए थे, वे ऊपर तक भरे नहीं थे. लारा को रुक-रुक कर किसी चीज़ की याद आती, वह उसे पार्टीशन के पीछे ले जाती और टोकरी में रखकर, सतह को एक-सा करती.         

पाशा मेहमानों के साथ घर पर ही था, जब लारा कॉलेज के ऑफिस से वापस लौटी. वह अपना जन्म का प्रमाणपत्र और कुछ अन्य कागज़ात लेने गई थी. उसके साथ दरबान था जो कल जा रहे सामान को बाँधने के लिए अपने साथ टाट और मोटी, मज़बूत रस्सी का बण्डल लाया था. लारा ने दरबान को भेज दिया और मेहमानों के बीच से गुज़रते हुए, किसी का हाथ मिलाकर अभिवादन किया, और किसी का चुम्बन लिया, और फिर कपड़े बदलने के लिए पार्टीशन के पीछे चली गई. जब वह कपड़े बदलकर बाहर निकली तो सबने तालियाँ बजाईं, बातें करने लगे, बैठने लगे, और वैसा ही शोर होने लगा जैसा कुछ दिन पहले शादी पर हो रहा था. कुछ उत्साही लोग बगल में बैठे लोगों के जामों में वोद्का डालने लगे, काँटों से लैस कई हाथ मेज़ के बीचोंबीच रखी ब्रेड और खाने-पीने की अन्य चीज़ों की ओर बढ़े. उन्होंने भाषण दिए, टर्राने लगे, गला तर करने के बाद एक से बढ़कर एक चुटकुले सुनाने लगे. कुछ लोग जल्दी ही नशे में झूमने लगे.

“मैं बेहद थक गई हूँ,” पति के पास बैठी लारा ने कहा. “तुमने अपना सब काम पूरा कर लिया?”

“हाँ.”

“फिर भी, मैं बहुत बढ़िया महसूस कर रही हूँ. मैं ख़ुशनसीब हूँ. और तुम?”

“मैं भी. मुझे अच्छा लग रहा है. मगर ये लम्बी कहानी है.”

नौजवानों की इस पार्टी में अपवाद स्वरूप कमारोव्स्की को इजाज़त दी गई थी.

पार्टी के अंत में वह कहना चाहता था कि अपने नौजवान दोस्तों के जाने के बाद वह अनाथ हो जाएगा, कि उसके लिए मॉस्को रेगिस्तान, सहारा, बन जाएगा, मगर वह इतना बहक गया था कि खिखियाया और उसे परेशानी में अधूरे छोड़े वाक्य को फिर से दोहराना पड़ा. उसने अंतीपवों से पूछा कि अगर वह जुदाई बर्दाश्त न कर पाया तो उनके साथ ख़तो-किताबत करने की और उनसे मिलने युर्यातिन में आने की इजाज़त दें जहाँ उनका नया निवास होने वाला था.

“ये एकदम बकवास है,” लारा ने बेध्यानी में ज़ोर से कहा. “और वैसे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, ख़तो-किताबत, सहारा और बाकी सब. और, वहाँ आने का ख़याल भी दिल में न लाएँ. ख़ुदा ने चाहा तो हमारे बगैर भी आप ठीक-ठाक रहेंगे, हम कोई ऐसे बिरले तो नहीं हैं, है ना पाशा? शायद, आपको नये नौजवान दोस्त मिल जाएँ.”

और पूरी तरह भूलकर कि वह किससे और किस बारे में बात कर रही है, लारा को कुछ याद आया और वह जल्दी से उठकर पार्टीशन के पीछे किचन में चली गई.                         

यहाँ उसने मीट-ग्राइंडर के पुर्जे अलग किए और उन्हें चारों तरफ़ फूस से ढाँककर बर्तनों वाले बक्से के कोनों में फिट करने लगी. ऐसा करते हुए उसने बाहर निकलती हुई एक नुकीली छिपटी से अपना हाथ लगभग ज़ख़्मी कर लिया.

ये काम करते हुए उसके दिमाग से बिल्कुल निकल गया कि उसके यहाँ मेहमान हैं, उनकी बातें भी वह नहीं सुन रही थी, कि अचानक उन्होंने पार्टीशन के पीछे से खूब हो-हल्ला मचाकर अपनी याद दिलाई और तब लारा ने सोचा कि कितने प्रयास से शराबी लोग हमेशा शराबियों की नकल करते हैं, और जितने अधिक वे नशे में होते हैं उतने ही ज़्यादा फूहड़पन और नौसिखियेपन से ऐसा करते हैं.

इसी समय खुली हुई खिड़की से एकदम अलग, विशेष आवाज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया, जो आँगन से आ रही थी. लारा ने परदा हटाया और बाहर झाँककर देखा.

आँगन में बँधी हुई टाँगों वाला घोड़ा लड़खड़ाते हुए चक्कर लगा रहा था. पता नहीं वह किसका था और शायद, गलती से आँगन में घुस आया था. उजाला करीब-करीब हो चुका था, मगर सूरज निकलने में अभी देर थी. सोया हुआ और पूरी तरह वीरान शहर भोर की भूरी-बैंगनी ठण्डक में डूब गया था. लारा ने आँखें बंद कर लीं. घोड़े की टापों की ये असंबद्ध आवाज़ उसे न जाने किस दूरस्थ, दिलकश गाँव में ले गई.

सीढ़ियों से किसी ने घण्टी बजाई. लारा ने कान खड़े किए. मेज़ से उठकर कोई दरवाज़ा खोलने गया. ये नाद्या थी! लारा उससे मिलने के लिए लपकी. नाद्या सीधी ट्रेन से आई थी, ताज़गी भरी, लुभावनी और जैसे समूची दुप्ल्यान्का के बसंती फूलों की खुशबू से महक रही थी. सहेलियाँ खड़ी थीं, निःशब्द, और सिर्फ रोए जा रही थीं, उन्होंने कस कर एक दूसरे का आलिंगन किया.

नाद्या लारा के लिए पूरे परिवार की ओर से मुबारकबाद और यात्रा के लिए शुभकामनाएँ लाई थी और माता-पिता की ओर से एक कीमती तोहफ़ा लाई थी. उसने अपने बैग से कागज़ में लिपटा एक डिब्बा निकाला, उसे खोला और उसका ढक्कन खोलकर लारा को बिरली ख़ूबसूरती का कीमती पत्थरों का हार दिया.

सब लोग आह’-‘ओहकरने लगे. शराबियों में से एक ने, जो कुछ होश में आ गया था, कहा:

“गुलाबी गोमेद है. हाँ, हाँ, गुलाबी, क्या सोच रहे हैं. ये हीरे से कम नहीं है.”

मगर नाद्या बहस करती रही कि ये पीला सफायर (नीलम) है.

उसे अपने पास बिठाकर आवभगत करते हुए लारा ने नेकलेस अपनी प्लेट के पास रखा और उसकी तरफ़ एकटक देखती रही.

डिब्बे के बैंगनी कुशन पर समेट कर रखे गए नेकलेस में जैसे सनसनाहट हो रही थी, मानो ज्वालाएँ निकल रही थीं, और कभी लगता कि उस पर नमी की बूँदें इकट्ठा हो गई हैं, कभी वह नन्हे अँगूरों का ब्रश प्रतीत होता.

इस बीच मेज़ के पीछे किसी-किसी को होश आ गया.

जागने के बाद फिर से नाद्या का साथ देने के लिए एक-एक जाम पिया गया.

नाद्या को जल्दी ही चढ़ गई.

जल्दी ही घर में नींद का साम्राज्य छा गया. ज़्यादातर मेहमान कल की रेल्वे स्टेशन पर बिदाई को देखते हुए रात में वहीं रुक गए. आधे से ज़्यादा लोग ओनो-कोनों में पड़े खर्राटे ले रहे थे. लारा को याद ही नहीं आया कि वह कैसे दीवान पर सोई हुई ईरा लगोदिना की बगल में कपड़े पहने हुए ही गिर पड़ी.

लारा की आँख ठीक कान के ऊपर ज़ोर-ज़ोर से हो रही बातचीत से खुल गई. ये अनजान लोगों की आवाज़ें थीं, जो खोए हुए घोड़े की तलाश में बाहर से आँगन में आए थे. लारा ने आँखें खोलीं और उसे अचरज हुआ: “कैसा है ये पाशा, वाकई में बेचैन, कमरे के बीच में खंभे जैसा खड़ा है और लगातार कुछ टटोल रहा है”. इसी समय उस तथाकथित पाशा ने उसकी ओर मुँह फेरा, और उसने देखा कि ये पाशा नहीं, बल्कि चेचकरू चेहरे वाला कोई राक्षस है, जिसके चेहरे पर कनपटी से ठोढ़ी तक घाव का निशान था. तब वह समझी कि उसके घर में चोर, लुटेरा घुस आया है और उसने चिल्लाने की कोशिश की, मगर गले से आवाज़ ही नहीं निकली. अचानक उसे नेकलेस की याद आई और, चुपके से कुहनियों पर उठकर उसने तिरछी नज़र से डाइनिंग टेबल की ओर देखा.

नेकलेस अपनी ही जगह पर, ब्रेड के टुकडों और चॉकलेटों के बीच पड़ा था और उस बेवकूफ़ दुष्ट ने खाने पीने की चीज़ों के ढेर में उसे देखा ही नहीं और उसने सिर्फ चादरों के ढेर में हाथ डालकर देखा और लारा की बैग को उलत-पुलट कर दिया. नशे में झूमती हुई और अर्धनिद्रित लारा को, जो परिस्थिति को अच्छी तरह समझ नहीं पा रही थी, अपने काम पर बहुत दुख हुआ. बदहवासी में उसने फिर चिल्लाना चाहा और फिर से अपना मुँह न खोल पाई और ज़ुबान ही नहीं हिला पाई. तब उसने बगल में सोई ईरा लगोदिना के पेट पर घुटना मारा, और जब वह दर्द के मारे ज़ोर से चिल्लाई, तो उसके साथ लारा भी चिल्लाने लगी. चोर ने चुराई हुई चीज़ों की थैली गिरा दी और तीर की तरह कमरे से भाग गया.

कुछ मर्द, जो उछल पड़े थे, मुश्किल से समझते हुए कि बात क्या है, उसके पीछे भागे, मगर चोर का नामोनिशान भी नहीं बचा था.

इस घटना ने और उस पर हो रही बहस ने सब को उठने का सिग्नल दे दिया. लारा का बचाखुचा नशा भी काफ़ूर हो गया. कुछ देर और सोने की उनकी विनती की ओर लारा ने कोई ध्यान नहीं दिया, और उसने सारे सोये हुए लोगों को जगा दिया, जल्दी से उन्हें कॉफी पिलाई और अपने-अपने घर भेज दिया ताकि वे उनकी ट्रेन के छूटने के समय तक स्टेशन पहुँच सकें.

जब सब चले गए तो काम ने तेज़ी पकड़ ली. लारा अपनी स्वाभाविक फुर्ती से एक बण्डल से दूसरे बण्डल की ओर जा रही थी, तकिये घुसा रही थी, बेल्ट बाँध रही थी और सिर्फ पाशा और दरबान को मदद न करने के लिए मना रही थी, जिससे वे उसके काम में दखल न दें.

सब कुछ ठीक ठाक और समय पर हो गया.  अंतीपव दम्पत्ति समय पर पहुँच गए.

ट्रेन हौले से चली, जैसे वह उन टोपियों की नकल कर रही हो, जिन्हें बिदा देते समय दोस्त हिला रहे थे. जब उन्होंने टोपियाँ हिलाना बंद किया और ज़ोर से तीन बार कुछ चिल्लाए (शायद, “हुर्रे”) तो ट्रेन ने रफ़्तार पकड़ ली.

 

5

तीन दिन से बुरा मौसम चल रहा था. यह युद्ध का दूसरा पतझड़ का मौसम था. पहले साल की सफ़लताओं के बाद असफ़लताएँ शुरू हो गईं थीं.

ब्रूसीलव की आठवीं फ़ौज, जो कर्पेथियन्स में केंद्रित थी, घाटियों से नीचे उतरने और हंगरी में प्रवेश करने के लिए तैयार थी, मगर इसके बदले वह पीछे जाने लगी, सारी फौजों के पीछे हटने के कारण उसे भी पीछे जाना पड़ा. हमने गैलिशिया को आज़ाद कर लिया था, जिस पर युद्ध के आरंभिक महीनों में शत्रु ने कब्जा कर लिया था.

डॉक्टर झिवागो, जिसे पहले यूरा के नाम से बुलाते थे, और अब एक-एक करके सब अक्सर उसके नाम और पिता के नाम से बुलाने लगे थे, स्त्री-रोग क्लिनिक के प्रसूति विभाग के कॉरीडोर में खड़ा था, उस वार्ड के दरवाज़े के सामने, जहाँ अभी-अभी लाई गई उसकी पत्नी अंतनीना अलेक्सान्द्रव्ना को दाख़िल किया गया था. उसने पत्नी से बिदा ली और दाई का इंतज़ार करने लगा, जिससे उससे इस बारे में बात कर सके कि वह ज़रूरत पड़ने पर उसे कैसे सूचित करेगी, और वह कैसे तोन्या के स्वास्थ्य के बारे में उससे जानकारी प्राप्त कर सकेगा.         

उसके पास बिल्कुल समय नहीं था, उसे अपने अस्पताल जाने की जल्दी थी, मगर इससे पहले दो बीमारों के यहाँ होम-विज़िटपर जाना था, और वह बेकार में यहाँ अपना कीमती वक्त बर्बाद कर रहा है, खिड़की से बारिश की तिरछी रेखाछाया को देखते हुए, जिसकी फुहार को शिशिर की बारिश के झोंके तोड़कर एक ओर ले जा रहे थे, जैसे तूफ़ान खेत में गेंहूँ की बालियों को गिराकर उलझा देता है.

अभी ज़्यादा अँधेरा नहीं हुआ था. यूरी अन्द्रेयेविच को क्लिनिक का पिछला हिस्सा, देविच्ये ग्राउण्ड की हवेलियों की काँच की छतें, इलेक्ट्रिक ट्राम की एक शाखा दिखाई दे रही थी, जिसे अस्पताल की एक बिल्डिंग के पिछले दरवाज़े तक बिछाया गया था.      

बारिश बड़ी बेतरतीबी से हो रही थी, न तेज़, न कम, हवा के उन्माद के बावजूद, जो धरती पर गिर रहे पानी के संयम से जैसे और बढ़ रहा था.

हवा के झोंके जंगली अंगूर की बेल को झकझोर रहे थे, जिससे एक छत ढँकी थी. हवा, जैसे बेल को पूरी तरह उखाड़ना चाहते थे, वह उसे हवा में ऊपर उठाते, झकझोरते और तुनकमिजाज़ी से किसी फटे चीथड़े की तरह नीचे पटक देते.

छत की बगल से क्लिनिक की ओर दो ट्रॉलियों वाली गाड़ी आई. उनमें से ज़ख़्मियों को उतारने लगे.

मॉस्को के अस्पतालों में, जो ख़ासकर लुत्स के युद्ध के बाद खचाखच भर चुके थे, ज़ख़्मियों को सीढ़ियों की चौकियों (लैंडिंग्स) और कॉरीडोर्स में रखा जा रहा था. शहर के अस्पतालों के सीमा से ज़्यादा भर जाने का असर महिला-वार्डों पर दिखाई देने लगा था.

यूरी अन्द्रेयेविच ने खिड़की की तरफ़ पीठ की और थकान के कारण उबासी ली. उसके पास सोचने के लिए कुछ था ही नहीं. अचानक उसे याद आ गया. कुछ दिन पहले होली क्रॉस हॉस्पिटलके सर्जरी विभाग में, जहाँ वह काम करता था, एक महिला की मौत हो गई. यूरी अन्द्रेयेविच इस बात पर ज़ोर दे रहा था कि उसे यकृत का संक्रमण हो गया था. सब उसके साथ बहस कर रहे थे. आज उसके मृत शरीर की चीरफाड़ करने वाले थे. चीरफाड़ से ही वास्तविकता का पता लग सकता था. मगर उनके अस्पताल का चीरफ़ाड़ विशेषज्ञ – भयानक पियक्कड़ है. ख़ुदा ही जाने वह ये कैसे करेगा.

जल्दी से अँधेरा हो गया. खिड़की के बाहर कुछ भी देखना संभव नहीं था. मानो जादुई छड़ी के एक प्रहार से सभी खिड़कियों में बिजली जल उठी.

तोन्या के पास से एक छोटे-से गलियारे से होकर, जो वार्ड को कॉरीडोर से अलग करता थी, विभाग का मुख्य डॉक्टर निकला. यह एक भारी-भरकम गाइनेकोलोजिस्ट था, जो हर सवाल का जवाब छत की ओर आँखें उठाकर और कंधे सिकोड़कर देता था. मौन भाषा में उसकी इन हरकतों का मतलब ये था, कि चाहे विज्ञान ने कितनी ही तरक्की क्यों न कर ली हो, मेरे दोस्त, होरेशियो, ऐसी भी पहेलियाँ हैं जिनके सामने विज्ञान घुटने टेक देता है.                  

वह यूरी अन्द्रेयेविच के पास से गुज़रा. मुस्कुराते हुए उसका अभिवादन करके, और अपने फूले-फूले हाथों और मोटी हथेलियों को हिलाते हुए कुछ हरकतें कीं, यह दर्शाते हुए कि शांति से इंतज़ार करना पड़ेगा, और कॉरीडोर से स्वागत कक्ष की ओर सिगरेट पीने के लिए गया.

तब यूरी अन्द्रेयेविच के पास इस ख़ामोशीपसंद गाइनेकोलोजिस्ट की सहायक आई, जो बातूनीपन में उससे बिल्कुल विपरीत थी.

“आपकी जगह पर अगर मैं होती तो घर चली गई होती. मैं कल होली क्रॉसअस्पताल में आपको फोन करूँगी. इससे पहले मुश्किल से ही ये शुरू होगा. मुझे यकीन है कि प्रसव सामान्य ही होगा, बगैर किसी सर्जरी के. मगर, दूसरी ओर, श्रोणी की कुछ संकीर्णता, भ्रूण की स्थिति, दर्द की अनुपस्थिति और मामूली संकुचन के कारण थोड़ी चिंता है. मगर, अभी से कुछ कहना ठीक नहीं है. सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि जब प्रसव आरंभ होगा तब वह किस प्रकार से कोशिश करती है. और ये बाद में ही पता चलेगा.”

दूसरे दिन उसके टेलिफोन के जवाब में अस्पताल के चौकीदार ने, जो फोन के पास आया था, उससे कहा कि रिसीवर न रखे, वह पूछने के लिए गया, उससे दस मिनट इंतज़ार करवाया और बड़ा रूखा और फूहड़ जवाब लाया : “ये बताने के लिए कहा है, कह देना, कहते हैं, कि बीबी को काफ़ी जल्दी ले आए, वापस ले जाना होगा”. तैश में आकर यूरी अन्द्रेयेविच ने माँग की कि किसी ज़्यादा समझदार आदमी को फोन पर बुलाया जाए. – “लक्षण विश्वसनीय नहीं हैं,” एक नर्स ने उससे कहा, “डॉक्टर परेशान न हों, एक-दो दिन बर्दाश्त करना होगा”.

तीसरे दिन उसे पता चला कि प्रसव रात से ही आरंभ हो गया है, सूर्योदय के समय पानी जाने लगा और सुबह से तीव्र वेदनाएँ हो रही हैं.

वह बेतहाशा क्लिनिक में भागा और, जब कॉरीडोर से गुज़र रहा था, तो असावधानी से अधखुले रह गए दरवाज़े से तोन्या की ऐसी हृदयविदारक चीखें सुनीं, जैसे रेलगाड़ी के पहियों के नीचे से कुचले हुए हाथ-पैर वाले लोग चिल्लाते हैं.

उसे उसके पास जाने की इजाज़त नहीं थी. उसने अपनी मुड़ी हुई उँगली को इतना काटा कि उसमें से खून निकलने लगा, फिर वह खिड़की के पास गया, जिसके पीछे वैसी ही तिरछी बारिश हो रही थी जैसी कल और परसों हो रही थी. 

अस्पताल की नर्स वार्ड से बाहर आई. वहाँ से नवजात शिशु की चीख़ सुनाई दी.

“सलामत है, सलामत है,” यूरी अन्द्रेयेविच अपने आप से खुशी से कह रहा था.

“बेटा. लड़का. सहीसलामत पैदा हुआ है,” नर्स ने जैसे गाते हुए कहा. “अभी इजाज़त नहीं है. समय आयेगा – दिखायेंगे. तब आपको नई माँ के लिए अपना पर्स ढीला करना होगा.

बहुत तकलीफ़ सही उसने. पहला बच्चा है. पहले के समय हमेशा तकलीफ़ होती है.”

“सलामत है, सलामत है,” यूरी अन्द्रेयेविच ख़ुश हो रहा था, ये न समझते हुए कि नर्स क्या कह रही है, और ये भी, कि उसने अपने शब्दों में इस घटना के लिए उसे भी शामिल कर लिया है, वैसे, इसमें वह क्यों है? बाप, बेटा – उसे मुफ़्त में मिल गए पितृत्व में कोई गर्व की बात महसूस नहीं हुई, आसमान से टपक पड़े इस पुत्रत्व में उसे कुछ भी महसूस नहीं हुआ. ये सब उसकी चेतना से बाहर था.

महत्वपूर्ण थी तोन्या, तोन्या, जो मौत से जूझ रही थी और सौभाग्य से उससे बच गई थी.

उसका एक मरीज़ क्लिनिक से कुछ ही दूरी पर था. वह उसके पास गया और आधे घण्टे बाद वापस लौटा. दोनों दरवाज़े, कॉरीडोर से ड्योढ़ी में और आगे, ड्योढ़ी से वार्ड में फिर से कुछ खुले थे. ख़ुद भी न समझते हुए कि वह क्या कर रहा है, यूरी अन्द्रेयेविच लॉबी में घुस गया.

उसके सामने हाथ फैलाये सफ़ेद एप्रन पहने भीमकाय-गाइनोकोलोजिस्ट यूँ प्रकट हुआ, जैसे अचानक ज़मीन से निकला हो.

“कहाँ?” घुटी-घुटी फुसफुसाहट से, ताकि प्रसूता सुन न ले, उसने उसे रोका. “आप क्या पागल हो गए हैं? ज़ख्म, खून, एंटिसेपटिक, और मानसिकता के बारे में तो कुछ न कहना ही अच्छा है. अच्छे हो! और ऊपर से डॉक्टर भी.”

“ओह, क्या मैं...मैं सिर्फ एक आँख से. यहाँ से. झिरी से.”

“ओह, ये अलग बात है. ऐसा ही होगा. मगर मुझे मजबूर न करना! देखिए! अगर उसने देख लिया, तो मार डालूँगा, जिस्म का एक भी हिस्सा नहीं छोडूँगा!”

वार्ड में दरवाज़े की ओर पीठ किये एप्रन पहनी दो औरतें खड़ी थीं, नर्स और दाई. दाई के हाथ में चिल्लाता हुआ और नाज़ुक नवजात शिशु था, जो गहरे लाल रबर के टुकड़े की भाँति फैल रहा था और सिकुड़ रहा था. नर्स ने नाभि पर धागा बाँधा, जिससे नाल काटी जा सके. तोन्या वार्ड के बीचोंबीच सर्जिकल-बेड पर पड़ी थी, जिसे ऊपर-नीचे किया जा सकता था. वह काफ़ी ऊँचाई पर लेटी थी. यूरी अन्द्रेयेविच को, जो बदहवासी में हर चीज़ बढा-चढ़ाकर देख रहा था, ऐसा लगा कि वह ऐसी डेस्क की ऊँचाई पर लेटी है, जिसके पीछे खड़े होकर लिखते हैं.

आम लोगों से छत की ओर कुछ ज़्यादा ऊपर उठाई हुई तोन्या झेली गई पीड़ा में डूब रही थी, थकान के कारण उसके शरीर से जैसे धुँआ निकल रहा था. वार्ड के बीचोंबीच तोन्या इस तरह से ऊपर उठी हुई थी, जैसे अभी-अभी खाड़ी में लंगर डला और माल उतारा गया बजरा खड़ा होता है, जिसने मृत्यु के समुंदर से जीवन के द्वीप तक नई आत्माओं के साथ यात्रा की हो, जो यहाँ न जाने कहाँ से आकर बस गई थीं. उसने अभी-अभी एक ऐसी ही आत्मा को उतारा है और अब लंगर से बंधी पड़ी है, अपने खाली हुए किनारों समेत आराम कर रही है. उसके साथ ही उसके शरीर के टूटे हुए और खिंचे हुए अवयव, और स्मृति भी आराम कर रहे थे, उसे याद ही नहीं रहा कि कुछ देर पहले वह कहाँ थी, क्या पार करके आई है, और कैसे किनारे पे लगी है.       

और, चूँकि किसी को भी उस देश का भूगोल ज्ञात नहीं था, जिसके झण्डे तले उसने लंगर डाला है, इसलिए पता नहीं था कि उसे किस भाषा में संबोधित करना है.

उसके अपने अस्पताल में सब उसे लगातार बधाइयाँ दे रहे थे. “कितनी जल्दी सबको पता चल गया!” यूरी अन्द्रेयेविच को अचरज हुआ.

वह रेसिडेंट डॉक्टर्स के कमरे में पहुँचा जिसे सब सराय और कूड़ा-घर कहते थे, क्योंकि मरीज़ों की अत्यधिक संख्या के कारण जगह की जो कमी हो गई थी, उसके चलते अब इसी कमरे में लोग गरम कपड़े उतारते, बाहर से आकर गलोश (रबड़ के ऊँचे जूते) पहने हुए घुस जाते, उसमें अन्य विभागों से लाई हुई इधर-उधर की चीज़ें भूल जाते, सिगरेट के ठूँठ और कागज़ भी फेंकते.    

कमरे की खिड़की के पास फूला-फूला चीरफाड़ विशेषज्ञ खड़ा था और हाथ उठाकर रोशनी में चश्मे के ऊपर से शीशी में पड़े किसी धुँधले द्रव को देख रहा था. 

“मुबारक हो,” उसने यूरी अन्द्रेयेविच पर नज़र डाले बिना उसी दिशा में देखते हुए कहा,

“धन्यवाद. आपने दिल को छू लिया.”

“धन्यवाद की ज़रूरत नहीं है. मैंने कुछ नहीं किया है. पिचूझ्किन ने चीरफाड़ की. मगर सबको अचरज हो रहा है. लिवर का संक्रमण. ये है, कह रहे हैं, डाइग्नोस्टीशियन! (निदान करने वाला – अनु.) सिर्फ इसी की चर्चा हो रही है.” 

इसी समय कमरे में अस्पताल का प्रमुख डॉक्टर आया. उसने दोनों का अभिवादन किया और बोला:

“शैतान जाने क्या है, कचराघर है, न कि रेसिडेंट डॉक्टरों का कमरा, क्या बदइंतज़ामी है! हाँ, झिवागो, सोचिये – लिवर का संक्रमण! हम गलत थे. मुबारक हो. और इसके बाद – एक अप्रिय समाचार. आपकी श्रेणी की फिर से समीक्षा की जा रही है. इस बार आपको बचाना संभव न हो पाएगा. मिलिटरी-मेडिकल स्टाफ की बेहद कमी है. आपको बारूद सूँघना होगा.

6

अंतीपव दम्पत्ति उम्मीद से भी ज़्यादा अच्छी तरह युर्यातिन में बस गए. 

लोगों के दिलों में गिशार परिवार की अच्छी यादें थीं. इससे नई जगह पर शुरुआत करने से संबंधित लारा की मुश्किलें काफ़ी आसान हो गईं.

लारा अपने काम और घर की देखभाल में पूरी तरह डूबी हुई थी. उस पर घर की और उनकी तीन साल की बच्ची कातेन्का की ज़िम्मेदारी थी. अंतीपवों के यहाँ काम करने वाली लाल बालों वाली मर्फूत्का चाहे कितना ही काम क्यों न करे, उसकी मदद पर्याप्त नहीं थी.

लरीसा फ्योदरव्ना पावेल पाव्लविच के सभी मामलों का ध्यान रखती थी. वह ख़ुद लड़कियों के स्कूल में पढ़ाती थी. लारा ज़रा भी आराम किये बिना काम करती रहती और सुखी थी. ये वो ज़िंदगी थी, जिसका उसने सपना देखा था.

उसे युर्यातिन में अच्छा लगता था. यह उसका पैतृक शहर था. वो रीन्वा नामक बड़ी नदी पर था, उसके मध्य और निचले भाग में जहाज़ चला करते, और वह युराल की एक रेल्वे लाइन पर स्थित था.

सर्दियों के निकट आने का मतलब युर्यातिन में ये होता था कि नौकाओं के मालिक उन्हें नदी से उठाकर गाड़ियों में शहर ले जाते. वहाँ उन्हें अपने अपने आँगन में लाते, जहाँ नौकाएँ बसन्त के आगमन तक खुले आसमान के नीचे आराम करतीं. आँगनों के भीतर सफ़ेद पेंदे दिखाती, उलटी नौकाओं का मतलब युर्यातिन में वही था, जो अन्य स्थानों पर सर्दियों में उड़कर आते हुए सारसों का या पहली बर्फ का होता है.                          

ऐसी एक नौका, जिसकी गार्डन-पैविलियन की उभरी छत जैसे पेंदे के नीचे कातेन्का खेलती, अपने सफ़ेद रंग वाले पेंदे को ऊपर किए, अंतिपोवों द्वारा किराए पर लिए गए घर के आँगन में पड़ी थी.

लरीसा फ्योदरव्ना को इस सुदूर क्षेत्र के तौर-तरीके बहुत अच्छे लगते थे, फेल्ट के जूते और भूरे फलालैन के जैकेट पहने, स्थानीय उत्तरी लहज़े में बातें करते बुद्धिजीवी, उनकी भोली विश्वस्तता उसे बहुत भाती. लारा धरती और आम लोगों की ओर आकर्षित हो जाती.

मगर अचरज की बात थी, कि मॉस्को के रेल्वे मज़दूर का बेटा पावेल पाव्लविच पक्का राजधानी का निवासी ही रहा. वह युर्यातिनवासियों से बीबी की अपेक्षा कहीं ज़्यादा कड़ाई से पेश आता. उनके  जंगलीपन और मासूमियत से उसे चिढ़ होती थी.

अब, बीती बातों पर गौर करने से पता चला कि उसके पास सरसरी तौर पर पढ‌ने से प्राप्त हुई जानकारी को सुरक्षित रखने की एक असाधारण योग्यता थी. वह पहले भी, अंशतः लारा की सहायता से, बहुत कुछ पढ़ चुका था. जिले की इस एकान्त ज़िंदगी में उसकी पढ़ने की क्षमता इतनी बढ़ गई कि उसे लारा का ज्ञान भी अपर्याप्त प्रतीत होने लगा. अपने सहयोगियों के शैक्षणिक स्तर से वह काफ़ी ऊँचा था और उसे शिकायत थी कि उनके बीच उसका दम घुटता है. युद्ध के इस वातावरण में उनकी साधारण देशभक्ति, जो सरकारी और कुछ उन्मादपूर्ण थी, उसी भावना के जटिल रूपों के अनुरूप नहीं थी जिन्हें अंतीपव अपने दिल में संजोये था.                                   

पावेल पाव्लविच ने क्लासिक्स का अध्ययन किया था. स्कूल में वह लैटिन और प्राचीन इतिहास पढ़ाता था. मगर अचानक उस भूतपूर्व यथार्थवादी में गणित, भौतिकी और परिशुद्ध विज्ञानों का अध्ययन करने की सुप्त इच्छा जाग उठी. स्वाध्याय द्वारा उसने इन विषयों का विश्वविद्यालयीन स्तर का ज्ञान प्राप्त कर लिया. उसका सपना था, कि जैसे ही मौका मिले जिले में इन विषयों की परीक्षाएँ उत्तीर्ण करके गणित के क्षेत्र में विशेषज्ञ का दर्जा हासिल करे और परिवार सहित पीटर्सबुर्ग चला जाए. रातों को की गई कड़ी मेहनत का असर पावेल पाव्लविच के स्वास्थ्य पर होने लगा. उसे अनिद्रा रोग हो गया.

पत्नी के साथ उसका रिश्ता अच्छा तो था, मगर काफ़ी जटिल किस्म का था. अपनी दयालुता और फिक्र से वह उस पर हावी हो जाती, और वह स्वयम् को उसकी आलोचना करने की इजाज़त न देता. वह सतर्क रहता कि उसकी किसी मासूम टिप्पणी में उसे कोई छुपा हुआ ताना न सुनाई दे, मिसाल के तौर पर, ऐसा कि वह उच्च समाज से है, जबकि वह – निचले वर्ग का है, या फिर उस बारे में, कि उससे पहले वह किसी और की थी.

इस डर ने, कि वह लारा को उसके बर्ताव में किसी गलत, अपमानजनक बेवकूफ़ी का संदेह न हो जाए, उनके जीवन में बनावट उत्पन्न कर दी थी. वे बढ़-चढ़कर एक दूसरे से ज़्यादा अच्छा बनने की कोशिश करते और इसीसे सब कुछ उलझा बैठे.    

अंतीपवों के यहाँ मेहमान आये थे, कुछ शिक्षाविद् – पावेल पाव्लविच के साथी, लारा के स्कूल की प्रमुख, आर्बिट्रेशन कोर्ट का एक सदस्य, जिसमें पावेल पाव्लविच ने एक बार मध्यस्थ का काम किया था, और कुछ अन्य लोग. वे सब, पावेल पाव्लविच की राय में परले दर्जे के बेवकूफ़ थे. उसे बड़ा अचरज हुआ कि लारा हरेक के साथ मिलनसारिता से पेश आ रही थी और उसे विश्वास नहीं हो रहा था उनमें से कोई भी उसे सचमुच में अच्छा लग सकता था.

जब मेहमान चले गए तो लारा ने बड़ी देर तक खिड़कियाँ खोलकर ताज़ी हवा को भीतर आने दिया, कमरों में झाडू लगाई और मर्फूत्का के साथ किचन में बर्तन धोए. फिर, ये इत्मीनान करके कि कातेन्का अच्छी तरह कम्बल ओढ़े हुए है और पावेल सो रहा है, उसने फ़ौरन कपड़े उतारे, लैम्प बुझाया और माँ के बिस्तर में दुबके हुए किसी बच्चे की स्वाभाविकता से पति की बगल में लेट गई.

मगर अंतीपव ने ऐसा दिखाया, जैसे सो रहा हो, - वह सो नहीं रहा था. उसे पिछले कुछ दिनों से पड़ने वाला अनिद्रा का दौरा पड़ा था. उसे मालूम था, कि इसी तरह बिना सोए तीन-चार घण्टे पड़ा रहेगा. कुछ टहलने के, और मेहमानों द्वारा पीछे छोड़े गए तम्बाकू के धुँए से राहत पाने के इरादे से, वह चुपके से उठा और अंतर्वस्त्रों के ऊपर ओवरकोट और टोपी पहनकर बाहर निकल आया.

शरद ऋतु की साफ़ रात थी, पाला पड़ रहा था. अंतीपव के पैरों के नीचे बर्फ की करकराती चादर टूट  रही थी. सितारों भरा आसमान, जलते हुए स्प्रिट की मशाल जैसा, जमे हुए कीचड़ से ढँकी काली धरती को हल्के नीले, झिलमिलाते प्रकाश से आलोकित कर रहा था.             

वह घर जिसमें अंतीपव परिवार रहता था, शहर के उस भाग में था, जो डॉक के सामने था. यह रास्ते का आख़िरी घर था. उसके पीछे खेत शुरू होता था. खेत को काटती हुई रेलवे लाईन जाती थी. लाईन के पास चौकीदार की घुमटी थी. पटरियों के आर-पार लेवल-क्रॉसिंग थी.

अंतीपव उलटी हुई नाव पर बैठ गया और सितारे देखने लगा.

उन ख़यालों ने, जिनकी उसे पिछले कुछ सालों में आदत हो गई थी, उसे ख़तरनाक रूप से जकड़ लिया.  उसे महसूस हुआ कि देर-सबेर उन पर अंतिम विचार करना होगा, और बेहतर है कि ये आज ही कर लिया जाए.

“इस तरह और नहीं चल सकता,” वह सोच रहा था, “मगर इस बारे में पहले ही सोच लेना चाहिए था, उसका ध्यान देर से गया है.

उसने उसे क्यों इस बात की छूट दी, कि बच्चे की तरह उससे प्यार करे और उससे जो चाहती थी वह बना लिया? उसे समय रहते उससे इनकार करने की अकल क्यों न आई, जबकि शादी से पहले की सर्दियों में वह ख़ुद ही इस बात पर ज़ोर दे रही थी? क्या वह नहीं समझता, कि वह उसे नहीं, बल्कि उसके प्रति अपने नेक काम से प्यार करती है, अपनी मूर्तिमंत विजय से? इस प्रेरित और प्रशंसायोग्य मिशन में और वास्तविक पारिवारिक जीवन में क्या समानता है? सबसे बुरी बात तो ये है, कि वह आज भी उससे पहले जैसी शिद्दत से प्यार करता है. वह दीवानगी की हद तक अच्छी है. और, हो सकता है, कि उसका भी ये प्यार न हो, बल्कि उसकी ख़ूबसूरती और महानता के सामने कृतज्ञ उलझन हो?

छिः, तुम, इस बारे में फ़ैसला करो! ख़ुद शैतान भी लड़खड़ा जाएगा.

तो, फिर ऐसी स्थिति में करना क्या होगा? लारा और कातेन्का को इस झूठ से आज़ाद कर दे? ख़ुद को आज़ाद करने की अपेक्षा ये ज़्यादा महत्वपूर्ण है. ठीक है, मगर कैसे? तलाक दे दे? डूब मरे? – छिः, कैसी नीचता,” वह परेशान हो गया. “मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा”.

तब फिर इस शानदार ओछेपन के बारे में सोचा भी क्यों जाए?

उसने सितारों की ओर देखा, जैसे उनकी राय जानना चाहता हो. वे टिमटिमा रहे थे, गुच्छों में और दूर-दूर, बड़े और छोटे, नीले और इंद्रधनुषी आभा बिखेरते. अचानक उनकी टिमटिमाहट कम हो गई, और आँगन घर, नाव और उस पर बैठे अंतीपव समेत तीव्र, भागते हुए प्रकाश से आलोकित हो गया, जैसे कोई खेतों से होकर गेट की तरफ़ जलती हुई मशाल लेकर भाग रहा हो. ये आसमान में पीले, छितरे धुँए के बादल छोड़ती हुई मिलिट्री ट्रेन जा रही थी - लेवल क्रॉसिंग से गुज़रते हुए पश्चिम की तरफ़, जैसी वे पिछले साल से अनगिनत मात्रा में रात-दिन गुज़रा करती थीं.

पावेल पाव्लविच मुस्कुराया, वह नाव से उठा और सोने के लिए चला गया.

इच्छित मार्ग मिल गया था.

 

7

लरीसा फ्योदरव्ना को जब पाशा के निर्णय के बारे में पता चला तो वह स्तब्ध रह गई और पहले तो उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. ”बेवकूफ़ी. एक और सनक,” उसने सोचा. “ध्यान ही नहीं देना चाहिए, ख़ुद ही सब कुछ भूल जाएगा.”

मगर पता चला पति की तयारियाँ दो हफ़्तों से चल रही थीं, कागज़ात मिलिट्री के पास हैं, स्कूल में उसके बदले नया शिक्षक आ चुका है, और ओम्स्क से सूचना आ चुकी है कि उसका वहाँ के मिलिट्री स्कूल में दाखिला हो गया है. जाने के दिन निकट आ रहे हैं.

लारा किसी साधारण औरत की तरह विलाप करने लगी, और अंतीपव का हाथ पकड़कर उसके पैरों पर गिरने लगी.

“पाशा, पाशेन्का,” वह चीख़ी, “तुम मुझे और कातेन्का को किसके भरोसे छोड़कर जा रहे हो? ऐसा मत करो, मत करो! कोई देर नहीं हुई है. मैं सब ठीक कर लूँगी. और तुम बेकार ही में डॉक्टर के पास भी तो नहीं गए. तुम्हारे दिल की हालत. शर्म आती है? और परिवार को किसी पागलपन की ख़ातिर त्याग करने में शर्म नहीं आती? स्वेच्छा से – वालंटियर बनकर! सारी ज़िंदगी रोद्या का भद्दा मज़ाक उड़ाते रहे और अचानक उससे ईर्ष्या होने लगी!

ख़ुद ही को शौक चढ़ा था तलवार झनझनाने का, अफ़सर बनने का. पाशा, तुम्हें हो क्या गया है. मैं तुम्हें पहचान नहीं पा रही हूँ! क्या तुम्हें बदल दिया गया है, या तुमने कोई ज़हरीला पौधा खा लिया है? मेहेरबानी करके बताओ, सच-सच बताओ, ईसा की ख़ातिर, बिना कोई नाटकीय वाक्यों के, क्या रूस को इसकी ज़रूरत है?

अचानक वह समझ गई कि बात ये नहीं है. पूरी बात समझने में असमर्थ, उसने मुख्य बात पकड़ ली. उसने अंदाज़ लगाया कि पतूल्या को अपने प्रति उसके रवैये के बारे में ग़लतफ़हमी है. मातृवत् भावनाओं की उसने प्रशंसा नहीं की, जिन्हें उसके प्रति स्नेह में वह सारी ज़िंदगी मिलाती रही, और ये नहीं समझ रहा है, कि ऐसा प्यार औरत के साधारण प्यार से कहीं ज़्यादा है.

उसने अपने होंठ काटे, भीतर से पूरी सिकुड़ गई, जैसे पीटी गई हो, और, कुछ भी न कहते हुए और चुपचाप आँसू पीते हुए, पति को भेजने की तैयारी करने लगी.     

जब वह चला गया, तो उसे ऐसे लगा जैसे पूरे शहर में सन्नाटा छा गया हो और आसमान में भी कम कौए उड़ रहे हैं. “मालकिन., मालकिन” मर्फूत्का बेकार ही उसे बुलाती रही.

“मम्मा, मम्मा”, कातेन्का उसकी बाँह पकड़कर लगातार तुतलाती रहती. ये उसकी ज़िंदगी की सबसे ख़तरनाक हार थी. उसकी सबसे अच्छी, सुनहरी उम्मीदें टूट गईं.

साइबेरिया से मिलते हुए ख़तों से लारा को पति के बारे में सब कुछ मालूम होता रहता. जल्दी ही उसे सच का एहसास हो गया. पत्नी और बेटी की बेहद याद आने लगी.

कुछ महीने बाद पावेल पाव्लविच को समय से पूर्व ही लेफ्टिनेन्ट बना दिया गया और उसी तरह अप्रत्याशित रूप से फ़ौज में भेज दिया गया. अत्यन्त आपात स्थिति में उसने युर्यातिन से काफ़ी दूर तक का सफ़र किया और मॉस्को में भी उसके पास किसी से मिलने का समय नहीं था.

सीमा से उसके ख़त आते रहे, जो अधिकाधिक सजीव होते थे और वैसे उदास नहीं होते जैसे ओम्स्क के मिलिट्री स्कूल से वह भेजता था. अंतीपव को विशिष्ठता प्राप्त करने की इच्छा थी, जिससे युद्ध संबंधी किसी सेवा के पुरस्कार स्वरूप या मामूली रूप से ज़ख़्मी होने की स्थिति में वह छुट्टी माँगकर परिवार से मिलने जा सके. तरक्की की संभावना भी थी.     

हाल ही की सफ़लता के बाद, जो बाद में ब्रुसिलोव्स्की के नाम से मशहूर हुई, फ़ौज आक्रामक हो गई. अंतीपव के ख़त बंद हो गए. पहले लारा को इससे कोई चिंता नहीं हुई. वह समझ रही थी, कि पाशा की ख़ामोशी का कारण बढ़ती हुई सैन्य गतिविधियाँ और मार्च के समय लिख न पाने की असमर्थता है.

शरद ऋतु में फ़ौज का आगे बढ़ना रुक गया. फौजें खाइयाँ खोदने लगीं.

मगर अंतीपव के बारे में पहले ही की तरह कोई खोज-खबर नहीं थी. लरिसा फ़्योदरव्ना परेशान होने लगी और पूछताछ करने लगी, पहले अपने युर्यातिन में, और बाद में ख़त लिखकर मॉस्को में और पाशा की यूनिट के मोर्चे वाले पते पर भी. कहीं भी कोई जानकारी नहीं थी, कहीं से भी जवाब नहीं आया.

जिले की अनेक परोपकारी महिलाओं की तरह, लरीसा फ्योदरव्ना युद्ध के आरंभ से ही मिलिट्री-हॉस्पिटल में यथासंभव सहायता किया करती थी, जो युर्यातिन के जिला-अस्पताल में खोला गया था.

अब वह पूरी संजीदगी से चिकित्सा शास्त्र के मूलभूत सिद्धांतों का अध्ययन करने लगी और उसने अस्पताल में नर्सकी पदवी के लिए परीक्षा भी पास कर ली.            

इस श्रेणी में उसने अपने स्कूल से छह महीने की छुट्टी ले ली, युर्यातिन के अपने घर को मर्फूत्का की देखरेख में छोड़ा और कातेन्का के साथ मॉस्को चली गई. यहाँ उसने बेटी का इंतज़ाम लीपच्का के यहाँ कर दिया, जिसका पति, जर्मन नागरिक फ्रिज़ेन्दाक, अन्य सिविलियन कैदियों के साथ ऊफ़ा में नज़रबंद था.

दूर से अपनी खोजों की निरर्थकता को समझकर, लरीसा फ़्योदरव्ना ने हाल ही के युद्ध स्थलों पर खोज जारी रखने का फ़ैसला किया. इस उद्देश्य से वह एम्बुलेन्स-ट्रेन में नर्स के रूप में काम करने लगी. यह ट्रेन लीस्की शहर से होकर हंगरी की सीमा पर मेज़ो-लाबोर्च जा रही थी. ये उस जगह का नाम था, जहाँ से पाशा ने उसे आख़िरी ख़त लिखा था.

 

8

मोर्चे पर डिविजन- हेडक्वार्टर्स ने सेनिटरी-ट्रेन का स्वागत किया, जिसे ज़ख्मियों की सहायता के लिए तात्याना कमिटी के अनुदानों से सुसज्जित किया गया था.

इस लम्बी ट्रेन को कई बदसूरत मालगाड़ी के डिब्बों से बनाया गया था. ट्रेन के फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेन्ट में अफ़सरों और सैनिकों के लिए उपहार लेकर मेहमान आये थे, मॉस्को से सामाजिक कार्यकर्ता. उनमें गर्दोन भी था. उसे मालूम था कि डिविजन का हॉस्पिटल, जिसमें, उसकी जानकारी के मुताबिक उसका बचपन का दोस्त झिवागो काम करता था, नज़दीक के ही गाँव में है.

गर्दोन ने फ्रन्टलाइन ज़ोन में घूमने के लिए आवश्यक अनुमति प्राप्त कर ली थी, और हाथों में पासलेकर वह उस दिशा में जा रही गाड़ी में अपने दोस्त से मिलने निकल पड़ा.       

गाड़ीवान, जो शायद बेलारूसी या लिथुआनियन था, बहुत बुरी रूसी बोल रहा था. जासूसी के डर ने सारे शब्दों को एक ही सरकारी शब्द तक सीमित कर दिया था, जो नपे-तुले ढर्रे का होता था. बातचीत में भलमनसाहत का प्रदर्शन किसी काम का नहीं था. यात्रा के दौरान अधिकांश समय मुसाफ़िर और गाड़ीवान ख़ामोश ही रहे.  

हेडक्वार्टर में, जहाँ समूची फौजों को आगे बढ़ाया जाता था और दूरी को सौ-सौ मील की दूरी से नापा जाता था, उसे यकीन दिलाया गया कि वह गाँव कहीं पास ही में है, करीब 12-15 मील दूर. जबकि असल में वह साठ मील से दूर निकला.

पूरे रास्ते उन्हें अपनी बाईं ओर क्षितिज पर अजीब-सी गड़गड़ाहट सुनाई देती रही.

गर्दोन ने ज़िंदगी में कभी भी भूकंप नहीं देखा था. मगर उसने सही अनुमान लगाया कि चिड़चिड़ाहट भरी और दूर से मुश्किल से समझ में आने वाली इस गुर्राहट की तुलना ज़मीन के भीतर के झटकों और ज्वालामुखी से उठती गड़गड़ाहट से की जा सकती है.      

जब शाम होने लगी, तो आसमान के नीचे, उस तरफ़ गुलाबी, फड़फड़ाती आग जल उठी, जो सुबह तक नहीं बुझी.

गाड़ीवान गर्दोन को ध्वस्त हुए गाँवों के पास से ले जा रहा था. उनका कुछ भाग वहाँ के निवासियों ने खाली कर दिया था. अन्य भागों में – लोग ज़मीन के भीतर खोदी गई गहरी खाइयों में दुबके बैठे थे. ऐसे गाँव मलबे के ढेर बन चुके थे, जो उसी तरह एक सीध में थे, जैसे कभी घर हुआ करते थे. ये जले हुए गाँव फ़ौरन शुरू से आख़िर तक नज़र आ रहे थे, जैसे बिना हरियाली वाली बंजर भूमि. उनके ऊपर बूढ़ी औरतें अपने-अपने ढेर पर बैठी थीं, और राख में कुछ खोज रही थीं, और लगातार उसे छुपाती जा रही थीं, और वे अपने आप को बाहरी लोगों की नज़रो से छुपा हुआ समझ रही थीं, जैसे उनके चारों ओर पुरानी दीवारें अभी तक थीं. उन्होंने नज़रों से गर्दोन का स्वागत किया और उसे बिदा किया, जैसे पूछना चाहती हों कि क्या दुनिया के होश जल्दी ही ठिकाने आयेंगे और ज़िंदगी में फिर से शांति और व्यवस्था वापस लौटेंगी.

रात में उन्हें गश्ती दल मिला. उन्हें कच्चे रास्ते से वापस मुड़कर इन जगहों का गोल चक्कर लगाने को कहा गया. गाड़ीवान को नया रास्ता पता नहीं था. दो घण्टे तक निरुद्देश्य घूमते रहे. सुबह होने से पहले मुसाफ़िर और गाड़ीवान एक गाँव पहुँचे, उसी नाम वाला, जिसकी उन्हें तलाश थी. वहाँ फील्ड हॉस्पिटल के बारे में किसीने कुछ नहीं सुना था. जल्दी ही पता चल गया, कि उस क्षेत्र में एक ही नाम वाले दो गाँव हैं, एक ये और दूसरा, जिसकी उन्हें तलाश है. सुबह वे अपने लक्ष्य पर पहुँच गए. जब गर्दोन गाँव से गुज़र रहा था, जो डेज़ी के फूलों और आयोडोफॉर्म की गंध बिखेर रहा था, तो उसने सोचा कि वह झिवागो के पास रात नहीं बितायेगा, बल्कि उसके साथ दिन गुज़ार कर, शाम को वापस रेल्वेस्टेशन अपने रुके हुए साथियों के पास चला जायेगा. परिस्थितियों ने उसे वहाँ एक हफ़्ते से ज़्यादा रोक लिया.

    

9

इन दिनों मोर्चे पर हलचल हो रही थी. उस पर अप्रत्याशित परिवर्तन हुए. उस जगह से दक्सिण की ओर, जहाँ गर्दोन गया था, हमारे एक संगठनों में से एक यूनिट, संगठन के अलग-अलग यूनिटों के सफ़ल हमलों के बाद दुश्मन के सुरक्षित क्षेत्र में घुस गया था. अपने आक्रमण को तीव्र करते हुए, हमलावरों का समूह उसके क्षेत्र में अधिकाधिक गहरे घुसता गया. उसके पीछे सहायक टुकड़ियाँ चल रही थीं, जो दूरी को चौड़ा बना रही थीं. धीरे-धीरे, वे मुख्य ग्रुप से कट गईं. इसके फलस्वरूप उन्हें कैद कर लिया गया. इस परिस्थिति में, अपनी आधी प्लैटून के समर्पण करने के फलस्वरूप, लेफ्टिनेंट अंतीपव कैद कर लिया गया था.

उसके बारे में गलत-सलत अफ़वाहें फैलने लगीं. उसे मरा हुआ और विस्फोट के कारण बने गढ़े में दफ़न हुआ समझ लिया गया. ऐसा उसके परिचित, उसीकी रेजिमेन्ट के सेकण्ड लेफ्टिनेन्ट गलिऊलिन के शब्दों के आधार पर बताया गया, जिसने इस मौत को ऑब्सर्वेशन-पोस्ट से दूरबीन से देखा था, जब अंतीपव अपने सैनिकों के साथ हमला करने गया था.

गलिऊलिन की नज़रों के सामने हमलावर यूनिट का परिचित दृश्य था. उसे तेज़ कदमों से, लगभग दौड़ते हुए दोनों फ़ौजों को अलग करने वाले शरद ऋतु के खेत को पार करना था, जिस पर हवा में सूखी नागदौने की झूलती हुई टहनियाँ और काँटेदार गोखरू फैले पड़े थे. अपने साहसिक दुःसाहस से हमलावरों को संगीनें तान लेनी थीं या ग्रैनेड्स फेंककर विपरीत दिशा में खाइयों में छुपे ऑस्ट्रियन्स को नष्ट करना था. भागने वालों को खेत अंतहीन नज़र आ रहा था. उनके नीचे की ज़मीन भी अस्थिर दलदली मैदान जैसी प्रतीत हो रही थी. पहले आगे, और फिर उनके साथ मिलकर उनका लेफ्टिनेन्ट भाग रहा था, सिर के ऊपर रिवॉल्वर हिलाते हुए और अपने पूरे, कानों तक खिंचे मुँह से “हुर्रे” चिल्लाते हुए, जिसे न तो उसने, ना ही चारों ओर भागते हुए सैनिकों ने सुना. नियमित अंतरालों से भागने वाले ज़मीन पर लेट जाते, फ़ौरन उठ खड़े होते और नई चीखों के साथ आगे भागते. हर बार उनके साथ, मगर कुछ अलग तरह से, कुछ लोग जो ज़ख़्मी हो जाते, गिराए गए पेड़ों की तरह ज़मीन दोस्त हो जाते, जो फिर नहीं उठते थे.           

“उड़ानें. बटालियन को फोन करो,” उत्तेजित गलिऊलिन ने अपने पास खड़े आर्टिलरी ऑफिसर से कहा. “अरे, नहीं. वे सही जा रहे हैं, कि गोलाबारी को गहराई में ले गये.”

इस समय हमलावर दुश्मन के निकट गए.

गोलाबारी रोक दी गई. घिर आई ख़ामोशी में ऑब्सर्वेशन पोस्ट पर खड़े लोगों के दिल जल्दी-जल्दी और ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगे, जैसे वे अंतीपव की जगह पर थे और, उसीके समान, लोगों को ऑस्ट्रियन खाई के किनारे ले जाकर अगले ही मिनट चतुराई और बहादुरी के कारनामे दिखाने वाले थे. इसी पल सामने से एक के बाद सोलह इंच के दो जर्मन गोले फट गए.

धूल और धुएँ के काले बादलों ने आगे की घटना को ढाँक दिया.

“या अल्लाह! हो गया! बाज़ार ख़त्म!” सफ़ेद पड़ गए होठों से गलिऊलिन फुसफुसाया, ये समझ कर कि लेफ्टिनेन्ट और सैनिक ख़त्म हो गए हैं.

तीसरा गोला बिल्कुल ऑब्सर्वेशन पोस्ट के पास फटा. ज़मीन की तरफ़ नीचे झुकते हुए, सब वहाँ से दूर भागे.

गलिऊलिन अंतीपव के साथ एक ही खाई में सोता था. जब रेजिमेंट ने इस बात से समझौता कर लिया कि वह मारा गया है और कभी वापस नहीं आयेगा, तो गलिऊलिन को, जो अंतीपव को अच्छी तरह जानता था, ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई कि वह अंतीपव का सामान संभाल कर रखे, जिससे भविष्य में उसकी बीबी को सौंप सके, जिसके खूब सारे फोटो अंतीपव की चीज़ों में थे.

हाल ही में स्वेच्छा से फौज में आए कनिष्ठ अफ़सर, मेकैनिक गलिऊलिन, जो तिवेर्ज़िन के कम्पाऊण्ड के दरबान का बेटा था और काफ़ी पहले लुहार की ट्रेनिंग ले रहा था, जिसे मास्टर खुदालेयेव मारा करता था, अपनी पदोन्नति के लिए अपने भूतपूर्व अत्याचारी का आभारी था.

कनिष्ठ अफ़सर होने के बाद, गलिऊलिन न जाने कैसे और इच्छा न होते हुए भी एक गर्म और छोटी सी जगह पर भेजा गया जो एक दूरदराज़ की प्रांतीय गैरिसन में था. वहाँ उसे आधे-अपंग लोगों की टीम संभालनी पड़ती थी, जिनके साथ वैसे ही जर्जर सेवानिवृत्त-प्रशिक्षक सुबह ड्रिल किया करते, जिसे वे भूल चुके थे.

इसके अलावा, गलिऊलिन यह भी देखता था कि वे क्वार्टरमास्टर के डिपो में सही ढंग से गार्ड नियुक्त करते हैं या नहीं. ये आराम की ज़िंदगी थी – उससे किसी और बात की अपेक्षा नहीं थी. अचानक, कुछ नये लोग, जिनमें पुराने मिलिट्री अफ़सर थे और मॉस्को से भर्ती हुए लोग उसके नियंत्रण में भेजे गए, जिनमें प्योत्र खुदालेयेव भी था, जिसे वह बहुत अच्छी तरह जानता था.    

“ओह, पुराने परिचित!” नाक चढ़ाकर हँसते हुए गलिऊलिन ने कहा.”

“सही फ़रमाया, युअर ऑनर,” खुदालेयेव ने अटेन्शनमें खड़े होकर सैल्युट करते हुए जवाब दिया.

ये इतनी आसानी से ख़त्म नहीं हो सकता था, ड्रिल के दौरान उनकी पहली ही गलती पर कनिष्ठ अफ़सर निचली रैंक पर चिल्लाया, और जब उसे ऐसा लगा, कि सैनिक सीधे उसकी आँखों में नहीं, बल्कि कहीं और देख रहा है, तो उसने उसके दाँतों पर मुक्का मारा और दो दिनों के लिए डबल रोटी और पानी पर गार्ड हाउस भेज दिया.

अब गलिऊलिन की हर चाल से पुराने ज़माने से बदले की बू आती थी. मगर इस तरह डंडे के अनुशासन से हिसाब चुकाना एक हमेशा जीतने वाला मगर घटिया किस्म का खेल था. क्या करना चाहिए? दोनों का एक ही जगह पर रहना अब असंभव था. मगर कोई अफ़सर सैनिक को अपने अधिकार क्षेत्र से किस बहाने से और कहाँ भेज सकता है, सिवाय इसके कि उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए? दूसरी ओर गलिऊलिन किस आधार पर अपना ख़ुद का तबादला करने की विनती कर सकता है?

गैरिसन की ड्यूटी की उकताहट और अनुपयोगिता को आधार बनाकर गलिऊलिन ने मोर्चे पर भेजे जाने की प्रार्थना की. इससे उसे तारीफ़ मिली, और जब शीघ्र ही अगली कार्रवाई में उसने अपने अन्य गुणों का प्रदर्शन किया, तो स्पष्ट हो गया कि वह सबसे बढ़िया अफ़सर है, और शीघ्र ही उसे कनिष्ठ अफ़सर से सेकण्ड लेफ्टिनेंट में बना दिया गया.

गलिऊलिन अंतीपव को तिवेर्ज़िन के ज़माने से जानता था. सन् 1905 में जब पाशा अंतीपव छह महीने तिवेर्ज़िन के यहाँ रहा था, यूसुप्का उसके पास जाया करता था और त्यौहारों पर उसके साथ खेलता था. तभी उसने एक-दो बार लारा को उनके यहाँ देखा था. तब से उसने उनके बारे में कुछ भी नहीं सुना था. जब उनकी रेजिमेन्ट में युर्यातिन से पावेल पाव्लविच आया, तो गलिऊलिन अपने पुराने दोस्त में हुए परिवर्तन से चकित हो गया. एक शर्मीले, लड़की जैसे और हँसाने वाले, साफ़-सुथरे शरारती लड़के का नर्व्हस, दुनिया में सब कुछ जानने वाले, तिरस्कार करने वाले विषादग्रस्त व्यक्ति में परिवर्तन हो गया था. वह बुद्धिमान, बेहद बहादुर, ख़ामोश तबियत और व्यंग्यात्मक था. कभी-कभी, उसकी ओर देखते हुए, गलिऊलिन कसम खाने को तैयार था, कि अंतीपव की गहरी नज़र में, जैसे खिड़की की गहराई में, वह किसी और को देख रहा है, किसी पक्के बैठ गए विचार को, या बेटी के प्रति पीड़ा को, या उसकी पत्नी के चेहरे को देख रहा है. ऐसा लगता था कि अंतीपव पर जादू किया गया है, जैसा परी-कथा में होता है. और अब, वह नहीं रहा, और गलिऊलिन के हाथों में बचे हैं अंतीपव के कागज़ात, उसके फोटोग्राफ्स और उसके परिवर्तन का रहस्य.

देर-सबेर लारा की पूछताछ गलिऊलिन तक पहुँचने ही वाली थी. वह उसे जवाब देने की तैयारी कर रहा था. मगर समय गर्म था.

उचित जवाब देने की स्थिति में वह नहीं था. मगर वह उसे आसन्न वज्राघात के लिए तैयार करना चाहता था. इसलिए उसे एक बड़ा, विस्तृत पत्र लिखने का इरादा टालता रहा, जब तक उसे पता नहीं चल गया कि वह ख़ुद भी मोर्चे पर ही कहीं नर्स है. और पता नहीं था, कि उसे किस पते पर ख़त लिखना चाहिए.

 

10

“तो फिर? आज मिलेंगे घोड़े?” गर्दोन डॉक्टर झिवागो से पूछ रहा था., जब वह दोपहर में वह गैलिशियन कॉटेज में, जहाँ वे ठहरे हुए थे, खाने के लिए आया.

“कहाँ के घोड़े? और तू जायेगा भी कहाँ, जब न आगे जाना संभव है, न पीछे. चारों ओर भयानक गड़बड़ है. कोई भी कुछ भी नहीं समझ रहा है.

साउथ में हम या तो जर्मनों से बचते हुए या कुछ जगहों पर उन्हें चीरते हुए आगे बढ़े, इसमें, कहते हैं कि हमारी कुछ बिखरी हुई यूनिट्स जैसे बोरे में बंद हो गईं, और उत्तर में जर्मनों ने स्वेन्ता को पार कर लिया है, जिसे यहाँ अभेद्य समझते हैं. ये पूरा घुड़सवार दल था. वे रेल्वे लाइनों को तोड़ रहे हैं, गोदामों को नष्ट कर रहे हैं और, मेरे ख़याल से, हमारे चारों ओर घेरा डाल रहे हैं. देख रहे हो, क्या नज़ारा है. और तू कह रहा है – घोड़े. चल, फ़ौरन, कार्पेन्का, मेज़ सजाओ और लपक कर जाओ. आज क्या बना है? ओह, बछड़े की टाँगें. बढ़िया.”

हॉस्पिटल और अन्य सहायक विभागों समेत मेडिकल यूनिट गाँव में बिखरी थी, जो किसी चमत्कारवश ही सही सलामत बच गया था.

उसके घर, जो वेस्टर्न शैली में बने थे, पूरी दीवार में बनी संकरी अनेक पल्लों वाली खिड़कियों समेत चमक रहे थे, एक भी पल्ले को नुक्सान नहीं पहुँचा था.

गर्म सुनहरे पतझड़ के आख़िरी दिन थे. दोपहर में डॉक्टर्स और ऑफिसर खिड़कियाँ खोल देते, मक्खियाँ मारते, जो काले काले झुण्डों में खिड़कियों की सिलों और निचली छतों के सफ़ेद वॉल पेपर पर रेंगतीं, और, अपने ओवरकोट और जैकेट्स के बटन खोलकर पसीने से नहाते हुए गर्म-गर्म चाय या गोभी का सूप पीते, और रात को भट्टी के खुले हुए दरवाजों के सामने उकडूँ बैठकर गीली लकड़ियों के नीचे बुझे हुए कोयलों में फूँक मारते और धुँए के कारण आँखों से पानी बहाते अर्दलियों को डाँटते, जिन्हें इन्सानों की तरह भट्टी गरमाना नहीं आता था.       

रात ख़ामोश थी. गर्दोन और झिवागो आमने-सामने वाली दीवारों के पास डली बेंचों पर लेटे थे. उनके बीच में एक डाइनिंग टेबल और एक लम्बी, सँकरी, एक दीवार से दूसरी दीवार तक बनी हुई खिड़की थी. कमरे को खूब गर्माया गया था और उसमें सिगरेट का धुँआ भी खूब था.

उन्होंने खिड़की के दो कोने वाले छोटे-छोटे पल्ले खोल दिए और शरद की रात की ताज़गी को महसूस करने लगे, जिससे काँच पर पसीना आने लगा.

हमेशा की तरह वे बातें कर रहे थे, जैसे इस दौरान रात-दिन किया करते थे.

हमेशा की तरह मोर्चे की दिशा में क्षितिज पर गुलाबी आभा दिखाई दे रही थीं, और जब निरंतर सुनाई दे रही बदूकों की गोलियों की आवाज़ के बीच कुछ ज़्यादा गहरे, अलग-थलग पहचाने जाने वाले और वज़नदार धमाके सुनाई देते, जो मानो मिट्टी को एक तरफ़ हटा देते, तो इस आवाज़ के सम्मान में झिवागो बातचीत रोक देता, कुछ देर चुप रहता और कहता:

“ये बेर्था है, सोलह इंची जर्मन तोप, एक-एक टन का गोला है.,” और फिर नए सिरे से बातचीत शुरू करता, ये भूलकर कि वे किस बारे में बात कर रहे थे.

“ये गाँव में हमेशा कैसी बू आती रहती है?” गर्दोन पूछ रहा था. “मैं पहले ही दिन से महसूस कर रहा हूँ. मिठास भरी – प्यारी और घिनौनी. जैसे चूहों की होती है.”

“ओह, मुझे मालूम है, तू किस बारे में कह रहा है. ये – भाँग है. यहाँ बहुत सारे भाँग की खेती करने वाले हैं. भाँग की अपनी एक थकाने वाली और सड़ान जैसी गंध होती है. इसके अलावा इस क्षेत्र में युद्ध की गतिविधियाँ चल रही हैं, जब मारे गए सैनिक भाँग के पौधों में गिरते हैं, तो दिखाई न देने के कारण लम्बे समय तक वहीं पड़े रहते हैं और सड़ने लगते हैं. लाश की बू काफ़ी बिखरी रहती है, ये स्वाभाविक है. फिर से बेर्था. सुन रहे हो?”

इन दिनों में वे दुनिया की हर चीज़ के बारे में बातें करते रहे.

गर्दोन को  युद्ध और वक्त के मिजाज़ के बारे में अपने दोस्त के विचारों का ज्ञान था. यूरी अन्द्रेयेविच ने उसे बताया कि परस्पर विनाश के खूनी तर्क की आदत डालना, ज़ख़्मियों को देखना, ख़ासकर कुछ दिल दहलाने वाले आधुनिक ज़ख़्मों को देखना, क्षत-विक्षत जीवित शरीरों को देखना, जो आधुनिक युद्ध तकनीक के फलस्वरूप माँस के लोथडों में बदल गए थे उसके लिए कितना मुश्किल था.

वह हर रोज़ झिवागो के साथ कहीं चला जाता और उसकी बदौलत कुछ-न-कुछ देख लेता. वह, बेशक, औरों की बहादुरी को यूँ ही देखने की समूची अनैतिकता को समझता था और यह भी, कि कैसे अन्य लोग अतिमानवीय इच्छा शक्ति से मौत के डर पर विजय प्राप्त करते हैं और कैसे अपना बलिदान देते हैं और ख़तरा उठाते हैं. मगर इस अवसर पर निष्क्रिय और असंगत आहें भी उसे बिल्कुल नैतिक प्रतीत नहीं होतीं. वह ये मानता था कि अपने आप को ईमानदारी और स्वाभाविक रूप से उस परिस्थिति के अनुसार ढालना चाहिए जिसमें जीवन आपको डालता है.

ज़ख़्मियों को देखकर बेहोश हो सकते हैं, इसका अनुभव उसे तब हुआ जब रेड-क्रॉस के उड़न-दस्ते में वह गया, जो उनसे पश्चिम की ओर के लगभग मोर्चे के पास फील्ड स्टेशन के प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पर काम कर रहा था.

वे एक बड़े जंगल के किनारे पर आये, जिसे तोप के गोलों ने आधा काट दिया था. टूटी हुई और कुचली हुई झाड़ियों में टूटी-फूटी तोप ढोने वाली गाडियाँ उल्टी पड़ी थीं. पेड़ से एक घोड़ा बंधा हुआ था. जंगल विभाग के ऑफिस से, जो गहराई में दिखाई दे रहा था, आधी छत उड़ गई थी. प्राथमिक चिकित्सा केंद्र जंगल विभाग के ऑफिस में और जंगल के बीच, रास्ते के उस पार दो बड़े भूरे तम्बुओं में था.

“मैं बेकार ही तुझे यहाँ ले आया,” झिवागो ने कहा. “खाइयाँ बिल्कुल पास ही में हैं, करीब डेढ़-दो मील, और हमारा तोपखाना वहाँ, इस जंग़ल के पीछे है. सुन रहे हो, क्या चल रहा है? हीरो बनने का ख़्वाब मत देखो, प्लीज़ – मुझे यकीन नहीं होगा. इस वक्त तुम्हारी रूह जूतों में है और ये स्वाभाविक है. परिस्थित हर पल बदल सकती है. तोप के गोले यहाँ गिर सकते हैं.

जंगल के रास्ते पर, भारी जूतों में पैर फैलाए पेट और पीठ के बल धूल-धूसरित और थके हुए जवान सैनिक पड़े थे, उनके जैकेट्स सीने और कंधों पर पसीने से सराबोर थे – ये तेज़ी से कम होते हुए दस्ते के बचे-खुचे सैनिक थे. उन्हें चार दिनों से लगातार चले आ रहे युद्ध से निकालकर थोड़े से विश्राम के लिए पिछली पंक्तियों में भेजा गया था. सैनिक पत्थर के बुतों की तरह पड़े थे, उनमें मुस्कुराने और गालियाँ देने की भी शक्ति नहीं रह गई थी, और उनमें से किसी ने भी सिर तक नहीं घुमाया जब जंग़ल की गहराई में रास्ते पर कुछ तेज़ी से करीब आती हुई गाड़ियों की खड़खड़ाहट सुनाई दी. ये बगैर स्प्रिंग वाली ठेला गाड़ियाँ थीं जो ऊपर की ओर उछल रही थीं और उनमें लदे अभागों की हड्डियाँ तोड़ रही थीं और आँतें बाहर निकाल रही थीं, ये ज़ख़्मियों को प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पर ला रही थीं, जहाँ उन्हें आरम्भिक सहायता दी जाती, जल्दी-जल्दी पट्टियाँ बाँधी जातीं और कुछ गंभीर ज़ख़्मियों का फ़ौरन ऑपरेशन भी कर दिया जाता. उन सब को आधा घण्टा पहले, जब कुछ देर के लिए गोलाबारी रुक गई थी, भयानक संख्या में खाइयों के सामने वाले खेत से बाहर लाया गया. उनमें से अधिकांश बेहोश थे.

जब उन्हें ऑफिस की ड्योढ़ी पर लाया गया, तो उसमें से स्वास्थ्य कर्मचारी स्ट्रेचर लेकर बाहर आए और ठेलों में से ज़ख़्मियों को उतारने लगे. तम्बू में से, निचली तरफ़ से हाथ से उसके पल्ले पकड़े, नर्स ने बाहर झाँका. इस समय उसकी ड्यूटी नहीं थी. वह ख़ाली थी. जंगल में तम्बुओं के पीछे दो आदमी ज़ोर-ज़ोर से गालियाँ दे रहे थे. ताज़ा, ऊँचा जंगल उनकी बहस की गूँज को खनखनाते हुए बिखेर रहा था, मगर शब्द सुनाई नहीं दे रहे थे. जब ज़ख़्मियों को लाया गया तो बहस करने वाले ऑफिस की ओर जाते हुए बाहर आ गए. एक क्रोधित छोटा-सा ऑफिसर उड़न दस्ते के डॉक्टर पर चिल्ला रहा था, उससे ये मालूम करने की कोशिश करते हुए कि तोपखाने का दस्ता, जो पहले जंगल में इस जगह पर था, कहाँ गया. डॉक्टर को कुछ भी मालूम नहीं था, उसका इससे कोई लेना देना नहीं था. उसने ऑफ़िसर से कहा कि वहीं रुक जाए और चीखना बंद करे, क्योंकि ज़ख़्मियों को लाया गया है और उसके पास काम है, मगर ऑफ़िसर शांत ही नहीं हो रहा था और वह रेड-क्रॉस और तोपखाने वालों को और दुनिया में सबको गालियाँ दिए जा रहा था. झिवागो डॉक्टर के पास आया. उन्होंने एक दूसरे का अभिवादन किया और ऑफिस में गए. ऑफ़िसर कुछ तातार लहज़े में ज़ोर-ज़ोर से गालियाँ देता रहा, उसने पेड़ से बंधा घोड़ा खोला, उछल कर उस पर बैठ गया और रास्ते से जंगल के भीतर चला गया. नर्स सब कुछ देखती रही, देखती रही.

अचानक भय से उसका चेहरा विकृत हो गया.

“आप क्या कर रहे हैं? आप पागल हो गए हैं?” वह दो मामूली रूप से ज़ख़्मियों पर चिल्लाई, जो बिना किसी सहायता के स्ट्रेचर्स के बीच से ड्रेसिंग स्टेशन की ओर जा रहे थे, और, तम्बू से भागकर वह उनके पास लपकी.         

स्ट्रेचर पर एक अभागे को ले जा रहे थे, जो अत्यंत भयानक और अत्यंत विद्रूप अवस्था में था. फटे हुए गोले का पेंदा उसके जबड़े की हड्डियों की चौखट में घुस कर उसके फटे हुए गाल की जगह पर चिपक गया था, जिसने उसके चेहरे को चीर कर जीभ और दाँतों को खूनी रसायन में बदल दिया था, मगर उसे मारा नहीं था. बारीक आवाज़ में, जो इन्सानी आवाज़ जैसी नहीं थी, क्षत-विक्षत व्यक्ति छोटी, टूटी-फूटी कराहें ले रहा था, जिसे हर व्यक्ति समझ रहा था, कि वह प्रार्थना कर रहा है, जल्दी से उसे ख़त्म करने, और उसकी बेमतलब खिंचती तकलीफों का अंत करने के लिए.

नर्स को ऐसा लगा कि उसकी कराहों से विचलित, उसकी बगल में चल रहे मामूली रूप से ज़ख़्मी नंगे हाथों से उसके गाल से उस लोहे की भयानक छिपटी को खींचने जा रहे थे.

“आप क्या कर रहे हैं, क्या ऐसा करना चाहिए? ये सर्जन करेगा, विशेष उपकरणों से. सिर्फ, अगर ज़रूरत पड़ी तो. (ऐ ख़ुदा, ख़ुदा, उसे जल्दी से उठा ले, तेरे अस्तित्व के बारे में मुझे संदेह में न डाल!) अगले ही पल पोर्च में ले जाते समय विद्रूप आदमी चीख़ा, उसका पूरा जिस्म कँपकँपाया और उसकी जान निकल गई.

विद्रूप व्यक्ति, जिसने अभी-अभी दम तोड़ा था, रिज़र्व टुकड़ी का सैनिक गिमाज़िद्दीन था, जंगल में जो ऑफिसर चीख़ रहा था – वह उसका बेटा, सेकण्ड लेफ़्टिनेंट गलिऊलिन था, नर्स थी लारा, गर्दोन और झिवागो प्रत्यक्षदर्शी थे, वे सब एक साथ थे, सब एक दूसरे की बगल में थे, और कुछ लोगों ने एक दूसरे को नहीं पहचाना, कुछ लोग किसी को जानते ही नहीं थे, और पहली बात हमेशा के लिए अज्ञात रही, दूसरी को पहचाने जाने के लिए अगले मौके का इंतज़ार करना था, नई मुलाकात का.

 

                

                                      

11

इस पट्टी में आश्चर्यजनक रूप से गाँव सही-सलामत बच गए थे. वे विनाश के इस सागर में एक अवर्णनीय टापू की तरह थे. गर्दोन और झिवागो शाम को वापस लौटे.

सूरज डूब रहा था. एक गाँव में, जिसके पास से वे गुज़र रहे थे, एक जवान कज़ाक अपने चारों ओर इकट्ठा हुए लोगों के ठहाकों के बीच ताँबे का पाँच कोपेक का सिक्का ऊपर की ओर उछाल रहा था, और लम्बा फ्रॉक कोट पहने एक बूढ़े, सफ़ेद दाढ़ी वाले यहूदी को उसे पकड़ने पर मजबूर कर रहा था. बूढ़ा हमेशा सिक्के को छोड़ देता. पाँच का सिक्का दयनीयता से फैले हुए उसके हाथों के निकट से उड़ते हुए गंदगी में गिर जाता. बूढ़ा सिक्के को उठाने के लिए झुकता, कज़ाक उसे पीछे से मारता, चारों ओर खड़े लोग पेट पकड़ लेते और ठहाकों के कारण कराहने लगते. यही पूरा मनोरंजन था. फ़िलहाल तो वह अपमानजनक नहीं था, मगर कोई भी इस बात को दावे के साथ नहीं कह सकता था, कि वह कोई अधिक गंभीर रूप नहीं लेगा. सामने वाली झोंपड़ी से बूढ़े की ओर हाथ बढ़ाये, चीखते हुए उसकी बुढ़िया भागते हुए बाहर आती और हर बार डर के मारे छुप जाती. झोंपडी की खिड़की से दो छोटी बच्चियाँ दद्दू की तरफ़ देख रही थीं और रो रही थीं.

गाड़ीवान, जिसे यह सब बेहद मज़ाकिया लग रहा था, घोडों को धीरे-धीरे ले जा रहा था, जिससे कि मालिकों का कुछ मनोरंजन हो जाए. मगर झिवागो ने कज़ाक को बुलाकर उसे डाँटा और इस मज़ाक को बंद करने को कहा.

“जी, हुज़ूर, सुन रहा हूँ,” उसने फ़ौरन जवाब दिया.

“हम सता थोड़े ही न रहे थे, सिर्फ मज़ाक की ख़ातिर.”

बाकी के पूरे रास्ते गर्दोन और झिवागो ख़ामोश रहे.

“ये भयानक है,” जब अपना गाँव दिखाई देने लगा तो यूरी अन्द्रेयेविच कहने लगा. “तुम सोच भी नहीं सकते कि इस युद्ध के दौरान बदनसीब यहूदी लोगों ने कैसी-कैसी यातनाएँ झेली हैं.

उन्हें उनकी बस्ती के भीतर ही प्रताड़ित किया जाता है, जहाँ रहने के लिए वे बाध्य हैं. और सभी कुछ जो उन्होंने सहा है, यातनाएँ जो झेली हैं, टैक्स और विनाश के ऊपर से उनकी सामूहिक हत्याएँ की जाती हैं, उन्हें ताने दिए जाते हैं, उन पर इल्ज़ाम लगाया जाता है कि उनमें पर्याप्त देशभक्ति नहीं है. और कहाँ से आए, जब कि दुश्मन के यहाँ उन्हें सभी अधिकार प्राप्त हैं, और हमारे यहाँ सिर्फ उन्हें खदेड़ा जाता है. उनके प्रति घृणा की भावना, उसका मूल आधार ही विरोधाभासी है. सबसे ज़्यादा झल्लाहट इस बात से होती है, जो मर्मस्पर्शी है और जिसे दूर करना चाहिए, उनकी गरीबी और उनकी अत्यधिक संख्या, उनकी कमज़ोरी और प्रहारों का प्रतिकार करने की अक्षमता. समझ में नहीं आता. ये दुर्भाग्यपूर्ण है.

गर्दोन ने उसे कोई जवाब नहीं दिया.

 

12

रात हो गई थी. लम्बी, संकरी खिड़की के दोनों ओर लेट कर वे दोनों फिर से बातें कर रहे थे.

झिवागो गर्दोन को बता रहा था, कि कैसे उसने मोर्चे पर सम्राट को देखा था. वह अच्छा वर्णन करता था.

यह मोर्चे पर उसके पहले बसन्त में हुआ था. जिस यूनिट में वह कार्यरत था उसका हेडक्वार्टर कार्पैथी (कार्पैथियन्स) में था, एक कोटर में, जिसके हंगरी की घाटी से प्रवेश को इस फ़ौजी यूनिट ने रोक रखा था.

कोटर की तली में रेल्वे स्टेशन था. झिवागो उस जगह का वर्णन कर रहा था – पहाड़ मज़बूत बर्च और चीड़ के पेड़ों से ढँके थे, जिन पर बादलों के सफ़ेद गुच्छे उलझे हुए थे, और स्लेट तथा ग्रेफाइट की भूरी चट्टानें, जो जंगलों के बीच से यूँ दिखाई देतीं, जैसे घने फर कोट पर पड़े घिस गए, गंजे धब्बे हों. एक नम, भूरी-मटमैली सुबह थी, इस स्लेट जैसी, अप्रैल की अँधेरी सुबह, चारों ओर से ऊँचाइयों से घिरी हुई और इस कारण निश्चल और उमस भरी. भाप निकल रही थी. कोटर के ऊपर वाष्प तैर रही थी, और हर चीज़ जैसे धुँआ छोड़ रही थी, हर चीज़ धुँए की लकीरों से ऊपर की ओर जाने को बेताब थी – स्टेशन से आता हुआ इंजिन का धुँआ, चरागाहों से उठती भूरी-मटमैली भाप, भूरे-मटमैले पहाड़, अँधेरे जंगल, काले बादल.

उन दिनों सम्राट गैलिसिया की यात्रा पर थे. अचानक पता चला कि वह यहाँ पर स्थित यूनिट को भी भेंट देंगे, जिसके वे संरक्षक थे.

वह किसी भी पल आ सकते थे. प्लेटफॉर्म पर उनके स्वागत के लिए गार्ड ऑफ ऑनर का आयोजन था. थकाने वाले इंतज़ार में एक-दो घण्टे बीत गए. फिर जल्दी से दो शाही कोचों वाली ट्रेनें गुज़र गईं. कुछ देर बाद त्सार की ट्रेन आई.                         

ग्रैण्ड ड्यूक निकलाय निकलायेविच के साथ सम्राट कतारबद्ध ग्रेनेडियर्स के पास से गुज़रे. हिलती हुई बाल्टियों से छलकते पानी जैसे अपने मौन अभिवादन के हरेक शब्दांश से वे, वे हुर्रेकी तूफ़ानी गड़गड़ाहट और विस्फोट उत्पन्न कर रहे थे.

शर्मीलेपन से मुस्कुराते हुए सम्राट रूबल्स के सिक्कों और मेडल्स पर चित्रित अपनी छवि से ज़्यादा बूढ़े और मरियल प्रतीत हो रहे थे. उनका चेहरा सुस्त, कुछ फूला-फूला था. वह हर पल अपराधी की तरह निकलाय निकलायेविच की ओर कनखियों से देखते, ये न समझते हुए कि प्रस्तुत परिस्थितियों में उनसे किस बात की उम्मीद की जा रही है और निकलाय निकलायेविच सम्मानपूर्वक उनके कानों में शब्दों से नहीं बल्कि भौंहे या कंधा हिलाकर उन्हें मुश्किल से उबार लेते.

पहाड़ों की इस मटमैली और गरम सुबह को त्सार पर दया आ रही थी, और यह सोचकर डरावना भी लग रहा था, कि ऐसा कातर संयम और संकोच किसी तानाशाह के गुण हो सकते हैं. कि इस निर्बलता से हत्या कर सकते हैं और क्षमा कर सकते हैं, बांध सकते हैं और छोड़ सकते हैं.

“उसे कुछ कहना था, कुछ इस तरह का : मैं, मेरी तलवार और मेरी प्रजा, जैसे विलियम या इसी तरह का कुछ. मगर प्रजा के बारे में अवश्य ही कहना चाहिए था. मगर, समझ रहे हो, वह रूसी तौर-तरीकों में स्वाभाविक था और इस ओछेपन से दर्दनाक रूप से ऊँचा था. रूस में ऐसी नाटकबाजी की कल्पना भी नहीं कर सकते. क्योंकि यह नाटकबाजी है, है ना? मैं यह भी समझता हूँ कि सीज़र के ज़माने में प्रजा कैसी थी, कोई गॉल्स, या स्वेवियन्स, या इलीरियन्स. मगर तब से लेकर ये सिर्फ कल्पना ही है, जिसका अस्तित्व सिर्फ इसलिए है, कि उनके बारे में त्सार और कार्यकर्ता, और राजा भाषण दें ; प्रजा, मेरी प्रजा.                अब तो मोर्चे पर संवाददाताओं और पत्रकारों की बाढ़ आ गई है.

टिप्पणियाँ”, लोकप्रिय कहावतें रेकॉर्ड करते हैं, घायलों के पास जाते हैं, जनता की आत्मा के नए सिद्धांत का निर्माण कर रहे हैं. ये अपनी तरह का नया व्लादीमिर दाल् है (दाल् उन्नीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध लेखक, कोशकार – अनु.) वैसा ही काल्पनिक, शाब्दिक असंयम का भाषाई लेखनोन्माद. ये एक किस्म है. और एक दूसरी किस्म भी है.

झटकेदार भाषा, “नोट्स और स्केचेज़”, संदेहवाद, मानवद्रोह, मिसाल के तौर पर, एक व्यक्ति के (मैंने ख़ुद पढ़ा है) ऐसे वाक्य हैं : “भूरा-मटमैला दिन, कल ही जैसा. सुबह से बारिश, कीचड़. खिड़की से बाहर देखता हूँ. रास्ते पर रस्सी से बंधी हुई कैदियों की अनंत कतार खिंची जा रही है. ज़ख्मियों को ले जा रहे हैं. तोप गोलों की मार कर रही है. फिर से गोला चलता है, आज, गुज़रे कल की तरह, कल, आज की तरह, और इसी तरह हर रोज़ और हर घण्टे...” तू सिर्फ सोच, कितना चुभता हुआ और मज़ाकिया!                      

मगर, उसे तोप के गोले पर इतना गुस्सा क्यों आता है? तोप के गोले से विविधता की माँग करना कितना अजीब है! तोप के गोले के बदले उसे ख़ुद ही पर अचरज क्यों नहीं होता, हर रोज़ सूचियों, अल्पविरामों और वाक्यों की बौछार करते हुए, वह पत्रिकाओं की मानवीयता से, फुदकती हुई मक्खी जैसी तेज़ी से की जा रही इस बौछार को रोक क्यों नहीं देता? उसे समझ में क्यों नहीं आता, कि उसे, न कि तोप के गोले को, नया होना चाहिए, उसे ख़ुद को दोहराना नहीं चाहिए, कि नोटबुक में संग्रहित की गई प्रचुर अर्थहीन सामग्री से कभी भी कोई अर्थ प्राप्त नहीं हो सकता, कि तथ्यों का तब तक अस्तित्व नहीं होता, जब तक कि मनुष्य उनमें कोई अपनी बात, अपनी स्वतंत्र विचार शक्ति की प्रतिभा का थोड़ा सा अंश, कोई परीकथा न डाले.”                 

“चौंकाने वाला सच है,” गर्दोन ने उसकी बात काटी. “अब मैं उस दृश्य के संदर्भ में जवाब दूँगा, जो हमने आज देखा था. ये कज़ाक, जो गरीब बूढ़े का मज़ाक उड़ा रहा था, और वैसी ही हज़ारों घटनाओं में होता है, ये, बेशक, अत्यंत साधारण नीचता के उदाहरण हैं, जिनके बारे फ़लसफ़ा नहीं बघारते, बल्कि थोबड़े पर मारते हैं, मामला ख़तम.

मगर यहूदियों के समूचे प्रश्न पर दार्शनिकता का प्रयोग किया जा सकता है, और तब वह एक अप्रत्याशित मोड़ ले लेती है. मगर यहाँ मैं तुझसे कोई नई बात नहीं कह रहा हूँ. ये सारे विचार मेरे मन में, जैसे कि तेरे भी, तेरे मामा से ही आए हैं.

लोग क्या हैं?’ – तू पूछता है. उनका लाड़ करना चाहिए या नहीं, और क्या उनके लिए वह बहुत कुछ नहीं करता, जो उनके बारे में सोचे बगैर, बेहद ख़ूबसूरती और अपने कार्यों की विजय से उन्हें अपनी ओर आकर्षित करके सार्वभौमिकता की ओर ले जाता है, और गौरवान्वित करके, अमर बनाता है? हाँ, बेशक, बेशक. और ईसाइयत के दौर में किन लोगों के बारे में बात हो सकती है? क्योंकि, ये सिर्फ लोगनहीं हैं, बल्कि धर्मांतरित, परिवर्तित लोग हैं, और सारी बात इस धर्मांतरण की है, न कि पुराने मूल सिद्धांतों के प्रति विश्वसनीयता की. सुसमाचारको याद करो. इस विषय पर वहाँ क्या कहा गया है? पहली बात, वह वक्तव्य नहीं है, कि ये ऐसा है, वो ऐसा है. वह तो एक सुझाव था, मासूम और डरपोक. उसने सुझाव दिया, क्या एक नई तरह की ज़िंदगी जीना चाहते हो, जैसी पहले नहीं थी, क्या आत्मा का आनंद चाहते हो? और सबने उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, हज़ारों सालों के लिए.    

जब उसने कहा कि ईश्वर के साम्राज्य में ना तो कोई ग्रीक है, ना यहूदी, क्या वह सिर्फ इतना कहना चाहता था, कि ईश्वर के सामने सब बराबर हैं? नहीं, इसके लिए उसकी ज़रूरत नहीं थी, ये तो उससे पहले भी ग्रीस के दार्शनिक, रोम के नैतिकतावादी, ‘ओल्ड टेस्टामेन्टके भविष्यवेत्ता जानते थे. मगर उसने कहा: उस नए तरह के अस्तित्व में और वार्तालाप के नए स्वरूप में जिसकी दिल में कल्पना की गई है, जिसे ईश्वर का साम्राज्य कहते हैं, जहाँ लोग नहीं हैं, व्यक्ति हैं.

तुम कह रहे थे कि तथ्य अपने आप में निरर्थक है, यदि उसमें कोई अर्थ न डाला जाए. ईसाइयत, व्यक्तित्व का रहस्य ही असल में वोचीज़ है, जिसे तथ्य में शामिल करना चाहिए, ताकि वह इन्सान के लिए सार्थक हो सके.

और हम बात कर रहे थे औसत दर्जे के कार्यकर्ताओं की, जिनके पास जीवन और दुनिया से कहने के लिए कुछ भी नहीं है, दूसरी पंक्ति की ताकतें, जिन्हें संकीर्णता में, इस बात में, दिलचस्पी है कि हर समय किन्हीं लोगों के बारे में बात होती रहे, किसी छोटे समूह के बारे में, ताकि वह कष्ट उठाता रहे, जिससे उन पर बहस की जाये, उन्हें कतारों में खड़ा किया जाए और उनकी दयनीयता का फ़ायदा उठाया जाए. इस विचारधारा का समूचा और अभिन्न शिकार है – यहूदी. राष्ट्रीय भावना ने उन्हें ख़तरनाक रूप से मजबूर किया, कि वे सदियों तक लोग रहें, और सिर्फ लोग ही बने रहें, जिनके दौरान उनके बीच से कभी प्रयत्नपूर्वक निकल चुकी एक शक्ति ने पूरी दुनिया को इस अपमानजनक स्थिति से मुक्त कर दिया. कितना चौंकाने वाला है यह सब! ऐसा हो कैसे सका? ये त्यौहार, ये औसत दर्जे के नर्क से मुक्ति, दैनंदिन जीवन की संकीर्णता के ऊपर उठना, इस सब ने उनकी धरती पर जन्म लिया, उन्हींकी भाषा में वार्तालाप किया, और उन्हीं की कबीले का रहा. और वे देख रहे थे और सुन रहे थे और उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया? अपने बीच से उन्होंने इस सौंदर्य और शक्ति से भरपूर आत्मा को जाने कैसे दिया, वे सोच कैसे सके कि उसकी विजय और शासन के निकट वे इस चमत्कार की खाली खोल के रूप में रहेंगे, जो वह छोड़ कर गई थी. ये स्वेच्छापूर्वक किया गया बलिदान किसके हित में था, किसे ज़रूरत थी इस बात की, कि सदियों तक ये निर्दोष बूढ़े, औरतें और बच्चे मज़ाक के पात्र बने रहें और खून बहाते रहें, जो इतने नाज़ुक और भलाई के योग्य हैं और इस लायक हैं कि उनसे दिल से वार्तालाप किया जाए!

सभी राष्ट्रों के लोगों से प्यार करने वाले लेखक इतने सुस्त और प्रतिभाहीन क्यों हैं? इन लोगों के विचारवन्त लोग इस सहज प्राप्य वैश्विक अपमान और व्यंगात्मक बुद्धिमत्ता से परे क्यों नहीं गए? अपने कर्तव्य की अपरिवर्तनीयता के दबाव से विखण्डित होने का ख़तरा उठाते हुए भी, जैसे दबाव के कारण भाप के बॉयलर फट जाते हैं, उन्होंने इन फौजों को क्यों नहीं भंग कर दिया, जो, कोई नहीं जानता कि किस उद्देश्य के लिए लड़ती हैं और किसलिए हार जाती हैं? क्यों नहीं कहा : “सँभल जाओ. बहुत हो गया. आगे और लड़ने की ज़रूरत नहीं है. अपने आप को पुराने नाम से न बुलाओ. एक झुण्ड में न रहो, अलग-अलग हो जाओ. सब के साथ रहो. तुम दुनिया के पहले और बेहतरीन ईसाई हो. आप वही हो, जिसके लिए आपमें से ही सबसे बुरे और कमज़ोर लोगों ने आपका विरोध किया.”

 

13

दूसरे दिन, जब लंच के लिए लिए आया तो झिवागो ने कहा:

“तुम जाने के लिए इतने बेताब हो रहे थे, तुम्हारी ख़्वाहिश आख़िर पूरी हुई. ये तो नहीं कहूँगा कि “ख़ुश रहो”, क्योंकि ये कैसी ख़ुशी है, कि हमें फिर से या तो दबाया जा रहा है, या हमें मारा जा रहा है? पूरब का रास्ता आज़ाद है, मगर पश्चिम से हमें दबा रहे हैं. सभी फौजी-मेडिकल यूनिट्स को पैक-अप करने का हुक्म हुआ है. कल या परसों निकल पडेंगे. कहाँ – पता नहीं. और मिखाइल ग्रिगोरेविच, कार्पेन्का के कपड़े, बेशक, धुले नहीं हैं. हमेशा का किस्सा. मौसी, मौसी, और उससे पूछो कि ये मौसीकौन है, तो वह ख़ुद भी नहीं जानता, बदमाश.”

वह नहीं सुन रहा था कि उसका मेडिकल-अर्दली अपनी सफ़ाई में क्या कह रहा है, और गर्दोन पर भी ध्यान नहीं दे रहा था, जिसे इस बात का बुरा लग रहा था कि उसने झिवागो के अंतर्वस्त्र पहने हैं और उसीकी कमीज़ में जा रहा है. झिवागो कहता रहा:

     ओह, घुमक्कड़ों की ज़िंदगी है हमारी, खानाबदोश जिप्सी. जब यहाँ आये थे, हर चीज़ मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ थी – भट्टी सही जगह पर नहीं थी, और छत नीची, और गंदगी, और उमस. मगर अब, चाहे मार डालो, मुझे याद भी नहीं आता, कि इससे पहले हम कहाँ थे. और, लगता है, कि सदियों से यहीं रह रहा हूँ, भट्टी के इस कोने की ओर, टाइल्स पर पड़ती धूप और रास्ते के पेड़ की घूमती छाया को देखते हुए.

वे बिना जल्दबाज़ी किए सामान समेटने लगे.

रात को शोर और चीखें, गोलीबारी और भाग-दौड़ ने उन्हें उठा दिया. गाँव में भयानक प्रकाश था. खिड़की के पास परछाइयाँ घूम रही थीं. दीवार के पीछे मालिक लोग जाग गए थे और घूम रहे थे.

“बाहर भाग, कार्पेन्का, पूछ कर आ, कि ये भगदड़ किसलिए है,” यूरी अन्द्रेयेविच ने कहा.

जल्दी ही सब पता चल गया. ख़ुद झिवागो जल्दी-जल्दी कपड़े पहन कर फौजी अस्पताल गया, जिससे कि अफ़वाहों की जाँच कर सके, जो सही साबित हुईं. जर्मनों ने इस क्षेत्र में प्रतिरोध को ख़त्म कर दिया था.

सुरक्षा दलों की पंक्ति गाँव के निकट सरक आई थी और अधिकाधिक निकट आती जा रही थीं. गाँव पर गोलीबारी हो रही थी. फौजी अस्पताल और उसके यूनिट्स को फ़ौरन हटाने लगे, निष्क्रमण के आदेश की प्रतीक्षा किए बिना.. सुबह तक हर काम पूरा करने का फ़ैसला किया गया.

“तू पहली टुकड़ी के साथ जाएगा, काफ़िला निकलने ही वाला है, मगर मैंने कह दिया है कि तेरा इंतज़ार करें. चल, अलबिदा. मैं तुझे छोड़ने आता हूँ और देखता हूँ कि तुझे कैसे बिठाते हैं.”

वे गाँव के दूसरे छोर की ओर भागे, जहाँ फौजी दस्ते को तैयार किया जा रहा था.

घरों के निकट से भागते हुए, वे झुक जाते और उनके उभरे हुए हिस्सों के पीछे छुप जाते. रास्ते पर गोलियाँ सनसनाहट के साथ चिंघाड रही थीं. खेतों के बीच से जाते हुए रास्तों के चौराहों से दिखाई दे रहा था कि कैसे उसके ऊपर लपटों की छतरियों बनाते हुए बम के गोलों का विस्फोट हो रहा है.

“और तू, कैसे?” गर्दोन ने भागते हुए पूछा.

“मैं – बाद में. एक बार घर लौटना होगा, सामान के लिए. मैं दूसरी टुकड़ी के साथ जाऊँगा.”

उन्होंने गाँव की सीमा पर एक दूसरे से बिदा ली. कुछ गाड़ियाँ और टुकड़ी, जिन पर सामान लदा था, चल पड़ीं, एक दूसरे से टकराते हुए, और धीरे-धीरे एक कतार में आ गईं. यूरी अन्द्रेयेविच ने अपने जाते हुए दोस्त को हाथ हिलाकर बिदा किया. एक जल रहे खलिहान का प्रकाश उन्हें आलोकित कर रहा था.   

उसी तरह, झोंपड़ियों की बगल से, उनके बाहर निकले हिस्सों से ढँके-ढँके, यूरी अन्द्रेयेविच जल्दी-जल्दी वापस घर की ओर जा रहा था. उसकी ड्योढ़ी से दो घर पहले विस्फोट के ज़ोरदार धक्के ने उसे गिरा दिया और छर्रे की गोली ने उसे घायल कर दिया. खून से लथपथ यूरी अन्द्रेयेविच रास्ते के बीचोंबीच गिर पड़ा और बेहोश हो गया.

 

14

 

निष्क्रमित किया गया फौजी हॉस्पिटल रेल्वे लाइन के पश्चिमी भाग में एक छोटे से शहर में, जनरल हेडक्वार्टर्स के पड़ोस में, खो गया.

फरवरी के अंत के गरम दिन थे. स्वास्थ्य-सुधार कर रहे ऑफ़िसर्स के वार्ड में यूरी अन्द्रेयेविच के अनुरोध पर, जो इलाज के लिए वहाँ था, उसके पलंग के पास वाली खिड़की खोल दी गई थी.

दोपहर के भोजन का समय निकट आ रहा था. इस बचे हुए समय को मरीज़ अपनी मर्ज़ी से गुज़ार रहे थे. उन्हें बताया गया कि हॉस्पिटल में एक नई नर्स आई है और आज वह पहली बार राउन्ड लेगी. यूरी अन्द्रेयेविच के सामने लेटा हुआ गलिऊलिन अभी-अभी लाए गए “भाषण” और “रूसी शब्द“ देख रहा था और अख़बारों में सेन्सर द्वारा छोड़े गए रिक्त स्थानों को देख-देखकर उत्तेजित हो रहा था. यूरी अन्द्रेयेविच तोन्या के ख़त पढ़ रहा था, जिसे फील्ड-पोस्टऑफिस लाया था. बहुत सारे ख़त जमा हो गए थे. हवा ख़तों के पन्नों और अख़बार के पृष्ठों से खेल रही थी. हल्के कदमों की आहट सुनाई दी. यूरी अन्द्रेयेविच ने ख़त से नज़र उठाई. लारा ने वार्ड में प्रवेश किया.

यूरी अन्द्रेयेविच और सेकण्ड लेफ्टिनेंट, हरेक ने अलग-अलग, एक-दूसरे के बारे में ये बात न जानते हुए, उसे पहचान लिया. वह उनमें से किसी को भी नहीं जानती थी. उसने कहा:

“नमस्ते. खिड़की क्यों खुली है? क्या आप को ठण्ड नहीं लग रही है?” और वह गलिऊलिन के पास आई.

“क्या शिकायत है?” उसने पूछा और उसका हाथ अपने हाथ में लिया, ताकि नब्ज़ देख सके, मगर उसी पल उसे छोड़ दिया और उसके पलंग के पास कुर्सी पर परेशान-सी बैठ गई.

“ये कितना अप्रत्याशित है, लरिसा फ्योदरव्ना,” गलिऊलिन ने कहा. “मैं आपके पति के साथ एक ही रेजिमेंट में था और पावेल पाव्लविच को जानता था. मेरे पास आपके लिए उसकी सारी चीज़ें हैं.”

“ये नहीं हो सकता, नहीं हो सकता,” वह दुहराती रही. “कैसी विचित्र संयोग है. तो, आप उसे जानते थे? फ़ौरन बताइए, सब कैसे हुआ? क्या वह सचमुच में मर गया, धरती में दफ़न हो गया? कुछ भी न छिपाइए, घबराइए नहीं. वैसे, मुझे सब मालूम है.”

गलिऊलिन के पास अफ़वाहों के आधार पर निकाले गए उसके निष्कर्षों की पुष्टि करने का धैर्य नहीं था. उसने झूठ बोलने का फ़ैसला कर लिया, जिससे उसे शांत कर सके.

“अंतीपव कैद में है,” उसने कहा. “आक्रमण के समय वह अपनी टुकड़ी से काफ़ी आगे निकल गया था और अकेला रह गया. उसे घेर लिया गया. उसे मजबूर होकर समर्पण करना ही पड़ा.”

मगर लारा ने गलिऊलिन का विश्वास नहीं किया. बातचीत की चौंकाने वाली आकस्मिकता से वह परेशान हो गई. छलछलाते आँसुओं पर वह काबू न रख पाई और अजनबी लोगों के सामने वह रोना नहीं चाहती थी. वह फ़ौरन उठी और वार्ड से निकल गई, जिससे कॉरीडोर में अपने आपको संयत कर सके.

एक मिनट बाद, ऊपर से शांत, वह वापस आई. वह जानबूझकर गलिऊलिन वाले कोने की ओर नहीं देख रही थी, जिससे फिर से न रो पड़े.

सीधे यूरी अन्द्रेयेविच के पलंग के पास जाकर उसने अन्यमनस्कता से रटे-रटाए अंदाज़ में पूछा:

“नमस्ते. क्या शिकायत है?”

यूरी अन्द्रेयेविच उसकी परेशानी और आँसुओं को देख रहा था, पूछना चाहता था कि उसे क्या हुआ है, बताना चाहता था, कि कैसे वह ज़िंदगी में दो बार उसे देख चुका है, एक बार जब स्कूल का विद्यार्थी था और दूसरी बार जब युनिवर्सिटी में पढ़ता था, मगर उसने सोचा कि यह घनिष्ठता बढ़ाने जैसा होगा और वह उसे गलत समझेगी. फिर उसे अचानक तब, सिव्त्सेव में, ताबूत में पड़ी मृत आन्ना इवानव्ना की और तोन्या की चीखों की याद आई और उसने अपने आपको रोक लिया, और इस सब के बदले कहा:

“धन्यवाद. मैं ख़ुद डॉक्टर हूँ, और अपना इलाज ख़ुद करता हूँ. मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है.”

ये मुझसे इतना ताव क्यों खा गया?’ लारा ने सोचा और अचरज से इस चपटी नाक वाले अजनबी की ओर देखा जिसमें कोई ख़ास बात नहीं थी.

कुछ दिनों से मौसम अस्थिर था, बदल रहा था, मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू वाली रातों में गर्म, लुभावनी हवा चलती.

और इस दौरान हेडक्वार्टर्स से अजीब-अजीब ख़बरें आती रहीं, घर से परेशान करने वाली खबरें आईं, देश के अंदर भी. पीटर्सबुर्ग से टेलिग्राफ सम्पर्क टूटता रहा. चारों ओर, हर कोने पर राजनैतिक बातें होती थीं.

अपनी हर ड्यूटी पर नर्स अंतीपवा दो राउण्ड्स लेती थी, सुबह और शाम, और दूसरे वार्डों के मरीज़ों से , गलिऊलिन से और यूरी अन्द्रेयेविच से, हल्की-फुल्की टिप्पणियाँ करती. – अजीब दिलचस्प आदमी है,’ वह सोचती. जवान है और मिलनसार नहीं है. चपटी नाक वाला और ये नहीं कह सकते कि बहुत ख़ूबसूरत है. मगर बहुत बुद्धिमान है, एक सचेत और अपना बनाने वाला दिमाग है. मगर बात ये नहीं है. बात ये है, कि यहाँ के अपने काम जल्दी से जल्दी पूरे कर लिए जाएँ और मॉस्को तबादला करवा लिया जाए, कातेन्का के निकट. और मॉस्को में नर्स के कर्तव्य से हटाकर वापस युर्यातिन, अपने स्कूल में भेजने की दरख़्वास्त दी जाए. बेचारे पतूलेच्का के बारे में सब स्पष्ट हो चुका है, कोई उम्मीद नहीं बची, तब मोर्चे की हीरोइन बने रहने में कोई तुक नहीं है, सिर्फ उसे ढूँढ़ने के लिए ही तो ये सब किया था.

अभी कात्या कैसी होगी? बेचारी अनाथ (वह रोने लगी). पिछले कुछ दिनों से काफ़ी तेज़ी से परिवर्तन हो रहे हैं. कुछ दिन पहले तक मातृभूमि के प्रति कर्तव्य, फ़ौजी वीरता, उच्च सामाजिक भावनाएँ पवित्र समझी जाती थीं. मगर युद्ध में हार हो गई है, ये – सबसे बड़ा दुर्भाग्य है, और इसीसे बाकी और बातें, सब कुछ धूल में मिल गया है, कुछ भी पवित्र नहीं है.              

अचानक सब उलट-पुलट हो गया, लहज़ा, हवा, पता नहीं कैसे सोचना चाहिए और किस की बात सुनना चाहिए. जैसे पूरी ज़िंदगी हाथ पकड़कर चलाते रहे, जैसे छोटी बच्ची हो, और अचानक छोड़ दिया, अपने आप चलना सीखो. और आसपास कोई नहीं है, न कोई नज़दीकी, न अधिकारी. तब सबसे महत्वपूर्ण चीज़ पर विश्वास करने को जी चाहता है, जीवन की शक्ति या ख़ूबसूरती या सच्चाई पर, ताकि वे, ना कि उलट दी गईं मानव निर्मित संस्थाएँ तुम पर नियन्त्रण रखें, सम्पूर्ण रूप से और बिना किसी अफ़सोस के, अधिक पूर्णता से बनिस्बत उसके जो शांतिपूर्ण अभ्यस्त जीवन में होता था, जिसे अब नकार दिया गया है. मगर उसके संदर्भ में,” – लारा समय पर सचेत हो गई, - “कातेन्का ही ये लक्ष्य, बिना शर्त लक्ष्य होगी. अब पतूलेच्का के बिना, लारा सिर्फ माँ है और वह अपनी पूरी सामर्थ्य कातेन्का को, बेचारी अनाथ बच्ची को देगी.        

यूरी अन्द्रेयेविच को एक ख़त से पता चला कि गर्दोन और दुदोरव ने उसकी अनुमति के बिना उसकी किताब प्रकाशित कर दी है, कि उसकी तारीफ़ हो रही है और उसके महान साहित्यिक भविष्य का अनुमान लगाया गया है, और ये, कि मॉस्को में आजकल बहुत दिलचस्प और ख़तरनाक परिस्थिति है, निचले वर्ग के लोगों की ख़ामोश चिड़चिड़ाहट बढ़ती जा रही है, हम किसी महत्वपूर्ण घटना की देहलीज़ पर हैं, गंभीर राजनैतिक घटनाएँ निकट आती जा रही हैं.

काफ़ी रात हो चुकी थी. यूरी अन्द्रेयेविच पर उनींदापन छाया था. वह रह-रहकर ऊँघने लगता और कल्पना करता कि दिन भर की परेशानी के बाद उसे नींद नहीं आयेगी, वह सो नहीं सकेगा. खिड़की के बाहर उनींदी, उनींदेपन से साँस लेती हुई हवा उबासियाँ ले रही थी और घूम रही थी. हवा रो रही थी और बड़बड़ा रही थी, “तोन्या, शूरच्का, मुझे तुम्हारी कितनी याद आ रही है, घर लौटने को, काम पर जाने को कितना दिल चाहता है!” और हवा की बड़बड़ाहट के बीच यूरी अन्द्रेयेविच सोया, उठ गया, और फिर से उसकी आँख लग गई सुख और दुख के शीघ्र परिवर्तित होने वाली भावनाओं के बीच, जो तेज़ी से और बेचैनी से बदल रही थी, जैसे ये बदलता हुआ मौसम, जैसे ये अस्थिर रात.

लारा सोच रही थी : “उसने इतनी फिक्र से इस याद को संभाल कर रखा, पतूलेच्का की इन बेचारी चीज़ों को, और मैं, ऐसी सुअर हूँ, कम से कम इतना भी नहीं पूछा कि वह कौन है और कहाँ से है”.

अगले दिन सुबह के राउण्ड पर, इस कमी को पूरा करने के लिए और अपनी कृतघ्नता के एहसास को छुपाने के लिए, उसने गलिऊलिन से इस सब के बारे में पूछा और आहें भरती रही, ‘आह’, ‘ओहकरती रही.

“ऐ ख़ुदा, पवित्र है तेरी इच्छा! ब्रेस्त्स्काया, अठ्ठाईस,  तिवेर्ज़िन परिवार, उन्नीस सौ पाँच की क्रांति की सर्दियाँ!

यूसुप्का? नहीं, यूसुप्का को नहीं जानती थी या याद नहीं है, माफ़ कीजिए. मगर साल-तो, साल तो वही है, और कम्पाऊण्ड! ये वाकई में सच है, वाकई में ऐसा कम्पाऊण्ड और ऐसा साल था! ओह, कितनी सजीवता से उसने फिर से ये सब महसूस किया! और उस समय की गोलीबारी, और (क्या है ये, ख़ुदा याद दिलाए) “”क्राइस्ट की राय”! ओह, कितनी शिद्दत से, कितने पैनेपन से बचपन में महसूस करते हैं, पहली बार! माफ़ कीजिए, माफ़ कीजिए, आपका नाम, सेकण्ड लेफ्टिनेंट? हाँ, हाँ, आपने एक बार मुझे बताया तो था. शुक्रिया, ओह कितना धन्यवाद दूँ आपको, असीप गिमाज़ीत्दिनविच, आपने कैसी यादें, कैसे ख़याल मेरे दिल में जगा दिए!”                  

पूरे दिन दिल में वह “उसी कम्पाऊण्ड” के साथ घूमती रही और आहें भरती रही और करीब-करीब ज़ोर से सोचती रही.

ज़रा सोचिए, ब्रेस्त्स्काया, अट्ठाईस! और फिर से गोलीबारी, मगर ये कितने गुना ख़तरनाक है! ये तेरे “लड़के गोलियाँ चला रहे हैं” नहीं है. बल्कि लड़के बड़े हो गए हैं और सब यहीं हैं, फ़ौजियों के बीच, उन कम्पाऊण्ड्स के और वैसे ही गाँवों के सीधे-सादे लोग.              

चौंकाने वाली बात है! चौंकाने वाली!

बगल के वार्डों के अपंग और जो स्ट्रेचर पर नहीं थे, ऐसे मरीज़ वार्ड में, छड़ियों और बैसाखियों से ठकठक करते भीतर घुसे , वे एकसुर में चिल्ला रहे थे:

“अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाएँ. पीटर्सबुर्ग में दंगे. पीटर्सबुर्ग गैरिसन की फौजें विद्रोहियों से मिल गईं. क्रांति.

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