Friday, 16 April 2021

एक डॉक्टर की कहानी - 12, 13, 14

 

अध्याय – 12

शक्कर में लिपटी लाल रसभरी

 

1

पार्टिज़ानों के परिवार बच्चों और सामान के साथ काफ़ी समय से फ़ौज के पीछे-पीछे चल रहे थे. शरणार्थियों की गाड़ियों की कतार के अंत में, बिल्कुल पीछे, अनगिनत मवेशियों के झुण्ड हाँके जा रहे थे, जिनमें प्रमुखता से गायें थीं, उनकी संख्या कई हज़ार थी.

पार्टिज़ानों की बीबियों के साथ ही कैम्प में एक नया चेहरा प्रकट हुआ, सिपाहिन ज़्लीदिखारिका या कूबरिखा, मवेशियों का इलाज करने वाली, वेटेरिनरी डॉक्टर, और गुप्त रूप से जादूगरनी.

वह स्कॉटलैण्ड के रॉयल राइफ़लमैनों के युनिफॉर्म वाली, एक कोने पर तिरछी, छज्जेदार टोपी, और भूरे-हरे ओवरकोट में घूमती, जिनकी आपूर्ती इंग्लैण्ड द्वारा सर्वोच्च शासक को की गई थी, और वह यकीन दिलाती थी कि ये चीज़ें उसने एक कैदी के ओवरकोट और टोपी से बनाई हैं, और ये कि रेड-आर्मी ने उसे केझेम्स्क की सेंट्रल जेल से आज़ाद कर दिया था, जहाँ कल्चाक ने उसे न जाने किसलिये कैद किया था.

इस समय पार्टिज़ान नई जगह पर आ गये थे. ऐसा अनुमान था कि यह पड़ाव थोड़े ही समय के लिये होगा, जब तक कि आसपास की जगहों का निरीक्षण नहीं कर लेते और लम्बी सर्दियों के लिये किसी स्थाई ठिकाने की तलाश नहीं कर लेते. मगर आगे चलकर परिस्थितियों ने कुछ अलग ही मोड़ ले लिया जिनके कारण पार्टिज़ानों को सर्दियाँ वहीं बितानी पड़ीं.

ये नया पड़ाव अभी छोड़कर आये फॉक्स पॉइन्ट जैसा बिल्कुल नहीं था. ये घना, अभेद्य, तायगा का जंगल था. एक ओर, रास्ते और कैम्प से दूर, उसका कोई अंत ही नहीं था. शुरू के दिनों में जब तक फौज नया कैम्प बनाकर उसमें रहने की तैयारी कर रही थी, यूरी अन्द्रेयेविच के पास काफ़ी फ़ुर्सत थी. वह कई दिशाओं से जंगल के भीतर काफ़ी गहराई में गया ताकि उसका निरीक्षण कर सके और उसे यकीन हो गया कि उसमें भटक जाना बहुत आसान है. पहले चक्कर में दो स्थानों ने उसका ध्यान आकर्षित किया और वे उसे याद रह गये.

कैम्प से और जंगल से निकलते ही, जो आजकल शरद ऋतु के कारण नंगा था और जिसके आरपार सब कुछ दिखाई देता था, मानो उसके खालीपन में दरवाज़े खोल दिये गये हों, एक अकेला, ख़ूबसूरत, सभी पेड़ों में से इकलौता, जिसने अपने पत्तों को समेटे रखा था, किरमिजी लाल पत्तों वाला रोवान वृक्ष (लाल-नारंगी रसभरी) खड़ा था. वह दलदली टीले के ऊपर एक छोटी सी पहाड़ी पर था और ऊपर, सीधे आसमान तक, शीत ऋतु से पूर्व छाये सीसे जैसे धुँधलके में अपनी चपटी, फूली-फूली कड़े आवरणों वाली चमकदार बेरियाँ फैला रहा था. चमकीले, बर्फीली सुबह जैसे पंखों वाले सर्दियों के छोटे पंछी, जैसे बुलफिंच और टॉमटिट लाल-रसभरी पर बैठते, धीरे-धीरे, चुन-चुनकर कड़ी बेरियों में चोंच मारते और, ऊपर की ओर सिर और गर्दन उठाकर मुश्किल से उन्हें निगलते.

पेड़ और पंछियों के बीच जैसे एक जीवित निकटता स्थापित हो गई थी. जैसे लाल-रसभरी ये सब देख रही थी, देर तक तनी खड़ी रही, मगर फिर उसने हार मान ली और पंछियों पर दया दिखाते हुए उसने अपनी ज़िद छोड़ दी, ढीली पड़ गई और पंछियों को अपना सीना दे दिया, जैसा माँ नन्हे बच्चे को स्तनपान कराती है. “तुम्हारा क्या करूँ मैं. ख़ैर, खाओ, खा लो मुझे. भूख मिटाओ” और हँस पड़ी.

जंगल में दूसरी जगह और भी बढ़िया थी.

वह ऊँचाई पर थी. ये ऊँचाई, जो शिहान पहाड़ियों की किस्म की थी, एक किनारे पर अचानक टूट गई थी. ऐसा लगता था, कि चट्टान के नीचे ऊपरी नज़ारे की अपेक्षा कुछ और है, - कोई नदी या खाई या घना, घास का मैदान. मगर उसके नीचे ठीक वही नज़ारा दुहराया गया था, जो ऊपर था, मगर इतनी गहराई में कि सिर चकराने लगे, दूसरे पर, पेड़ों के शिखर पैरों के नीचे जा रहे थे, उनका स्तर अधिकाधिक धँसता जा रहा था. शायद ये पहाड़ी के धँसने का परिणाम था.

जैसे यह गंभीर, बादलों के नीचे, महाकाय जंगल शायद कभी लड़खड़ाकर, पूरा, जैसा का वैसा, नीचे की ओर छिटका और वह धरती को चीरकर पाताल में ही चला जाता, मगर किसी चमत्कारवश ऐन मौके पर धरती पर संभल गया और देखिये, पूरा सही-सलामत, दिखाई दे रहा है और नीचे शोर मचा रहा है.

मगर, इसके कारण नहीं, बल्कि किसी और विशेषता के कारण जंगल की यह ऊँचाई ख़ास हो गई थी. उसे चारों ओर से ख़ालिस ग्रेनाइट के खड़े खम्भों ने किनारे-किनारे घेर रखा था. वे पूर्वैतिहासिक मकबरों की चिकनी समतल छतों जैसे लग रहे थे. जब यूरी अन्द्रेयेविच पहली बार इस चबूतरे पर आया तो वह कसम खाकर कहने को तैयार था कि पत्थरों वाली यह जगह प्राकृतिक रूप से नहीं बनी है, बल्कि इसमें इन्सान के हाथों के निशान हैं. प्राचीन काल में यहाँ अज्ञात मूर्तिपूजकों का कोई मंदिर, उनके पवित्र कार्यकलापों और बलि देने का स्थान रहा होगा.

इस जगह पर एक ठ्ण्डी, धुँधली सुबह को षड़यंत्र के ग्यारह प्रमुख दोषियों और दो चोरी छुपे शराब बनाने वाले अर्दलियों को मौत के घाट उतार दिया गया.

स्टाफ़-हेडक्वार्टर्स के प्रमुख सुरक्षा गार्ड्स के साथ करीब बीस पार्टिज़ान, जो क्रांति को पूरी तरह समर्पित थे उन्हें यहाँ लाये. रक्षक दल की इस टुकड़ी ने अभियुक्तों के चारों ओर अर्धवृत्त बना कर, हाथों में संगीनें लेकर, उन्हें तेज़, दबाते हुए कदमों से चबूतरे के चट्टानों वाले कोने में धकेल दिया, जहाँ से उनके लिये भागने का कोई रास्ता नहीं था, सिवाय इसके कि नीचे खाई में छलाँगें लगा दें.

पूछताछ, लम्बे समय तक चली कैद और सहे गये घोर अपमान ने उनके मानवीय स्वरूप को छीन लिया था. उनके बाल बढ़ गये थे, रंग काला हो गया था, वे पस्त हो चुके थे और भूत की तरह भयानक लग रहे थे.                                    

उन्हें पूछताछ के आरंभ में ही निःशस्त्र कर दिया गया था. किसी के भी दिमाग में यह विचार नहीं आया कि मौत के घाट उतारने से पहले उनकी दुबारा तलाशी ली जाये. ये कुछ ज़्यादा ही नीचता होती, मृत्यु की कगार पर खड़े लोगों का मज़ाक उड़ाने जैसा होता.

अचानक व्दवीचेन्का की बगल में चल रहे उसके मित्र और वैसे ही वैचारिक अराकतावादी, जैसा वह था, र्झानीत्स्की ने सिवाब्ल्यूय को निशाना बनाते हुए सुरक्षा दल के घेरे पर तीन गोलियाँ चला दीं. र्झानीत्स्की बेहतरीन निशानेबाज़ था, मगर घबराहट से उसका हाथ थरथरा रहा था और उसका निशाना चूक गया. फिर से भूतपूर्व कॉम्रेड्स के प्रति उसी संवेदनशीलता और दया ने गार्ड्स को र्झानीत्स्की पर टूट पड़ने या कमाण्ड से पहले गोली चलाने से रोक दिया. र्झानीत्स्की के पास तीन गोलियाँ बची थीं, मगर, हो सकता है, उत्तेजनावश वह उनके बारे में भूल गया हो, और निशाना चूकने से नाराज़ उसने अपनी ब्राऊनिंग को पत्थर पर फेंक दिया. आघात के कारण ब्राऊनिंग से चौथी गोली चल गई और उसने अभियुक्त पच्कोल्या का पैर ज़ख़्मी कर दिया.

अर्दली पच्कोल्या चीखा, दर्द के कारण बार-बार चीखते हुए उसने पैर पकड़ लिया और गिर गया. उसके पास खड़े पफ्नूत्किन और गराज़्दीख ने उसे उठाया, उसे बाँहों से पकड़ लिया और घसीटने लगे, जिससे कि इस हंगामे में कॉम्रेड्स उसे कुचल न दें, क्योंकि किसी को अपने अलावा कुछ और समझ ही में नहीं आ रहा था. पच्कोल्या अपने ज़ख़्मी पैर पर न चल सकने के कारण उछलते हुए, लंगड़ाते हुए पत्थर वाले किनारे की ओर जा रहा था, जहाँ मृत्युदण्ड की सज़ा पाये लोगों की भीड़ थी, और निरंतर चीखे जा रहा था. उसका अमानवीय विलाप संक्रामक था. जैसे किसी ने सिग्नल दिया हो, सब ने अपना आपा खो दिया. कोई ऐसी बात शुरू हो गई जो समझ से परे थी. गालियाँ बरसने लगीं, प्रार्थनाएँ, शिकायतें सुनाई देने लगीं, बद्दुआएँ गूँजने लगीं.

किशोर वय के गलूज़िन ने स्कूल युनिफॉर्म वाली अपनी पीली कैप, जिसे वह अभी तक पहनता था, सिर से उतारी, घुटनों के बल बैठ गया और उसी तरह झुण्ड में पीछे-पीछे घिसटते हुए ख़ौफ़नाक पत्थरों की ओर जाने लगा. वह बार-बार रक्षक दल के सामने ज़मीन पर झुक रहा था, बेतहाशा रो रहा था और आधी बेहोशी में गाते-गाते उनसे दया की भीख माँग रहा था:

“कुसूरवार हूँ, भाईयों, रहम करो, फिर ऐसा नहीं करूँगा. मत मारो. मत मारो. अभी मैं जिया ही नहीं हूँ, बहुत छोटा हूँ मरने के लिये. मुझे और जीना है, मम्मा को, अपनी मम्मा को एक और बार देखना है. माफ़ी दे दो, भाईयों, रहम करो. हमेशा आपके कदम चूमूँगा. आपके लिये पानी ढोकर लाऊँगा. ओय, ख़ौफ़नाक, ख़ौफ़नाक – ख़त्म हो गया मैं, मम्मा, मम्मा.”

बीच में से कुछ लोग विलाप कर रहे थे:

“कॉम्रेड, प्यारे, अच्छे कॉम्रेड्स! ये क्या कर रहे हो? होश में आओ. साथ में दो लड़ाईयों में खून बहाया. एक ही मकसद के लिये खड़े रहे, लड़ते रहे. रहम करो, छोड़ दो. आपका नेक काम हम ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे, ख़िदमत करेंगे, अपने काम से साबित करेंगे. क्या आप बहरे हो गये हो, जो जवाब नहीं दे रहे हो?. क्या ईसाई नहीं हो!”

सिवाब्ल्युय की ओर देखकर चिल्लाये:

“आह, तू. ईसा को बेचने वाले जूडा! तेरे सामने हम कैसे गद्दार हुए? ख़ुद तू ही तिगुना गद्दार, तेरा दम घुट जाये! अपने त्सार के सामने वफ़ादारी की कसम ली थी, अपने कानूनी त्सार को मार डाला, हमारे सामने वफ़ादारी की कसम ली थी, गद्दारी की. अपने शैतान फ़ॉरेस्ट-ब्रदर को जाकर चूम, जब तक उससे गद्दारी नहीं करता. करेगा गद्दारी.

व्दवीचेन्का मृत्यु की कगार पर भी अपने आप के प्रति वफ़ादार रहा. सफ़ेद, बिखरे हुए बालों वाला सिर ऊपर उठाये, वह ज़ोर से, ताकि सब सुन सकें, र्झानित्स्की से मुख़ातिब हुआ, जैसे एक कम्युन का सदस्य दूसरे सदस्य से होता है.

“अपने आप को नीचे न गिराओ, बनिफात्सी! तेरा विरोध उन तक नहीं पहुँचेगा. ये नये सुरक्षा गार्ड, नये यातनाघरों के हत्यारे तेरी बात नहीं समझेंगे. मगर दिल छोटा न कर. इतिहास सब का फ़ैसला करेगा. आने वाली पीढ़ियाँ कमिसारतंत्र के बूर्बनों और उनके काले कारनामों को शर्मनाक तरीके से सूली पर लटकायेंगी. हम विश्वक्रांति की सुबह को वैचारिक शहीदों की मौत मर रहे हैं. आत्मा की क्रांति अमर रहे. वैश्विक अराजकता अमर रहे.”

किसी बेआवाज़ कमाण्ड से, जिसे सिर्फ फ़ायरिंग दस्ते के लोग ही सुन पाये थे, बीस राइफ़लों से गोलियाँ चलीं, जिन्होंने आधे अभियुक्तों को भून डाला, उनमें से ज़्यादातर मर गये. बचे हुओं को दूसरे दौर की फ़ायरिंग में ख़त्म कर दिया गया. छोकरा तेरेशा गलूज़िन सबसे ज़्यादा तड़प रहा था, मगर आख़िरकार वह भी जम गया. हाथ-पैर फैलाकर शांत हो गया.

 

2

सर्दियों के लिये कैम्प को किसी दूसरी जगह, पूरब की तरफ़ और आगे, ले जाने के विचार को फ़ौरन नकारा नहीं गया. काफ़ी समय तक हाईवे के दूसरी ओर, वीत्स्का-केझेम्स्की जलविभाजक के किनारे-किनारे  जगहों का सर्वेक्षण और टोह का काम चलता रहा. लिबेरियस अक्सर डॉक्टर को अकेला छोड़कर कैम्प से तायगा में चला जाता.

मगर कहीं और चले जाने का विचार करने में अब बहुत देर हो चुकी थी और जाने के लिये कोई जगह भी नहीं थी. ये पार्टिज़ानों की सबसे बड़ी असफ़लताओं का समय था. अपनी आख़िरी पराजय से पूर्व श्वेत गार्ड्स ने एक ही वार में हमेशा के लिये अनियमित फ़ॉरेस्ट-ब्रदरहुड की टुकड़ियों को ख़त्म करने का फ़ैसला किया और सभी मोर्चों के सामूहिक प्रयत्नों से उन्हें घेर लिया. पार्टिज़ानों पर चारों ओर से घेरा कसता जा रहा था. यदि घेरे का व्यास कम होता तो ये उनके लिये विनाशक होता. उन्हें इस घेरे के अप्रत्यक्ष विस्तार ने बचा लिया. सर्दियों के आरंभ में दुश्मन अंतहीन, अगम्य तायगा में अपनी फ़ौजों के पार्श्व भागों को निकट लाकर किसानों की टुकड़ियों को संकीर्ण घेरे में लेने की स्थिति में नहीं था.

हर हाल में कहीं भी जाना असंभव हो गया था. बेशक, अगर किन्हीं फ़ौजी सुविधाओं का वादा करने वाली स्थानांतरण की कोई रूपरेखा होती, तो घेरे को तोड़कर, युद्ध करते हुए नए ठिकाने पर जाना संभव हो सकता था.

मगर ऐसी कोई रूपरेखा तैयार नहीं थी. लोग पस्त हो चुके थे. कनिष्ठ कमाण्डर, जो ख़ुद ही अपना मनोबल खो चुके थे, अपने अधीनस्थ लोगों पर प्रभाव गँवा चुके थे. वरिष्ठ कमाण्डर हर शाम फ़ौजी कौन्सिल में एकत्रित होते, परस्पर विरोधी समाधान सुझाते.

दूसरे शीत-बसेरे की खोज का काम रोककर इसी घने जंगल की गहराई में, जो उनके अधिकार में था, सर्दियों के लिये अपनी स्थिति मज़बूत करना आवश्यक था. सर्दियों के मौसम में घनी और गहरी बर्फ के कारण दुश्मन के लिये वह अभेद्य था, क्योंकि उनके पास स्कीकी पर्याप्त मात्रा नहीं थीं. खाईयाँ खोदने और बड़ी मात्रा में खाद्य सामग्री का संग्रह करना ज़रूरी था.

पार्टिज़ान क्वार्टरमास्टर बिस्यूरिन ने आटे और आलुओं की बेहद कमी होने की रिपोर्ट दी. मवेशी खूब थे, और बिस्यूरिन का अनुमान था कि सर्दियों में मुख्य आहार माँस और दूध ही रहेगा.

सर्दियों के कपडों की कमी थी. पार्टिज़ानों का एक भाग आधे कपड़े पहन कर घूमता था. कैम्प के सारे कुत्तों का गला दबा दिया गया. जो चमड़े का काम करना जानते थे उन्होंने रोएँदार भाग बाहर रखते हुए कुत्तों की खाल के कोट बना दिये.

डॉक्टर को परिवहन के साधन देने से इनकार कर दिया गया. अब ज़्यादा महत्वपूर्ण ज़रूरतों के लिये गाड़ियों की माँग थी. पिछले स्थानांतरण के दौरान सर्वाधिक गंभीर रोगियों को स्ट्रेचर्स पर डालकर तीस मील पैदल लाया गया था.

दवाईयों में यूरी अन्द्रेयेविच के पास सिर्फ कुनैन, आयोडीन और सोडियम सल्फेट ही बचा था. आयोडीन जिसकी ज़रूरत ऑपरेशन और पट्टियाँ बाँधने के लिये थी, दानेदार रूप में था. उन्हें स्प्रिट में डालने की ज़रूरत थी. अफ़सोस हुआ कि दारू के उत्पादन को क्यों नष्ट कर दिया था और सबसे कम दोषियों से मुख़ातिब हुए, जिन्हें छोड़ दिया गया था, और उन्हें दारू बनाने के यंत्र की मरम्मत करने के लिये या नये उपकरण लगाने के लिये कहा गया. दारू बनाने की यंत्र प्रणाली को डॉक्टरी उद्देश्य के लिये फिर से स्थापित कर दिया गया. कैम्प में लोगों ने सिर्फ एक दूसरे को आँख मारी और अपने-अपने सिर हिला दिये. शराबखोरी फिर से शुरू हो गई, जिसके कारण कैम्प की हालत बदतर होती गई.

आसवन के स्तर को सौ प्रतिशत तक लाया गया. ऐसी सामर्थ्य का द्रव दानेदार मिश्रणों को अच्छी तरह घोल लेता था.

इसी दारू में कुनैन की छाल घोल कर यूरी अन्द्रेयेविच ने सर्दियों के आरम्भ में ठण्ड के कारण फिर से फैल रहे टाइफ़स के मरीज़ों को ठीक किया.

 

3

इन दिनों डॉक्टर ने पम्फील पालिख को परिवार के साथ देखा. उसकी बीबी और बच्चों ने पूरी गर्मियाँ धूल भरे रास्तों पर भागते हुए खुले आसमान के नीचे गुज़ारी थीं. जिन ख़तरों को झेलते हुए वे आये थे, उनसे वे पूरी तरह डरे हुए थे और नये ख़तरों का अंदेशा था. इस भटकन ने उनके मन पर कभी न मिटने वाला दाग छोड़ा था. पम्फील की बीबी और तीनों बच्चों, एक बेटा और दो बेटियों के, बाल हल्के, धूप में झुलस गये, सन जैसे थे और काले, मौसम की मार से झुलस गये चेहरों पर सफ़ेद कड़ी भँवें थीं. बच्चे काफ़ी छोटे थे इसलिये जो कुछ भी उन्होंने सहा था उसके कोई और निशान उन पर नहीं थे, मगर माँ के चेहरे से आघातों और खतरों ने जीवन के आनंद को ही खदेड़ दिया था और सिर्फ अच्छे-ख़ासे नाक नक्श में सीधा सपाट सूखापन छोड़ दिया था, होंठ भिंचे हुए किसी धागे की तरह, पीड़ा भरी तनावपूर्ण निश्चलता, आत्म-रक्षा के लिये तत्पर.

पम्फील उन सबको बहुत प्यार करता था, ख़ास कर बच्चों को, पागलपन की हद तक, और ऐसी निपुणता से उसने उनके लिये तेज़ धार वाली कुल्हाड़ी की नोक से लकड़ी के खिलौने बनाये, ख़रगोश, भालू, मुर्गे, जिसने डॉक्टर को आश्चर्यचकित कर दिया.

जब वे आये तो पम्फील ख़ुश हो गया, उसकी हिम्मत बढ़ी, तबियत सुधरने लगी. मगर पता चला कि परिवारों की उपस्थिति के कारण कैम्प की मनःस्थिति पर पड़ रहे ख़तरनाक असर को देखते हुए, पार्टिज़ानों को अपने रिश्तेदारों से निश्चित रूप से अलग कर दिया जायेगा, कैम्प को अनावश्यक, गैर फ़ौजी लोगों से मुक्त कर दिया जायेगा और भाग कर आये हुए लोगों की गाड़ियों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करके उनके लिए कहीं दूर एक शीत-कम्प बनाया जायेगा. इस विभाजन के बारे में वास्तविक तैयारियों की अपेक्षा बातें ही ज़्यादा हो रही थीं. डॉक्टर को इस इंतज़ाम के पूरा होने का विश्वास नहीं था. मगर पम्फील उदास हो गया और उसकी पुरानी कुलबुलाहट वापस लौट आई.

 

4

सर्दियों की देहलीज़ पर कई कारणों से कैम्प में परेशानियों, संदेहों, दहलाने वाली और उलझी हुई घटनाओं का, अजीब तरह की अस्थिरताओं का लम्बा दौर चला.  

श्वेत गार्डों ने विद्रोहियों को घेरने का अपना लक्ष्य पूरा कर लिया. इस पूरी की गई कार्रवाई का नेतृत्व किया था जनरल वीत्सिन, जनरल क्वाद्री और जनरल बसालीगा ने. ये जनरल अपनी दृढ़ता और निर्भीक निश्चय के लिये प्रसिद्ध थे. सिर्फ उनका नाम ही काफ़ी था कैम्प में रह रही विरोधियों की बीबियों में ख़ौफ़ पैदा करने के लिये और शांतिपूर्ण आबादी में, जिसने अभी तक अपने पैतृक स्थानों को नहीं छोड़ा था और पीछे, अपने गाँवों में, दुश्मन के घेरे से परे रह गये थे.  

जैसा कि पहले कहा गया है, दुश्मन का घेरा कस जायेगा इसकी कोई तरकीब नज़र नहीं आती थी. इस कारण से निश्चिंत रहा जा सकता था. मगर चारों ओर की घटनाओं से अलग-थलग रहना भी संभव नहीं था. परिस्थितियों के सामने हार मान लेने से विरोधी का मनोबल बढ़ रहा था. फ़ौजी प्रदर्शन को दिखाने के उद्देश्य से इस जाल से, चाहे वह निरापद ही क्यों न हो, निकलने की कोशिश करना ज़रूरी था.

इस उद्देश्य से पार्टिज़ानों की बड़ी फ़ौजों को अलग करके उन्हें घेरे की पश्चिमी कमान के सामने इकट्ठा किया गया. कई दिनों की घमासान लड़ाई के बाद पार्टिज़ानों ने दुश्मन को हरा दिया और, इस जगह पर घेरा तोड़कर उसके पिछले भाग में जा पहुँचे.

इस बड़ी दरार के कारण बन गई खाली जगह से होकर तायगा में विद्रोहियों तक जाने का रास्ता खुल गया. उनसे मिलने के लिये शरणार्थियों के नये झुण्ड उमड पड़े. गाँव के शांतिप्रिय लोगों का यह सैलाब सीधे पार्टिज़ानों के रिश्तेदारों तक सीमित नहीं था. श्वेत गार्डों के दण्डात्मक तरीकों से भयभीत आसपास के गाँवों के सभी किसान अपनी-अपनी जगह से निकल पड़े, अपना चूल्हा-चक्की छोड़कर नैसर्गिक रूप से किसानों की फॉरेस्ट-आर्मी की तरफ़ खिंचे चले आये जिनमें उन्हें अपनी सुरक्षा नज़र आती थी.

मगर कैम्प में अपने ही मुफ़्तखोरों से बचने का प्रयास चल रहा था. पार्टिज़ान नये और अनजान लोगों का ख़याल नहीं रख सकते थे. शरणार्थियों से मिलने के लिये वे बाहर आये, उन्हें रास्ते में ही रोककर एक किनारे चीलिम्का नदी के पास पवनचक्की के निकट की खाली जगह पर भेज दिया.

खाली मैदान में बनी इस जगह को, जहाँ बहुत सारे फार्म-हाऊस थे “द्वोरी” (आंगन - अनु.) कहते थे. इन “द्वोरी”में शरणार्थियों के लिये शीत-कैम्प बनाने और उनके लिये नियत खाद्य सामग्री का भण्डार रखने का सुझाव दिया गया.

जब तक ये निर्णय लिये जा रहे थे, घटनाएँ अपनी रफ़्तार से हो रही थीं, और कैम्प-कमाण्ड उनसे तारतम्य नहीं रख पाई.

दुश्मन के ऊपर प्राप्त की गई विजय में कुछ उलझनें पैदा हो गई थी. उन्हें पराजित करने वाली पार्टिज़ानों की टुकड़ी को सीमा के भीतर जाने देकर, श्वेत गार्डों ने इकट्ठे आकर टूटे हुए घेरे को जोड़ दिया. उनके पिछले हिस्से में घुसने वाली पार्टिज़ानों की टुकड़ी का अपनी फ़ौजों से सम्पर्क टूट गया और उनके पास तायगा में अपनों के पास लौटने का कोई रास्ता न बचा. शरणार्थियों के साथ भी गड़बड़ हुई. घने, अभेद्य जंगल में भटक जाना आसान था. मुलाकात के लिये भेजे गये लोग शरणार्थियों का पता नहीं लगा पाते और वापस लौट आते, उनसे अलग होकर, मगर औरतें लगातार तायगा की गहराई में आगे बढ़ती रहीं, रास्ते में कुशलतापूर्वक आश्चर्यजनक काम करतीं गईं, दोनों ओर के जंगल को गिराकर उन्होंने लकड़ी के लट्ठों से पुल और पगडंडियों का निर्माण किया, रास्ते बनाये.

ये सब फॉरेस्ट-हेडक्वार्टर्स के लक्ष्यों के ख़िलाफ़ था और इसने लिबेरियस के प्लान्स और उसकी योजनाओं को पूरी तरह उलट-पुलट कर दिया.

 

5

इस वजह से वह स्विरीद के साथ हाईवे से कुछ दूर खड़ा होकर, जिसका कुछ हिस्सा इस जगह पर तायगा से गुज़रता था, गुस्से से उफ़न रहा था. हाईवे पर उसके अफ़सर खड़े होकर बहस कर रहे थे कि रास्ते के साथ-साथ गुज़रते हुए टेलिग्राफ़ के तारों को काट दिया जाये या नहीं. आख़िरी निर्णय लिबेरियस को लेना था, मगर वह आवारा-जाल में जानवर पकड़ने वाले के साथ बतिया रहा था. लिबेरियस हाथ हिलाकर उन्हें इशारा कर रहा था, कि वह अभी उनके पास आयेगा, वे उसका इंतज़ार करें, चले न जाएँ.

स्विरीद काफ़ी दिनों तक व्दवीचेन्का को अभियुक्त करार देकर उसे गोली मार देने की बात को बर्दाश्त नहीं कर पाया. व्दवीचेन्का बेगुनाह था, सिर्फ एक बात के अलावा कि लिबेरियस की हुकूमत से स्पर्धा करने वाला उसका प्रभाव कैम्प में फूट पैदा कर रहा था. स्विरीद पार्टिज़ानों से दूर चला जाना चाहता था, ताकि पहले की तरह अपनी मर्ज़ी से आज़ाद जीवन जी सके. मगर ये संभव नहीं था. उसने अपने आपको किराये पर दे दिया था, वह बिक गया था, - अगर अब वह फ़ॉरेस्ट-ब्रदर्स से दूर चला जाता है तो उसका भी गोली से मारे गये लोगों जैसा हश्र होना निश्चित था.

मौसम बेहद ख़तरनाक हो गया था, जिसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती थी. तीखी, चुभती हुई हवा बादलों के काले, कटे-फ़टे चीथड़े, जैसे उड़ते हुए धुँए के फ़ाहे हों, धरती पर काफ़ी नीचे ले आई थी.  अचानक उनसे बर्फ गिरने लगी, जैसे कोई सफ़ेद पागलपन तेज़ी से थरथरा रहा हो.

एक ही मिनट में दूर की चीज़ें सफ़ेद आवरण में ढँक गईं, धरती पर सफ़ेद चादर बिछ गई. अगले ही पल ये चादर जैसे जल रही थी, वह पूरी पिघल गई. कोयले जैसी काली धरती बाहर निकली, आसमान काला था, जिसे ऊपर से दूर पर हो रही तिरछी मूसलाधार बारिश सराबोर कर रही थी. धरती और अधिक पानी नहीं सोख पा रही थी. जब कुछ पलों के लिये उजाला होता तो बादल दूर हट जाते, जैसे आसमान को हवा देते हुए, ऊपर खिड़कियाँ खोल दी गईं हों, जो ठण्डी, पारदर्शी सफ़ेदी बाहर उंडेल रही हों. स्थिर, मिट्टी द्वारा न सोखे गए पानी ने भी धरती से उसी तरह डबरों और तालाबों की खिड़कियाँ खोलकर जवाब दिया, जो वैसी ही चमक से लबालब भरी थीं.        

बुरा मौसम देवदार के जंगल की तारपीन-रेज़िन जैसी सुईयों से धुँए की तरह फ़िसल गया, उनके भीतर नहीं घुसा, जैसे पानी मोमजामे के भीतर नहीं घुसता है. टेलिग्राफ़ के खम्भों पर मोतियों की तरह पानी की बूंदें जमा हो गई थीं. वे एक दूसरे से चिपकी-चिपकी थीं, और छिटक नहीं रही थीं.

स्विरीद उन लोगों में से था जिन्हें तायगा की गहराई में शरणार्थियों से मिलने के लिये भेजा गया था. वह अपने प्रमुख को वो सब बताना चाहता था जिसका वह गवाह था. उस गड़बड़ के बारे में बताना चाहता था जो परस्पर विरोधी और अमल में न लाए जा सकने वाले आदेशों के कारण हुई थी. औरतों के झुण्डों के सबसे कमज़ोर, विकृत भाग द्वारा किये अधाधुंध कामों के बारे में बताना चाह रहा था.

थैलियाँ, बोरे और दूध पीते बच्चों को लिये पैदल चलती हुई जवान माँओं ने, जिनका दूध सूख चुका था, पैर जवाब दे चुके थे और जो पगला गई थीं बच्चों को रास्ते पर छोड़ दिया, थैलों से आटा झटक दिया और वापस मुड़ गईं. भूख से तिल-तिल कर मरने की बनिस्बत जल्दी आनेवाली मौत कहीं ज़्यादा अच्छी है. जंगल के जानवर के मुँह में जाने के बदले दुश्मन के हाथों पड़ना बेहतर है.

दूसरी औरतों ने, जो काफ़ी ताकतवर थीं सहनशीलता और बहादुरी की मिसाल पेश की, जो मर्दों के पास नहीं होती. स्विरीद के पास और भी कई ख़बरें थीं. वह कैम्प पर मंडरा रहे नये विद्रोह के ख़तरे के बारे में प्रमुख को आगाह करना चाहता था, जो कुचले गये विद्रोह की अपेक्षा ज़्यादा भयानक था और उसे शब्द नहीं मिल रहे थे. क्योंकि लिबेरियस की बेचैनी ने, जो चिड़चिड़ाहट से उसके पीछे जल्दी मचा रहा था, उसे आख़िरकार गूँगा कर दिया. और लिबेरियस हर मिनट स्विरीद को टोक रहा था, न सिर्फ इसलिये कि रास्ते पर लोग उसका इंतज़ार कर रहे थे और इशारे कर रहे थे, चिल्ला रहे थे, बल्कि इसलिये कि पिछले दो हफ़्तों से उसे लगातार इस बारे में सूचनाएँ मिल रही थीं, और लिबेरियस को यह सब मालूम था.

“तू मुझे भगा नहीं, कॉम्रेड चीफ़. मैं वैसे भी भाषण देने वाला आदमी नहीं हूँ. लब्ज़ मेरे दाँतों पर चिपक गये हैं, लब्ज़ मेरा दम घोंट रहे हैं. मैं तुझे क्या कह रहा हूँ? भगोड़ों की गाड़ियों के पास जा, उनकी औरतों को कुछ कानून के बारे में बता. ऐख, कैसी गड़बड़ हो रही है वहाँ. मैं तुझसे पूछता हूँ, हमारे पास क्या है, “कल्चाक पर हमला!” या औरतों का युद्ध?”

“मुख़्तसिर में कहो, स्विरीद. देख रहे हो ना, मुझे बुला रहे हैं. गोल-गोल बात मत करो.”

अब, ये शैतान डागदरनी ज़्लीदारिखा, कुत्ते का पिल्ला ही जानता है कि वो कौन है, बेबे. कह रही थी, मुझे जानवरों की बेबे-वेट्रेन्यान्का दर्ज कर लो....”

“वेटेरिनरी डॉक्टर, स्विरीद.”

“और मैं क्या कह रहा हूँ? मैं वही कह रहा हूँ – बेबे-वेट्रेन्यान्का जानवरों की बीमारियों का इलाज करने के लिये. मगर अब कहाँ हैं तेरे मवेशी, पुराने धरम की प्लीस्ट, गायों की प्रेयर मीटिंग करती है, नई भगोड़ी लुगाईयों को बहकाती है. कहती है, कुसूर तुम्हारा है, लाल झण्डे के पीछे लहँगे खोंसकर भागने से देखो कहाँ आ गईं. इसके बाद फिर कभी नहीं भागोगी.”

“मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, तू किन भगोड़ों की बात कर रहा है? हमारे, पार्टिज़ानों के, या और दूसरे?”

“ज़ाहिर है, दूसरों के बारे में. नये, बाहर से आये.”

“मगर उन्हें तो हिदायत दी गई थी कि “द्वोरी” गाँव में, चीलिम्का पनचक्की के पास जाएँ. वो यहाँ कैसे आ गये?”

“अब्बा, गाँव “द्वोरी”. तेरा “द्वोरी” तो पूरा खाक हो गया, कोयला. और पवनचक्की और बाकी पूरा मैदान कोयला हो गया है. वो, जो चीलिम्का पर आये, देखते हैं कि सब कुछ खाली है, नंगा है. आधों का तो दिमाग ख़राब हो गया, चिल्लाते-रोते सफ़ेद-गार्डों के पास चले गये. और दूसरे इधर-उधर डोलते रहे और पूरे सामान समेत यहाँ आ धमके.”

“घने जंगल से होकर, दलदल से होकर?”

“और कुल्हाड़ियाँ- आरियाँ किसलिये हैं? उन्हें हमारे मर्दों को दिया गया था, हिफ़ाज़त करने के लिये, - वे ही काम आये. तीस, कहते हैं, जंगल काटकर तीस मील का रास्ता बना दिया. पुलों समेत, जंगलियों ने. कहो इसके बाद, - लुगाईयाँ. ऐसे-ऐसे कारनामे करती हैं, तुम तो तीन दिनों में सोच भी नहीं सकते.”

“बहुत अच्छे, बत्तख़! तू क्यों ख़ुश हो रहा है, घोड़े, तीस मील लम्बा रास्ता. वीत्सिन और क्वाद्री का तो काम ही बन गया. तायगा का रास्ता खोल दिया. चाहे तो, तोपखाना भी ले जा सकते हो.”

“बंद कर दे. बंद कर दे. फ़ौज भेज दे बंद करने के लिये और काम ख़तम.”

“ख़ुदा कसम, तेरे बगैर भी मैं ये सब सोच लूँगा.”

 

6

दिन छोटे हो गये थे. पाँच बजे अँधेरा होने लगता था. झुटपुटे के करीब यूरी अन्द्रेयेविच ने उस जगह पर हाईवे पार किया, जहाँ कुछ समय पहले लिबेरियस स्विरीद से बहस कर रहा था. डॉक्टर कैम्प की ओर जा रहा था. मैदान और पहाड़ी के पास, जिसके ऊपर कैम्प का सीमांत निशान समझा जाने वाला लाल  रसभरी का पेड़ था, उसे नीमहकीम-जादूगरनी कूबरिखा की धृष्ठ, शरारती आवाज़ सुनाई दी, जिसे वह मज़ाक में अपनी प्रतिस्पर्धी कहता था. उसकी प्रतिस्पर्धी कर्कशता से चिल्लाते हुए कोई ख़ुशनुमा, मस्तीभरी चीज़ गा रही थी, शायद लोकगीत का कोई टुकड़ा था. उसका गीत कुछ लोग सुन रहे थे. आदमियों और औरतों के सहानुभूतिपूर्ण ठहाकों से उसके गीत में रुकावट पड़ रही थी. बाद में सब कुछ शांत हो गया. शायद सब बिखर गये थे.

तब कूबरिखा दूसरी तरह से गाने लगी, अपने आप से और नीची आवाज़ में, ये सोचकर कि वह एकदम अकेली है. सावधानी पूर्वक, ताकि दलदल में पैर न पड़ जाये, यूरी अन्द्रेयेविच अँधेरे में धीरे-धीरे पगडंडी पर चलने लगा, जो लाल रसभरी का चक्कर लगाते हुए गुज़रती थी, और वहीं ठिठक गया. कूबरिखा कोई प्राचीन रूसी गीत गा रही थी.

यूरी अन्द्रेयेविच इस गीत को नहीं जानता था. हो सकता है, ये उसकी आशु रचना हो?

रूसी गीत, बाँध में पानी जैसा होता है. ऐसा लगता है कि वह ठहर गया है और उसमें कोई हलचल नहीं हो रही है. मगर गहराई में वह निरंतर जलद्वारों से बाहर बहता रहता है और उसकी सतह की ख़ामोशी छलावा है.

हर प्रकार से, आवर्तनों से, समानताओं से, वह विषयवस्तु के क्रमिक विकास को रोकता है. किसी एक सीमा पर आकर वह अचानक खुलकर एकदम चौंका देता है. अपने आप को रोकते हुए, ख़ुद को संयमित करते हुए, तड़पती हुई ताकत ख़ुद को इसी तरह व्यक्त करती है. ये शब्दों द्वारा समय को थामने की पागलपन भरी कोशिश है.

कूबरिखा आधा गा रही थी, आधा बोल रही थी:

“भाग रहा नन्हा खरगोश दुनिया में सफ़ेद,

दुनिया में सफ़ेद हाँ बर्फ पर सफ़ेद.

भाग रहा था तिरछे-तिरछे, लाल रसभरी के पेड़ से होकर,

भाग रहा था तिरछे-तिरछे, रसभरी से बोला रोकर.

मेरा दिल, खरगोश का दिल, है डरपोक,

दिल डरपोक, डर जाता है जल्दी,

मैं ख़रगोश, डरता हूँ जानवरों के निशान से,

जानवरों के निशान से, भेडिये के भूखे पेट से.

रहम कर मुझपे, रसभरी की झाड़ी,

रसभरी की झाड़ी, सुंदर रसभरी का पेड़.

अपनी सुंदरता दुष्ट दुश्मन को न देना,

न दुष्ट दुश्मन को, न दुष्ट कौए को

बिखेरना लाल बेरियाँ मुठ्ठी भर के हवा में,

मुठ्ठी भर के हवा में, सफ़ेद दुनिया में, सफ़ेद बर्फ पर,

बिखेरना, बिखेरना उन्हें अपनी ओर,

आखिरी, गेट वाले घर की ओर.

उस आख़िर वाली खिड़की की ओर और उस पहाड़ी पर,

वहाँ छुपी है कैदी एक,

मेरी प्यारी, मेरी चहेती,

कहना तू प्यारी के कानों में

लब्ज़ प्यार का, जोश भरा.

तड़प रहा हूँ, जंज़ीरों में, योद्धा-सैनिक,

दिल सैनिक का है बेचैन पराये देस में.

मगर निकल भागूँगा मैं कठोर कैद से,

छिटक जाऊँगा अपनी सुंदर रसभरी के पास.”

 

7

सिपाहिन कूबरिखा पालिखा – पम्फील की बीबी अगाफ़्या फ़ोतियेव्ना, या बोलचाल की भाषा में फत्येव्ना की बीमार गाय पर जादू डाल रही थी. गाय को झुण्ड से अलग करके झाड़ियों में रखा था, उसके सींग पेड़ से बांध दिये थे. गाय के अगले पैरों के पास एक ठूँठ पर मालकिन बैठी थी, पिछले पैरों के पास – दुहने वाली बेंच पर सिपाहिन-जादूगरनी.

बाकी के अनगिनत मवेशियों की छोटे से मैदान पर भीड़ लगी थी. काला जंगल हर तरफ़ से तिकोने फ़र वृक्षों की पर्वतों जैसी दीवार से उसे घेरे हुए खड़ा था, जो मानो अपनी निचली, फैली हुई मोटी टहनियों पर फ़तकल मारे ज़मीन पर बैठे थे.

साइबेरिया में स्विट्ज़रलैण्ड की एक बढ़िया नस्ल की गाय पाली जाती थी. सभी एक ही रंग की, सफ़ेद धब्बों वाली काले रंग की, अभावों के कारण, लम्बी-लम्बी दूरियाँ चलने के कारण, जगह की असहनीय तंगी के कारण गायें इन्सानों से कम परेशान नहीं थीं. एक दूसरे से सटी-सटी, दबने के कारण वे पागल हो रही थीं. अपनी बदहवासी में वे अपने खेत को भूलती जा रही थीं और गरजते हुए, मुश्किल से अपने भारी थनों को घसीटते हुए बैलों की तरह एक दूसरे के ऊपर चढ़ रही थीं. उनके द्वारा ढाँके गये बछड़े पूँछ उठाकर उनके नीचे से छिटक जाते और, झाड़ियाँ और टहनियाँ तोड़ते हुए, जंगल में भागते, जहाँ उनके पीछे बूढ़े चरवाहे और चरवाहों के बच्चे चिल्लाते हुए भागते.

और जंगल के मैदान पर शीत ऋतु के आसमान में बर्च वृक्षों के शिखरों द्वारा बने, एक छोटे से वृत्त में बंद, वैसी ही तूफ़ानी अस्तव्यस्तता से बर्फीले काले-सफ़ेद बादल घिचपिच हो रहे थे, एक दूसरे पर चढ़ रहे थे.   

कुछ दूरी पर झुण्ड बनाकर खड़े उत्सुक लोग जादूगरनी के काम में बाधा डाल रहे थे. वह कठोर नज़र से सिर से पैर तक उन्हें देख रही थी. मगर यह स्वीकार करना उसकी गरिमा के विरुद्ध था कि वे उसे परेशान कर रहे हैं. कलाकार का गर्व उसे रोक रहा था. और वह ऐसा दिखा रही थी, कि उन्हें देख ही नहीं रही है. डॉक्टर उसे पिछली कतारों से छुपकर देख रहा था.

उसने पहली बार ध्यान से उसे देखा. वह अपनी हमेशा की ब्रिटिश कैप और लापरवाही से पीछे फेंकी हुई कॉलर वाला भूरा-हरा ओवरकोट पहने थी जो उसके काम में बाधा डाल रहा था. मगर, कुंद इच्छाओं के आक्रामक तेवर से, जो इस अधेड़ उम्र की औरत की आँखों और भौंहो को यौवनसुलभ श्यामलता प्रदान कर रहे थे, उसके चेहरे पर स्पष्ट प्रकट होता था, कि उसे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उसने क्या पहना है और कैसे पहना है.

मगर पम्फील की बीबी को देखकर यूरी अन्द्रेयेविच चौंक गया. वह उसे लगभग पहचान ही नहीं पाया. पिछले कुछ दिनों में वह बेहद बुढ़ा गई थी. बाहर निकलती हुए उसकी आँखें जैसे कोटरों से निकलने ही वाली थीं. डंडी जैसी पतली गर्दन पर एक सूजी हुई नस धड़क रही थी. रहस्यमय डर ने उसका ये हाल कर दिया था.

“दूध नहीं देती है, प्यारी,” अगाफ़्या कह रही थी. “सोचा – दूध न होने के दिन हैं, मगर नहीं, दूध तो कब का आ जाना चाहिये था, मगर फिर भी दूध सूख गया है.”

“क्या दूध न देने के दिन. उसके थन पर फोड़ा हुआ है. जड़ी-बूटी वाली दवा दूँगी मलने के लिये. और ज़ाहिर है, फूँक भी दूंगी.”

“मेरी दूसरी परेशानी है – शौहर.”

“इंतज़ाम कर दूँगी, ताकि वह इधर-उधर मूह न मारे. ये हो सकता है. इस तरह तुझसे चिपक जायेगा कि हटा ही नहीं पायेगी. तीसरी परेशानी बता.”

“नहीं, इधर-उधर मुँह नहीं मारता. अगर मारता तो भी अच्छा होता. यही तो परेशानी है, कि इसका उल्टा है, पूरे आवाग से मुझसे और बच्चों से चिपका रहता है, हम पर जान छिड़कता है. जानती हूँ, कि वो क्या सोचता है. सोचता है,  - कैम्प को बाँट देंगे, हमें अलग-अलग दिशाओं में भेज देंगे. हम बस्सालिगो के आदमियों के हाथों में पड़ जायेंगे, और वह हमारे साथ नहीं रहेगा. हमें बचाने वाला कोई नहीं होगा. वे हमें यातनाएँ देंगे, हमारी तकलीफ़ों से ख़ुश होंगे. जानती हूँ उसके ख़यालों को. कहीं अपने साथ कुछ कर न बैठे.”

“सोचेंगे. दुख दूर करेंगे. तीसरी परेशानी बता.”

“नहीं है, तीसरी. बस ये ही सब हैं, गाय और शौहर.”

“गरीब बेचारी तू, दुखों की मारी माँ! देख, ख़ुदा कैसे तुझ पर रहम करता है. दिन में भी चिराग लेकर ढूँढ़ने से ऐसी माँ नहीं मिलेगी. गरीब बेचारे सिर पर हैं दो ग़म, और उनमें एक – बेचारा शौहर. गाय के लिये क्या देगी? फूँकना शुरू करूँगी.”

“तुझे क्या चाहिये?”

“”एक बड़ी पाव रोटी और शौहर.”

आसपास के लोग ठहाके लगाने लगे.

“क्या मज़ाक कर रही हो?”

“ख़ैर, अगर बहुत महंगी हो, तो पाव रोटी छोड़ देती हूँ. सिर्फ शौहर से काम चला लूँगी.”

ठहाके दस गुना ऊँचे हो गये.

“नाम क्या है? शौहर का नहीं, - गाय का.”

“सुंदरी”

यहाँ तो आधा झुण्ड सुंदरियों का निकल आयेगा. चल, ठीक है. ख़ुदा रहम करे.”

और उसने कुछ पढ़ते हुए गाय पर फूँकना आरंभ कर दिया. शुरू में तो उसका मंत्र वाकई में गाय के लिये था. बाद में वह ख़ुद भी बहक गई और अगाफ़्या को जादू के बारे में और उसके उपयोग के बारे में पूरा पाठ पढ़ डाला.

यूरी अन्द्रेयेविच मंत्रमुग्ध सा इस सम्मोहक गुनगुनाहट को सुनता रहा, जैसा उसने यूरोपीय रूस से साइबेरिया जाते समय गाड़ीवान वाक्ख की रंगबिरंगी बड़बड़ाहट सुनी थी.

सिपाहिन कह रही थी:

“मर्गोस्या आण्टी, हमारे यहाँ आना. मंगल को कर या बुध को कर, गाय का दुख दूर कर . गाँठ निकल जा, गाय के थन से. चुप रह, सुन्दरी, बेंच न गिरा. खड़ी रह पहाड़ जैसी, दूध दे नदी जैसी. जादूगरनी जादू डाल, फोड़े को तू दे निकाल, फेंक दे काँटों के पार. त्सार जैसा है अनोखा, लब्ज़ जो जादूगरनी का.

“सब कुछ जानना चाहिये, अगाफ्युश्का, इनकार, सज़ा, बचने का मंत्र, हिफ़ाज़त का मंत्र. तू, जैसे देख रही है और सोच रही है, जंगल. मगर ये नापाक ताकत आई है फ़रिश्तों से लड़ने, काटने के लिये, यही करते हैं तुम्हारे बासिलिगो के आदमी.

“या फिर मिसाल के तौर पर देख, जो मैं कहूँ. वहाँ नहीं देख रही हो, प्यारी. तू अपनी आँखों से देख, ना कि दिमाग़ से, और देख उस तरफ़ जहाँ मैं ऊँगली गड़ाऊँ. ये, ये. तू सोच रही है कि ये क्या है? सोच रही है कि हवा ने बर्च के पेड़ की एक डाल को दूसरी पर लपेट दिया है? सोच रही है कि पंछी घोसला बुनने की सोच रहा है? मगर ऐसा नहीं है. ये वाकई में शैतान का ख़याल है. ये तो जलपरी अपनी बेटी के लिये मुकुट बना रही थी. पास में लोगों की आहट सुनी – फेंक दिया. उन्होंने डरा दिया. रात को ख़त्म करेगी, पूरा बुन लेगी, देखेगी.

“या फिर तुम्हारे इसी लाल निशान को ही ले. क्या सोचती है? सोचती है, कि ये झण्डा है? मगर देख, वो झण्डा बिल्कुल नहीं है, बल्कि जानलेवा लड़कियाँ हैं, हिलते हुए रसभरी जैसे लाल रूमाल के साथ, हिलते हुए, मैं कह रही हूँ, किसलिये हिलाती हैं? नौजवानों को रूमाल हिलाकर इशारे करती हैं, नौजवानों को मरने के लिए ललचाती हैं, मौत की तरफ़, मौत भेजने के लिये. और आप लोगों ने यकीन कर लिया – झण्डा है, सभी मुल्कों के सर्वहारा और गरीबों मेरे पास आओ.    

अब तुम्हें सब कुछ जानना चाहिये, माँ अगाफ़्या, सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ कैसा है. कौनसा पंछी, कौनसा पत्थर, कौनसी घास. अब, जैसे मिसाल के तौर पर ये पंछी होगा जादुई-मैना. जानवर होगा बिज्जू.

अब, मिसाल के तौर पर, सोच कि किससे प्यार करना है, सिर्फ बता. मैं जिससे चाहो, उस पर जादू डाल दूँगी. चाहो तो तुम्हारे चीफ़’, फॉरेस्ट-ब्रदर पर, चाहे तो कल्चाक पर, चाहे तो इवान त्सारेविच पर. क्या तू सोचती है कि मैं शेखी मार रही हूँ, झूठ बोल रही हूँ? नहीं, झूठ नहीं बोल रही हूँ. ख़ैर, देख, सुन.

सर्दियाँ आएँगी, बर्फीला तूफ़ान खेत में बवण्डर लायेगा, बर्फ के खम्भे बनायेगा. और मैं तेरे लिये उस बर्फ के स्तम्भ में, उस बर्फीले बवण्डर में चाकू खोंप दूँगी, चाकू बर्फ में बिल्कुल नीचे तक घुसा दूँगी, और बर्फ से खून से पूरी तरह सना लाल चाकू बाहर निकालूँगी. क्या, देखा? आहा? और सोच रही थी, कि मैं झूठ बोल रही हूँ. और बता, बर्फ के बवण्डर में खून कहाँ से आया? ये तो असल में हवा है, बर्फ की धूल है. अरे, यही तो बात है, मेरी प्यारी, ये तूफ़ान हवा नहीं है, बल्कि परित्यक्ता भेड़िया-मादाअपने जादूगर-पिल्ले को खो चुकी है, खेत में ढूँढ़ रही है, रो रही है, नहीं ढूँढ़ पाती. और उसके भीतर घुस गया मेरा चाकू. इसीलिये खून निकला है. और मैं उसी चाकू से तुझे चाहे जिसका पता बता दूँ, बाहर निकालूँगी और रेशमी धागे से तेरे दामन से सी दूँगी. और चाहे वो कल्चाक हो, या स्त्रेल्निकव हो, या कोई नया त्सार हो, तेरे पीछे-पीछे खिंचा चला आयेगा, जहाँ तू जायेगी, वहीं आयेगा. और तू सोच रही थी – झूठ बोल रही हूँ, सोच रही थी – सारे मुल्कों के भूखे-नंगे, प्रोलेट मेरे पास आते हैं.

“और, ये भी, मिसाल के तौर पर, कि आसमान से पत्थर गिर रहे हैं, गिर रहे हैं बारिश की तरह. इन्सान घर की देहलीज़ से बाहर निकलता है, और उस पर पत्थर गिरते हैं. या, जैसे कोई घुड़सवार आसमान में गुज़र रहे हैं, घोड़े खुरों से छतें दबाते हुए भागते हैं. या कोई जादूगर पुराने ज़माने में पता लगा लेते थे : इस औरत के भीतर अनाज है या शहद है या नेवले का समूर है. और बख़्तरबंद योद्धा उसका कंधा खोल देते, जैसे कोई संदूकची खोल रहे हों, और तलवार से चाहे जितना गेहूँ, चाहे जितनी गिलहरी, चाहे जितना मधुमक्खी का छत्ता निकाल लेते.”

कभी कभी दुनिया में कोई बड़ी और प्रखर भावना भी दिखाई दे जाती है. उसके साथ हमेशा सहानुभूति जुड़ी रहती है. जितना ज़्यादा हम अपने आदर के पात्र से प्यार करते हैं, उतना ही वह हमें दयनीय दिखाई देता है. कुछ लोगों के मन में औरत के प्रति सहानुभूति कल्पना की सभी सीमाओं को पार कर जाती है. उनकी संवेदना उसे अवास्तविक, जिनका दुनिया में अस्तित्व नहीं है, सिर्फ काल्पनिक परिस्थितियों में रखती है, और वे हर चीज़ से ईर्ष्या करते हैं – उस हवा से जो उसके चारों ओर है, प्रकृति के नियमों से जो उसके अस्तित्व से पहले सहस्त्रों वर्षों से चले आ रहे हैं.

यूरी अन्द्रेयेविच ने पर्याप्त शिक्षा पाई थी, जिससे वह जादूगरनी के अंतिम शब्दों में नोवगरद या इपातियेव के इतिहास की आरंभिक पंक्तियों को पहचान सके, जिन पर विकृतियों की अनेक पर्तें चढ़ने के कारण वे अप्रामाणिक हो चुकी हैं. उन्हें कई सदियों से जादूगरों और कथावाचकों ने विकृत कर दिया है, जो मौखिक रूप से उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाते रहे. उन्हें पहले ही नकलनवीस उलझा चुके थे, गलत तरह से प्रस्तुत कर चुके थे.

लोक कथा की क्रूरता ने उसे क्यों इस तरह दबोच लिया था? दंतकथा की इस अविश्वसनीय बकवास के प्रति वह ऐसा क्यों सोच रहा था, मानो वह सचमुच में वास्तविक जगत की घटनाएँ हों?

लारा का बायां कन्धा खोला गया. जैसे अलमारी के गुप्त खाने के लोहे के दरवाज़े में चाभी घुसाते हैं, तलवार घुमा कर उसकी कंधे की हड्डी को ज़रा सा खोला गया. आत्मा की खुली हुई गहराई में उसकी आत्मा के संजोये हुए रहस्य दिखाई दिये. अनजान शहर जहाँ वह गई थी, अनजान रास्ते, अनजान घर, अनजान जगहों के फ़ीते खुलते गये, बिखरते रहे, फीतों के बण्डल बाहर आते रहे.

ओह, कितना प्यार करता था वह उससे! कितनी अच्छी थी वह! वैसी ही, जैसी वह हमेशा कल्पना करता था और जिसके सपने देखता था, जैसा उसे चाहिये था! मगर अपने दिल के किस हिस्से से? किसी ऐसे, जिसे कोई नाम दिया जा सके या जिसे चुनकर अलग किया जा सके? ओह, नहीं, ओह नहीं! मगर उस बेमिसाल सादगी और शीघ्रता से खींची गई रेखा से, जिससे निर्माता ने उसे एक झटके में ऊपर से नीचे तक बनाया था, और ख़ुदा की बनाई इस आकृति को कंबल में कस कर लिपटे, नहलाये हुए नन्हे बच्चे की तरह उसकी आत्मा के हाथों में सौंपा गया था.

और अब वह कहाँ है और उसके साथ क्या हो रहा है? जंगल, साइबेरिया, पार्टिज़ान. वे घिर गये हैं और वह भी सबके साथ अपनी किस्मत बांट रहा है. ये क्या शैतानियत है, ये कैसी अनहोनी-सी बात है. और यूरी अन्द्रेयेविच की आँखों में और दिमाग़ में फिर से हर चीज़ धुँधली होने लगी. उसके सामने सब कुछ जैसे तैर रहा था. इस समय अपेक्षित बर्फ के बदले रिमझिम बारिश होने लगी. जैसे शहर की सड़क के ऊपर एक घर से दूसरे घर तक खूब बड़ा पोस्टर खिंचा होता है, उसी तरह हवा में जंगल के एक मैदान से दूसरे मैदान तक एक अद्भुत आश्चर्यजनक मूर्ति के सिर की छाया खिंची हुई थी, धुँधली-सी, कई गुना बड़ी. और वह सिर रो रहा था, तेज़ होती बारिश उसे चूम रही थी और उसे नहला रही थी.

“जा,” जादूगरनी अगाफ्या से कह रही थी, “तेरी गाय पर मैंने जादू डाल दिया है, - वह अच्छी हो जायेगी. ख़ुदाई माँ की प्रार्थना कर. वह प्रकाश का ख़ज़ाना और ज़िंदा लब्ज़ की किताब है.”

 

8

तायगा की पश्चिमी सीमाओं पर लड़ाईयाँ चल रही थीं. मगर वह इतना विशाल था,  कि लगता था, वे राज्य की किन्हीं दूर की सीमाओं पर हो रही हैं, और उसके जंगलों में खोये हुए कैम्प की आबादी इतनी ज़्यादा थी कि उसमें से चाहे कितने ही लोग लड़ाई पर क्यों न जाएँ, उनसे कहीं ज़्यादा बचे रहते और वह कभी भी ख़ाली नहीं होता था.    

दूर पर हो रही लड़ाई का शोर कैम्प की गहराई तक मुश्किल से ही पहुँचता था. अचानक हवा में गोलियाँ चलने की कुछ आवाज़ें गूँजीं. वे काफ़ी पास में एक के बाद एक चल रही थीं, और अचानक निरंतर गोलीबारी में बदल गईं. उस जगह पर इस गोलीबारी से भौंचक्के रह गये लोग चारों ओर बिखर गये. सहायक रिज़र्वकैम्पों के लोग अपनी-अपनी गाड़ियों की ओर भागे. भगदड़ मच गई. सब लोग ख़ुद को युद्ध के लिये तैयार करने लगे.

जल्दी ही भगदड़ शांत हो गई. डर झूठा ही निकला. मगर फिर उसी जगह, जहाँ गोलियाँ चली थीं, लोग जमा होने लगे. भीड़ बढ़ती गई, खड़े हुए लोगों के पास नये लोग आ गये.

भीड़ धरती पर पड़े एक लहुलुहान मानवीय ठूँठ को घेर कर खड़ी थी. क्षतविक्षत आदमी अभी भी साँस ले रहा था. उसका एक दायाँ हाथ और बायाँ पैर काट दिया गया था. ये समझना अकल से परे था कि वह अभागा कैसे बचे हुए हाथ और पैर पर घिसटते हुए कैम्प तक पहुँचा था. कटे हुए हाथ और पैर के डरावने, खून से सने लोथड़े उसकी पीठ पर एक लम्बी इबारत लिखी लकड़ी की तख़्ती के साथ बंधे थे, जहाँ चुनिंदा गालियों के साथ ये भी कहा गया था कि यह फलाँ-फलाँ रेड आर्मी की टुकड़ी की वहशियत का बदला लेने के लिये किया गया है, जिससे फॉरेस्ट-ब्रदरहुड के पार्टिज़ानों का कोई संबंध नहीं था. इसके अलावा, साथ ही यह भी जोड़ा गया था कि अगर इबारत में लिखी तारीख तक पार्टिज़ान समर्पण नहीं करते और वीत्सिन की पलटन की फ़ौजों के प्रतिनिधियों के सामने हथियार नहीं डालते तो सब के साथ ऐसा ही बर्ताव किया जायेगा.

अत्यधिक खून के बहने से, टूटी-फूटी, कमज़ोर आवाज़ में और लड़खड़ाती ज़ुबान से, हर पल अपना होश खोते हुए, उस क्षत-विक्षत पीड़ित ने जनरल वीत्सिन की सेनाओं के पार्श्व भाग में कोर्ट-मार्शल और यातना-शिविरों में दी जा रही यातनाओं के बारे में बताया.

फाँसी की सज़ा जो उसे सुनाई गई थी, दया के नाम पर बदल दी गई, और उसके हाथ-पैर काट दिये गये, जिससे उसे इस विकृत रूप में पार्टिज़ानों के कैम्प में छोड़ दिया जाये और उन्हें भयभीत किया जाये. कैम्प की पहली सुरक्षा पंक्ति तक उसे हाथों में उठाकर लाया गया, और बाद में ज़मीन पर रख दिया गया और हुक्म दिया गया कि ख़ुद ही रेंगते हुए जाये, दूर से हवा में गोलियाँ चलाते हुए उसे धकेल रहे थे.

पीड़ित व्यक्ति मुश्किल से अपने होंठ हिला पा रहा था. उसकी अस्पष्ट बड़बड़ाहट को समझने के लिये कमर झुकाकर उसके सामने काफ़ी नीचे झुकना पड़ा. वह कह रहा था;

“अपनी हिफ़ाज़त करो, भाईयों. वह आपके पास काफ़ी भीतर घुस आया है.

“हमने प्रतिरोधक टुकड़ी भेजी थी. वहाँ भयानक लड़ाई हो रही है. रोक कर रखेंगे.

“तोड़ दिया है घेरे को. घुस गया भीतर. वह अकस्मात् करना चाहता है. मुझे पता है. ओय, नहीं बोल सकता, भाईयों. देखो, खून ख़त्म हो रहा है. खून थूक रहा हूँ, अभी ख़तम हो जाऊँगा.”

“मगर तू पड़ा रह, साँस ले ले. तू चुप हो जा. उसे बोलने मत दो, कमीनों. देख रहे हो, उसे तकलीफ़ हो रही है.”

“एक भी साबुत जगह जिस्म पर नहीं छोड़ी, खून का प्यासा, कुत्ता. कहता है, मेरे पास, अपने खून से नहायेगा, बता, तू कौन है. मगर मैं कैसे, भाईयों, उसे बताता, जबकि मैं ख़ुद ही सचमुच का भगोड़ा हूँ. हाँ. मैं उसीके पास से आपके यहाँ भागकर आया था.”

“त्तो, तू कह रहा है, - वह. ये उनमें से किसने तेरा ये हाल बनाया है?”

“ओय, भाईयों, मेरे भीतर आग लगी है. थोड़ा सुस्ताने दो. अब बताता हूँ. कमाण्डर बिकेशिन. कर्नल श्त्रीज़े. वीत्सिन के सैनिक. आप यहाँ जंगल में कुछ नहीं जानते. शहर कराह रहा है. ज़िंदा आदमियों से लोहा उबालते हैं. ज़िंदा आदमियों को चीरकर पट्टे बनाते हैं. गर्दन पकड़कर न जाने कहाँ ले जाते हैं, घुप अंधेरा. चारों ओर टटोलते हो – पिंजरा, रेल का डिब्बा. पिंजरे में चालीस से ज़्यादा लोग, सिर्फ निचले अंतर्वस्त्रों में. और पिंजरा खुलता है, एक बड़ा पंजा डिब्बे में घुसता है. जो भी पहले पकड़ा जाये, उसे बाहर ले जाते हैं. जैसे मुर्गियाँ हलाल करते हैं. ओय, ख़ुदा. किसी को लटकाते हैं, किसी के सीने में भाला घोंपते हैं, किसी को पूछताछ के लिये. मार-मार के बेदम कर देते हैं, घावों पर नमक छिड़कते हैं, उबलता हुआ पानी डालते हैं. अपनी ही विष्ठा खाने पर मजबूर करते हैं. और बच्चों के साथ, और औरतों के साथ, ओह, ख़ुदा!”

अभागा अंतिम साँसें गिन रहा था. वह अपनी बात पूरी नहीं कर पाया, चीख़ा और उसकी जान निकल गई. सब लोग फ़ौरन समझ गये, अपनी-अपनी टोपियाँ उतारने लगे, सलीब का निशान बनाने लगे.

शाम को इस घटना से भी ज़्यादा भयानक ख़बर कैम्प में पहुँची.

पम्फील पालिख उस भीड़ में था, जो मरने वाले के चारों ओर खड़ी थी. वह उसे देख रहा था, उसकी बात सुन रहा था, तख़्ती के ऊपर धमकियों से भरी इबारत भी पढ़ी थी.

उसकी मृत्यु होने पर उसके अपने लोगों का क्या हश्र होगा, इस हमेशा के भय ने विकराल रूप धारण कर लिया. अपनी कल्पना में उसने उन्हें धीरे धीरे सताये जाने के लिये ले जाते हुए देखा, उनके दर्द से विकृत चेहरे देखे, उनकी कराहें और मदद के लिये पुकारती हुई आवाज़ें सुनीं. भावी यातनाओं से उन्हें मुक्ति देने और अपनी यातनाओं को कम करने के लिये, उसने दुःख के आवेग में ख़ुद ही उन्हें ख़त्म कर दिया. उसने बीबी और तीनों बच्चों को उसी, उस्तरे जैसी तीक्ष्ण धार वाली कुल्हाड़ी से काट दिया, जिससे बच्चियों और प्यारे बेटे फ्लेनूश्का के लिये पेड़ से काट कर खिलौने बनाये थे.

अचरज की बात ये रही कि उसने इसके फ़ौरन बाद अपने ऊपर हाथ नहीं डाला. वह किस बारे में सोच रहा था? उसके सामने कैसा भविष्य था? क्या ख़याल थे, क्या इरादे थे? ये पूरी तरह मतिहीन, ख़त्म हो चुका अस्तित्व था.

जब तक लिबेरियस, डॉक्टर और आर्मी-कौंसिल के सदस्य इस बात पर मशविरा कर रहे थे कि उसके साथ क्या किया जाये, वह कैम्प में आज़ादी से घूमता रहा, सिर को सीने पर लटकाये, भँवों के नीचे से अपनी धुँधली-पीली आँखों से कुछ भी न देखते हुए. एक अमानवीय, अविजित पीड़ा की कुन्द, भूली-भूली मुस्कुराहट उसके चेहरे से लुप्त नहीं हुई.

किसी को भी उस पर दया नहीं आई. सब उससे दूर हट गये. उसे मार डालने की आवाज़ें उठने लगीं. उनका किसी ने समर्थन नहीं किया.

अब दुनिया में उसके पास करने के लिये कुछ भी नहीं था. सुबह वह कैम्प से ग़ायब हो गया, जैसे कोई खुजली की बीमारी से पागल कोई जानवर ख़ुद से दूर भागता है.         

 

9

शीत ऋतु कब की आ चुकी थी. कड़ाके की बर्फ पड़ रही थी. बर्फीले तूफ़ान में टूटी-फूटी आवाज़ें और आकृतियाँ बिना किसी स्पष्ट कारण के प्रकट होतीं, खड़ी रहतीं, चलती, अदृश्य हो जातीं. सूरज वो नहीं था जिसकी धरती पर सबको आदत हो गई थी, बल्कि उसके बदले कोई और चीज़, लाल गोले के रूप में जंगल में लटक रही थी. उससे तनी हुई, घनी, शहद जैसे कत्थई-पीले रंग की किरणें हौले-हौले निकल रही थीं, जैसे नींद में हो, या परीकथा में, और रास्ते में ही हवा में जम जातीं और पेड़ों पर बर्फ बन जातीं.      

गोल-गोल तलवे से मुश्किल से ज़मीन को छूते हुए और हर कदम से बर्फ की कर्कश चीख पैदा करते हुए, सभी दिशाओं में फेल्ट के जूतों में अदृष्य पैर घूम रहे थे, जबकि उनसे जुड़ी आकृतियाँ कनटोप और भेड़ की खाल के जैकेट में, आसमान में गोल-गोल घूमते सितारों जैसी, अलग से हवा में तैर रही थीं.

परिचित लोग ठहर जाते, बातचीत करने लगते. वे एक दूसरे के पास नहाने के ब्रश जैसी बर्फ में कड़ी हो गईं दाढ़ियों और मूँछों वाले लाल चेहरे लाते, जैसे हम्माम में लाल हुए हों. उनके मुँह से धुँए जैसे घनी, चिपचिपी भाप के बादल निकल रहे थे, जिनका आकार में उनकी संक्षिप्त बातचीत के गिने-चुने, बर्फीले शब्दों से कोई मुकाबला नहीं था.  

पगडंडी पर लिबेरियस डॉक्टर से टकरा गया.                                         

ओह, ये आप हैं? कितने दिन हो गये! शाम को मेरे ट्रेंच में आईये. रात वहीं बिताईये. गुज़रे ज़माने की धूल झाड़ेंगे, बातें करेंगे. जानकारी है.”

क्या सन्देशवाहक वापस आ गया? वरिकीना के बारे में कोई ख़बर है?”

“आपके और मेरे लोगों के बारे में रिपोर्ट में कुछ भी नहीं है. मगर इससे मैं दिल को सुकून देने वाले नतीजे निकालता हूँ. मतलब, वे समय रहते बच गये. वर्ना उनके बारे में कोई ज़िक्र ज़रूर होता. ख़ैर, इस सबके बारे में मिलने पर बताऊँगा. तो, आपका इंतज़ार करूँगा.”

ट्रेंच में डॉक्टर ने अपना सवाल दुहराया:

सिर्फ इतना बताईये कि आप हमारे परिवारों के बारे में क्या जानते हैं?”

“फिर से आप अपनी नाक से आगे देखना ही नहीं चाहते. हमारे परिवार, ज़ाहिर है, ज़िंदा हैं, ख़तरे से बाहर हैं. मगर बात उनके बारे में नहीं है. शानदार ख़बर है. गोश्त खायेंगे? बछड़े का ठण्डा गोश्त.”

“नहीं, धन्यवाद. बात न टालिये. काम की बात पर आईये.”

बेकार में ही. मगर मैं तो खाऊँगा. कैम्प में स्कर्वीकी बीमारी फैल रही है. लोग भूल गये हैं कि ब्रेड क्या होती है, हरी सब्ज़ियाँ क्या होती हैं. पतझड़ में ही सुनियोजित तरीके से अखरोट और बेरीज़ इकट्टा कर लेना चाहिये था, जब तक भगोड़े यहाँ थे. मैं कह रहा हूँ, हम बेहद शानदार स्थिति में हैं. वो, जिसके बारे में मैं हमेशा कहता था, हो गया है. हिमशिला टूट गई है. कल्चाक सभी मोर्चों पर पीछे हट रहा है. ये पूरी, सहज गति से विकसित हो रही हार है. देख रहे हैं? मैंने क्या कहा था? और आप कराह रहे थे.”

“ये मैं कब कराह रहा था?”

“हमेशा. ख़ास कर तब, जब वीत्सिन ने हमारे चारों ओर घेरा कस दिया था.”

डॉक्टर को अभी हाल ही की गुज़री हुई पतझड़ की, विद्रोहियों को गोली से उड़ाने की, पालिख द्वारा की गई बच्चों और बीबी की हत्या की, खून ख़राबे और नरसंहार की याद आई, जिसका कोई अंत ही नज़र आ रहा था. क्रूरता में श्वेत गार्ड्स और रेड आर्मी के अत्याचार मानो एक दूसरे से होड़ लगा रहे थे, एक के जवाब में दूसरे की क्रूरता जैसे कई गुना बढ़ती जा रही थी. खून देखकर मतली आती थी, वह गले तक आता और सिर की ओर उछल जाता, वह आँखों में तैरने लगता. ये कराहना नहीं था, ये बिल्कुल ही दूसरी बात थी. मगर लिबेरियस को ये कैसे समझाए?

ट्रेंच में मीठे धुँए की गंध थी. वह तालू पर बैठ रहा था, नाक और गले में गुदगुदी कर रहा था. ट्रेंच में कागज़ जैसी महीन लकड़ी की छिपटियों से हल्का सा उजाला हो रहा था जो एक लोहे की छोटी सी अँगूठीनुमा तिपाही पर जल रही थीं. जब एक छिपटी जल जाती, तो उसका जल चुका सिरा नीचे रखे पानी के तसले में गिर जाता, और लिबेरियस अँगूठी पर दूसरी जलती हुई छिपटी रख देता.

“देख रहे हैं मैं क्या जला रहा हूँ. तेल ख़तम हो गया है. लकड़ी बेहद सूख गई है. जल्दी जल जाती है. हाँ, कैम्प में स्कर्वीफैल रही है. आप पक्का इनकार कर रहे हैं बछड़े के गोश्त से? स्कर्वी. आप क्या देख रहे हैं, डॉक्टर? आप स्टाफ़ को इकट्ठा करके परिस्थिति पर प्रकाश क्यों नहीं डालते, अफ़सरों को स्कर्वी और उससे लड़ने के उपायों के बारे में भाषण दे सकते हैं.

“बेज़ार मत कीजिये, ख़ुदा के लिये. आपको हमारे संबंधियों के बारे में सही-सही क्या पता है?”

“मैं आपसे पहले ही कह चुका हूँ कि उनके बारे में कोई ठोस जानकारी मेरे पास नहीं है. मगर मैंने आपको पूरी बात नहीं बताई, जो मिलिट्री की हाल ही की सामान्य रिपोर्ट्स में है. गृह युद्ध समाप्त हो गया है. कल्चाक को करारी मात दी गई है. रेड-आर्मी पूर्व में रेल्वे-मार्ग पर उसका पीछा कर रही है, जिससे उसे समुंदर में फेंक दे. रेड आर्मी का दूसरा भाग हमसे मिलने के लिये आ रहा है, ताकि सम्मिलित शक्ति से उसकी अनेक बिखरी हुई पार्श्व सेनाओं को नष्ट कर सकें. रूस का दक्षिणी भाग साफ़ कर दिया गया है. आप ख़ुश क्यों नहीं हो रहे हैं? क्या इतना आपके लिये कम है?”

“ये सच नहीं है. मैं ख़ुश हूँ. मगर हमारे परिवार कहाँ हैं?”

“वरिकीना में वे नहीं हैं, और ये ख़ुशी की बात है. हालाँकि कामेन्नाद्वोर्स्की की गर्मियों वाली कहानियों की, जैसा मैंने कहा था, पुष्टि नहीं हो सकी, - याद है, वे बेवकूफ़ी भरी अफ़वाहें कि किन्हीं रहस्यमय लोगों ने वरिकीना पर हमला कर दिया था? – मगर वह बस्ती पूरी तरह वीरान हो गई है. वहाँ, लगता है, कुछ तो हुआ था, और ये बहुत अच्छी बात रही कि दोनों परिवार समय रहते वहाँ से निकल गये थे. विश्वास करेंगे कि वे बच गये हैं. ऐसा, मेरे जासूसों के अनुसार, कुछ बचे-खुचे लोगों का अनुमान है.”

“और युर्यातिन? वहाँ क्या है? वह किसके हाथों में है?”

“वहाँ भी कुछ अस्पष्ट सी बात है. ज़रूर कोई गलती हुई है.”

“मतलब?”

“जैसे वहाँ अभी तक श्वेत गार्ड्स हैं. ये बेशक बकवास है, बिल्कुल असंभव. अभी मैं प्रत्यक्ष रूप से आपके सामने प्रमाणित करूँगा.”

लिबेरियस ने नई छिपटी जलाकर होल्डर में रखी और मुड़े-तुड़े नक्शे को इस तरह फैलाया कि आवश्यक स्थान ऊपर नज़र आयें और अनावश्यक जगहों को भीतर की ओर मोड़कर हाथ में पेन्सिल लेकर समझाना शुरू किया.

“देखिये. इन सब भागों में श्वेत गार्ड्स को पीछे खदेड़ दिया गया है. ये यहाँ, यहाँ और यहाँ, पूरे क्षेत्र में. आप ध्यान से देख रहे हैं?”

“हाँ.”

“वे युर्यातिन की दिशा में नहीं हो सकते. वर्ना, संचार व्यवस्था काट दिये जाने के कारण वे बिल्कुल बोरे में बंद हो जाते. यह संभव नहीं है कि उनके जनरल इस बात को न समझें, चाहे वे कितने ही निकम्मे क्यों न हों. आपने ओवरकोट पहन लिया? कहाँ जा रहे हैं?”

“माफ़ कीजिये, मैं एक मिनट के लिये. फ़ौरन वापस लौट आऊँगा. यहाँ तम्बाकू और छिपटी का धुँआ भर गया है. मेरी तबियत बिगड़ रही है. मैं कुछ देर हवा में साँस लूँगा.”

ट्रेंच में से ऊपर आकर, डॉक्टर ने आस्तीन से लकड़ी के एक मोटे चौकोर से बर्फ हटाई, जो प्रवेश द्वार के पास बैठने के लिये रखा हुआ था. वह उसके ऊपर बैठ गया, कोहनियों के बल झुका और दोनों हाथों में चेहरा दबाये सोच में पड़ गया. शीत ऋतु का तायगा, जंगल का कैम्प, पार्टिज़ानों के साथ बिताये अठारह महीने, जैसे ये सब कुछ था ही नहीं. वह उनके बारे में भूल गया. उसकी कल्पना में सिर्फ उसके अपने लोग ही थे. वह उनके बारे में एक से बढ़कर एक भयानक पहेलियाँ बनाने लगा.

ये तोन्या हाथों में शूरच्का को उठाये तूफ़ान में खेत से जा रही है. वह कम्बल से उसे ढाँकती है, उसके पैर बर्फ में धँस जाते हैं, वह मुश्किल से उन्हें बाहर खींचती है, मगर बर्फीला तूफ़ान उस पर प्रहार कर रहा है, हवा उसे ज़मीन पर गिरा रही है, कमज़ोर, मुड़ रहे पैरों पर खड़े रहने में असमर्थ वह गिरती है और फिर उठती है.  ओह, वह हर बार भूल जाता है, भूल जाता है. उसके दो बच्चे हैं, और छोटे वाले को वह दूध पिलाती है. उसके दोनों हाथ व्यस्त हैं, जैसे चीलिम्का की भगोड़ी औरतों के, जो दुख और बढ़ते हुए तनाव के कारण सारासर विचार करने की शक्ति खो चुकी थीं. उसके दोनों हाथ व्यस्त हैं और आसपास कोई नहीं है, जो मदद कर सके. शूरच्का के पापा न जाने कहाँ हैं. वह कहीं दूर हैं, हमेशा दूर, पूरी ज़िंदगी उनसे एक किनारे ही रहे, और क्या ये पापा हैं, क्या सचमुच के पापा ऐसे होते हैं? और उसके अपने पापा कहाँ हैं? अलेक्सान्द्र अलेक्सान्द्रविच कहाँ हैं? न्यूशा कहाँ है? बाकी के लोग कहाँ हैं? ओह, अपने आप से ये सवाल न पूछना बेहतर होगा, कुछ भी न सोचना ज़्यादा अच्छा होगा, बेहतर होगा ख़यालों में न डूबना.

ट्रेंच में वापस जाने के इरादे से डॉक्टर लकड़ी के चौकोर से उठ गया. अचानक उसके विचारों ने नई दिशा ले ली. उसने नीचे, लिबेरियस के पास जाने का इरादा बदल दिया.

स्की, टोस्ट से भरी थैली और सभी सामान जो भागने के लिये आवश्यक था उसके पास कब से तैयार था, जिसे उसने कैम्प के संतरी की पोस्ट से आगे, बड़े चीड़ के पेड़ के नीचे बर्फ में गाड़ दिया था, जिस पर उसने खास तरह से खुरच कर निशान बना दिया था. वहीं, बर्फ के टीलों के बीच पगडंडी से होते हुए वह चल पड़ा. रात साफ़ थी. पूरा चाँद चमक रहा था. डॉक्टर को मालूम था कि रात वाले पहरेदार कहाँ थे, और वह आसानी से उन्हें चकमा देकर चला गया. मगर बर्फ से लदी लाल रसभरी के पास वाले मैदान से संतरी ने दूर से ही उसे आवाज़ दी और, अपनी स्की को तेज़-तेज़ भगाते हुए, फिसलकर उसके पास आ गया.

“रुक जाओ! गोली मार दूँगा! कौन हो? पासवर्ड बताओ.”

क्या, तू भाई, पगला गया क्या? अपना ही हूँ. या नहीं पहचाना? डॉक्टर आपका, झिवागो.”

“माफ़ी चाहता हूँ. गुस्सा मत करो, कॉम्रेड झेल्वाक. पहचाना नहीं. मगर तुम अगर डॉक्टर भी हो तो भी आगे नहीं जाने दूँगा. हर चीज़ कानून के मुताबिक होना चाहिये.”

“ठीक है, सुन. पासवर्ड है रेड साइबेरिया. जवाब – घुसपैठिये, हाय! हाय!”

“ये अलग बात है. जाओ, जहाँ चाहो. किस शैतान की ख़ातिर रात को भटक रहे हो? मरीज़ हैं?”

“नींद नहीं आ रही है और प्यास के मारे गला सूख रहा है. सोचा, थोड़ा आगे जाऊँगा, थोड़ी बर्फ खा लूँगा. बर्फीली बेरियों से लदी लाल रसभरी को देखा, उसके पास जाना चाहता हूँ, कुछ बेरियाँ चबाऊँगा.”

“ये है, बेवकूफ़ कुलीन, सर्दियों में बेरियों के लिये जा रहा है. तीन सालों से पीट रहे हैं, पीट रहे हैं, मगर नहीं ख़त्म कर पाये. शरम नाम की चीज़ ही नहीं है. जा अपनी रसभरी के पास, पागल है. मुझे क्यों दया आ रही है?”

और उसी तरह जल्दी-जल्दी अपनी स्की भगाते हुए संतरी तेज़ी से भागा, लम्बी, सनसनाती स्की पर खड़े-खड़े, संतरी एक ओर को हटा और बर्फ पर आगे-आगे जाने लगा पतली, विरले बालों जैसी, नंगी, सर्दियों वाली झाड़ियों के पीछे. और पगड‌डी, जिस पर डॉक्टर चल रहा था, उसे लाल रसभरी की ओर ले चली, जिसका अभी-अभी उल्लेख किया गया था.

वह आधी बर्फ में ढंकी थी, आधी जमे हुए पत्तों और बेरियों में, और उसके स्वागत के लिये दो बर्फीली टहनियाँ आगे की ओर फैला रही थी. उसे लारा की बड़ी, सफ़ेद बाँहों की याद आई, गोलाकार, माँसल और, टहनियों को पकड़कर, उसने पेड़ को अपनी ओर खींचा. जैसे जवाब में उस पर सिर से पाँव तक बर्फ से ढाँक दिया. ये न समझते हुए कि क्या कह रहा है, वह अपने आप से ही अनजाने में बड़बड़ाया:

मैं तुमसे मिलूँगा, मेरी मेहबूबा, मेरी लाल-रसभरी रानी, मेरी अपनी.”

रात साफ़ थी. चाँद चमक रहा था. वह तायगा में आगे बढ़ा, उस संकेत स्थल की ओर, अपनी चीज़ें बर्फ से बाहर निकालीं और कैम्प से निकल गया.                       

      

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अध्याय – 13

मूर्तियों वाले घर के सामने

1

बल्शाया कुपेचेस्काया स्ट्रीट तिरछी पहाड़ी से मालाया स्पास्काया और नवास्वालच्नी गली की ओर आ रही थी. शहर के ज़्यादा ऊँचे भागों के घर और चर्च उसकी ओर देख रहे थे.

नुक्कड़ पर गहरा-भूरा मूर्तियों वाला घर था. उसकी झुकी हुई नींव के विशाल चौकोर पत्थरों पर नज़र आ रहे थे चिपकाए गये सरकारी अख़बारों के ताज़े अंक, सरकारी आदेश और घोषणाएँ. फुटपाथ पर काफ़ी देर खड़े रहकर आने-जाने वालों के छोटे-छोटे झुण्ड ये सारा साहित्य चुपचाप पढ़ रहे थे.

हाल ही की पिघलन के बाद मौसम सूखा था. बर्फ गिर रही थी. बर्फ काफ़ी कड़ी हो रही थी. दिन के उस समय बिल्कुल उजाला था, जब कुछ ही दिन पहले अँधेरा होने लगता था. सर्दियाँ हाल ही में गुज़री थीं. प्रकाश मुक्त हो चुकी जगह के खालीपन को भर रहा था, वह जाने का नाम ही नहीं ले रहा था और शामों को रेंगता रहता था. वह परेशान कर रहा था, दूर बुला रहा था, डरा रहा था और सतर्क कर रहा था.

कुछ ही दिन पहले शहर को रेड आर्मी के हवाले करके श्वेत गार्ड्स जा चुके थे. गोलीबारी, खून की नदियाँ, युद्ध की उत्तेजना ख़त्म हो चुकी थी. सर्दियों के जाने और बसन्त के बढ़ते दिन की ही तरह ये भी डरा रहा था और सतर्क कर रहा था.

घोषणाओं में, जिन्हें लम्बे होते दिन की रोशनी में रास्ते पर आने जाने वाले पढ़ रहे थे, कहा गया था:  

“जनता की सूचना हेतु. अमीर लोगों के लिये “वर्क बुक्स” 50 रूबल्स प्रति “वर्क बुक” की दर से युर्यातिन सिटी कौन्सिल के खाद्य-विभाग, अक्त्याब्रस्काया, भूतपूर्व गवर्नर-जनरल स्ट्रीट, 5, कमरा नं. 137 में उपलब्ध हैं.

वर्क-बुक न होने, या गलत, और ऊपर से झूठी जानकारी देने की दशा में युद्ध काल के कठोर नियमों के अनुसार सज़ा दी जायेगी. वर्क-बुक्स के प्रयोग के सही निर्देश चालू वर्ष के युर्यातिन एक्ज़ीक्यूटिव कमिटी के गैज़ेट  क्र. 86 (1013) में उपलब्ध हैं और इसे युर्यातिन सिटी सोवियत के किराना विभाग, कमरा नं. 137 में प्रदर्शित किया गया है.”

दूसरी घोषणा में शहर में पर्याप्त मात्रा में खाद्य-सामग्री का भण्डार होने के बारे में सूचित किया गया था, जिन्हें, मानो बुर्झुआ लोग सिर्फ छुपाकर रखते हैं, जिससे उसके वितरण में गड़बड़ी हो और खाद्य संबंधित मामलों में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो. सूचना इन शब्दों से समाप्त हुई थी:

“खाद्य-सामग्री का संचय करने और उन्हें छुपाने के दोषियों को तुरंत गोली मार दी जायेगी”.   

तीसरी घोषणा में सुझाव दिया गया था:

“खाद्य-व्यवसाय के मामले को सही तरह से चलाने के लिये ऐसे लोग जिनका शोषक तत्त्वों से संबंध नहीं है उपभोक्ता कम्यून में शामिल हो रहे हैं. विवरण के लिये खाद्य-विभाग युर्यातिन सिटी कौन्सिल, अक्त्याब्रस्काया, भूतपूर्व गवर्नर जनरल स्ट्रीट, 5, कमरा नं. 137 में सम्पर्क करें”.

फौजियों को चेतावनी दी गई थी:

“हथियार समर्पित न करने वाले या नये परमिट के बिना हथियार रखने वालों को कठोर कानून के अनुसार सज़ा दी जायेगी. परमिट का विनिमय युर्यातिन क्रांतिकारी कमिटी, अक्त्याब्रस्काया, 6, कमरा नं. 63 में किया जा सकता है.”

 

2

पढ़ने वालों के झुण्ड की ओर एक दुबला-पतला, जंगली जैसा दिखने वाला आदमी आया, जो कई दिनों से नहीं नहाने के कारण साँवला नज़र आ रहा था, उसके कंधों पर सैनिक का बस्ता और हाथ में लाठी थी. बेतहाशा बढ़ गये उसके बालों में अभी तक सफ़ेदी नहीं थी, मगर काली-भूरी दाढ़ी, जिसे उसने बढ़ाया था, सफ़ेद होने लगी थी.   

ये डॉक्टर यूरी अन्द्रेयेविच झिवागो था. ओवरकोट, शायद रास्ते में बहुत पहले किसी ने खींच लिया था, या उसके बदले उसने खाना लिया था. वह किसी और की छोटी आस्तीनों वाली उतरन पहने था, जो उसे गर्मी नहीं दे रही थी.

उसके बैग में एक छोटा सा डबल रोटी का टुकड़ा था, जो उसे पिछले गाँव में दिया गया था, हैम का टुकड़ा भी था. करीब एक घण्टा पहले वह रेल्वे लाईन की दिशा से आया था, और पिछले कुछ दिनों से चलते रहने के कारण वह इतना थक गया था और कमज़ोर हो गया था कि उसे शहर के गेट से इस चौराहे तक पहुँचने में एक घण्टा लग गया. वह अक्सर रुक जाता और मुश्किल से अपने आप को संभाल रहा था ताकि ज़मीन पर गिर कर शहर के पत्थरों को न चूमने लगे, जिसे फिर कभी देखने की उम्मीद उसे नहीं थी, और जिसे देखते ही वह इतना ख़ुश हो गया था, जैसे वह कोई जीवित व्यक्ति हो.

काफ़ी लम्बे समय तक, अपनी पैदल यात्रा का आधा हिस्सा उसने रेल की पटरियों के किनारे-किनारे चल कर पार किया. वे पूरी तरह उपेक्षित थीं और उन पर कोई आवागमन नहीं था, और पूरी तरह बर्फ में धँसी हुई थीं. उसका रास्ता श्वेत गार्ड्स की सभी रेलगाड़ियों, यात्री और मालगाड़ियों के पास से गुज़रता था, जो बर्फीले तूफ़ानों, कल्चाक की पूरी पराजय और ईंधन समाप्त हो जाने के कारण रुकी हुई थीं. ये, पटरियों पर ठहरी हुई, हमेशा के लिये रुक गईं और बर्फ में दबी हुई रेलगाड़ियाँ दर्जनों मीलों तक किसी साबुत फीते की तरह फ़ैली थीं. वे राजमार्गों पर लूटने वाले हथियारबंद डाकुओं के गैंग के लिये किसी किले का काम दे रही थीं, छुपे हुए अपराधियों और राजनीतिक भगोड़ों के लिए, तत्कालीन अनचाहे आवारा लोगों के लिये शरण स्थल का, मगर सबसे ज़्यादा वे बर्फ से और टायफ़स से मर गये लोगों की कब्रों और कब्रिस्तानों की तरह थीं, जो रेल्वे लाईन के निकट वाले और आसपास के भाग में तांडव मचा रहा था और पूरे पूरे गाँवों का ख़ात्मा कर रहा था.   

इस समय वह प्राचीन कहावत सही साबित हो रही थी कि इन्सान ही इन्सान के लिये भेड़िया है. एक मुसाफ़िर दूसरे मुसाफ़िर को देखते ही एक ओर को मुड़ जाता था, एक आदमी दूसरे से मिलने पर उसे मार डालता था, ताकि ख़ुद न मारा जाये. लोगों को खाने की इक्का-दुक्का घटनायें भी हुई थीं. सभ्यता के इन्सानियत के नियम ख़त्म हो गये थे. जंगली कानूनों का राज था. इन्सान को गुहा मानवों वाली सदी के प्रागैतिहासिक युग के सपने आते.                        

इक्का-दुक्का परछाईयाँ, जो कभी-कभार किनारों पर दुबक जातीं, उससे काफ़ी आगे डरते-डरते पगडंडी पार करतीं और जिनसे यूरी अन्द्रेयेविच, जब संभव होता, कोशिश करके बच निकलता, अक्सर उसे जानी-पहचानी, कहीं देखी हुई सी लगतीं. उसे ऐसा लगा कि वे सब पार्टिज़ानों के कैम्प से हैं. ज़्यादातर यह अनुमान गलत निकलता, मगर एक बार उसकी आँख ने धोखा नहीं दिया. एक किशोर, जो रेलगाड़ी के इंटरनेशनल स्लीपर-कोच को छुपा रहे बर्फ के पहाड़ से रेंगते हुए बाहर आया, और अपना काम पूरा करके लपक कर वापस बर्फ के टीले के पीछे छुप गया, वाकई में फॉरेस्ट-ब्रदर्स में से ही एक था. यह तिरेन्ती गालुज़िन था, जिसे प्रत्यक्ष रूप से गोली मार दी गई थी. वह मरा नहीं था, बल्कि बड़ी देर तक गहरी बेहोशी में पड़ा रहा, होश में आ गया, रेंगते हुए मृत्युदंड की जगह से दूर चला गया, जंगलों में छुपता रहा, उसके ज़ख़्म ठीक हो गये और अब वह गुप्त रूप से किसी और नाम से क्रेस्तावज़्द्वीझेन्स्क में अपने घर जा रहा था, रास्ते में लोगों से बचने के लिये बर्फ से ढंकी रेलगाड़ियों में अपने आप को छुपा रहा था.                                 

ये सारी तस्वीरें और दृश्य कुछ अलौकिक-सा, भावातीत-सा प्रभाव डाल रहे थे. वे किन्हीं अज्ञात, अन्य ग्रहों के अस्तित्वों के अंश प्रतीत हो रहे थे जो गलती से धरती पर लाये गये थे. सिर्फ प्रकृति ही  इतिहास के प्रति ईमानदार रही थी और नज़र को ऐसी प्रतीत हो रही थी, जैसी उसे अत्याधुनिक चित्रकार चित्रित करते हैं.    

सर्दियों की शांत शामें थीं, हल्की धूसर, गहरी गुलाबी. उजली शाम की पृष्ठभूमि पर बर्च वृक्षों के पतले, काले शिखर लिखाई की तरह प्रतीत हो रहे थे. बर्फ के सफ़ेद ढेरों के किनारों के बीच, जो नीचे से नदी के काले पानी से भीगे हुए थे, हल्की सी बर्फ की सतह की धूसर धुँध के नीचे से काली धाराएँ बह रही थीं. और ये ऐसी शाम, बर्फीली, पारदर्शी भूरी, संवेदनशील, जैसे विलो वृक्ष की फूली-फूली फुनगियाँ हों, घण्टे-दो घण्टे में युर्यातिन में मूर्तियों वाले घर के सामने पहुँचने का वादा कर रही थी.   

डॉक्टर उस घर की पत्थरों की दीवार पर लगे सेंटृल प्रिंटिंग प्रेस के नोटिस बोर्ड की ओर जा ही रहा था, जिससे सरकारी सूचनाएँ पढ़ सके. मगर उसकी नज़र हर पल विपरीत दिशा में, ऊपर की ओर, सामने वाले घर की दूसरी मंज़िल की कुछ खिड़कियों पर ही पड़ रही थी. बाहर सड़क पर खुलती इन खिड़कियों पर कभी सफ़ेदी की गई थी. उनके पीछे स्थित दो कमरों में मालिकों का फर्नीचर रखा गया था. हालाँकि बर्फ ने खिड़कियों के निचले हिस्से को पतली, खुरदुरी पर्त से ढाँक दिया था, फिर भी दिखाई दे रहा था कि अब खिड़कियाँ पारदर्शी हैं, और उनकी सफ़ेदी धुल चुकी है. इस परिवर्तन का क्या मतलब है? क्या मालिक वापस लौट आये हैं? या लारा जा चुकी है, क्वार्टर में नये किरायेदार हैं, और अब वहाँ हर चीज़ बदल गई है?       

अनिश्चितता डॉक्टर को परेशान कर रही थी. वह परेशानी पर काबू नहीं रख पाया. उसने रास्ता पार किया, दर्शनीय प्रवेश द्वार से भीतर ड्योढ़ी में आया और परिचित और उसके दिल को इतनी प्यारी दर्शनीय सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने लगा. जंगल के कैम्प में जालीदार डिज़ाइन की ढलवाँ लोहे की इन सीढ़ियों के एक-एक मोड़ को वह अक्सर कितना याद करता था. किसी एक मोड़ पर, पैरों के नीचे वाली जाली से देखने पर नीचे, सीढ़ी के नीचे पड़ी हुईं छोटी-छोटी बाल्टियाँ, टब और टूटी हुई कुर्सियाँ दिखाई देती थीं. ऐसा ही अभी भी हुआ. कुछ भी नहीं बदला था, सब कुछ पहले जैसा ही था. विगत के प्रति वफ़ादार रहने के लिये डॉक्टर सीढ़ी का शुक्रगुज़ार था.               

कभी दरवाज़े में कॉल-बेल हुआ करती थी. मगर वह पुराने ज़माने में ही, डॉक्टर की जंगल वाली कैद से पहले ही बिगड़ गई थी और काम नहीं कर रही थी. उसने दरवाज़ा खटखटाना चाहा, मगर देखा कि वह नई तरह से बंद किया गया है, जंज़ीर में फँसे हुए भारी ताले से, जो फूहड़ तरीके से अभी तक अच्छे मगर कहीं कहीं घिस गये पुराने शाहबलूत के दरवाज़े में फिट की गई थीं. पहले ऐसे फूहड़पन की इजाज़त नहीं थी. दरवाज़े में फिट तालों का इस्तेमाल होता था जो अच्छी तरह बंद होते थे, और अगर वे बिगड़ भी जाते, तो उन्हें दुरुस्त करने के लिये बढ़ई थे. यह मामूली सी बात अपनी तरह से तेज़ी से बदतर होते आम हालात के बारे में बता रही थी.      

डॉक्टर को यकीन था कि लारा और कातेन्का घर में नहीं हैं, और हो सकता है कि युर्यातिन में भी नहीं हैं, और ये भी हो सकता है कि वे दुनिया में ही न हों. वह सबसे ज़्यादा ख़तरनाक निराशाओं के लिये तैयार था. सिर्फ अपनी अंतरात्मा को तसल्ली देने के लिये उसने छेद में हाथ डालकर टटोलने का निश्चय किया, जिससे वह और कातेन्का इतने डरते थे, और उसने पैर से ज़मीन पर दस्तक दी, जिससे कि छेद में चूहे पर हाथ न पड़ जाये. उसे नियत स्थान पर किसी चीज़ को पाने की उम्मीद नहीं थी. छेद को ईंट से बंद किया गया था. यूरी अन्द्रेयेविच ने ईंट को बाहर निकाला और गहराई में हाथ घुसाया. ओह, चमत्कार! चाभी और एक चिट्ठी. चिट्ठी काफ़ी लम्बी थी, बड़े कागज़ पर लिखी गई थी. डॉक्टर सीढ़ियों की लैण्डिंग वाली खिड़की के पास गया. और भी बड़ा आश्चर्य, और भी ज़्यादा अविश्वसनीय बात! चिट्ठी उसे लिखी गई थी! उसने जल्दी से पढ़ा:

“आह, ख़ुदा! कैसी ख़ुशकिस्मती है! कहते हैं कि तुम ज़िंदा हो और मिल गये हो. लोगों ने तुम्हें आसपास ही देखा, वे भाग कर आये और मुझे बताया. ये मानकर कि सबसे पहले तुम वरिकीना जाओगे, मैं ख़ुद ही कात्या के साथ वहाँ जा रही हूँ. वैसे, ज़रूरत पड़े, तो चाभी हमेशा वाली जगह पर है. मेरे वापस लौटने का इंतज़ार करना, कहीं भी मत जाना. हाँ, तुम यह बात नहीं जानते, मैं अब क्वार्टर के सामने वाले हिस्से में हूँ, सड़क की ओर खुलते हुए कमरों में. वैसे, ख़ुद ही अंदाज़ लगा सकते हो. घर में खूब जगह है, खाली जगह है, मालिकों के फर्नीचर का कुछ हिस्सा बेचना पड़ा. थोड़ा सा खाना रखकर जा रही हूँ, ख़ास तौर से उबला हुआ आलू. बर्तन के ढक्कन पर इस्त्री या कोई भारी चीज़ रख देना, जैसे मैंने किया है, चूहों से बचाने के लिये. ख़ुशी से पागल हो रही हूँ.”

यहाँ चिट्ठी का सामने वाला हिस्सा ख़तम हो रहा था. डॉक्टर ने ध्यान नहीं दिया कि कागज़ के दूसरी ओर भी कुछ लिखा है. वह हथेली पर रखे कागज़ को होठों तक लाया, और फिर, बिना देखे, उसे मोड़कर चाभी के साथ जेब में रख दिया. उसकी पागल ख़ुशी में एक डरावना, आहत करता हुआ दर्द भी शामिल था. अगर वह बेझिझक, बिना किसी पूर्वाग्रह के वरिकीना गई है, तो इसका मतलब यह हुआ कि उसका परिवार वहाँ नहीं है. इस विवरण से उसके दिल में चिंता के अलावा, अपने परिवार के लिये असहनीय दर्द और दुख का भी अनुभव हुआ.

उसने उनके बारे में एक भी शब्द क्यों नहीं कहा और यह भी नहीं बताया कि वे कहाँ हैं, मानो उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है.

मगर यह सोचने का समय नहीं था. रास्ते पर अँधेरा होने लगा था. उजाले के रहते काफ़ी सारे काम निपटाने थे. रास्ते पर यहाँ वहाँ लगे सरकारी आदेशों से परिचित होने की चिंता भी कम नहीं थी. समय गंभीर था. किसी अनिवार्य आदेश के उल्लंघन की कीमत जान देकर चुकानी पड़ सकती थी. और क्वार्टर बिना खोले और खस्ताहाल कंधे से थैला हटाये बिना, वह नीचे रास्ते पर आ गया और दीवार के पास आया, जिसके अधिकांश भाग पर विभिन्न प्रकार की छपी हुई सामग्री चिपकाई गई थीं.

 

3

इस छपी हुई सामग्री में अख़बारों के लेख थे, मीटिंग्स में दिये गये भाषणों का ब्यौरा था और सरकारी आदेश थे. यूरी अन्द्रेयेविच ने सरसरी नज़र से शीर्षक देखे. “संपत्ति धारकों की मांगों और कर संबंधी नियमों के बारे में. मज़दूरों के नियंत्रण के बारे में. फैक्ट्रियो और कारखानों की समितियों के बारे में”. ये निर्देश थे शहर में आई नई सरकार के, जो पुराने निर्देशों को हटाकर लगाये गये थे. वह अपनी मज़बूत नींव की याद दिला रही थी जिन्हें शायद श्वेत गार्डों के अस्थायी शासन के दौरान निवासियों ने भुला दिया था. मगर इन एक जैसे लेखों की अंतहीनता से यूरी अन्द्रेयेविच का सिर चकराने लगा. ये शीर्षक किन सालों के थे? पहले तख़्तापलट के, या उसके बाद के काल के, श्वेत गार्डों के कुछेक विद्रोहों के बाद के कालखण्ड के? ये कैसे शीर्षक हैं? पिछले साल के? पिछले से पिछले साल के? ज़िंदगी में एक बार वह इस भाषा की शुद्धता और विचारों की स्पष्टता से ख़ुश हुआ था. कहीं इस असावधानीवश हुई इस ख़ुशी की कीमत उसे यूँ तो नहीं चुकानी पड़ेगी कि ज़िंदगी में आगे कभी कुछ भी न देखे, सिवाय इन कई सालों से न बदली गईं शरारती चीखों और माँगों के, जो आने वाले समय में अधिकाधिक कालातीत, समझ में न आने वाली और अव्यावहारिक होती जायेंगी? कहीं एक मिनट की अत्यधिक सहानुभूति से उसने अपने आप को हमेशा के लिये ग़ुलाम तो नहीं बना लिया?

कहीं से किसी फटी हुई रिपोर्ट के टुकड़े पर उसकी नज़र पड़ी. उसने पढ़ा:

अकाल के बारे में जानकारी स्थानीय संगठनों की अविश्वसनीय निष्क्रियता को दर्शाती हैं. तथ्यों का दुरुपयोग स्पष्ट है, सट्टेबाज़ी भयानक है, मगर स्थानीय व्यावसायिक संगठनों के ब्यूरो ने क्या किया है, शहर की सीमावर्ती फैकट्रियों और कारखानों की समितियों ने क्या किया है? जब तक हम व्यापक स्तर पर , युर्यातिन- राज़्वील्ये और राज़वील्ये-रिबाल्का लाईन पर युर्यातिन-माल स्टेशन के गोदामों की तलाशी नहीं लेते, जब तक हम डराने-धमकाने के कड़े उपाय नहीं अपनाते, सट्टेबाज़ों को देखते ही गोली मारने के आदेश नहीं देते, अकाल से बचाव नहीं हो सकता”.

“कैसी लुभावनी चमक है!” डॉक्टर सोच रहा था. किस ब्रेड की बात हो रही है, जब प्रकृति में उसका कब से अता-पता ही नहीं है? कैसे संभ्रांत वर्ग की, कैसे सट्टेबाज़ों की, जब पिछले आदेशों के अनुसार उनका बहुत पहले ही सफ़ाया कर दिया गया है? कहाँ के किसान, कैसे गाँव, जब उनका अब अस्तित्व ही नहीं है? अपनी ही योजनाओं और उपायों का कैसा विस्मरण, जिन्होंने ज़िंदगी में कब का पत्थर पे पत्थर नहीं छोड़ा! अस्तित्वहीन, कब के समाप्त हो चुके विषयों पर साल-दर-साल ऐसे गरमागरम, जोशीले प्रलाप करने के लिये, कुछ भी न जानने के लिये, चारों ओर कुछ भी न देखने के लिये इन्सान को क्या होना चाहिये!”

डॉक्टर का सिर चकराने लगा. उसकी संवेदना खो गई और वह बेहोश होकर फुटपाथ पर गिर गया. जब उसे होश आया और लोगों ने उसे उठाने में मदद की, जहाँ वह चाहे, वहाँ ले जाने की पेशकश की. उसने धन्यवाद दिया और यह कहकर मदद से इनकार कर दिया कि उसे सिर्फ रास्ता पार करके सामने ही जाना है.

 

4

वह एक बार फिर ऊपर गया और लारा के क्वार्टर का दरवाज़ा खोलने लगा. सीढ़ी की लैण्डिंग पर अभी भी खूब उजाला था, जब वह पहली बार ऊपर चढ़ा था, उसके मुकाबले बिल्कुल भी ज़्यादा अँधेरा नहीं था. उसने आभारयुक्त प्रसन्नता से ग़ौर किया कि सूरज जल्दी नहीं मचा रहा है.

खुलते हुए दरवाज़े की खट् से भीतर भगदड़ मच गई. लोगों की अनुपस्थिति में खाली जगह ने गिरते हुए टीन के डिब्बों की झंकार और खड़खड़ाहट से उसका स्वागत किया. चूहे धम् से फर्श पर गिर पड़े और सभी दिशाओं में भागने लगे. इन घिनौने प्राणियों के सामने डॉक्टर को असहायता का एहसास हुआ, जिनकी संख्या शायद हज़ारों में हो गई थी.

और यहाँ रात बिताने के लिये उसने सबसे पहले इस घिनौने हमले से बचने के लिये आसानी से किसी अलग-थलग और अच्छी तरह से बंद होने वाले कमरे में छुपकर चूहों के सभी बिलों को टूटे हुए काँच के  और लोहे के टुकड़ों से बंद करने का निश्चय किया.

प्रवेश कक्ष से वह बाईं ओर, उसके लिये क्वार्टर के अनजान भाग की ओर मुड़ा, एक अँधेरे कमरे को पार करके वह एक रोशनीदार कमरे में आया जिसकी दो खिड़कियाँ रास्ते की ओर खुलती थीं. खिड़कियों के ठीक सामने दूसरी ओर मूर्तियों वाला घर अँधेरे से गहराता जा रहा था. उसकी दीवार का निचला हिस्सा चिपकाये गये अख़बारों से ढँका था. खिड़कियों की ओर पीठ करके खड़े होकर आने-जाने वाले लोग अख़बार पढ़ रहे थे.     

कमरे के भीतर और बाहर का प्रकाश एक ही था, जवान, आरंभिक बसन्त की शाम का अस्थिर प्रकाश. भीतरी और बाहरी प्रकाश की समानता इतनी शानदार थी, कि लगता था, जैसे कमरा रास्ते से अलग न हो. सिर्फ एक बात में थोड़ी भिन्नता थी. लारा का शयनगृह, जहाँ यूरी अन्द्रेयेविच खड़ा था, बाहर कुपेचेस्काया के मुकाबले ज़्यादा ठण्डा था.          

जब यूरी अन्द्रेयेविच आख़िरी क्रॉसिंग से शहर के निकट आ रहा था,  और घंटे-दो घंटे पहले उसमें चल रहा था, तो अपनी बेहद बढ़ती हुई कमज़ोरी उसे किसी निकट आती हुई बीमारी का लक्षण प्रतीत हो रही थी और उसे डरा रही थी.     

मगर अब घर में और बाहर भी प्रकाश की समानता भी उसे अकारण ही ख़ुश कर रही थी. ठण्डी हवा के स्तम्भ ने, जो बाहर आँगन में और घर के भीतर एक जैसा था, उसका शाम को रास्ते पर चलते हुए लोगों से, शहर के मिजाज़ से, दुनिया की ज़िंदगी से सम्बंध स्थापित कर दिया. उसका भय काफ़ूर हो गया. अब वह नहीं सोच रहा था कि बीमार हो जायेगा.    

हर जगह प्रवेश करते बसन्त की सांझ के प्रकाश की पारदर्शिता उसे दूर से आने वाली भरपूर उम्मीदों  के वादे जैसी प्रतीत हो रही थी. उसे यकीन हो रहा था, कि सब अच्छा ही होने वाला है, और वह ज़िंदगी में सब कुछ पा लेगा, सब को ढूँढ लेगा और सबका समाधान कर देगा, सब कुछ अच्छी तरह सोच लेगा और स्पष्ट कर देगा. और निकटतम प्रमाण के रूप में वह लारा से मिलने की ख़ुशी का इंतज़ार कर रहा था.

उन्मादभरी उत्तेजना और बेलगाम बेचैनी ने उसकी पहले वाली दुर्बलता को हटा दिया. हाल ही की कमज़ोरी की अपेक्षा ये उत्साह आरंभ हो रही बीमारी का अधिक स्पष्ट लक्षण था. यूरी अन्द्रेयेविच भीतर नहीं बैठ पाया. वह फ़िर से रास्ते की ओर खिंचता गया, एक विशेष कारण से.

यहाँ ठहरने से पहले उसका दिल चाहा कि बाल कटवा ले और दाढ़ी निकाल दे. इस इरादे से शहर से गुज़रते हुए वह पहले ही भूतपूर्व हेयर-सैलूनों के खिड़कियों में झाँक चुका था. कुछ सैलून तो ख़ाली थे या उनमें कोई दूसरी दुकानें आ गई थीं. दूसरे, जिनमें पुराना काम होता था, बंद थे. बाल कटवाने और हजामत बनवाने के लिये कोई जगह नहीं थी. अपना रेज़र यूरी अन्द्रेयेविच के पास नहीं था. अगर लारा के पास ऐसी कोई कैंची मिल जाती, तो उसे इस मुश्किल से छुटकारा दिला सकती थी. मगर जिस बेचैनी से उसने लारा की ड्रेसिंग टेबल की सारी दराज़ें उलट-पुलट कर डालीं, उसे कैंची नहीं दिखाई दी.

उसे याद आया कि मालाया-स्पास्काया स्ट्रीट पर कभी सिलाई की फर्म थी. उसने सोचा कि यदि उस फर्म  का अस्तित्व अब तक समाप्त नहीं हुआ हो और वहाँ अभी तक काम हो रहा हो, और अगर वह उनके बंद होने के समय से एक घण्टा पहले पहुँच जाये, तो किसी कारीगर से कैंची मांगी जा सकती थी. और वह फिर से रास्ते पर आ गया.

 

5

याददाश्त ने उसे धोखा नहीं दिया. सिलाई-फर्म पुरानी जगह पर ही थी, उसमें लोग काम भी कर रहे थे. फर्म एक व्यापारिक भवन में फुटपाथ से लगी हुई थी, जिसमें पूरी चौड़ाई में एक बड़ी शो-केस जैसी खिड़की थी और बाहर जाने का दरवाज़ा सड़क पर था. खिड़की से भीतर आख़िरी वाली दीवार तक सब कुछ दिखाई देता था. सड़क पर चलने वाले लोगों को काम कर रही महिलाएँ दिखाई देती थीं.

कमरे में जगह की खूब कमी थी. स्थायी तौर पर काम करने वाली कारीगरों के साथ कुछ शौकिया-दर्जिनें, युर्यातिन के समाज की वृद्ध होती महिलाएँ भी थीं, जो वर्क-बुक लेने के लिये काम कर रही थीं, जिनके बारे में मूर्तियों वाले घर की दीवार पर लगे घोषणा में कहा गया था.   

उनकी गतिविधियाँ नियमित दर्जिनों की फुर्तीली गतिविधियों से बिल्कुल भिन्न थीं. फर्म में सिर्फ फ़ौजी युनिफॉर्म ही सिले जा रहे थे, अस्तर वाली ऊनी पतलूनें, जैकेट और कमीज़ें और साथ ही अलग-अलग तरह के कुत्तों की खाल के, जैसा यूरी अन्द्रेयेविच पार्टिज़ान कैम्प में देख चुका था, रंगबिरंगे. जोकरों जैसे लम्बे कोट भी बनाये जा रहे थे.

अनभ्यस्त ऊँगलियों से मोड़े गये पल्लों को सिलाई मशीनों की सुई के नीचे घुसाते हुए, शौकिया-दर्जिनें मुश्किल से इस असाधारण काम को कर पा रही थीं, जो ख़ास तैर से फ़र वाले कारीगरों का था.

यूरी अन्द्रेयेविच ने खिड़की पर खटखट की और इशारे से कहा कि उसे अंदर आने दिया जाये. उसे उसी तरह इशारों में जवाब दिया गया कि व्यक्तिगत स्तर पर लोगों से ऑर्डर्स नहीं लिये जाते. यूरी अन्द्रेयेविच पीछे नहीं हटा और अपनी उन्हीं गतिविधियों को दुहराते हुए उसने ज़िद की कि उसे भीतर आने दिया जाये और उसकी बात सुनी जाये. उसे नकारात्मक इशारों में ही जवाब दिया गया कि उनके पास अर्जेन्ट काम चल रहा है, वह हट जाये, उन्हें तंग न करे और आगे बढ़ जाये. दर्जिनों में से एक ने चेहरे पर विस्मय का भाव प्रकट किया और झल्लाहट से हथेली को नाव की तरह आगे करके आँखों से पूछा कि आख़िर उसे क्या चाहिये. दो ऊँगलियों से, तर्जनी और बीच वाली, उसने कैंची की हरकत को दर्शाया. उसकी हाव-भावों को वे समझ नहीं पाईं. ये फ़ैसला कर लिया कि वह बदतमीज़ी कर रहा है, वह उन्हें चिढ़ा रहा है और उनका मज़ाक उड़ा रहा है. अपनी फ़टेहाल अवस्था और विचित्र बर्ताव से वह किसी बीमार या पागल जैसा लग रहा था. फर्म में दर्जिनें ठहाके लगाने लगीं, ज़ोर ज़ोर से हँसने लगीं और उसकी ओर देखकर हाथ हिलाने लगीं, उसे खिड़की से दूर भगाने लगीं. आख़िरकार उसने घर के आँगन से भीतर जाने का रास्ता ढूँढ़ने का फैसला किया, उसे ढूँढ़ लिया, और फर्म का दरवाज़ा खोजकर, पिछला दरवाज़ा खटखटाया.   

 

6

काले रंग की पोषाक पहनी साँवले चेहरे वाली, अधेड़ उम्र की, गंभीर दर्जिन ने दरवाज़ा खोला, हो सकता है वह फर्म की प्रमुख हो.

“ये कैसा पीछे पड़ गया है! सज़ा है, सचमुच में. ख़ैर, जल्दी, आपको क्या चाहिये? मेरे पास समय नहीं है.”

“मुझे कैंची चाहिये, हैरान न होईये. एक मिनट के लिये ज़रूरत है. मैं यहीं आपके सामने ही दाढ़ी काट लेता हूँ, और धन्यवाद सहित वापस कर दूँगा.”

दर्जिन की आँखों में अविश्वसनीय आश्चर्य दिखाई दिया. वह छुपा नहीं पाई कि उसे वार्तालाप कर रहे इस आदमी की दिमागी हालत पर संदेह था.

“मैं दूर से आया हूँ. अभी अभी शहर में पहुँचा हूँ. बाल खूब बढ़ गये हैं. कटवाना चाहता था. मगर एक भी हेयर-सैलून नहीं है. मतलब, मैं ख़ुद ही, ये कर लेता, मगर कैंची नहीं है. मेहेरबानी करके उधार दे दीजिये.”

“ठीक है. मैं आपके बाल काट देती हूँ. सिर्फ इतना याद रखिये. अगर आपके दिमाग में कोई और ख़याल है, कोई चालाकी, बाह्य रूप को बदलना चाहते हैं नकाब की तरह ख़ुद को छुपाने के लिये, कोई राजनीतिक बात हो, तो बच नहीं पायेंगे. आपकी ख़ातिर हम अपनी जान तो नहीं गँवा सकते, उचित जगह पर शिकायत करेंगे. आजकल वो ज़माना नहीं रहा.”

“माफ़ कीजिये, ये कैसा डर है!”

दर्जिन ने डॉक्टर को भीतर आने दिया, बगल वाले कमरे में ले गई, जो किसी अलमारी से ज़्यादा चौड़ा नहीं था, और एक मिनट बाद पूरी तरह लिपटा हुआ वह कुर्सी पर बैठा था, मानो हेयर-सैलून में हो, गर्दन के चारों ओर कस कर लपेटी हुई चादर को कॉलर के पीछे खोंसा गया था.

दर्जिन उपकरण लाने के लिये गई और कुछ देर बाद कैंचियाँ, कंघी, कई सारी, विभिन्न नंबरों की मशीनें, एक पट्टा और रेज़र लेकर लौटी.

“ज़िंदगी में हर चीज़ पर खूब हाथ आज़माया है,” उसने यह देखकर समझाया कि डॉक्टर को ये सारी चीज़ें तैयार देखकर कितना आश्चर्य हो रहा है. “नाईन का काम किया है. उस लड़ाई में नर्सों के बीच बाल काटना और हजामत बनाना सीख लिया. दाढ़ी को पहले कैंची से काट देंगे और फिर सफ़ाचट हजामत करेंगे.”

“बाल, मेहेरबानी से, छोटे-छोटे काटिये.”

“कोशिश करेंगे. ऐसे अक्लमंद हो, और दिखाते ऐसा हो, मानो कुछ जानते ही नहीं हो. आजकल गिनती हफ़्तों में नहीं बल्कि दशकों में होती है. आज सतरह तारीख़ है, और सात अंक वाली तारीखों को हेयर-सैलूनों की छुट्टी होती है. जैसे ये आपको मालूम ही नहीं है.”

“हाँ, ईमानदारी से. मैं क्यों दिखाने लगा? मैंने तो कहा था. मैं – बहुत दूर से आया हूँ. यहाँ का नहीं हूँ.”                       

शांति से. हिलो नहीं. वर्ना कट जायेगा. मतलब – बाहर से आये हो? कैसे आये?”

“अपनी दो टाँगों पर.”

“हाई वे से आये?”

“कुछ हिस्सा हाई वे पर, और बाकी रेल्वे लाईन पर. ट्रेनें, ट्रेनें बर्फ के नीचे हैं! हर तरह की ट्रेन, चाहे लक्झरी हो या स्पेशल.”

“बस, ये छोटा सा टुकड़ा रह गया है. यहाँ से निकालेंगे, और हो गया. पारिवारिक ज़रूरतों से?”

“कहाँ की पारिवारिक ज़रूरतें. भूतपूर्व क्रेडिट को-ऑपरेटिव यूनियन के काम से. मैं ट्रेवल इन्स्पेक्टर हूँ. इन्स्पेक्शन के काम से मुझे भेजा था. शैतान जाने कहाँ. पूर्वी साइबेरिया पहुँच गया. मगर वापस लौट ही नहीं सका. ट्रेनें तो हैं नहीं. पैदल चलना पड़ा, कुछ नहीं किया जा सकता था. डेढ़ महीना चलता रहा. ऐसा-ऐसा देखा है ज़िंदगी में, कि पूरी ज़िंदगी भी कम पड़ेगी बताने के लिये.”

“और बताने की ज़रूरत भी नहीं है. मैं आपको थोड़ी अकल सिखाती हूँ. मगर अब थोड़ा रुकिये. ये रहा आईना. चादर के नीचे से हाथ निकालिये और इसे लीजिये. अपने आप को देखकर ख़ुश हो जाईये. तो, कैसा है?”

“मेरे हिसाब से, आपने कम निकाले हैं. और ज़्यादा छोटे भी कर सकती हैं.”

“माँग नहीं निकलेगी. मैं कह रही हूँ, कुछ भी बताने की ज़रूरत नहीं है. आजकल सबसे अच्छी चीज़ है हर बात के बारे में चुप रहना. क्रेडिट को-ऑपरेटिव, बर्फ के नीचे लक्झरी ट्रेनें, इन्स्पेक्टर और इन्स्पेक्शन, बेहतर है कि आप इन शब्दों को भी भूल जायें. उनके कारण ऐसी मुसीबत में फँस जायेंगे! इनमें टाँग फँसाना ठीक नहीं है, यह समय इस सबके लिये नहीं है. बेहतर होगा झूठ बोलना कि आप डॉक्टर हैं या टीचर हैं. तो, ये लो, दाढ़ी पूरी तरह हटा दी, अब सफ़ाचट हजामत बनायेंगे. साबुन से धोयेंगे, चकाचक,  और दस साल जवान हो जायेंगे. मैं गर्म पानी लाने जाती हूँ, पानी गरम करूँगी.”

“कौन है, ये औरत!” उसकी अनुपस्थिति के दौरान डॉक्टर सोचता रहा. “कुछ ऐसा महसूस हो रहा है जैसे हमें जोड़ने वाले कुछ आम बिंदु हो सकते हैं और मैं उसे जानता हूँ. कोई देखी हुई या सुनी हुई बात. शायद वह किसी की याद दिला रही है. मगर, शैतान ले जाये, किसकी?”

दर्जिन वापस आई.

“और अब, मतलब हजामत बनायेंगे. हाँ, शायद, बेहतर होगा कि बेकार की बात न कही जाये. ये शाश्वत सत्य है. शब्द चाँदी है, और चुप्पी - सोना. स्पेशल ट्रेनें और क्रेडिट-कोऑपरेटिव. बेहतर है कि कोई अच्छी बात सोचो, जैसे डॉक्टर या टीचर. और आपने क्या-क्या देखा, उसे अपने पास ही रहने दो. इन बातों से किसे चकित करोगे? रेज़र से तकलीफ़ तो नहीं हो रही है?”

“थोड़ा सा दर्द हो रहा है.”

“खिंच रहा है, खिंचेगा ही, मैं ख़ुद ही जानती हूँ. थोड़ा बर्दाश्त कर लो, प्यारे. बगैर इसके नहीं  होगा. बाल बढ़ गये हैं और कड़े हो गये हैं, चमड़ी को आदत नहीं रही. हाँ. अपनी बातों से अब किसी को नहीं चौंका सकते. लोग बहुत कुछ भुगत चुके हैं. हमने भी दुख झेले हैं. यहाँ श्वेतों के दौर में क्या-क्या नहीं हुआ! लूटपाट, हत्याएँ, अपहरण. लोगों का शिकार किया जाता था. मिसाल के तौर पर, एक छोटा-मोटा तानाशाह अफ़सर था, सपुनोव का आदमी. उसे अपना लेफ्टिनेंट, समझ रहे हैं, अच्छा नहीं लगता था. उसने सैनिकों को उसका काम निपटाने के लिये शहर के बाहर वाली बगिया में भेजा, क्रापूल्स्की के घर के सामने. उसे निहत्था कर दिया और पहरेदारों के साथ रज़्वील्ये रवाना कर दिया. और रज़्वील्ये उस समय वैसा ही था, जैसा आजकल प्रांतीय चेका (आपात्कालीन कमिटी – अनु.). हत्या करने की जगह. आप सिर क्यों हिला रहे हैं? खिंच रहा है? जानती हूँ, प्यारे, जानती हूँ. कुछ नहीं कर सकते. यहाँ सीधे बाल के सामने साफ़ करना पड़ता है, और बाल तो ब्रश जैसा है. कड़ा है. ऐसी जगह है. बीबी तो चीखे जा रही थी. लेफ्टिनेंट की बीबी. कोल्या! मेरा कोल्या! और सीधे जनरल के पास पहुँची. मतलब, ऐसा सिर्फ कहने के लिये है, ‘सीधे. उसे कौन जाने देता. सुरक्षा. यहाँ बगल वाली सड़क पर एक महिला चीफ़ के पास जाने के रास्ते जानती थी और सबकी हिमायत करती थी. बेहद मानवीय इन्सान थी, उसका किसी से कोई मुकाबला ही नहीं था, हमेशा मदद करने के लिये तैयार, जनरल गलिऊलिन. और चारों ओर, हत्याएँ, वहशियत, ईर्ष्या के नाटक. बिल्कुल, जैसे स्पेनिश उपन्यासों में होता है.

ये लारा के बारे में कह रही है,’ डॉक्टर ने अनुमान लगाया, मगर सावधानीवश चुप रहा और ज़्यादा तफ़सील से जानने के लिये सवाल पूछने लगा. –और जब उसने कहा : “जैसा स्पेनिश उपन्यासों में होता है”, तो उसने फिर से शिद्दत से किसी की याद दिला दी. इसी असंबद्ध वाक्य की वजह से, जो उसने बिल्कुल यूँ ही कह दिया था.  

“अब, बेशक, एकदम दूसरी बात है. वो, जैसे, खोजबीन, शिकायतें, गोली-बारी, अब बेशक बहुत ज़्यादा हो गया है. मगर विचारधारा में यह बिल्कुल अलग है. पहली बात: सरकार नई है. जुम्मा जुम्मा आठ दिन, अभी ठीक से आदत नहीं हुई है. दूसरी बात, कि चाहे कुछ भी कहो, वह आम आदमी के लिये है, यही उसकी ताकत है. हम, मुझे मिलाकर, चार बहनें थीं. और सब मेहनतकश. सही में, हमारा रुझान बोल्शेविकों की तरफ़ है. एक बहन मर गई, उसकी शादी एक राजनीतिक आदमी से हुई थी. उसका शौहर यहाँ के एक कारख़ाने में मैनेजर था. उनका बेटा, मेरा भांजा – हमारी किसान फौजों का प्रमुख, कह सकते हैं कि, मशहूर है.”

तो ये बात है!- यूरी अन्द्रेयेविच समझ गया. – ये लिबेरियस की मौसी है, स्थानीय लोगों की लोक कथा और मिकुलीत्सिन की साली, नाई, दर्जिन, रेल्वे सिग्नलमैन, यहाँ पर सबकी परिचित हरफ़नमौला. मगर, मैं पहले की ही तरह चुप रहूँगा, जिससे कि ख़ुद को ज़ाहिर न होने दूँ.

“मेरा भांजा बचपन से ही आम लोगों की तरफ़ खिंचा जाता था. बाप के पास मज़दूरों में बड़ा हुआ, स्वितागोर बगातीर में. वरिकीना के कारखाने, शायद आपने सुना हो? ये हम और आप कर क्या रहे हैं! आह, मैं बेवकूफ़ भुलक्कड़! आधी दाढ़ी सफ़ाचट हो गई, दूसरी आधी बिना हजामत की. ये होता है बातों में बहक जाना. और आप क्या देख रहे थे, मुझे रोका क्यों नहीं? चेहरे पर साबुन सूख गया है. जाकर पानी गरम करती हूँ. ठण्डा हो गया.”

जब तून्त्सेवा वापस लौटी तो यूरी अन्द्रेयेविच ने पूछा:

“वरिकीना तो कोई घना बीहड़ है ना, बहुत भीतर की ओर, ख़ुदा ही उसकी हिफ़ाज़त करता है, बीहड़ जंगल, जहाँ कोई उथल-पुथल नहीं होती?”

“ख़ैर, कैसे कहें, ख़ुदा ही हिफ़ाज़त करता है. इन बीहड़ों को हमसे ज़्यादा झेलना पड़ा था. वरिकीना से होकर कोई फ़ौजी दस्ते गुज़रे थे, पता नहीं किसके. हमारी ज़ुबान नहीं बोलते थे. एक-एक करके सबको घर से बाहर निकालते और गोली मार देते. और चले गये बगैर एक भी बुरा लब्ज़ बोले. मुर्दा जिस्म बर्फ पर ही पड़े रहे, कोई उठाने वाला ही नहीं था. ये सर्दियों में हुआ था. ये आप पूरे समय हिल क्यों रहे हैं? मैं रेज़र आपके गले पर फ़ेरने ही वाली थी.”

“आप कह रही थीं, कि आपका बहनोई, वरिकीना में रहता है. क्या वह भी इन भयानक घटनाओं से बच नहीं पाया?”

“नहीं, क्यों. ख़ुदा मेहेरबान है. वह समय रहते अपनी बीबी के साथ वहाँ से निकल गया था. नई वाली, दूसरी. वे कहाँ हैं, पता नहीं, मगर ये पक्का है कि वे बच गये थे. वहाँ बिल्कुल आख़िरी दिनों में नये लोग रहने लगे थे. मॉस्को का परिवार, वहाँ आया था. वे और भी पहले निकल गये थे. मर्दों में से जवान वाला, डॉक्टर, परिवार का मुखिया, लापता हो गया था. लापता होने का क्या मतलब है! ऐसा सिर्फ कहते हैं कि लापता है, जिससे कि सुनने वाले को दुख न पहुँचे. मगर असल में, मानना पड़ेगा, कि मर गया है, मार डाला गया है. ढूँढ़ा, खूब ढूँढा उसको – नहीं मिला. इस बीच दूसरे वाले, बड़े मर्द को मातृभूमि में बुला लिया गया. वह प्रोफेसर है. कृषि – उद्योग में. बुलावा, मैंने सुना, ख़ुद सरकार की तरफ़ से आया था. वे युर्यातिन से श्वेत-गार्डों के दूसरे दौर से पहले निकल गये. आप फिर से अपनी ही मर्ज़ी चला रहे हैं, प्यारे कॉम्रेड? अगर इस तरह रेज़र के नीचे हिलते रहे, तो क्लाएन्ट का गला काटने में देर नहीं लगेगी. आप हेयर-ड्रेसर से काफ़ी उम्मीद करते हैं.”

मतलब, वे मॉस्को में हैं!

 

7

मॉस्को में! मॉस्को मे!हर कदम पर उसकी आत्मा से यही आवाज़ आ रही थी, जब वह तीसरी बार लोहे की सीढ़ियाँ चढ़ रहा था.

खाली क्वार्टर में फिर से उछलते हुए, गिरते हुए, भागते हुए चूहों की भगदड़ ने उसका स्वागत किया. यूरी अन्द्रेयेविच समझ गया कि इस घिनौनी चीज़ के साथ वह एक मिनट के लिये भी आँख नहीं झपका सकेगा, चाहे कितना ही थका हुआ क्यों न हो. रात के सोने की तैयारी उसने चूहों के बिलों को बंद करने की शुरुआत से की. ख़ुशनसीबी से शयन कक्ष में उनकी संख्या इतनी ज़्यादा नहीं थी, बाकी के कमरों की अपेक्षा काफ़ी कम थी, जहाँ फर्श और दीवारों की नींवें और भी बुरी हालत में थीं. मगर जल्दी करना ज़रूरी था. रात निकट आ रही थी. सही में, किचन में दीवार से निकाल कर आधा दुरुस्त किया हुआ लैम्प मेज़ पर उसकी राह देख रहा था, हो सकता है उसके आने की उम्मीद में, और उसके पास बिना खुली माचिस की डिबिया में कुछ दियासलाईयाँ पड़ी थीं, यूरी अन्द्रेयेविच ने उन्हें गिना, तो वे दस निकलीं. मगर ये और वो, केरोसिन और दियासलाई, को बचा कर रखना बेहतर होगा. शयनकक्ष में उसे एक तेल वाला दिया भी मिला और लैम्प में तेल के निशान भी दिखाई दिये, जिसे बिल्कुल तली तक, शायद, चूहे पी गये थे.                ,

कुछ जगहों पर फ़र्श से प्लिंथ का जोड़ उखड़ गया था. यूरी अन्द्रेयेविच ने दरार में काँच के टुकड़ों की कई पर्तें, नुकीला भाग भीतर की ओर करके घुसाई. शयनगृह का दरवाज़ा देहलीज़ से अच्छी तरह लगता था. उसे पक्का बंद करना था, और बंद करके बाकी के कमरों में भरी गईं दरारों से अलग-थलग करना था. एक घण्टे से कुछ ज़्यादा समय में यूरी अन्द्रेयेविच ने यह सब कर लिया.

शयनगृह के कोने में एक डच भट्टी थी, जिसकी टाईल्स वाली कार्निस छत तक नहीं पहुँचती थी. किचन में लकड़ियाँ जमा कर रखी हुई थीं, करीब दस गट्ठे. यूरी अन्द्रेयेविच ने लारा की लकड़ियों से कुछ लकड़ियाँ चुरानी चाहीं और एक घुटने पर बैठकर बाएँ हाथ पर लकड़ियाँ रखने लगा. वह उन्हें शयनगृह में ले गया, उन्हें भट्टी में जमाया, उसकी रचना को समझा और जल्दी ही यह भी देख लिया कि वह किस हालत में है. वह कमरे को ताले से बंद करना चाहता था, मगर दरवाज़े का ताला बिगड़ा हुआ था और इसलिये दरवाज़े में मोटी कागज़ की तह घुसाकर, ताकि वह खुल न जाये, यूरी अन्द्रेयेविच जल्दबाज़ी किये बिना भट्टी गरमाने लगा.

लकड़ियों को भट्टी में रखते हुए उसने एक फट्टे के किनारे पर निशान देखा. उसने अचरज के साथ उसे पहचान लिया. ये पुराने “सील” के निशान थे, दो आरंभिक अक्षर “क” और “द”, जो बिना काटे वृक्षों पर यह दर्शाते थे कि वे किस गोदाम से लाये गये हैं. इन अक्षरों से कभी क्र्युगेर के ज़माने में वरिकीना के  कुलाबिशेव दिल्याना (घाटी-अनु.) से आये लट्ठों के सिरों पर सीललगाई जाती थी, जब कारखाने बची हुई अनावश्यक जलाऊ लकड़ी का व्यापार किया करते थे. 

लारा के घर में इस तरह की ईंधन की लकड़ी की उपस्थिति यह सिद्ध करती थी कि वह सामदिव्यातव को जानती है और वह उसकी फ़िक्र करता है, जैसे वह डॉक्टर और उसके परिवार के लिये हर तरह का आवश्यक सामान लाया करता था. इस रहस्योद्घाटन से डॉक्टर के दिल में जैसे छुरी चल गई. वह पहले भी अंन्फीम एफीमविच की मदद से अटपटापन महसूस करता था. अब उपकारों की यह झिझक कुछ अन्य एहसासों से उलझ गई थी.  

अन्फीम एफीमविच लरीसा फ़्योदरव्ना की सहायता सिर्फ उसकी ख़ूबसूरत आँखों की ख़ातिर तो नहीं करता होगा. यूरी अन्द्रेयेविच ने अन्फीम एफीमविच के उन्मुक्त व्यवहार और लारा की महिलोचित आकर्षण की कल्पना की. ये हो ही नहीं सकता कि उनके बीच कुछ भी नहीं था.

भट्टी में कुलाबिशेव की सूखी लकड़ियाँ चटचटाहट के साथ भभक उठीं, और जैसे जैसे उनकी आग बढ़ती गई, यूरी अन्द्रेयेविच की अंधी ईर्ष्या, जो मामूली अनुमानों से उत्पन्न हुई थी, बढ़ते हुए पूरे यकीन में बदल गई.

मगर उसकी आत्मा पूरी तरह आहत थी, और एक दर्द दूसरे को दबा रहा था. वह इन संदेहों को भगा नहीं सका. उसके ख़याल, बिना किसी कोशिश के एक विषय से दूसरे पर उछलते रहे.

अपनों के बारे में विचारों ने, जो नई शिद्दत से उस पर हावी हो रहे थे, फ़िलहाल ईर्ष्यायुक्त विचारों को धुँधला कर दिया.

तो, आप लोग मॉस्को में हैं, मेरे अपनों?’ उसे ऐसा लगा कि तून्त्सेवा ने उनके सही सलामत पहुँचने को प्रमाणित कर दिया है. आपने फिर से, मतलब, मेरे बगैर यह लम्बी, मुश्किल यात्रा कर ली? यात्रा कैसी रही? अलेक्सान्द्र अलेक्सान्दविच का यह दौरा किस तरह का है, यह बुलावा? शायद अकादमी से निमंत्रण है कि फिर से अपना शिक्षण कार्य शुरू करे? घर में क्या क्या देखा? अरे हाँ, क्या अभी तक उसका अस्तित्व है या नहीं, इस घर का? ओह, कितना मुश्किल और कितना दुख हो रहा है, ऐ ख़ुदा! ओह, नहीं सोचना है, सोचना ही नहीं है! ख़याल कैसे उलझ रहे हैं! मेरे साथ ये क्या हो रहा है, तोन्या? मैं, शायद, बीमार हूँ. मेरे साथ क्या होगा और आप सबके साथ भी, तोन्या, तोनेच्का, तोन्या, शूरच्का, अलेक्सान्द्र अलेक्सान्द्रविच? , सर्वव्यापी प्रकाश, तूने मुझे अपने से दूर, अँधेरे में क्यों रखा है? आप लोग पूरी ज़िंदगी मुझसे दूर, एक किनारे ही जाते रहे? हम हमेशा ही अलग-अलग क्यों हैं? मगर हम जल्दी ही मिलेंगे, एक जगह होंगे, सही है ना?” मैं पैदल ही आपके पास आऊँगा, अगर कोई और रास्ता न हुआ तो. हम मिलेंगे. सब कुछ फिर से ठीक हो जायेगा, सही है ना?”

मगर ये धरती मुझे बर्दाश्त कैसे करेगी, अगर मैं बार-बार भूल जाता हूँ कि तोन्या बच्चे को जन्म देने वाली थी और, शायद, अब तक हो भी गया होगा? ये पहली बार नहीं है, जब मैं इस भुलक्कड़पन को महसूस कर रहा हूँ. उसका प्रसव कैसा हुआ? कैसे उसने बच्चे को जन्म दिया? मॉस्को जाते समय वे युर्यातिन में रुके थे. हाँलाकि, ये सही है, कि लारा उनसे परिचित नहीं है, मगर दर्जिन और हेयर-ड्रेसर को, जो बिल्कुल ही बाहर की है, उनके भाग्य के बारे में सब कुछ मालूम था, और लारा ने चिट्ठी में उनके बारे में एक भी शब्द नहीं लिखा है. कैसी विचित्र, बेफिक्र बेध्यानी! ये भी वैसा ही अस्पष्ट है, जैसा सामदिव्यातव के साथ उसके रिश्तों के बारे में उसकी ख़ामोशी.     

अब यूरी ने एक अलग, ताड़ती हुई नज़र से शयनकक्ष की दीवारों को देखा. वह जानता था, कि चारों तरफ़ रखी हुई और टँगी हुई चीज़ों में से एक भी चीज़ ऐसी नहीं है जो लारा की हो, और पुराने अदृश्य और छुपे हुए मालिकों की यह व्यवस्था किसी भी हालत में लारा की पसंद को सत्यापित नहीं कर सकती.

मगर फिर भी, चाहे जो हो, उसे अचानक दीवार पर टँगी बड़ी-बड़ी तस्वीरों से उसकी तरफ़ देख रहे आदमियों और औरतों के बीच अटपटापन महसूस होने लगा. फूहड़ फर्नीचर उसकी ओर शत्रुता भरी साँस छोड़ रहा था. उसने अपने आपको इस शयनकक्ष में अजनबी और अनावश्यक महसूस किया.

और वह, बेवकूफ़, कितनी बार इस घर को याद करता रहा, उसकी याद से तड़पता रहा, और इस कमरे में यूँ नहीं घुसा जैसे किसी जगह में जा रहा हो, बल्कि इस तरह कि जैसे लारा के प्रति अपनी पीड़ा के भीतर समाने जा रहा हो! महसूस करने का यह तरीका, शायद, दूर से हास्यास्पद लगता हो! क्या प्रभावशाली, व्यावहारिक और ख़ूबसूरत मर्द, जैसा सामदिव्यातव है, इसी तरह से जीते हैं, बर्ताव करते हैं और अपने आप को प्रकट करते हैं? और लारा क्यों उसकी चारित्रिक कमी और तारीफ़ करती हुई संदेहास्पद, अवास्तविक ज़ुबान को बर्दाश्त करे? क्या उसे उलझन में पड़ने की इतनी ज़रूरत है? क्या उसे ख़ुद को भी वहहोने की इच्छा है, जो वह उसे प्रतीत होती है?

और उसे वह कैसी प्रतीत होती है, जैसा कि उसने अभी अभी कहा था? ओह, इस सवाल का जवाब उसके पास हमेशा तैयार रहता था.

आँगन में बसन्ती शाम है. हवा आवाज़ों से सराबोर है.

दूर पर अलग-अलग जगहों पर खेलते हुए बच्चों की आवाज़ें बिखरी हैं, जैसे इस बात की निशानी हों, कि वह जगह ज़िंदगी से लबालब भरी है. और यह विस्तार – रूस, उसकी अतुलनीय, समुंद्रों के पार शोर मचाती, लाजवाब मातृभूमि है, सताई हुई, ज़िद्दी, कुछ-कुछ विक्षिप्त-सी, शरारती, ईश्वर द्वारा निर्मित, चिरंतन महानताओं और विनाशकारी हरकतों से भरपूर, जिनका पूर्वानुमान लगाना कभी भी संभव नहीं है! ओह, कितनी मिठास है जीने में! कितना मीठा है दुनिया में ज़िंदा रहना और ज़िंदगी से प्यार करना! ओह, कितनी इच्छा होती है ख़ुद ज़िंदगी को, ख़ुद अस्तित्व को धन्यवादकहने की, सीधे उनके सामने, उनके मुँह पर कहने की!

यही तो है – लारा. उनके साथ वार्तालाप नहीं कर सकते, मगर वह उनकी प्रतिनिधि है, उनकी प्रस्तुति है, श्रवण और वाचा का दान, जो अस्तित्व के मौन आरंभ द्वारा दिया गया था.          

और गलत है, हज़ार बार गलत है वह बकवास जो उसने संदेह के क्षण में यहाँ लारा के बारे में की थी. उसमें सब कुछ कैसा परिपूर्ण और निर्दोष है!

प्रशंसा और पश्चात्ताप के आँसुओं ने उसकी नज़र को धुँधला कर दिया. उसने भट्टी का दरवाज़ा खोला और उसके भीतर चिमटा घुसाकर हिलाया. धधकती हुई लकड़ियों को उसने भट्टी में सबसे पीछे धकेला, और बिना जली लकड़ियों को घसीट कर सामने लाया, जहाँ हवा का बहाव तेज़ था. कुछ समय तक उसने दरवाज़े बंद नहीं किये. हाथों और चेहरे पर गरमाहट और प्रकाश का खेल उसे आनन्द दे रहा था. लौ की गतिमान चमक उसे पूरी तरह होश में ले आई. ओह, इस समय कितनी शिद्दत से उसकी कमी महसूस हो रही थी, उसे इस पल कितनी ज़रूरत थी किसी ऐसी चीज़ की जिसे उसका स्पर्श हुआ हो!

उसने जेब से उसकी मुड़ी-तुड़ी चिट्ठी निकाली. उसने पीछे वाली तरफ़ से उसे निकाला, न कि उस तरफ़ से जो उसने पहले पढ़ा था, और सिर्फ अब देखा कि चिट्ठी के पिछली ओर भी कुछ लिखा है. मुड़े हुए कागज़ को खोल कर उसने भट्टी के नाचते हुए प्रकाश में पढ़ा:

“अपने लोगों के बारे में तुम जानते हो. वे मॉस्को में हैं. तोन्या ने बेटी को जन्म दिया है.”

आगे कुछ मिटाई गई पंक्तियाँ थीं. फिर लिखा था:

“ये इसलिये मिटा दिया क्यों कि चिट्ठी में लिखना बेवकूफ़ी होती. मिलने पर बातें करेंगे. जल्दी में हूँ, घोड़ा लेने जा रही हूँ. अगर नहीं मिला, तो पता नहीं क्या करना पड़ेगा. कातेन्का के साथ मुश्किल होगा...”वाक्य का अंत मिटा दिया गया था और समझ में नहीं आ रहा था.

वह अन्फीम के पास घोड़ा लेने के लिये गई होगी, और, जब चली गई है, तो शायद मिल गया होगा’, - यूरी अन्द्रेयेविच ने शांति से अनुमान लगाया.

अगर इस मामले में उसकी आत्मा पूरी तरह शुद्ध नहीं होती, तो वह इस विवरण का उल्लेख ही नहीं करती’.

 

 

8

जब भट्टी पूरी तरह गरम हो गई तो डॉक्टर ने थोड़ा कुछ खा लिया. खाने के बाद उसे बेहद नींद आने लगी. वह बगैर कपड़े उतारे दीवान पर लेट गया और गहरी नींद में सो गया.

उसने चूहों का बहरा कर देने वाला, बेशर्म हंगामा नहीं सुना जो दरवाज़े के पीछे और कमरे की दीवारों पर हो रहा था. उसे दो ख़तरनाक सपने आये – एक के बाद एक.

वह मॉस्को में था, वह कमरे में चाभी से बंद किये गये शीशे के दरवाज़े के सामने था, जिसे उसने इत्मीनान करने के लिये हैण्डल पकड़कर अपनी ओर खींचा था. दरवाज़े के बाहर बच्चों वाला ओवरकोट, नाविकों की पतलून और टोपी पहने ख़ूबसूरत और दयनीय उसका बेटा शूरच्का दरवाज़ा पीट रहा था, रो रहा था और भीतर आने देने की विनती कर रहा था. बच्चे के पीछे, उसे और दरवाज़े को थपेड़ों से दबाते  हुए, गरज और शोर के साथ बिगड़े पाईप या पाईपों के जाल से पानी की भीषण धार गिर रही थी, जो उस ज़माने में आम बात थी या, हो सकता है, वाकई में यहाँ कोई तंग नदी-घाटी ख़त्म हो रही थी और दरवाज़े का सहारा ले रही थी जिसमें वहशी की तरह रौद्र जल धारा बह रही थी और था सदियों से संचित ठ्ण्ड और अंधेरा.

गिरते हुए पानी की अजस्त्र धारा और उसका शोर को बच्चे के मन में मौत का ख़ौफ़ पैदा कर रहे थे. सुनाई नहीं दे रहा था कि वह क्या चिल्ला रहा है, शोर-शरावे ने बच्चे की चीख़ों को दबा दिया था. मगर उसके होठों की तरफ़ देखते हुए यूरी अन्द्रेयेविच समझ रहा था कि वह “पापा! पापच्का!” कह रहा है.

यूरी अन्द्रेयेविच का दिल फट रहा था. अपने पूरे अस्तित्व से वह बच्चे को हाथों से पकड़ना चाहता था, सीने से लगाकर उसके साथ बिना इधर-उधर देखे जो राह नज़र आये उस ओर भाग जाना चाहता था.

मगर आँसुओं से भीगते हुए, उसने बंद दरवाज़े का हैण्डिल अपनी ओर खींचा और बच्चे को भीतर नहीं आने दिया, सम्मान और दूसरी औरत के प्रति कर्तव्य की भावनाओं के सम्मुख उसकी बलि दे दी, जो बच्चे की माँ नहीं थी और किसी भी पल दूसरी तरफ़ से कमरे में आ सकती थी.

पसीने और आँसुओं से भीगे हुए यूरी अन्द्रेयेविच की आँख खुल गई. मुझे बुखार है. मैं बीमार हूँ’, - उसने फ़ौरन सोचा, - ‘यह टाइफ़स नहीं है. ये कोई भयानक, ख़तरनाक बीमारी है, थकान बीमारी का रूप ले रही है, कोई बीमारी जो चरम बिंदु तक पहुँच गई है, जैसा कि सभी गंभीर संक्रमणों में होता है, और अब पूरा सवाल यही कि किसका पलड़ा भारी होगा, ज़िंदगी का या मौत का. मगर कितनी नींद आ रही है!और वह फिर से सो गया.

उसे मॉस्को की जगमगाती भीड़-भाड़ वाली सड़क पर सर्दियों की अंधेरी सुबह का सपना आया, सुबह-सबेरे की सड़क की चहल पहल, पहली ट्रामों की घंटियाँ, रात के स्ट्रीट-लैम्प्स की रोशनी जो फुटपाथों पर पड़ी भूरी, पौ फटने से पूर्व की बर्फ पर पीले धब्बे डाल रही थी, इन सभी लक्षणों को देखते हुए यह क्रांति से पहले की बात थी.  

उसे कई खिड़कियों वाले लम्बाई में फैले किसी क्वार्टर का सपना आया, जो पूरा एक ही तरफ़ को था, सड़क से कम ऊँचाई पर, शायद दूसरी मंज़िल पर था, फर्श तक नीचे लटकते हुए पर्दे थे. क्वार्टर में सफ़र के कपड़े पहने हुए लोग अलग-अलग तरीके से सो रहे थे, और रेल्वे कम्पार्टमेन्ट जैसी अस्तव्यस्तता थी, फ़ैले हुए, तेल लगे अख़बारों पर छोड़ा हुआ खाना पड़ा था, फ्राइड चिकन की कुतरी हुई गंदी हड्डियाँ, पंख और टांगें, और फर्श पर रात में उतारे हुए जूतों की जोड़ियाँ रखी थीं, हाल ही में आये रिश्तेदार मेहमानों और परिचितों की, मुसाफ़िरों की और बेघरों की. क्वार्टर में एक कोने से दूसरे कोने तक अत्यन्त व्यस्तता से, फुर्ती से और बिना आवाज़ किये मेज़बान, लारा, घूम रही थी, जल्दी जल्दी में पहने सुबह के गाऊन में, और उसके पीछे-पीछे उसे बेज़ार करते हुए वह चल रहा था, पूरे समय कुछ न कुछ यूँ ही और असंबद्ध सा समझाता हुआ, मगर लारा के पास उसके लिये एक भी मिनट नहीं था, और उसके स्पष्टीकरणों पर वह चलते-चलते, सिर्फ उसकी ओर सिर घुमाकर जवाब दे देती, ख़ामोश, अविश्वसनीय नज़रों से और अपनी अतुलनीय, चमचमाती हँसी के मासूम फ़व्वारे छोड़ती, जो अकेले ही निकटता प्रदर्शित कर रहे थे, जो उनके बीच अभी तक बची थी. और इतनी दूर, ठण्डी और सम्मोहक थी वह, जिसे उसने सब कुछ दे दिया था, जिसे सबसे ज़्यादा मानता था और जिसके मुकाबले में सब चीज़ों को घटाता गया  और उनका अवमूल्यन करता गया. 

 

9

वह ख़ुद नहीं, बल्कि ख़ुद उससे ज़्यादा व्यापक कोई चीज़, नाज़ुक और रोशन, फॉस्फोरस के समान अँधेरे में चमकते शब्दों से उसके भीतर सिसकियाँ ले रही थी और रो रही थी. और अपनी रोती हुई आत्मा के साथ-साथ वह भी रो रहा था. उसे अपने आप पर दया आ रही थी.

मैं बीमार हो रहा हूँ, मैं बीमार हूँ’, - नींद, बुखार के कारण प्रलाप और स्मृतिहीनता के दौरों के मध्य स्पष्टता के क्षणों में वह कल्पना करता. – ये निश्चित ही कोई टायफ़स है, जिसका किताबों में वर्णन नहीं किया गया है, जिसके बारे में हमने मेडिकल फ़ैकल्टी में अध्ययन नहीं किया है. कुछ बनाना चाहिये, थोड़ा सा खाना चाहिये, वर्ना तो मैं भूख से मर जाऊँगा’.

मगर कुहनी के बल उठने की पहली ही कोशिश में उसे यकीन हो गया कि उसमें हिलने की भी शक्ति नहीं है, और वह अपने होश खो बैठता या सो जाता.

कितने समय से मैं यहाँ पड़ा हूँ, कपड़े पहने-पहने?’ स्पष्टता के एक ऐसे पल में उसने सोचा. कितने बजे हैं? कितने दिन हो गये? जब मैं बेहोश हुआ था तो बसन्त ऋतु शुरू हो रही थी. और अब खिड़की पर पाला गिरा है. इतना ढीला और इतना गंदा, कि उसके कारण कमरे में अँधेरा हो गया है’.

किचन में चूहे उलटी हुई प्लेटों से शोर मचा रहे थे, उस तरफ़ से दीवार पर ऊपर की ओर भाग रहे थे, अपने भारी शरीरों से फ़र्श पर गिर रहे थे, घिनौनी तरह से महीन, ऊँची, रोती हुई आवाज़ों में विलाप कर रहे थे.            

और वह फिर से सोता रहा और उठता रहा, और उसने देखा कि बर्फीले पाले की जालियों वाली खिड़कियाँ सुबह के गुलाबी प्रकाश की गर्माहट में नहा गई हैं, जो उनके भीतर क्रिस्टल के गिलासों में डाली गई रेड-वाईन की तरह चमक रहा था. और उसे मालूम नहीं था, और उसने अपने आप से पूछा कि ये कैसी लाली है, सुबह की या शाम की?

एक बार उसे ऐसा लगा कि उसके बिल्कुल पास इन्सानों की आवाज़ें आ रही हैं और वह भीतर से टूट गया, कि ये पागलपन की शुरुआत है. अपने आप के प्रति दया के आँसुओं में, वह बेआवाज़ फुसफुसाहट से आसमान को कोसने लगा, कि उसने क्यों उससे मुँह फेर लिया है, और उसे छोड़ दिया है. ‘’, चिरंतन प्रकाश, तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया है और जहन्नुम के अँधेरे में धकेल दिया है!’.

और अचानक वह समझ गया कि वह सपना नहीं देख रहा है और यह बिल्कुल सत्य है, कि उसके कपड़े बदल दिये गये हैं, और उसे नहलाया गया है, और वह साफ़ कमीज़ पहने दीवान पर नहीं, बल्कि साफ़ चादर से ढँके बिस्तर पर लेटा है, और अपने बालों को उसके बालों से मिलाती और उसके आँसुओं को अपने आँसुओं में समेटती, उसके साथ रो रही है और बैठी है पलंग के पास और उसकी ओर झुक रही है लारा. और सुख के कारण वह अपने होश खो बैठा.      

 

10

अभी कुछ ही देर पहले बेहोशी में अपने प्रलाप में वह आसमान को उसकी उदासीनता के लिये कोस रहा था, मगर आसमान अपने समूचे विस्तार के साथ उसके पलंग के पास उतर रहा था, और दो बड़ी, कंधों तक सफ़ेद, महिला की बाँहें उसकी ओर बढ़ रही थीं. ख़ुशी के मारे उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया और, जैसे बेहोशी के आलम में गिरते हैं, वह अंतहीन सुख में डूबने लगा.

पूरी ज़िंदगी वह कुछ न कुछ करता ही रहा, हमेशा व्यस्त रहा, या तो घर के लिये काम करता, या इलाज करता, मनन करता, अध्ययन करते हुए रचता. अब कितना अच्छा लगता था गतिविधियों को रोक देना, प्राप्त करना, मनन करना, और फ़िलहाल यह श्रम प्रकृति को अर्पित करना, ख़ुद ही उसके शानदार, ख़ुशनुमा, ख़ूबसूरती लुटाते हाथों में एक वस्तु, एक कल्पना, एक रचना बन जाना!

यूरी अन्द्रेयेविच शीघ्रता से अच्छा हो रहा था. अपनी सफ़ेद-हँस जैसी आकर्षकता से लारा उसे खिलाती, उसकी देखभाल करती, अपने सवालों और जवाबों की नम, साँस छोड़ती गहरी फुसफुसाहट से उसका ख़याल रखती.

दबी ज़ुबान में उनकी बातचीत, चाहे एकदम निरर्थक ही क्यों न हो, प्लेटो के संवादों की तरह मतलब से परिपूर्ण होती थीं.

आत्माओं के समन्वय से भी ज़्यादा उन्हें जोड़ती थी वह खाई, जो उन्हें शेष दुनिया से अलग करती थी. उन दोनों को ही आधुनिक इन्सान में ख़तरनाक रूप से एकजैसापन बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था, उसका सीखा हुआ उत्साह, चीख़ता हुआ जोश और वह घातक पंखहीनता, जिसका विज्ञान और कला के  अनगिनत कार्यकर्ता प्रसार कर रहे हैं, ताकि मौलिक प्रतिभा अत्यंत दुर्लभ बनी रहे.

उनका प्यार महान था. मगर प्यार तो सभी करते हैं, भावनाओं की अपूर्वता पर गौर किये बिना.

मगर उनके लिये – और यही उनका अनूठापन था – वे पल, जब चिरंतनता का झोंका, उनके अभिशप्त मानवीय अस्तित्व में जुनून के झोंके की तरह बहता, अपने और ज़िंदगी में आ रहे निरंतर नयेपन को जानने के पल होते थे.             

 

11

“तुम्हें अपने लोगों के पास ज़रूर लौटना चाहिये. ज़रूरत से एक भी दिन ज़्यादा मैं तुम्हें नहीं रोकूँगी. मगर तुम देख रहे हो, कि क्या हो रहा है. जैसे ही हम सोवियत रूस के साथ मिले, उसके विनाश ने हमें निगल लिया. साइबेरिया और पूरब से उसके छिद्रों को बंद किया जा रहा है. ख़ैर, तुम्हें कुछ भी मालूम नहीं है. तुम्हारी बीमारी के दौरान शहर में इतना कुछ बदल गया! हमारे गोदामों से माल केन्द्र में, मॉस्को में भेजा जा रहा है. उसके लिये तो यह सागर की एक बूंद के समान है, ये माल उसमें ऐसे ग़ायब हो जाता है, जैसे बिना पेंदे के ड्रम में डाला जा रहा हो, मगर हम बिना खाद्य सामग्री के रह जाते हैं. डाक आती नहीं है, यात्री परिवहन कट गया है, सिर्फ अनाज ले जाने वाली ट्रेनें चलाई जा रही हैं. शहर में फिर से दबी ज़ुबान में कह रहे हैं, जैसे गायदा के विद्रोह से पूर्व था, फिर से नाराज़गी प्रकट करने पर चेकाका तांडव शुरू हो जायेगा.

और इस हालत में जाओगे भी कैसे, सिर्फ हड्डियों का ढाँचा रह गया है. जिस्म में रूह भी है? कहीं फिर से पैदल जाने का इरादा तो नहीं है? नहीं जा पाओगे तुम! पहले थोड़े मज़बूत हो जाओ, ताकत आने दो, तब बात और है.       

मैं सलाह देने की हिम्मत तो नहीं करूँगी, मगर यदि तुम्हारी जगह पर मैं होती तो मैं कुछ दिन काम कर लेती, बिल्कुल अपनी स्पेशलिटी के क्षेत्र में, इसकी कद्र करते हैं, मैं अपने प्रांतीय स्वास्थ-विभाग जाती, मिसाल के तौर पर. वह पुराने मेडिकल बोर्ड में ही है.

वर्ना, तुम ख़ुद ही सोचो. साइबेरिया के करोड़पति का बेटा, जिसने ख़ुद को गोली मार ली थी, बीबी – यहाँ के फैंक्ट्री मालिक और ज़मींदार की बेटी. पार्टिज़ानों के साथ था और वहाँ से भाग गया. चाहे किसी भी तरह क्यों न सोचो, ये फ़ौजी-क्रांतिकारी टुकड़ियों को छोड़ देना है, पलायन है. तुम्हें किसी भी परिस्थिति में हालात से दूर नहीं रहना चाहिये, बगैर किसी कानूनी दर्जे के. मेरी हालत भी पुख़्ता नहीं है. मैं भी काम करने जाऊँगी, प्रांतीय शिक्षा विभाग में चली जाऊँगी. मेरे पैरों के नीचे भी ज़मीन जल रही है.”

“कैसे जल रही है? और स्त्रेल्निकव?”

“इसीलिये तो जल रही है, कि स्त्रेल्निकव है. मैं पहले भी तुम्हें बता चुकी हूँ, कि उसके कितने दुश्मन हैं. रेड आर्मी जीत गई. अब पार्टीहीन फ़ौजियों को, जो ऊपरी अधिकारियों के निकट थे और काफ़ी ज़्यादा जानते हैं, सज़ा दे रहे हैं. ये तो अच्छा है, अगर सज़ा दे रहे हैं, न कि मौत के घाट उतार रहे हैं, जिससे उनका नामोनिशान न बचे. उनमें पाशा सबसे आगे है. वह बहुत बड़े ख़तरे मैं है. वह सुदूर पूर्व में था. मैंने सुना कि वह भाग गया, छुपता फिर रहा है. कहते हैं कि उसे ढूँढ़ रहे हैं. मगर उसके बारे में इतना ही काफ़ी है. मुझे रोना अच्छा नहीं लगता, और अगर एक भी और शब्द उसके बारे में बोलूँगी, तो मुझे लगता है कि मैं गला फ़ाड़कर रोने लगूँगी.”

“तुमने प्यार किया था, क्या तुम अभी भी उससे बहुत प्यार करती हो?”   

“आख़िर मैंने उससे शादी की है, वह मेरा पति है, यूरच्का. यह एक महान, पाक-साफ़ चरित्रवाला इन्सान है. मैं उसके सामने बेहद गुनहगार हूँ. मैंने उसके साथ कोई बुराई नहीं की थी, यह कहना झूठ होता. मगर वह बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण आदमी है, बड़े सीधे-सच्चे स्वभाव का, और मैं – कचरा, उसके मुकाबले में मैं कुछ भी नहीं हूँ. यही मेरा अपराध है. मगर, प्लीज़, इस बारे में और नहीं. किसी और समय मैं ख़ुद इस विषय पर लौटूँगी, वादा करती हूँ. कैसी अनोखी है ये, तुम्हारी तोन्या. बिल्कुल बोटिचेली की मॉडेल. मैं उसके प्रसव के समय उपस्थित थी. मैं उसके काफ़ी निकट हो गई थी. मगर इस बारे में भी कभी बाद में, तुमसे विनती करती हूँ. हाँ, तो चलो, हम एक साथ काम करें. दोनों नौकरी पर जायेंगे. हर महीने करोड़ों की तनख़्वाह मिलेगी. हमारे यहाँ, पिछले तख़्तापलट से पहले साइबेरिया की मुद्रा चलती थी. अभी कुछ ही दिन पहले उसे रद्द कर दिया गया, और लम्बे समय तक, तुम्हारी पूरी बीमारी के दौरान, हम बिना किसी मुद्रा के रहे. हाँ. ज़रा सोचो. यकीन करना मुश्किल है, मगर किसी तरह इंतज़ाम हो गया. अब भूतपूर्व ट्रेझरी में पूरी ट्रेन भरके नोट आये हैं, कहते हैं, कम से कम चालीस डिब्बे भरके. उन्हें दो रंगों के कागज़ पर छापा गया है, नीले और लाल, डाक-टिकट जैसा, और उन पर महीन ग्राफ़ बने हैं. नीले नोटों पर पचास-पचास लाख चौखाने, लाल नोटों एक-एक करोड. जल्दी धुँधले पड़ जाते हैं, छपाई बुरी है, रंग उतर जाता है.”

“मैंने इन नोटॉं को देखा है. उन्हें हमारे मॉस्को से निकलने के ठीक पहले जारी किया गया था.”

 

12

“तुम वरिकीना में इतने दिन क्या करती रहीं? वहाँ तो कोई भी नहीं है, खाली है न? किस बात ने तुम्हें वहाँ रोक लिया था?”

“मैंने कातेन्का के साथ मिलकर तुम्हारे घर की सफ़ाई की. मुझे डर था कि सबसे पहले तुम वहीं  जाओगे. मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हें अपना घर इस हालत में मिले.”

“कैसी हालत में? वहाँ क्या था, कोई तोड़-फोड़, अस्तव्यस्तता?”

“अस्तव्यस्तता. गंदगी. मैंने सब ठीक कर दिया.”

“ये क्या बात है, टालने जैसी, एक ही शब्द में जवाब देने की. तुम पूरी बात नहीं बता रही हो, तुम कुछ छुपा रही हो. ख़ैर, तुम्हारी मर्ज़ी, मैं जानने की कोशिश नहीं करूँगा. मुझे तोन्या के बारे में बताओ. बच्ची का नाम क्या रखा है?”

“माशा. तुम्हारी माँ की याद में.”

“मुझे उनके बारे में बताओ.”

“प्लीज़, कुछ देर बाद. मैंने तुमसे कहा तो है कि मैं मुश्किल से अपने आँसू रोक पा रही हूँ.”

“ये सामदिव्यातव, जिसने तुम्हें घोड़ा दिया था, बड़ी दिलचस्प हस्ती है. तुम्हारा क्या ख़याल है?”

“बेहद दिलचस्प.”

“मैं अन्फीम एफ़ीमविच को बहुत अच्छी तरह जानता हूँ. वह यहाँ, हमारे लिये नई जगहों में, हमारे परिवार का दोस्त था, हमारी मदद करता था.”

“मैं जानती हूँ. उसने मुझे बताया था.”

“आप शायद दोस्त हैं? वह तुम्हारे लिये भी मददगार साबित होने की कोशिश करता है?”

वह मुझ पर एहसानों की झड़ी लगा देता है. पता नहीं, कि उसके बगैर मैं क्या करती.”

“आसानी से समझ सकता हूँ, आपके बीच शायद संक्षिप्त, दोस्ताना संबंध हैं, सिर्फ यूँ ही आ जाता है? वह शायद तुम्हारे लिये कुछ भी करने को तैयार है.”

“और क्या. लगातार.”

“और तुम? मगर माफ़ी चाहता हूँ, मैं शायद अपनी सीमा पार कर रहा हूँ. ये, मैं किस अधिकार से तुमसे पूछ रहा हूँ? माफ़ करना. ये गुस्ताख़ी है.”

“ओह, प्लीज़. तुम्हारी दिलचस्पी शायद किसी दूसरी बात में है – हमारे बीच संबंधों के बारे में? तुम जानना चाहते हो कि कहीं हमारे सीधे-सादे परिचय के बीच कोई व्यक्तिगत बात तो नहीं आ गई है? बेशक, नहीं. मैं अनगिनत एहसानों के लिये अन्फ़ीम एफ़िमविच की शुक्रगुज़ार हूँ, उसके एहसानों के कर्ज़ में मैं पूरी तरह डूबी हुई हूँ, मगर यदि वह मुझे सोने से भी मढ़ देता, अगर मेरे लिये अपनी जान भी कुर्बान कर देता, तो भी ये मुझे एक भी कदम उसके नज़दीक नहीं लाता. मुझे जन्म से ही ऐसे असंबद्ध लोगों से नफ़रत है. रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इन मेहनती, आत्मविश्वासी, आज्ञा देने वाले लोगों का कोई मुकाबला नहीं है. मगर दिल के मामलों में उनकी मुर्गे जैसी मुच्छड़, मर्दानी आत्मसंतुष्टता घिनौनी होती है. निकटता और ज़िंदगी को मैं बिल्कुल अलग तरह से समझती हूँ. मगर सिर्फ इतना ही नहीं है. नैतिक स्तर पर अन्फीम मुझे किसी और व्यक्ति की याद दिलाता है, बेहद घृणित आदमी की, उस बात का अपराधी, कि मैं ऐसी हूँ, जिसकी बदौलत मैं वो हूँ, जो मैं हूँ.”

“मैं समझ नहीं पा रहा हूँ. और तुम हो कैसी? तुम कहना क्या चाहती हो. समझाओ. तुम दुनिया में सबसे अच्छी इन्सान हो.”

“आह, यूरच्का, क्या ऐसा कहना चाहिये? मैं तुमसे गंभीरता से बात कर रही हूँ, और तुम तारीफ़ किये जा रहे हो, जैसे ड्राईंग रूम में हो. तुम पूछ रहे हो कि मैं कैसी हूँ. मैं – टूट चुकी हूँ, मेरी ज़िन्दगी में हमेशा के लिये एक दरार पड़ चुकी है. मुझे समय से पहले, आपराधिक रूप से बहुत कच्ची उम्र में, पुराने ज़माने के एक आत्मविश्वासपूर्ण, अधेड़, परजीवी द्वारा, जिसके पास सब कुछ था, जो ख़ुद को हर बात की इजाज़त देता था, जीवन की झूठी व्याख्या देकर, ज़िंदगी में अत्यंत निकृष्ट तरीके से प्रवेश देकर, औरत बना दिया गया था.”  

“मैं अंदाज़ लगा सकता हूँ. मैं कुछ अनुमान तो लगा रहा था. मगर, रुको. उस ज़माने की तुम्हारी गैर बचकानीपीड़ा को, भयभीत अनुभवहीनता के डर को, अपरिपक्व लड़की के पहले अपमान को समझना आसान है. मगर ये तो गुज़रे हुए ज़माने की बात है. मैं कहना चाहता हूँ, - इस समय उसके बारे में अफ़सोस करना तुम्हारी नहीं, बल्कि उन लोगों का दुःख है जो तुम्हें प्यार करते हैं, जैसे मैं. ये तो मुझे अपने बाल नोंच लेने चाहिये और देर होने के कारण बदहवास होना चाहिये., इसलिये कि उस समय मैं तुम्हारे साथ नहीं था, जिससे की होनी को रोक सकूँ, अगर वाकई में ये तुम्हारे लिये दुख की बात है. अचरज की बात है. मुझे लगता है, कि मैं पूरी ताकत से, जुनून से, शिद्दत से सिर्फ उन लोगों से ईर्ष्या कर सकता हूँ, जो मुझसे कहीं निचले स्तर पर हैं और दूर हैं. अपने से ऊँचे लोगों से प्रतिद्वंद्विता मुझमें बिल्कुल दूसरे ही भाव जगा देती है. अगर कोई ऐसा आदमी जो मेरे दिल के करीब है और जिससे मैं प्यार करता हूँ उसी औरत से प्यार करने लगे, जिसे मैं चाहता हूँ, तो मेरे दिल में उसके प्रति दयनीय बंधुत्व की भावना होती, न कि बहस और मुकदमेबाज़ी की. बेशक, मैं अपने प्यार को एक भी मिनट के लिये उसके साथ नहीं बांटता. मगर मैं ईर्ष्या के बदले पीड़ा की एक अलग ही भावना के साथ पीछे हट जाता, न कि भीतर ही भीतर सुलगती हुई और ख़ून खराबे वाली भावना से. वैसा ही किसी कलाकार के साथ मेरी मुठभेड़ होने पर भी होता, जिसने मुझसे मिलती-जुलती हुई रचनाओं में अपनी श्रेष्ठता से मुझे जीत लिया हो. मैं, शायद, उसके प्रयासों को दुहराती हुई अपनी तलाश से मुँह फ़ेर लेता, जिन्होंने मुझे जीत लिया हो.    

“मगर मैं विषय से हट गया. मैं सोचता हूँ, कि मैं तुमसे इतनी शिद्दत से प्यार नहीं करता, अगर तुम्हारे जीवन में कोई शिकायत करने लायक और सहानुभूति लायक कोई चीज़ न होती. मैं सच्चे लोगों को पसन्द नहीं करता, जो गिरे नहीं हैं, जिन्होंने ठोकर नहीं खाई है. उनकी अच्छाईयाँ मृतप्राय है और वह बहुमूल्य नहीं है. ज़िंदगी की सुंदरता के दर्शन उन्हें हुए ही नहीं हैं.”

“और मैं इसी सुंदरता के बारे में कह रही हूँ. मुझे लगता है, कि उसे देखने के लिये अछूती कल्पना की, प्रारंभिक अनुभूति की ज़रूरत है. और यही मुझसे छीन लिया गया था. हो सकता है, कि ज़िंदगी के प्रति मेरा अपना ही कोई दृष्टिकोण होता, अगर आरंभिक कदमों में ही उस पर पराये, घिनौने कदमों की छाप न पड़ी होती. मगर यही सब कुछ नहीं है. मेरी शुरू हो रही ज़िंदगी में एक अनैतिक, विषयासक्त, सामान्य कोटि के व्यक्ति की दखलंदाज़ी से एक महान और अद्भुत व्यक्ति के साथ, जो मुझे बेहद प्यार करता था और जिसे मैं वैसा ही प्रतिसाद देती थी, मेरा भावी विवाह भी सफ़ल नहीं हुआ.”

“रुको. पति के बारे में मुझे बाद में बताना. मैंने तुमसे कहा था, कि ईर्ष्या की भावना मुझमें साधारण रूप से निम्न कोटि के लोग जगाते हैं, न कि मेरे समकक्ष. तुम्हारे पति से मुझे कोई ईर्ष्या नहीं होती. मगर वह?”

“कौन “वह”?

“वही चरित्रहीन आदमी, जिसने तुम्हें बर्बाद कर दिया. वह कौन है?”

“मॉस्को का काफ़ी मशहूर एडवोकेट. वह मेरे पिता का मित्र था, और पापा की मौत के बाद, जब हम ग़रीबी में दिन काट रहे थे, तो आर्थिक दृष्टि से मम्मा की सहायता करता था. कुँआरा, पैसे वाला. जिस तरह से मैं उस पर कीचड़ उछाल रही हूँ, शायद, उसे बेहद दिलचस्प बना रही हूँ और बेकार का महत्व दे रही हूँ. बेहद साधारण चीज़ है. अगर चाहते हो, तो मैं तुम्हें उसका नाम बताऊँगी.”

“ज़रूरत नहीं है. मैं जानता हूँ. मैंने उसे एक बार देखा था.”

“क्या सचमुच?”

“एक बार होटल के कमरे में, जब तुम्हारी माँ ने ज़हर खा लिया था. देर रात को. हम बच्चे थे, स्कूल में पढ़ते थे.”

“ओह, वो घटना मुझे याद है. आप आये थे और अँधेरे में खड़े थे, कमर के प्रवेश कक्ष में. हो सकता है, मैं ख़ुद उस दृश्य को कभी याद न करती, मगर तुमने एक बार पहले भी उसे ताज़ा करने में मेरी मदद कर चुके हो. तुम मुझे उसकी याद दिलाई थी, मेरा ख़याल है, मेल्यूज़ेयेवा में.”

“कमारोव्स्की वहाँ था.”

“क्या सच में? संभव है. मुझे उसके साथ पाना आसान था. हम अक्सर साथ-साथ रहते थे.”

“तुम लाल क्यों हो गईं?”     

“तुम्हारे होठों से “कमारोव्स्की” सुनकर. अनभ्यस्त होने के कारण और अनपेक्षित होने से.”

“मेरे साथ मेरा दोस्त था, स्कूल का सहपाठी. उसने तभी, होटल के कमरे में, मुझे बताया था. उसने कमारोव्स्की में उस आदमी को पहचान लिया जिसे उसने एक बार, संयोगवश, अनपेक्षित परिस्थितियों में देखा था. एक बार ट्रेन में यह लड़का, स्कूल का विद्यार्थी, मिखाईल गोर्दन मेरे पिता - करोड़पति उद्योगपति की आत्महत्या का प्रत्यक्ष गवाह था. मीशा उसके साथ एक ही ट्रेन में जा रहा था. मेरे पिता अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने के इरादे से चलती ट्रेन से नीचे कूद गये और कुचले गये. पिता के साथ कमारोव्स्की था, जो उनका वकील था. कमारोव्स्की ने मेरे पिता को शराबी बना दिया, उनका काम चौपट कर दिया और उन्हें दिवालियेपन की कगार पर लाकर, मौत के रास्ते पर धकेल दिया. वह उनकी आत्महत्या का अपराधी है, और इस बात का भी कि मैं अनाथ हो गया.”

“ऐसा नहीं हो सकता! कैसा ग़ज़ब का वर्णन है! क्या ये सच है! तो वह तुम्हारा भी दुष्ट जिन्न था? यह हमें कितना नज़दीक ले आया है! जैसे कोई पूर्वनियोजन हो.”

“यही है वो, जिससे तुम्हें लेकर मुझे पागलपन की हद तक ईर्ष्या होती है, जिसे कम नहीं किया जा सकता.”

“क्या कह रहे हो! मैं सिर्फ उससे ज़रा भी प्यार नहीं करती, बल्कि नफ़रत करती हूँ.”

क्या तुम अपने आप को इतनी अच्छी तरह जानती हो? इन्सान का, ख़ास तौर से औरत का स्वभाव इतना गूढ़ और अन्तर्विरोधी होता है! अपनी नफ़रत के किसी छोटे से कोने में तुम, हो सकता है, सबसे ज़्यादा उसके अधिकार में हो, बनिस्बत किसी और की अपेक्षा जिसे तुम अपनी मर्ज़ी से प्यार करती हो, बिना किसी ज़ोर-ज़बर्दस्ती के.”

“कितना भयानक है, जो तुमने अभी कहा. और, हमेशा की तरह इतनी सटीकता से कहा, कि यह अप्राकृतिकता मुझे सही लग रही है. मगर तब ये कितना भयानक है!”

“शांत हो जाओ. मेरी बात मत सुनो. मैं कहना चाहता था कि तुम्हें लेकर मुझे ईर्ष्या होती है उस रहस्यमय, अवचेतन से, उससे, जिसका स्पष्टीकरण बेमानी है, जिसके बारे में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता. मैं तुम्हारे प्रसाधन की चीज़ों से ईर्ष्या करता हूँ, तुम्हारी त्वचा पर आई पसीने की बूंदों से, हवा में तैरती संक्रामक बीमारियों से, जो तुमसे लिपटकर तुम्हारा ख़ून ज़हरीला बना सकती हैं. और जैसे मैं ऐसे संक्रमण से ईर्ष्या करता हूँ, उसी तरह कमारोव्स्की से ईर्ष्या करता हूँ, जो कभी तुम्हें मुझसे छीन लेगा, जैसे कभी तुम्हारी या मेरी मौत हमें एक दूसरे से जुदा कर देगी. मैं जानता हूँ, कि तुम्हें ये सब दुरूहताओं का पहाड़ लग रहा होगा. मगर मैं इसे ज़्यादा अच्छी तरह, और समझने योग्य तरीके से नहीं कह सकता. मैं तुमसे पूरे जुनून से, शिद्दत से, बेपनाह प्यार करता हूँ.

 

13

          

  मुझे अपने पति के बारे में कुछ और बताओ. “दुर्भाग्य की किताब में हम एक ही पंक्ति में हैं,” – जैसा शेक्सपियर कहता है.

“ये कहाँ से है?”

रोमिओ और जूलिएट से”.

“मैं मेल्यूज़ेयेवो में उसके बारे में तुम्हें काफ़ी कुछ बता चुकी हूँ, जब उसे ढूँढ़ रही थी. और फिर यहाँ, युर्यातिन में, हमारी आरंभिक मुलाकातों के दौरान, जब तुम्हारी बातों से मुझे पता चला कि वह तुम्हें अपने कम्पार्टमेन्ट में गिरफ़्तार करना चाहता था. मैंने अपने तरीके से तुम्हें बताया था, या शायद न भी बताया हो, और मुझे सिर्फ ऐसा लगता है कि मैंने उसे एक बार दूर से देखा था, जब वह कार में बैठ रहा था. ख़ैर तुम कल्पना कर सकते हो, कि उसकी कैसे सुरक्षा की जाती थी! मैंने देखा कि वह बिल्कुल भी नहीं बदला है. वही ख़ूबसूरत, ईमानदार, दृढ़निश्चयी चेहरा, सभी चेहरों में सबसे ज़्यादा ईमानदार, जिन्हें मैंने दुनिया में देखा है. ज़रा भी दिखावा नहीं, मर्दाना चरित्र, बनावट का पूरी तरह अभाव. हमेशा से ऐसा ही था और ऐसा ही रहा. मगर फ़िर भी एक परिवर्तन पर मैंने गौर किया और उसने मुझे चिंतित कर दिया.                    

जैसे कोई गूढ़ सी चीज़ इस आकृति में प्रवेश कर गई है और उसे बदरंग कर दिया है. जीवित मानवी चेहरा अवधारणा का प्रतीक, सिद्धांत, मूर्तिमान रूप बन गया था. यह देखकर मेरा दिल ऐंठने लगा. मैं समझ गई कि ये उन ताकतों का परिणाम है जिनके हाथों में उसने अपने आप को सौंप दिया था, उन ताकतों का जो महान हैं, मगर मृतप्राय बना देती हैं, बेरहम हैं, जो किसी दिन उसे भी नहीं बख़्शेंगी. मुझे ऐसा लगा, कि उस पर निशान लगा दिया गया है और यह कयामत की उंगली है. मगर हो सकता है कि मैं उलझन में पड़ गई हूँ. हो सकता है, मेरे भीतर तुम्हारे भाव प्रवेश कर गये हो, जब तुमने उससे मुलाकात का वर्णन किया था. हमारे विचारों की समानता के साथ-साथ ही मैं तुमसे कितना कुछ ले लेती हूँ!”

“नहीं, मुझे क्रांति से पहले की आपकी ज़िंदगी के बारे में बताओ.”

“मैं बचपन में, काफ़ी शुरू से ही, पवित्रता के सपने देखती थी. वह उसका साकार रूप था. ख़ैर, हम लगभग एक ही कम्पाऊण्ड से हैं. मैं, वह, गलिऊलिन. मैं उसका बचपन का प्यार थी. मुझे देखते ही वह बेहोश होने लगता, उसके हाथ-पाँव ठण्डे पड़ जाते. शायद, ये अच्छी बात नहीं है कि मैं यह कह रही हूँ और जानती हूँ. मगर ये और भी बुरा होता अगर मैं अनजान होने का नाटक करती. मैं उसका बचपन का जुनून थी, गुलाम बनाने वाला वह शौक, जिसे छुपाते हैं, जिसे बचपन का स्वाभिमान ज़ाहिर करने की इजाज़त नहीं देता, और जो बिना किन्हीं शब्दों के चेहरे पर लिखा होता है और हरेक को नज़र आता है. हम दोस्त थे. व्यक्तिगत तौर पर मेरी उससे इतनी भिन्नता है, जितनी समानता तुम्हारे साथ है. मैंने तभी दिल से उसे चुन लिया था. मैंने फ़ैसला कर लिया था कि जैसे ही हम अपना जीवन शुरू करेंगे, मैं इस आश्चर्यजनक लड़के के साथ ज़िन्दगी जोड़ लूँगी, और तभी मैंने मन ही मन उससे सगाई कर ली थी.

“और ज़रा सोचो, उसमें कितनी विशेषताएँ हैं! असाधारण! एक साधारण सिग्नलमैन या रेल्वे के चौकीदार का बेटा, उसने अकेले ही अपनी प्रतिभा और ज़िद से हासिल कर लिया, - मैं बस कहने ही वाली थी, ‘स्तर बल्कि मुझे कहना चाहिये था – आधुनिक युनिवर्सिटी के ज्ञान की ऊँचाई को दो विषयों में, गणित और मानविकी. ये कोई मज़ाक की बात नहीं है!”

“जब आप दोनों एक दूसरे से इतना प्यार करते थे, तो फिर आपका घरेलू सामंजस्य क्यों बिखर गया?”

“आह, कितना मुश्किल है इसका जवाब देना. मैं अभी तुम्हें बताती हूँ. मगर आश्चर्य की बात है. क्या मैं कमज़ोर औरत, तुम्हें, इतने बुद्धिमान आदमी को समझा पाऊँगी कि आजकल ज़िंदगी में, आम तौर से रूस में इन्सान की ज़िंदगी में क्या हो रहा है, और परिवार क्यों बिखरते हैं, जिनमें तुम्हारा और मेरा परिवार भी शामिल है? आह, मामला जैसे लोगों का है, चरित्र की समानता और विषमता का, प्यार का और नफ़रत का. हर चीज़ जो प्राप्त की गई थी, समन्वय में थी, हर चीज़ जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी से, इन्सान के घोंसले से, नियमों से संबंधित थी, वह समूचे समाज की उथल-पुथल और उसके पुनर्निर्माण के साथ ही धूल में मिल गई. ज़िंदगी की हर चीज़ उलट-पुलट हो गई और नष्ट हो गई. सिर्फ रह गई अनुपयोगी, अप्रयुक्त ताकत नग्न, तार-तार कर दी गई आत्मा की, जिसके लिये कुछ भी नहीं बदला था, क्योंकि वह पूरे समय ठण्ड से थरथरा रही थी और निकट ही किसी आत्मा की ओर खिंच रही थी, जो वैसी ही नग्न और अकेली थी. मैं और तुम, पहले मानव, आदम और हव्वा की तरह हैं, जिनके पास सृष्टि के आरंभ में तन ढाँपने के लिये कुछ भी नहीं था, और हम इस समय, उसके अंत में, वैसे ही वस्त्रहीन और आश्रयहीन हैं. और हम दोनों अंतिम याद हैं उन अनगिनत महान चीज़ों की, जिसकी उनके और हमारे बीच के कई हज़ार सालों के दौरान दुनिया में रचना की गई थी, और इन लुप्त होते आश्चर्यों की याद में हम साँस लेते हैं और प्यार करते हैं, और रोते हैं, और एक दूसरे का सहारा लेते हैं और एक दूसरे से चिपके रहते हैं”.

 

 

14

कुछ देर रुकने के बाद वह काफ़ी शांति से आगे कहने लगी:

“मैं तुम्हें बताऊँगी. काश, स्त्रेल्निकव फिर से पाशा अंतीपव हो जाता. काश, वह बेवकूफ़ी करना और विद्रोह करना बंद कर देता. काश, समय पीछे चला जाता. काश, कहीं दूर, दुनिया के छोर पर, किसी चमत्कारवश हमारे घर की खिड़की गरमाती, पाशा की लिखने की मेज़ पर रखे लैम्प और किताबों से, मैं शायद, घुटनों के बल रेंगती हुई वहाँ चली जाती. मेरे भीतर की हर चीज़ हिल जाती. माज़ी की पुकार पर, वफ़ा की पुकार पर मैं रुक नहीं सकती थी. मैं हर चीज़ कुर्बान कर देती. अपनी सबसे प्यारी चीज़ भी. तुम्हें भी. और मेरी तुमसे निकटता, जो इतनी सहज है, जिसमें कोई ज़ोरज़बर्दस्ती नहीं है, इतनी स्वयम् प्रेरित है. ओह, माफ़ करना. मैं वो नहीं कह रही हूँ. ये सच नहीं है.”

वह उसके कन्धे से लिपट गई और बिसूरने लगी. बहुत जल्दी उसने ख़ुद पर काबू कर लिया. आँसू पोंछते हुए वह बोली:

“मगर, यह वही पुकार है उस कर्तव्य की, जो तुम्हें तोन्या के पास धकेलती है. या, ख़ुदा, हम कितने बेचारे;’ हैं? हमारा क्या होगा? हमें क्या करना चाहिये?”

जब वह पूरी तरह शांत हो गई, तो उसने आगे कहा:

मैंने अभी भी तुम्हें इस बात का जवाब नहीं दिया है कि हमारा सुख क्यों बर्बाद हो गया. मैं बाद में इतनी स्पष्टता से इस बात को समझ गई. मैं तुम्हें बताऊँगी. ये कहानी होगी न सिर्फ हमारी. ये कई लोगों की किस्मत बन गई थी.”

“बोलो, मेरी होशियार बच्ची.”

“हमारी शादी ठीक युद्ध से पहले हुई थी, उसके शुरू होने से दो साल पहले. और हम सिर्फ अपनी बुद्धि के बल पर जी रहे थे, हमने घर बनाया, युद्ध का ऐलान हो गया. अब मुझे विश्वास है कि वही हर बात के लिये अपराधी है, बाद में होती रहीं दुर्भाग्यशील घटनाओं के लिये, जो आज तक हमारी पीढ़ी को दबोचे हुए हैं. मुझे अपना बचपन अच्छी तरह याद है. मैंने उस समय को देखा है जब पिछली शांतिपूर्ण शताब्दी की मान्यताओं का प्रचलन था. तर्क की आवाज़ पर भरोसा किया जाता था. अंतरात्मा जो कहती, उसे नैसर्गिक और आवश्यक मानते थे. एक आदमी की दूसरे आदमी के हाथों मौत दुर्लभ, असाधारण, अप्रचलित घटना होती थी. हत्याएँ, ऐसा मानते थे, कि सिर्फ शोकांतिकाओं में, जासूसी उपन्यासों में, और अख़बारों की दैनिक घटनाओं की डायरियों में ही होती थीं, न कि आम ज़िंदगी में.    

“और फिर अचानक शांत, मासूम, नपीतुली ज़िंदगी से यह छलांग - रक्तपात और चीखों में, सामूहिक पागलपन में और हर दिन, हर घण्टे हो रहे कानूनी और प्रशंसित हत्यासत्र की क्रूरता में.

“शायद, यह कभी भी बेकार नहीं जायेगा. तुम्हें, शायद, मुझसे बेहतर याद हो, कि कैसे सब कुछ अचानक नष्ट होने लगा. ट्रेनों का आना-जाना, शहरों में खाद्य सामग्री की आपूर्ति करना, पारिवारिक जीवन के आधारभूत स्तम्भ, अंतरात्मा के नैतिक तत्व”.

“कहती रहो. मुझे मालूम है कि आगे तुम क्या कहोगी. कैसे तुम हर चीज़ का विश्लेषण करती हो! तुम्हें सुनना कितना अच्छा लगता है.”

“तब रूस की धरती पर आया झूठ. प्रमुख दुर्भाग्य, भावी बुराईयों की जड़ था अपनी राय के मूल्य से विश्वास का खोना. यह कल्पना कर ली गई, कि वह समय जब नैतिकता की आवाज़ का अनुसरण किया जाता था, बीत चुका है, कि अब सामूहिक सुर में गाना चाहिये और पराई, सब पर थोपी गई कल्पनाओं से जीना चाहिये. मुहावरों का वर्चस्व बढ़ने लगा, पहले राजतंत्रवादी – फिर क्रांतिकारी.

“यह सामाजिक भ्रम सबको अपनी चपेट में लेने वाला, सांसर्गिक था. सब कुछ उसके प्रभाव में आ गया. हमारा घर भी उसके विनाश के आगे टिक न सका. उसके भीतर कुछ लड़खड़ा गया. एक सहज ज़िंदादिली के स्थान पर, जो हमेशा हमारे घर में राज करती थी, अनिवार्य वैश्विक विषयों के बारे में एक बेवकूफ़ीभरी लच्छेदार भाषा, एक आडम्बरपूर्ण, अनिवार्य पांडित्य का कुछ हिस्सा हमारी बातचीत में घुस गया. क्या पाशा जैसा इतना संवेदनशील और स्वयम् के प्रति सदा दक्ष रहने वाला व्यक्ति, जो किसी वस्तु के बाह्य रूप और उसके सार को इतनी अच्छी तरह समझ सकता है, इस चोरी-छुपे घुस आये झूठ की बगल से गुज़र सकता था और उसे पहचान नहीं पाता?

“और तब उसने एक ख़तरनाक गलती कर दी, जिसने भविष्य की दिशा तय कर दी.

समय के लक्षण को, सामाजिक बुराई को वह घरेलू घटना समझ बैठा. लहज़े की कृत्रिमता, हमारे तर्कों का सरकारी तनाव, ख़ुद के ऊपर ताना समझ बैठा, यह निष्कर्ष निकाला कि वह – एक ठूंठ है, मामूली इन्सान है, खोल में बंद आदमी है. तुम्हें, शायद, अविश्वसनीय लगता होगा कि हमारे पारिवारिक जीवन में ऐसी फ़ालतू बातों का कोई मतलब हो सकता था. तुम कल्पना नहीं कर सकते कि यह कितना महत्वपूर्ण था, इस बचपने की वजह से पाशा ने कितनी बेवकूफ़ियाँ कर डालीं.

“वह युद्ध पर चला गया, जिसकी किसीने उससे माँग नहीं की थी. उसने यह इसलिये किया कि हमें अपने आप से, अपने काल्पनिक उत्पीड़न से आज़ाद कर दे. यहीं से उसका पागलपन शुरू हुआ. किसी नवयुवक की, झूठी स्वार्थपरता से वह ज़िंदगी की ऐसी-ऐसी बातों से आहत होने लगा, जिनका बुरा नहीं मानते हैं. वह घटनाओं के क्रम पर, इतिहास पर खीजने लगा. उनसे झगड़ने लगा. आज तक वह उसके साथ हिसाब चुकता कर रहा है. यहीं से उसकी ललकारती हुई उच्छृंखलता आरंभ हो गई. इस मूर्खतापूर्ण महत्वाकांक्षा के कारण वह अवश्यंभावी मृत्यु की ओर जा रहा है. काश, मैं उसे बचा पाती!”

“कितनी अविश्वसनीय पाकीज़गी और शिद्दत से तुम उससे प्यार करती हो! प्यार करो, उससे प्यार करो. तुम्हें लेकर मैं उससे ईर्ष्या नहीं करता, मैं ख़लल नहीं डालूँगा.”

 

15

पता ही नहीं चला कि गर्मियाँ कब आईं और कब गुज़र गईं. डॉक्टर ठीक हो गया. मॉस्को के अपेक्षित प्रस्थान की आशा में वह अस्थाई तौर से तीन जगहों पर काम करने लगा. मुद्रा के तेज़ी से बढ़ते हुए अवमूल्यन ने उसे कई जगहों पर काम करने के लिये मजबूर कर दिया.

डॉक्टर मुर्गे की बांग के साथ ही उठ जाता, कुपेचेस्काया स्ट्रीट पर आता और उस पर स्थित “जायन्ट” थियेटर के पास से गुज़रते हुए युराल-कज़ाक आर्मी के भूतपूर्व प्रिंटिंग प्रेस तक आता, जिसका नाम अब “रेड प्रिंटिंग प्रेस” हो गया था. गरद्स्काया के नुक्कड़ पर, सरकारी मामलों के दफ़्तर के दरवाज़े पर उसे “शिकायत–ब्यूरो” की तख़्ती दिखाई देती. वह वह एक कोने से दूसरे कोने तक चौक पार करके मालाया बुयानव्का पर निकलता. स्तेनहोप कारखाना पार करके वह अस्पताल के पिछले दरवाज़े से मिलिट्री हॉस्पिटल की डिस्पेन्सरी में आता, जहाँ वह मुख्य रूप से काम करता था.

उसका आधा रास्ता घने, रास्ते पर टंगे हुए छायादार वृक्षों के नीचे से, अजीब तरह के, अधिकतर लकड़ी के घरों के सामने से होते हुए जाता, जिनकी छतें ऊपर को उठती हुई थीं, जालीदार बागड़, लोहे के गेट और दरवाज़ों पर नक्काशी की हुई थी.     

डिस्पेन्सरी की बगल में, व्यापारी गोरेग्ल्यादवा की पैतृक बाग में पुरानी रूसी शैली में बना हुआ, एक कम ऊँचाई का, विलक्षण घर था. उसके दर्शनीय भाग पर पुराने मॉस्को के सामन्तों के महलों के समान हीरे की तरह कटी हुई चमकदार टाईल्स के टुकड़े जड़े थे, जिनके नुकीले हिस्से बाहर की ओर थे.

डिस्पेन्सरी से यूरी अन्द्रेयेविच दस दिनों के सप्ताह में तीन-चार बार पुरानी मिआस्काया स्ट्रीट पर स्थित लिगेती के पुराने घर में स्थित युर्यातिन प्रादेशिक स्वास्थ्य कमिशन की मीटिंग्स में जाया करता.

शहर के एकदम दूसरे, दूर के भाग में वह घर था जिसे अन्फीम एफिमविच सामदिव्यातव के पिता ने अपनी स्वर्गवासी पत्नी की याद में शहर को समर्पित कर दिया था जो अन्फीम को जन्म देते ही मर गई थी. इस घर में सामदिव्यातव द्वारा स्थापित स्त्री-रोग और प्रसूति विज्ञान संस्थान हुआ करता था. अब वहाँ रोज़ा ल्युक्समबर्ग मेडिकल-सर्जिकल त्वरित कोर्सेस की शिक्षा दी जाती थी. यूरी अन्द्रेयेविच यहाँ जनरल पैथोलॉजी और कुछ ऐच्छिक विषय पढ़ाया करता था.            

इन सब कामों से वह रात को थका हारा और भूखा लौटता, और लारा फ़्योदरव्ना को घर के कामों में डूबा हुआ पाता, या तो वह स्टोव्ह के पास होती या टब के सामने होती. इस गद्यात्मक और घरेलू अवतार में, अस्त-व्यस्त, आस्तीनें ऊपर किये और स्कर्ट के किनारे को खोंसे हुए, वह अपने शाही, लुभावने आकर्षण से लगभग डरा देती थी, उससे भी ज़्यादा, जब वह उसे अचानक बॉल-नृत्य में जाने से पहले देखता, ऊँची एड़ियों पर लम्बी हो गई, खुली हुई गहरी काट वाली ड्रेस में और चौड़े, सरसर करते स्कर्ट में.

वह खाना बना रही होती या कपड़े धो रही होती, और फिर बचे हुए साबुन के पानी से घर के फ़र्श धोती. या फिरा शांत और कम हड़बड़ाहट में, इस्त्री कर रही होती या अपने, उसके और कातेन्का के कपड़ों की मरम्मत करती. या, पकाने, धोने और सफ़ाई के काम से फ़ुर्सत पाकर कातेन्का को पढ़ाती. या, नये नये, पुनर्निमित स्कूल में फिर से शिक्षिका का काम करने के लिये गाइडमें सिर घुसाकर अपने राजनीतिके पाठ्यक्रम को दुहराती.

यह औरत और बच्ची जितना अधिक उसके निकट होती जातीं, उतना ही कम वह उन्हें परिवार के सदस्य समझने की हिम्मत करता, उतनी ही ज़्यादा उसके विचारों पर बंदिश थी, जो अपनों के प्रति कर्तव्य के ख़याल ने और उनका विश्वास तोड़ने के दर्द ने लगाई थी. इस प्रतिबंध में लारा और कातेन्का के लिये कुछ भी अपमानजनक नहीं था. बल्कि, महसूस करने के इस अपारिवारिक तरीके में आदर की पूरी दुनिया थी, जिसमें मनमानी और भद्देपन के लिये कोई जगह नहीं थी.

मगर यह विभाजन उसे पीड़ा देता और आहत करता, और यूरी अन्द्रेयेविच को इसकी ऐसी आदत हो गई, जैसी किसी न भरे हुए, अक्सर खुलते हुए ज़ख़्म से होती है.

 

16

इस तरह दो-तीन महीने बीत गये. एक बार अक्टूबर में यूरी अन्द्रेयेविच ने लरीसा फ़्योदरव्ना से कहा:

“पता है, लगता है, मुझे नौकरी छोड़नी पड़ेगी. पुरानी, चिरबहार कहानी. शुरू तो बड़ी अच्छी तरह होती है. :ईमानदार काम से हमें हमेशा ख़ुशी होती है. और विचारों से, ख़ासकर नये विचारों से, और भी ज़्यादा ख़ुश होते हैं. उनका स्वागत कैसे न करें. स्वागत है आपका. काम करते रहिये, संघर्ष करते रहिये, ढूँढ़ते रहिये.”

“मगर अनुभव से पता चलता है कि विचारों से उनका तात्पर्य है सिर्फ उनका प्रदर्शन, क्रांति और शासकों का गौरव-गान. ये बहुत थकाने वाला और दुखदाई है. और मैं इस क्षेत्र में चतुर नहीं हूँ.

“और, शायद, वे वाकई में सही हैं. मैं, बेशक, उनके साथ नहीं हूँ. मगर मुझे इस ख़याल से समझौता करने में मुश्किल होती है कि वे “महान” हैं, उज्ज्वल व्यक्तित्व हैं, और मैं – एक नाचीज़ इन्सान, जो अँधेरे के लिये और इन्सान को गुलाम बनाने के लिये खड़ा हूँ. क्या तुमने कभी निकलाय विदिन्यापिन का नाम सुना है?”

“बेशक. तुमसे परिचय होने से पहले, और बाद में तुम्हारी बातों से. सिमोच्का तुन्त्सेवा. वह उसकी अनुयायी है. मगर, शर्म की बात है, कि मैंने उसकी किताबें नहीं पढ़ी हैं. मुझे पूरी तरह से दर्शन शास्त्र पर लिखे गये लेख पसन्द नहीं हैं. मेरी राय में दर्शन शास्त्र का प्रयोग सिर्फ कला और जीवन को स्वादिष्ट बनाने के लिये किया जाना चाहिये. सिर्फ उसी का अध्ययन करना उतना ही अजीब होगा, जैसे सिर्फ मूली खाना. वैसे, माफ़ करना, मैंने अपनी बेवकूफ़ियों से तुम्हारा ध्यान हटा दिया.”

“नहीं, बल्कि विपरीत ही हुआ. मैं तुमसे सहमत हूँ. ये विचारधारा मेरे दिल के बहुत नज़दीक है. तो, मामा के बारे में. हो सकता है, मैं वाकई में उसके प्रभाव से बिगड़ गया हूँ. मगर, वे ख़ुद ही एक सुर में चिल्लाते हैं : प्रतिभावान रोग-निदानकारक, प्रतिभावान रोग-निदानकारक. और सच में, मैं कभी-कभार ही बीमारी का निदान करने में गलती करता हूँ. मगर इस अंतर्ज्ञान से ही तो वे नफ़रत करते हैं, जिसका मैं अपराधी हूँ, सम्पूर्ण ज्ञान, जिसमें पूरी तस्वीर शामिल है.

“मैं मिमिक्री के प्रश्न का दीवाना हूँ, शरीर के अंगों का आसपास के वातावरण के साथ अनुकूलन. यहाँ, रंगों के इस समायोजन में आंतरिक से बाह्य की ओर संक्रमण निहित है.

मैंने अपने भाषणों में इसे छूने की हिम्मत की थी. और, हो गया शुरू! “आदर्शवाद, रहस्यवाद. ग्योथे का प्राकृतिकदर्शन, न्यू शिलिंगवाद”  

“चले जाना चाहिये. प्रादेशिक स्वास्थ्य कमिशन और इन्स्टिट्यूट से तो मैं स्वेच्छा से इस्तीफ़ा दे दूँगा, और हॉस्पिटल में बने रहने की कोशिश करूँगा, जब तक वे मुझे निकाल नहीं देते. मैं तुम्हें डराना नहीं चाहता, मगर कभी-कभी मुझे ये महसूस होता है कि आज नहीं तो कल मुझे गिरफ़्तार कर लेंगे.”

“ख़ुदा बचाये, यूरच्का. इसकी नौबत आने में, ख़ुशकिस्मती से, अभी देर है. मगर तुम ठीक कह रहे हो. सावधान रहने में कोई हर्ज नहीं है. जहाँ तक मैंने ग़ौर किया है, इस युवा शासन का हर पड़ाव कई अवस्थाओं से गुज़रता है. आरंभ में यह तर्क की विजय, आलोचनात्मक प्रवृत्ति, पूर्वाग्रहों से संघर्ष है.

इसके बाद आती है दूसरी अवस्था. “पिछलग्गुओं”, बनावटी सहानुभूति दिखाने वालों की काली शक्तियों का पलड़ा भारी होता है. संदेह, भर्त्सना, षड़यन्त्र. नफ़रत का बोलबाला होने लगता है. और तुम ठीक कहते हो, हम दूसरी अवस्था के आरंभ में हैं.

उदाहरण के लिये ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है. यहाँ क्रांतिकारी ट्रिब्युनल के बोर्ड में दो बूढ़े श्रमिक, राजनैतिक कैदियों को खदात्स्कोए से स्थानांतरित किया गया, किसी तिवेर्ज़िन और अन्तीपव को.

दोनों बहुत अच्छी तरह से मुझे जानते हैं, और उनमें से एक तो मेरे पति का बाप है, मेरा ससुर. मगर, व्यक्तिगत रूप से, उन्हें हाल ही में यहाँ स्थानांतरित किये जाने से मैं अपनी और कातेन्का की ज़िंदगी के बारे में सोचकर थरथर काँपने लगी हूँ. उनसे किसी भी बात की उम्मीद की जा सकती है. अन्तीपव मुझे कोई ख़ास पसन्द नहीं करता. वे यह भी कर सकते हैं कि किसी दिन, वे महान क्रांतिकारी न्याय के नाम पर मुझे और पाशा को भी ख़त्म कर देंगे.

इस बातचीत का सिलसिला काफ़ी जल्दी ही आगे बढ़ा. इस दौरान डिस्पेन्सरी की बगल में, मालाया बुइनोव्का स्ट्रीट पर विधवा गोरेग्ल्यादवा के मकान नंबर अड़तालीस में रात को तलाशी हुई. घर में हथियारों का संचय मिला और क्रांति विरोधी संस्था का भण्डाफोड़ हुआ. शहर में काफ़ी लोगों को गिरफ़्तार किया गया, तलाशियाँ और गिरफ़्तारियाँ चलती रहीं. इस बारे में फुसफुसाहट हो रही थी कि संदेहास्पद लोगों का कुछ हिस्सा नदी पर चला गया है. ऐसे विचार व्यक्त किये जा रहे थे : “इससे उनको क्या लाभ होगा? नदी, नदी में फ़र्क होता है. कहना पड़ेगा, कि कुछ ख़ास किस्म की नदियाँ भी होती हैं. जैसे मिसाल के तौर पर अमूर-पर-ब्लागाविश्चेन्स्क में, एक किनारे पर सोवियत सत्ता है, दूसरे पर – चीन. नदी में कूदकर, तैरते हुए पार कर लो, और, बाय-बाय., ढूँढ़ते रह जाओगे. उसे कहते हैं, नदी. बिल्कुल अलग ही बात है”.                                                    

“वातावरण तंग होता जा रहा है,” लारा कह रही थी. “हमारी सुरक्षा के दिन लद गये. हमें निःसंदेह गिरफ़्तार कर लेंगे, तुम्हें और मुझे. तब कातेन्का का क्या होगा? मैं माँ हूँ. मुझे दुर्भाग्य की आहट से सावधान हो जाना चाहिये और कुछ सोचना चाहिये. मेरे पास इस आपदा का कोई हल होना चाहिये. इस बारे में सोचकर मैं अपनी सारासार बुद्धि खो बैठती हूँ”.

“चलो, सोचते हैं. किस तरह से मदद की जा सकती है? क्या हम इस आघात को रोकने में समर्थ हैं? ये, वाकई में, दुर्भाग्यपूर्ण चीज़ है.”

“भागना असंभव है और भाग कर जायेंगे कहाँ. मगर पीछे हटकर, किसी छाया में जा सकते हैं. मिसाल के तौर पर, वरिकीना जा सकते हैं. मैं वरिकीना के घर के बारे में सोचती हूँ. वह काफ़ी सुरक्षित दूरी पर है और वहाँ सब कुछ वीरान है. वहाँ हम पर किसी की नज़र नहीं पड़ेगी, जैसे यहाँ होता है. सर्दियाँ आ रही हैं. वहाँ सर्दियाँ बिताने की ज़िम्मेदारी मैं लेती हूँ. जब तक वे हम तक पहुँचेंगे, हमें ज़िंदगी का एक साल मिल चुका होगा, और ये फ़ायदे की बात है. शहर से सम्पर्क बनाये रखने में सामदिव्यातव मदद कर सकता है. हो सकता है, वह हमें छुपाने के लिये तैयार हो जाता. आँ? तुम क्या कहते हो? सही है, कि अब वहाँ एक भी इन्सान नहीं है, ख़ौफ़ है, वीराना है. कम से कम मार्च में तो ऐसा ही था, जब मैं वहाँ गई थी. और, कहते हैं, भेड़िये हैं. डरावनी बात है. मगर लोग, ख़ासकर अन्तीपव और तिवेर्ज़िन की तरह के लोग, आजकल भेड़ियों से ज़्यादा ख़तरनाक हैं.”

“पता नहीं कि तुमसे क्या कहूँ. आख़िर, तुम ख़ुद ही मुझे हर वक्त मॉस्को भगाती रहती हो, यकीन दिलाती हो कि सफ़र को स्थगित नहीं करना चाहिये. आजकल यह आसान हो गया है. मैंने रेल्वे स्टेशन पर पूछताछ की थी. कालाबाज़ारियों पर, ज़ाहिर है, ध्यान नहीं देते. सभी बेटिकट यात्रियों को ट्रेन से नहीं उतारते. गोलियाँ मारते-मारते थक गये हैं, गोलियाँ चलाना कम हो गया है.

“मुझे इस बात की चिंता है कि मॉस्को भेजे गये मेरे किसी भी ख़त का जवाब नहीं आया है. वहाँ जाकर पता करना होगा, कि घर के लोगों का क्या हुआ. तुम ख़ुद ही ज़ोर देकर मुझसे यह बात कहती हो. तब वरिकीना के बारे में तुम्हारी बातों को मैं किस तरह से समझूँ? कहीं तुम अकेली, मेरे बिना तो इस भयानक वीराने में नहीं जाओगी?”

“नहीं, तुम्हारे बिना जाने का कोई मतलब ही नहीं है.”

“मगर ख़ुद मुझे मॉस्को भेज रही हो?”

“हाँ, यह ज़रूरी है.”

“सुनो. पता है क्या? मेरे पास एक बढ़िया प्लान है. हम मॉस्को जायेंगे. कातेन्का को लेकर मेरे साथ चलो.”

“मॉस्को? तुम पागल हो गये हो. किस ख़ुशी में? नहीं, मुझे यहीं रुकना होगा. मुझे कहीं पास ही में तैयार रहना होगा. यहाँ पाशेन्का की किस्मत का फ़ैसला होने वाला है. मुझे उसके परिणाम का इंतज़ार करना होगा, जिससे कि अगर ज़रूरत पड़े, तो मैं पास ही में रहूँ.”

“चलो, तब कातेन्का के बारे में सोचते हैं.”

“मेरे पास कभी कभी सीमूश्का आती है. सीमा तून्त्सेवा. अभी कुछ दिन पहले हम उसके बारे में बात कर रहे थे.”

“पता है. मैं उसे अक्सर तुम्हारे पास देखता हूँ.”

“मुझे तुम पर आश्चर्य होता है. मर्दों की आँखें कहाँ होती हैं? तुम्हारी जगह पर यदि मैं होती तो ज़रूर उसे प्यार करने लगती. कितनी मोहक है! कैसा रूप है! ऊँचाई. सुगठित बदन. होशियारी. कितनी पढ़ी-लिखी है. दयालु. विचार स्पष्ट.”

“जिस दिन मैं कैद से यहाँ आया था, उसकी बहन, दर्जिन ग्लफीरा ने मेरी हजामत बनाई थी.”

“मुझे मालूम है. बहनें बड़ी बहन, अव्दोत्या के साथ रहती हैं, जो लाइब्रेरियन है. ईमानदार, श्रमिक परिवार. अत्यंत आपात स्थिति में, अगर मुझे और तुम्हें गिरफ़्तार कर लिया जाता है, तो मैं उनसे कात्या को अपने संरक्षण में लेने के बारे में पूछना चाहती हूँ. अभी फ़ैसला नहीं किया है.”

“मगर वाकई में अगर कोई और रास्ता न हो तो. और उस दुर्भाग्य के आने तक, ख़ुदा ने चाहा तो अभी देर है.”

“कहते हैं कि सीमा कुछ ऐसी, मतलब सामान्य नहीं है. वाकई में उसे पूरी तरह से सामान्य औरत नहीं समझ सकते. मगर ऐसा उसके ज्ञान की गहराई और मौलिकता के कारण है. उसने ग़ज़ब की शिक्षा पाई है, मगर बुद्धिजीवियों की तरह नहीं, बल्कि सामान्य जनता की तरह. तुम्हारे और उसके विचारों में चौंकाने वाली समानता है. मैं आसानी से कात्या को उसकी देखभाल में दे सकती हूँ.”

 

17

वह फिर से स्टेशन गया और बिना किसी परिणाम के,निराश होकर वापस लौट आया. सब कुछ अनसुलझा था. अनिश्चितता उसका और लारा का इंतज़ार कर रही थी. दिन ठण्डा और अँधेरा था, जैसा पहली बर्फ गिरने से पूर्व होता है. आसमान, जो चौराहों के ऊपर लम्बाई में फैले रास्तों के मुकाबले में ज़्यादा फ़ैला हुआ था सर्दियों जैसा नज़र आ रहा था.  

जब यूरी अन्द्रेयेविच घर पहुँचा ति उसने देखा कि लारा के पास सीमुश्का आई है. दोनों के बीच हो रही बातचीत किसी भाषण की तरह थी, जो मेहमान मेज़बान को दे रही थी. यूरी अन्द्रेयेविच उनकी बातों में दखल नहीं देना चाहता था. इसके अलावा, वह कुछ देर अकेला रहना चाहता था. औरतें बगल वाले कमरे में बातें कर रही थीं. उनकी तरफ़ का दरवाज़ा आधा खुला हुआ था. चौखट से फर्श तक परदा गिरा हुआ था, जिसके पीछे से उनकी बातचीत का एक-एक शब्द सुनाई दे रहा था.

मैं सिलाई करती रहूँगी, मगर आप उस तरफ़ ध्यान न दें, सीमच्का. मैं पूरी तन्मयता से सुन रही हूँ. अपने ज़माने में मैंने युनिवर्सिटी में इतिहास और दर्शन के कोर्स किये हैं. आपके विचारों की संरचना मेरे दिल के बहुत करीब है. इसके अलावा आपको सुनना मुझे इतनी राहत देता है. पिछली कुछ रातों से कई परेशानियों की वजह से हम अच्छी तरह से सो नहीं पा रहे हैं. माँ होने के नाते कातेन्का के प्रति मेरा कर्तव्य है कि हमारे साथ किसी अप्रिय घटना की संभावना को देखते हुए उसकी सुरक्षा का इंतज़ाम करूँ. उसके बारे में पूरी गंभीरता से सोचना होगा. इस दृष्टि से मैं सक्षम नहीं हूँ.. यह स्वीकार करने में मुझे दुख होता है. नींद पूरी न होने और थकान के कारण मुझे दुख होता है. आपकी बातों से मुझे चैन मिलता है. इसके अलावा हर मिनट ऐसा लग रहा है कि बर्फ गिरने वाली है. जब बर्फ गिर रही तो ऐसे बुद्धिमत्तापूर्ण, विस्तृत तर्क सुनने में इतना आनन्द होता है. जब बर्फ गिर रही हो, उस समय अगर खिड़की की ओर देखो, तो सच में, ऐसा लगता है, जैसे कोई आँगन से होते हुए कोई घर की तरफ़ आ रहा है? शुरू करें, सीमच्का. मैं सुन रही हूँ.”

“पिछली बार हम कहाँ रुके थे?”

यूरी अन्द्रेयेविच को सुनाई नहीं दिया कि लारा ने क्या जवाब दिया. वह ग़ौर से सुनने लगा कि सीमा क्या कह रही थी.

संस्कृति’, ‘युग इन शब्दों का उपयोग करना चाहिये. मगर उन्हें इतने अलग-अलग तरीकों से समझा जाता है. उनके अर्थ की अनिश्चितता को देखते हुए हम उन पर नहीं जायेंगे. उनके स्थान पर दूसरे शब्दों का प्रयोग करेंगे.

“मैं कहूँगी, कि मनुष्य दो भागों से मिलकर बना है. ख़ुदा से और काम से. मनुष्य की आत्मा की उन्नति को स्वतन्त्र कामों में बाँटा जा सकता है, जो प्रदीर्घ समय तक होते रहे थे. उन्हें अनेक पीढियों द्वारा सम्पन्न किया गया और वे एक के बाद एक होते रहे. ऐसा काम था इजिप्ट, ऐसा काम था ग्रीस, ऐसा काम था पैगम्बरों का बाइबल का ज्ञान. ऐसा, काल से अनुसार अंतिम, जिसे अभी तक किसी अन्य काम द्वारा विस्थापित नहीं किया गया है, समूची आधुनिक प्रेरणा से सम्पन्न किया गया काम है – ईसाई धर्म.

आपको पूरी ताज़गी से, अप्रत्याशित रूप से, वैसे नहीं, जैसा आप ख़ुद जानती हैं और जैसी आपको आदत हो गई है, बल्कि ज़्यादा आसान, सीधे-सीधे उसका परिचय करवाने के लिये जो नया है, अभूतपूर्व है, उसने क्या योगदान दिया है, मैं इबादत से जुड़े हुए कुछ उद्धरणों का विवेचन करूँगी, बेहद कम और वह भी संक्षिप्त रूपों में.     

“अधिकांश स्तुति-गीत न्यू-टेस्टामेन्ट और ओल्ड-टेस्टामेन्ट के निरुपणों को पास-पास रखकर रचे जाते हैं. प्राचीन युग के उदाहरणों से, जैसे जलती हुई झाड़ी, इज़राईल का इजिप्ट से निष्कासन, दहकती भट्टी में बच्चे, व्हेल के उदर में जोनाह इत्यादि की तुलना नये ज़माने के उदाहरणों से की जाती है, जैसे कुँआरी माता की गर्भधारणा की और क्राइस्ट के पुनरुत्थान की कल्पनाएँ.

“इस अक्सर, करीब-करीब निरंतर किये जा रहे संयोग में, प्राचीन की प्राचीनता, नये का नावीन्य और उनकी भिन्नता काफ़ी स्पष्ट रूप में प्रगट होती है.

“अनगिनत पद्यों में मेरी के निष्कलंक मातृत्व की तुलना यहूदियों के लाल सागर को पार करने से की जाती है. उदाहरण के लिये स्तुति-गीत : “समुन्दर में लाल, कुँआरी दुल्हन का चित्र लिखा गया है कभी-कभी” कहा गया है, “ इज़राईल के गुज़रने के बाद सागर अभेद्य ही रहा, एम्मान्युएल के जन्म के बाद कुँआरी माता निष्कलंकित ही रही.” मतलब, इज़राईल के गुज़रने के बाद सागर फिर से अभेद्य हो गया, और कुँआरी कन्या, ख़ुदा को जन्म देकर अनछुई ही रही.

“यहाँ किस तरह की घटनाओं को समांतर रखा गया है? दोनों ही घटनाएँ अप्राकृतिक हैं, दोनों को ही एक जैसा चमत्कारिक माना जाता है. इन विभिन्न कालखण्डों में क्या चमत्कार देखा गया, अत्यंत प्राचीन, आरंभिक काल में और आधुनिक, रोम के पश्चात् के काल में, जो काफ़ी आगे का समय है?

“एक घटना में लोक-नेता, धर्मगुरू मोज़ेस की आज्ञा से और उसकी जादुई छड़ी के हिलाते ही समुन्दर खुल जाता है, अपने भीतर से एक पूरे मुल्क को, अनगिनत लोगों को, जिनकी संख्या लाखों में थी, गुज़रने देता है, और जब अंतिम व्यक्ति गुज़र जाता है, तो फिर से बन्द हो जाता है, और उनका पीछा कर रहे इजिप्तवासियों को ढाँक देता है और डुबा देता है. यह दृश्य प्राचीनता की तर्ज़ पर है, प्रकृति जादूगर की आवाज़ की आज्ञा का पालन करती है, अनगिनत लोगों की भीड़ के दृश्य, जैसे रोमन सेनाएँ युद्ध पर जा रही हैं, जनता और नेता, चीज़ें, जिन्हें देखा और सुना जा सकता है, जो कानों को बहरा कर देती हैं.

“दूसरी घटना में कन्या – साधारण सी चीज़, जिस पर प्राचीन जगत ध्यान ही नहीं देता, - गुप्त रूप से और चुपचाप बालक को जन्म देती है, दुनिया में एक जीवन लाती है, जीवन का आश्चर्य, सबका जीवन, “जीवन सबका” जैसा कि बाद में उसे कहा गया. उसका प्रसव न सिर्फ धर्मशास्त्रियों की नज़र में नाजायज़ है, क्यों कि विवाह-बाह्य है. वह प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करता  है. कन्या आवश्यकता के कारण बालक को जन्म नहीं देती, बल्कि एक चमत्कारवश, प्रेरणावश ऐसा करती है. ये वही प्रेरणा है, जिस के आधार पर सुसमाचारजो साधारण की असाधारण से और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की त्यौहार से तुलना करता हैं, हर तरह की मजबूरी के बावजूद जीवन का निर्माण करना चाहता है.

“कितना बड़ा महत्वपूर्ण परिवर्तन है! किस तरह से आसमान के लिये (क्योंकि आसमान की आँखों से इसका मूल्यांकन करना चाहिये, आसमान के सामने, अद्वितीयता की पवित्र चौखट के भीतर यह सब होता है) – आसमान के लिये यह व्यक्तिगत मानवीय घटना, जो पुरातनता की दृष्टि से बेहद नगण्य है, कैसे पूरी जनता के स्थानांतरण के बराबर हो गई?

“दुनिया में कुछ परिवर्तन हो गया. रोम ख़त्म हो गया, संख्याओं का शासन, शस्त्रों के द्वारा एक साथ रहने की, पूरी जनता के साथ रहने की मजबूरी. नेता और जनता भूत काल में चले गये.

उनका स्थान व्यक्तित्व, स्वाधीनता के उपदेश ने ले लिया. स्वतन्त्र व्यक्तिगत जीवन ख़ुदा की कहानी बन गया, जिसने अपनी विषय वस्तु से ब्रह्माण्ड के कण-कण को भर दिया. जैसा “घोषणा” के एक प्रार्थना गीत में कहा गया है, आदम ख़ुदा बनना चाहता था और उसने गलती की, नहीं बन पाया वह, मगर अब ख़ुदा इन्सान बन रहा है, ताकि आदम को ख़ुदा बना दे (“इन्सान हो जाता है ख़ुदा, और आदम को बनायेगा ख़ुदा”).

सीमा कहती रही:

“अब मैं इसी विषय पर तुमसे कुछ और कहूँगी. मगर, फ़िलहाल, छोटा-सा विषयांतर. जहाँ तक कामगारों की चिंता, माँ की सुरक्षा, पूंजीवादी ताकतों के ख़िलाफ़ संघर्ष का सवाल है, हमारा क्रांतिकारी युग – उन उपलब्धियों के कारण अभूतपूर्व, अविस्मरणीय समय है, जो लम्बे समय के लिये, सदा के लिये रहने वाली हैं. जहाँ तक ज़िंदगी को समझने का, प्रसन्नता के दर्शन का प्रत्यारोपण जो आजकल किया जा रहा है, वह इतना हास्यास्पद अवशेष है कि विश्वास ही नहीं होता कि यह गंभीरता से कहा जा रहा है. नेताओं और जनता के बारे में ये घोषणाएँ हमें ओल्ड-टेस्टामेन्ट के पशुपालकों की जनजातियों और कुलपतियों के काल में वापस ले जा सकती हैं, अगर उनके पास जीवन को पीछे मोड़ने की और इतिहास को हज़ारों वर्ष पूर्व के काल में फेंकने की शक्ति होती. ख़ुशकिस्मती से यह असंभव है.

कुछ शब्द क्राईस्ट और मग्दलीना के बारे में. यह सुसमाचारों में उसकी कहानी के बारे में नहीं है, बल्कि “पवित्र सप्ताह” की प्रार्थनाओं में से है, लगता है, महान मंगलवार या बुधवार को. मगर ये सब आप मेरे बगैर भी अच्छी तरह जानती हैं लरीसा फ़्योदरव्ना, मैं आपको सिर्फ किसी बात की याद दिलाना चाहती हूँ, न कि आपको सिखाने जा रही हूँ.      

“स्लाविक भाषा में जुनूनका मतलब, जैसा कि आप अच्छी तरह जानती हैं, सर्वप्रथम पीड़ा’, ख़ुदा की पीड़ाएँ, “जाता है ख़ुदा, स्वेच्छा से पीड़ा झेलने” (ख़ुदा, जो स्वेच्छा से तकलीफ़ उठाने के लिये जा रहा है). इसके अलावा, बाद में रूसी भाषा में इसका प्रयोग पाप और कामवासना के अर्थ में किया जाने लगा. “आत्मा की गरिमा को वासना का गुलाम बनाकर, हो गया मैं जानवर”, “जन्नत से निकाले जाने के बाद, वासना को वश में करके पुनः भीतर जाने का प्रयत्न करें” इत्यादि. शायद मैं बहुत बिगड़ी हुई हूँ, मगर मुझे ईस्टर पूर्व इस बारे में पढ़ना अच्छा नहीं लगता, जहाँ संवेदनाओं पर लगाम लगाए जाती है और शारीरिक इच्छाओं को मार दिया जाता है. मुझे हमेशा ऐसा लगता है, कि ये फूहड़, सपाट प्रार्थनाएँ जिनमें अन्य आध्यात्मिक प्रार्थनाओं में निहित काव्यात्मक गुणों का अभाव है, मोटी तोंद वाले चमकदार भिक्षुओं द्वारा रची गई थीं. और बात यह नहीं है कि वे ख़ुद नियमों के अनुसार नहीं रहते थे और दूसरों को धोखा देते थे. उन्हें जीने दो अपनी अंतरात्मा की आवाज़ से. बात उनकी नहीं है, बल्कि इन उद्धरणों की विषय वस्तु की है. ये विलाप शरीर की विभिन्न दुर्बलताओं को अनावश्यक महत्व देते हैं और इस बात को भी कि वह शरीर खाया-पिया है या जर्जर है. ये बहुत घिनौना है. यहाँ कोई गन्दी, महत्वहीन दूसरे दर्जे की चीज़ को बेहद महत्व दिया गया है, जिसकी उसे ज़रूरत नहीं है, और जिसके वह योग्य नहीं है. माफ़ कीजिये, कि मैं प्रमुख विषय को दूर हटा रही हूँ. अब मैं इस देरी के लिये आपको इनाम दूँगी.

“मुझे हमेशा यह जानने में दिलचस्पी रही है कि मग्दालीना का ज़िक्र ईस्टर की पूर्व संध्या को ही क्यों किया जाता है, क्राईस्ट के अंत और उनके पुनरुत्थान की देहलीज़ पर. वजह तो मुझे मालूम नहीं, मगर उस बात की याद दिलाना कि जीवन क्या है, उससे बिदा होने और उसके वापस लौटने की बेला पर  इतना समयोचित है. अब सुनिये, कितने सचमुच के जुनून से, कितनी साफ़गोई और सादगी से यह ज़िक्र किया जाता है.    

इस बारे में काफ़ी विवाद है कि क्या यह मग्दालीना है, या मारिया इगिपेत्स्काया, या कोई और मारिया. चाहे जो भी हो, वह ख़ुदा से विनती करती है: “”कर्ज़ उतारो, क्योंकि मैंने बाल खोल दिये हैं”. मतलब : “मुझे गुनाह से आज़ाद करो, जैसे मैंने अपने बालों को आज़ाद किया है”. क्षमा की, पश्चात्ताप की प्यास को कितने वास्तविक रूप में प्रकट किया गया है! आप अपने हाथों से छू सकते है.

“और इसीसे मिलता जुलता एक चीत्कार, उसी दिन के एक अन्य प्रार्थना गीत में भी है, जो ज़्यादा विस्तृत है और जहाँ निःसंदेह मग्दालीना के बारे में बात हो रही है.

“यहाँ वह अत्यंत हृदयस्पर्शी ढंग से विगत के बारे में विलाप करती है, उस बारे में कि कैसे हर रात उसके भीतर पुरानी आदतें धधकने लगती हैं. “मेरी हर रात असंयमी व्यभिचार में लिपटी है, जैसे पापकर्मों की अंधेरी और बिना चाँद की रात हो”. वह क्राईस्ट से उसके पश्चात्ताप के आँसू स्वीकार करने की विनती करती है और झुककर उसके दिल की आहें सुनने की प्रार्थना करती है, ताकि वह उसके बेहद पाक पैरों को अपने बालों से पोंछ सके, जिनके शोर में जन्नत में विस्मित और शर्मसार हो गई हव्वा छुप गई थी.चूमूँगी तुम्हारे अत्यंत पवित्र पाँव और अपने सिर के बालों से उन्हें पोंछूँगी, इन्हीं के कानों को बहरा करने वाले शोर से हव्वा जन्नत में, दोपहर को डर के मारे छुप गई थी.” और अचानक इन्हीं बालों के पीछे-पीछे विस्मय की चीख़: “मेरे अनगिनत पापों और तेरे इन्साफ़ की गहराई को कौन नाप सकेगा?” कितनी निकटता, ख़ुदा और जीवन के, ख़ुदा और व्यक्तित्व के, ख़ुदा और औरत के बीच कैसी समानता!”

 

18

यूरी अन्द्रेयेविच थका हुआ स्टेशन से लौटा. यह उसके दस दिनों के दशक में छुट्टी का दिन था. आम तौर से वह इन तारीखों को सप्ताह भर की नींद पूरी करता था. वह दीवान पर पीछे की ओर टिककर बैठा था, बीच-बीच में आधा लेट जाता या पूरी तरह उस पर पसर जाता. हाँलाकि ऊँघ के बीच वह सीमा की बातें सुन रहा था, उसके तर्क उसे आनंदित कर रहे थे.

“बेशक, यह सब कोल्या अंकल का है,” उसने सोचा, “मगर, कितनी प्रतिभावान और बुद्धिमान है!”

वह दीवान से नीचे कूदा और खिड़की की तरफ गया. वह आँगन में खुलती थी, जैसी की बगल वाले कमरे की, जहाँ लारा और सीमूश्का कुछ अस्पष्ट-सा फुसफुसा रही थी.

मौसम ख़राब हो रहा था. आँगन में अँधेरा हो रहा था. दो मेग्पाई पंछी उड़कर आँगन में आये और चक्कर लगाने लगे, यह देखते हुए कि उन्हें कहाँ बैठना है. हवा हौले से उनके पंखों को सहला कर फुला रही थी. मैग्पाई कचरे के डिब्बे के ढक्कन पर उतरे, वहाँ से बागड़ पर गये, ज़मीन पर उतरे और आँगन में घूमने लगे.

“मैग्पाई का मतलब है बर्फ गिरना” – डॉक्टर ने सोचा. उसी समय परदे के पीछे से उसे सुनाई दिया:

“मैग्पाई संदेश लाती हैं,” सीमा ने लारा से कहा. “आपके यहाँ मेहमान आने वाले हैं. या आपको कोई ख़त मिलेगा.”

कुछ देर बाद दरवाज़े पर तार से लटकी हुई घंटी, जिसकी कुछ ही समय पूर्व यूरी अन्द्रेयेविच ने मरम्मत की थी, बाहर की ओर से बजी. परदे के पीछे से लरीसा फ़्योदरव्ना बाहर निकली और दरवाज़ा खोलने के लिये तेज़ कदमों से प्रवेश-कक्ष में गई. प्रवेश द्वार के पास उसकी बातचीत से यूरी अन्द्रेयेविच समझ गया कि सीमा की बहन, ग्लफ़ीरा सिवेरिनव्ना आई है.

“आप क्या बहन के लिये आई हैं?” लरीसा फ़्योदरव्ना ने पूछा. “सीमुश्का हमारे यहाँ है.”

“नहीं, उसके लिये नहीं. वैसे, कोई बात नहीं. अगर वह घर जा रही है, तो एक साथ चले जायेंगे. नहीं, मैं बिल्कुल उसके लिये नहीं आई हूँ. आपके मित्र के लिये ख़त है. मुझे शुक्रिया कहेगा, कि मैंने कभी पोस्ट-ऑफ़िस में काम किया था. कितने हाथों से गुज़रा है, और जान-पहचान के कारण मेरे हाथों में आया है. मॉस्को से. पाँच महीने घूमता रहा. पाने वाले को ढूँढ़ ही नहीं पाये. मगर मुझे तो मालूम है कि वह कौन है. एक बार मेरे यहाँ हजामत बनवाई थी”.

ख़त लम्बा, कई पृष्ठों में, मुड़ा-तुड़ा, चीकट, खुले हुए और फ़टेहाल लिफ़ाफ़े में, तोन्या ने लिखा था. डॉक्टर की चेतना तक ये बात नहीं पहुँची कि वह कैसे उसके हाथों में आया, उसने ग़ौर नहीं किया कि कैसे लारा ने उसके हाथों में लिफ़ाफ़ा थमाया. जब डॉक्टर ने ख़त पढ़ना शुरू किया, तब उसे याद था कि वह किस शहर में और किसके घर में है, मगर जैसे-जैसे वह पढ़ता गया, वह यह सब भूल गया. सीमा बाहर आई, उससे नमस्ते कहा और बिदा लेने लगी. उसने यंत्रवत् उचित जवाब दिया, मगर उसकी तरफ़ ध्यान नहीं दिया. उसका प्रस्थान चेतना से निकल गया. धीरे-धीरे वह पूरी तरह भूलता गया कि वह कहाँ है और उसके चारों ओर क्या है.

“यूरा,” अंतनीना अलेक्सान्द्रव्ना ने उसे लिखा था, “जानते हो, कि हमारी एक बेटी है? उसका नाम रखा है – माशा, स्वर्गीय माँ मरिया निकलायेव्ना की याद में.

“अब एकदम दूसरी बात के बारे में. कई प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ताओं, कैडेट्स-पार्टी के प्रोफेसरों और दक्षिणपंथी सोशलिस्टों , मेल्गूनव को, किज़िवेत्तेर को, कुस्कोव को, कुछ अन्य लोगों को, और साथ ही अंकल निकलाय अलेक्सान्द्रविच ग्रमीका को, पापा को और हमें, उनके परिवार के सदस्य होने के कारण रूस से बाहर विदेश में भेजा जा रहा है.    

यह – दुर्भाग्यपूर्ण घटना, ख़ासकर तुम्हारी अनुपस्थिति में हो रही है, मगर उसके आगे सिर झुकाना पड़ेगा और ऐसे भयानक समय में देश से भगाने की इतनी हल्की सज़ा के लिये ख़ुदा को धन्यवाद देना होगा, इससे काफ़ी भयानक भी बहुत कुछ हो सकता था. अगर तुम मिल जाते और यहाँ होते, तो तुम भी हमारे साथ चलते. मगर अब तुम कहाँ हो? मैं यह ख़त अंतीपवा के पते पर भेज रही हूँ, अगर वह तुम्हें ढूँढ़ लेगी, तो तुम तक पहुँचा देगी. मुझे एक अनजान डर सता रहा है, कि क्या वह तुम्हें, हमारे परिवार का सदस्य होने के कारण, बाद में, जब तुम, अगर ये किस्मत में है, मिल जाओगे, विदेश जाने की अनुमति देंगे, जैसी हम सब को मिली है मुझे यकीन है कि तुम ज़िंदा हो और मिल जाओगे. यह बात मुझसे मेरा प्यार करने वाला दिल कह रहा है और मैं उसकी आवाज़ पर भरोसा करती हूँ.

“हो सकता है, उस समय तक, जब तुम मिल जाओगे, रूस में ज़िंदगी के हालात बेहतर हो चुके होंगे और तुम ख़ुद कोशिश करके अपने लिये विदेश जाने की इजाज़त ले लोगे, और हम सब एक साथ, एक जगह पर होंगे. मगर मैं यह लिख तो रही हूँ, और ख़ुद मुझे ही इस सौभाग्य पर विश्वास नहीं हो रहा है.  

“सारा दुख इसी बात का है कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ, और तुम मुझसे प्यार नहीं करते. मैं इस आरोप का मतलब समझने की, उसकी व्याख्या करने की, सच साबित करने की कोशिश कर रही हूँ, अपने भीतर ढूँढ़ती हूँ, टटोलती हूँ, अपनी पूरी ज़िंदगी पर, और हर उस चीज़ पर जो मैं अपने बारे में जानती हूँ, नज़र डालती हूँ और मुझे कोई सिरा नज़र नहीं आता और कुछ याद नहीं आता कि मैंने ऐसा क्या कर दिया है और अपने आप पर इस दुर्भाग्य को क्यों आकर्षित कर लिया है. तुम कुछ तिरस्कार से, गुस्से भरी नज़रों से मेरी ओर देखते हो, तुम मुझे विकृत रूप में देखते हो, जैसे तिरछे आईने में देख रहे हो.

“मगर मैं तुमसे प्यार करती हूँ. आह, मैं कितना प्यार करती हूँ, अगर तुम सिर्फ कल्पना कर सकते! मैं तुम्हारी हर विशेष चीज़ से प्यार करती हूँ, हर लाभदायक और प्रतिकूल चीज़, तुम्हारी सब साधारण बातें, जो असाधारणता से उनके संयोजन के कारण प्यारी लगती हैं. आंतरिक विवेक से दमकता चेहरा, जो बगैर उसके, हो सकता है, ख़ूबसूरत नहीं लगता, तुम्हारी प्रतिभा और बुद्धि, जिन्होंने जैसे इच्छाशक्ति के खाली स्थान को भर दिया है. मुझे यह सब प्यारा है, और तुमसे बेहतर किसी और इनसान को मैं नहीं जानती.

“मगर, सुनो, पता है, मैं तुमसे क्या कहने वाली हूँ? अगर तुम मुझे इतने प्यारे न भी होते, अगर तुम इस हद तक मुझे अच्छे नहीं लगते, तो भी मेरी ठण्डक का अपमानित सत्य मुझ पर नहीं खुलता, मैं फिर भी यही सोचती कि तुमसे प्रेम करती हूँ. इस एक डर से कि अ-प्रेम कितनी अपमानजनक, विनाशकारी सज़ा है, मैं अनजाने ही यह समझने से बचती रहती कि तुमसे प्यार नहीं करती. और ना मैं, ना ही तुम इसे कभी जान पाते. मेरा अपना दिल ही मुझसे यह छुपा लेता, क्योंकि अ-प्रेम लगभग हत्या करने जैसा है, और मुझमें किसी पर भी यह वार करने की शक्ति नहीं है.

“हालाँकि अभी कुछ भी पूरी तरह निश्चित नहीं हुआ है, हम, शायद, पैरिस जायेंगे. मैं उन दूर की जगहों पर जाऊँगी, जहाँ तुम्हें बचपन में ले गये थे और जहाँ पापा और अंकल बड़े हुए थे. पापा तुम्हें नमस्ते कह रहे हैं. शूरा बड़ा हो गया है, ख़ूबसूरती तो उसने नहीं ली है, मगर बड़ा, हट्टा-कट्टा लड़का हो गया है और तुम्हारा ज़िक्र आते ही फूट-फूट कर रोने लगता है, उसे धीरज देना मुश्किल हो जाता है. और ज़्यादा नहीं लिख पाऊँगी. आँसुओं से दिल फटा जा रहा है. ख़ैर, अलबिदा. आओ, कभी ख़त्म न होने वाली जुदाई, इम्तिहानों, अनिश्चितता, तुम्हारी लम्बी, अंधेरी राह के लिये तुम पर सलीब का निशान बना दूँ. किसी भी बात का दोष नहीं लगा रही हूँ,  कोई ताना नहीं, अपनी ज़िंदगी उसी तरह बनाओ, जैसी तुम चाहते हो, सिर्फ तुम ख़ुश रहो.

“उस भयानक और हमारे लिये इतने दुर्भाग्यपूर्ण रहे यूराल से जाने से पहले लारा फ़्योदरव्ना से काफ़ी संक्षिप्त परिचय हुआ था. उसे धन्यवाद देती हूँ, जब मैं मुसीबत में थी, तो वह मुझसे ज़रा भी दूर नहीं हटी थी, और प्रसूति के दौरान उसने मेरी काफ़ी मदद की. सच्चे दिल से स्वीकार करना होगा कि वह एक अच्छी इन्सान है, मगर झूठ नहीं कहूँगी – वह मुझसे बिल्कुल विपरीत है. मैं दुनिया में इसलिये आई कि ज़िंदगी को आसान बना सकूँ और सही हल ढूँढ़ सकूँ, और वह, उसे उलझाने के लिये या राह से भटकाने के लिये.  

“अलबिदा, काम ख़त्म करना है. ख़त लेने के लिये आये हैं और पैकिंग करने का समय हो गया है. ओह, यूरा, यूरा, प्यारे, मेरे प्यारे, मेरे पति, मेरे बच्चों के पिता, ये क्या हो रहा है? क्या हम फिर कभी, कभी भी मिल नहीं पायेंगे. मैंने ये शब्द लिख दिये हैं, क्या तुम अपने आप को इनका मतलब समझाओगे? क्या तुम समझ रहे हो, क्या तुम समझ रहे हो? जल्दी मचा रहे हैं, और ये सिर्फ इस बात का इशारा है कि मेरे पास आये हैं, जिससे मृत्य दण्ड के लिये ले जाएँ. यूरा! यूरा!”

यूरी अन्द्रेयेविच ने ख़त से खोई खोई नज़र उठाई, आँखों में आँसू नहीं थे, वे किसी भी ओर नहीं देख रही थीं, दुख से सूख गईं, पीड़ा से वीरान हो गई थीं. वह चारों ओर कुछ भी नहीं देख रहा था, कुछ भी समझ नहीं पा रहा था.

खिड़की के बाहर बर्फ गिर रही थी. हवा उसे अधिकाधिक तेज़ी से और घनेपन से तिरछे-तिरछे ले जा रही थी, जैसे कोई कमी पूरी कर रही हो, और यूरी अन्द्रेयेविच अपने सामने खिड़की में इस तरह देख रहा था, जैसे ये बर्फ नहीं बल्कि तोन्या का ख़त अभी भी पढ़ा जा रहा है और ये झिलमिलाते हुए बर्फ के सूखे सितारे नहीं, बल्कि सफ़ेद कागज़ पर छोटे-छोटे काले अक्षरों के बीच वाली छोटी-छोटी जगह हो, सफ़ेद, सफ़ेद, अंतहीन, अंतहीन.

यूरी अन्द्रेयेविच अनजाने में कराहा और उसने अपना सीना पकड़ लिया. उसे महसूस हुआ कि वह बेहोश हो रहा है, कुछ डगमगाते हुए कदमों से वह दीवान की ओर बढ़ा और बेहोश होकर उस पर गिर गया.

 

 

 

 

 

अध्याय - 14

फ़िर वरिकीना में

 

सर्दियाँ आ चुकी थीं. बर्फ के मोटे-मोटे फ़ाहे गिर रहे थे. यूरी अन्द्रेयेविच हॉस्पिटल से घर लौटा.

“कमारोव्स्की आया है,” मरियल, भर्राई हुई आवाज़ में लारा ने कहा, जो उससे मिलने बाहर निकली थी. वे प्रवेश कक्ष में खड़े थे. वह खोई-खोई लग रही थी, जैसे उसे किसी ने आहत किया हो.

“कहाँ? किसके पास? क्या वह हमारे यहाँ है?...

बेशक, नहीं. वह सुबह आया था और शाम को आना चाहता था. वह जल्दी ही आ जायेगा. उसे तुमसे बात करनी है.”

“वह किसलिये आया है?”

“मैं उसकी बातों से सब कुछ तो नहीं समझ पाई. कहता है, कि वह सुदूर पूर्व जाते हुए रुका है, और जानबूझकर लम्बा मोड़ लेकर हमारे यहाँ, युर्यातिन की ओर, मुड़ गया जिससे हमसे मिल सके. ख़ास तौर से तुम्हारी और पाशा की ख़ातिर. वह बड़ी देर तक तुम दोनों के बारे में बोलता रहा. वह यकीन के साथ कह रहा था कि हम तीनों को, मतलब तुम्हें, पतूल्या को और मुझे जान का ख़तरा है, और यह कि यदि हम उसकी बात मानें, तो सिर्फ वो ही हमें बचा सकता है”.

“मैं बाहर चला जाऊँगा. मैं उससे नहीं मिलना चाहता.”

लारा रो पड़ी, उसने घुटनों के बल डॉक्टर के सामने झुककर उसके पैरों से लिपट कर उनमें अपना सिर छुपाना चाहा, मगर उसने मुश्किल से उसे पकड़कर रोक दिया.

“मेरी ख़ातिर रुक जाओ, तुमसे विनती करती हूँ. मैं ज़रा भी उससे आँख मिलाने से नहीं डरती. मगर यह तकलीफ़देह है. मुझे अकेले में उससे मिलने से बचा लो. इसके अलावा, यह आदमी व्यावहारिक है, मंजा हुआ है, हो सकता है कि वाकई में कोई सुझाव दे. उसके प्रति तुम्हारी नफ़रत स्वाभाविक है. मगर तुमसे विनती करती हूँ, अपने आप पर काबू रखो. ठहर जाओ.”

“तुम्हें क्या हो गया है, मेरे फ़रिश्ते? शांत हो जाओ. तुम क्या कर रही हो? घुटनों पर मत गिरो. उठो. ख़ुश हो जाओ. तुम्हारा पीछा कर रहे मन के डर को दूर भगाओ. ज़िंदगी भर के लिये उसका भय तुम्हारे मन में बैठ गया है. मैं तुम्हारे साथ हूँ. अगर ज़रूरत पड़ी, अगर तुम कहोगी तो मैं उसे मार डालूँगा.”

आधे घण्टे बाद शाम हो गई. पूरी तरह अँधेरा छा गया. छह महीनों से फर्श के छेद हर जगह पूरी तरह से बंद कर दिये गये थे. यूरी अन्द्रेयेविच नये बनते छेदों पर नज़र रखता और समय पर उन्हें बंद कर देता. क्वार्टर में एक बड़ी रोएँदार बिल्ली लाई गई, जो स्थिर, रहस्यमय चिंतन में अपना समय बिताती थी. चूहे घर से नहीं भागे, मगर ज़्यादा सावधान हो गये.

कमारोव्स्की के इंतज़ार में लरीसा फ़्योदरव्ना ने राशन की काली ब्रेड काटी और मेज़ पर प्लेट को कुछ उबले हुए आलुओं के साथ रख दिया. मेहमान का स्वागत पुराने मालिकों के भूतपूर्व डाइनिंग रूम में करने का फ़ैसला किया गया, जो पहले ही की तरह रखा गया था. इसमें शाहबलूत का बड़ा-भारी डाइनिंग टेबल और उसी काले बलूत का साइड-बोर्ड था. मेज़ पर एक शीशी में अरंडी के तेल में बत्ती डालकर एक लैम्प जल रहा था - डॉक्टर का पोर्टेबल लैम्प.

कमारोव्स्की दिसम्बर के अँधेरे से रास्ते पर गिर रही बर्फ से पूरी तरह ढँका हुआ आया. उसके ओवरकोट, टोपी और गलोशों से बर्फ की पर्तें नीचे गिर रही थीं, और फ़र्श पर डबरे बनाते हुए पिघल रही थीं. चिपकी हुई बर्फ के कारण गीली मूँछें और दाढ़ी, जिन्हें पहले कमारोव्स्की काट दिया करता था, और अब छोड़ दिया था, अजीब, जोकरों जैसी लग रही थीं. उसने बढ़िया संभाल कर रखा हुआ कोट और जैकेट, और धारियों वाली क्रीज़ की पतलून पहनी थी. अभिवादन करने और कुछ कहने से पहले वह बड़ी देर तक जेबी-कंघी से नम-सीधे बालों में कंघी करता रहा और रूमाल से गीली मूँछों और भँवों को पोंछकर ठीक करता रहा. फिर ख़ामोश, अर्थपूर्ण भाव से उसने एक साथ दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये, बायाँ – लरीसा फ़्योदरव्ना की ओर, और दायाँ – यूरी अन्द्रेयेविच की ओर.

“ऐसा समझेंगे कि हम एक दूसरे को जानते हैं,” वह यूरी अन्द्रेयेविच से मुख़ातिब हुआ. “आपके पिता के साथ मेरे इतने अच्छे संबंध थे – आप, शायद, जानते हैं. मेरे ही हाथों में उन्होंने दम तोड़ा. आपको गौर से देखते हुए उनके साथ समानता ढूँढ़ रहा हूँ. नहीं, ज़ाहिर है, आप पिता पर नहीं गये हैं. बड़े दिलदार इन्सान थे. आवेगशील, साहसी. शक्ल-सूरत को देखते हुए, आप माँ के ज़्यादा करीब हैं. नर्म स्वभाव की महिला थीं. स्वप्नदर्शी”.

“लरीसा फ्योदरव्ना ने आपकी बात सुनने के लिये विनती की है. उसके अनुसार आपको मुझसे कुछ काम है. मैं उसकी विनती का मान रख रहा हूँ. हमारी बातचीत, इच्छा के विपरीत, ज़बर्दस्ती हो रही है. अपनी ख़ुशी से मैं आपसे मुलाकात नहीं करता, और मैं नहीं समझता कि हम परिचित हैं. इसलिये काम की बात कीजिये. आप क्या चाहते हैं?”

“नमस्ते, मेरे प्यारों. सब कुछ, सब कुछ अच्छी तरह महसूस करता हूँ और पूरी बात समझता हूँ. जुर्रत के लिये माफ़ी चाहता हूँ, आप एक दूसरे के बेहद अनुकूल हैं. अनुरूप जोड़ी”.

“मुझे आपको रोकना होगा. कृपया जिन बातों से आपका कोई संबंध नहीं है, उनमें दखल न दें. आपसे सहानुभूति की उम्मीद नहीं कर रहे हैं. आप भटक रहे हैं.”

“मगर आप इतनी जल्दी गुस्से में न आईये, नौजवान. नहीं, शायद, आप अपने पिता की तरह हैं. वो ही  पिस्तौल और बारूद. ठीक है, तो आप की इजाज़त से, आपको मुबारकबाद देता हूँ, मेरे बच्चों. अफ़सोस है, कि आप न सिर्फ मेरे इस वाक्य के अनुसार, बल्कि वाकई में बच्चे हैं, जो कुछ भी जानते नहीं हैं, किसी भी बात के बारे में सोचते नहीं हैं. मैं यहाँ सिर्फ दो दिनों से हूँ और मैंने आपके बारे में उससे ज़्यादा जान लिया है, जितना आपको शक भी नहीं होगा. आप, बिना सोचे-समझे, पतन की कगार पर चल रहे हैं. अगर ख़तरे को किसी तरह से रोका न गया, तो आपकी आज़ादी के, और हो सकता है, आपकी ज़िंदगी के भी दिन गिने चुने हैं.                                                       

“एक ख़ास कम्युनिस्ट स्टाईल है. कम ही लोग उसकी कसौटी पर खरे उतरते हैं. मगर कोई भी खुल्लम खुल्ला जीने और सोचने के इस तरीके का उल्लंघन नहीं करता, जैसा आप करते हैं, यूरी अन्द्रेयेविच. समझ में नहीं आता कि मधुमक्खी के छत्ते में हाथ क्यों डाला जाये. आप – इस दुनिया की हास्यास्पद और अपमानजनक चीज़ हैं. अच्छा होता अगर आपका रहस्य बना रहता. मगर यहाँ मॉस्को के कुछ प्रभावशाली लोग हैं. आपकी असलियत उन्हें अच्छी तरह मालूम है. आप दोनों ही यहाँ की न्याय देवता के पुजारियों की पसन्द नहीं हैं. कॉम्रेड्स अन्तीपव और तिवेर्ज़िन आप पर और लरीसा फ़्योदरव्ना पर दाँत गड़ाये बैठे हैं.     

“आप मर्द हैं, आप – मनमौजी कज़ाक, या क्या कहते हैं उसे, वो हैं. बेवकूफ़ी भरा बर्ताव करना, अपनी ज़िंदगी से खेलना, आपका पवित्र अधिकार है. मगर लरीसा फ़्योदरव्ना आज़ाद व्यक्ति नहीं है.वह माँ है. उसके हाथों में बच्चे का जीवन है, बच्चे का भविष्य है. कल्पना करने का, बादलों के पीछे भागना उसका काम नहीं है.

“मैंने पूरी सुबह उसे मनाने में, यह यकीन दिलाने में बर्बाद कर दी कि यहाँ की परिस्थिति के प्रति अधिक गंभीरता से विचार करे. वह मेरी बात सुनना ही नहीं चाहती. आपके अधिकार का उपयोग कीजिये, लरीसा फ़्योदरव्ना को मनाइये. कातेन्का की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का उसे कोई हक नहीं है, उसे मेरे विचारों की उपेक्षा नहीं करना चाहिये”.

“मैंने ज़िंदगी में कभी भी किसी पर भी अपनी राय नहीं थोंपी और न ही किसी को मजबूर किया है. ख़ास तौर से करीबी लोगों को. लरीसा फ़्योदरव्ना आपकी बात सुनने या न सुनने के लिये स्वतन्त्र है. इसके अलावा, मुझे बिल्कुल भी नहीं मालूम कि बात किस बारे में हो रही है. वह, जिसे आप अपने विचार कहते हैं, मेरे लिये अनजान हैं.”       

नहीं, आप मुझे अधिकाधिक अपने पिता की याद दिला रहे हैं. वैसे ही अक्खड़. ख़ैर, मुख्य बात की ओर चलते हैं. चूँकि यह काफ़ी उलझा हुआ मामला है, धीरज रखना होगा. कृपया मेरी बात सुनें और बीच में न काटें.

ऊपर काफ़ी परिवर्तन किये जा रहे हैं. नहीं, नहीं, ये मुझे अत्यंत विश्वसनीय स्त्रोत से ज्ञात हुआ है, संदेह न करें. एक ज़्यादा लोकतांत्रिक मार्ग पर जाने के बारे में है, आम नियमों में काफ़ी छूट दी जाने वाली है,  और ये निकट भविष्य में ही होने वाला है.

मगर इसी के परिणाम स्वरूप, दंडित की जाने वाली संस्थाएँ अंत में बेहद तैश में आकर शीघ्रातिशीघ्र अपने स्थानीय मामले निपटाने की कोशिश करेंगी. आपका विनाश होने ही वाला है, यूरी अन्द्रेयेविच. आपका नाम सूची में है. मज़ाक नहीं कर रहा हूँ, मैंने ख़ुद देखा है, मुझ पर यकीन कर सकते हैं. अपने आप को बचाने के बारे में सोचिये, वर्ना देर हो जायेगी.

मगर यह सब अब तक प्रस्तावना है, ख़ास बात की ओर बढ़ता हूँ.

पैसिफिक सागर में, प्रिमोर्ये में राजनैतिक ताकतों का जमावड़ा हो रहा है, जो उखाड़ फेंकी गई अस्थायी सरकार और भंग की गई कॉन्स्टिट्युएन्ट असेम्बली के प्रति अभी तक वफ़ादार हैं. ड्यूमा के सदस्य, सामाजिक कार्यकर्ता, भूतपूर्व ज़ेम्स्त्वा के प्रमुख सदस्य, कार्यकर्ता, व्यापारी और उद्योगपति एकत्रित हो रहे हैं. स्वैच्छिक सेनाओं के जनरल्स अपनी बची-खुची फ़ौजें ला रहे हैं.

सोवियत सत्ता ऊँगलियों की आड़ से इस सुदूर पूर्व रिपब्लिक के उद्गम को देख रही है. अपनी सीमा पर ऐसी रिपब्लिक की उपस्थिति उसके लिये रेड साइबेरिया और बाहरी दुनिया के बीच एक बफरस्टेट के रूप में उपयोगी होगी. रिपब्लिक की सरकार मिली-जुली होगी. मॉस्को के आधे से ज़्यादा स्थान कम्युनिस्टों के लिये रखने का समझौता किया है, जिससे, उनकी मदद से, जब संभव होगा, तख़्तापलट किया जाये और रिपब्लिक को अपने हाथों में ले लिया जाये. योजना पूरी तरह पारदर्शी है, और बात सिर्फ इतनी है कि बचे हुए समय का सही उपयोग किया जाये.

“मैं क्रांति से पहले कभी व्लादिवस्तोक में अर्खारव भाईयों का, मेर्कूलव भाईयों का और अन्य व्यापारी और साहूकार घरानों का काम देखा करता था. वहाँ मुझे जानते हैं. इस नवगठित सरकार का एक अशासकीय नुमाइन्दा आधी गुप्तता से, आधी मॉस्को की सहमति से मेरे पास प्रस्ताव लाया कि मैं सुदूर पूर्व सरकार में कानून-मंत्री बन जाऊँ. मैं राज़ी हो गया और वहाँ जा रहा हूँ. यह सब, जैसा कि मैंने अभी कहा, सोवियत सरकार की जानकारी और ख़ामोश सहमति से हो रहा है, मगर इतना खुल्लमखुल्ला नहीं, और इस बारे में शोर मचाना ठीक नहीं है.

“मैं आपको और लरीसा फ़्योदरव्ना को अपने साथ ले जा सकता हूँ. वहाँ से आप समुन्दर के मार्ग से अपने लोगों तक जा सकते हैं. आप, बेशक, उनके निर्वासन के बारे में जानते हैं. बड़ी भारी घटना थी, इस बारे में सारा मॉस्को बात कर रहा है. लरीसा फ़्योदरव्ना से मैंने वादा किया है कि पावेल पाव्लविच के सिर पर मंडरा रहे ख़तरे को दूर करूँगा. एक स्वतन्त्र और मान्यताप्राप्त शासन का सदस्य होने के नाते मैं पूर्वी साइबेरिया में स्त्रेल्निकव को ढूँढ़ लूँगा और उसे हमारे स्वायत्त क्षेत्र में स्थानांतरित करने में सहायता करूँगा. अगर वह भागने में कामयाब नहीं हुआ, तो मैं प्रस्ताव रखूंगा कि उसे किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के बदले में हमें सौंप दिया जाये, जिसे मित्रों ने गिरफ़्तार किया हो, और जो मॉस्को की केन्द्रीय सत्ता के लिये महत्वपूर्ण हो.”

लरीसा फ़्योदरव्ना मुश्किल से इस बातचीत को समझ पा रही थी, जिसका मतलब बार बार उससे खो रहा था. मगर कमारोव्स्की के अंतिम शब्दों से, जो डॉक्टर और स्त्रेल्निकव की सुरक्षा के बारे में थे, वह अपनी विचारमग्न स्थितप्रज्ञता की स्थिति से बाहर आई, सतर्क हो गई और, थोड़ा लाल होते हुए बोली:

“तुम समझ रहे हो, यूरच्का, तुम्हारे और पाशा के लिहाज़ से ये प्लान्स कितने महत्वपूर्ण हैं?”

“तुम बहुत आसानी से विश्वास कर लेती हो, मेरी दोस्त. सोचे हुए काम को पूरा हो चुका नहीं समझना चाहिये. मैं यह नहीं कह रहा कि विक्तर इपालीतविच हमें जानबूझकर बेवकूफ़ बना रहे हैं. मगर ये सब पानी पर लिखी हुई इबारत है! और अब, विक्तर इपालीतविच, अपनी ओर से मैं कुछ शब्द कहूँगा. मेरे भविष्य की ओर ध्यान देने के लिये आपका धन्यवाद, मगर कहीं आप यह तो नहीं सोच रहे हैं कि मैं आपको उसे ठीक करने की इजाज़त दूँगा? जहाँ तक स्त्रेल्निकव के बारे में आपकी किंता का सवाल है, तो इसके बारे में लारा को सोचना चाहिये. 

“ये सवाल कहाँ जा रहा है? क्या हमें उसके साथ जाना चाहिये, जैसा वह सुझाव दे रहा है या नहीं. तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुम्हारे बिना मैं नहीं जाऊँगी.”

कमारोव्स्की लगातार जलमिश्रित अल्कोहल की चुस्कियाँ ले रहा था, जिसे यूरी अन्द्रेयेविच ने डिस्पेन्सरी से लाकर मेज़ पर रख दिया था, वह आलू चबा रहा था, और धीरे-धीरे उस पर नशा छा रहा था.

 

2

काफ़ी देर हो चुकी थी. कालिख से आज़ाद होती बत्ती थोड़ी थोड़ी देर में कमरे में तेज़ प्रकाश डालते हुए चटचटाहट के साथ भड़क उठती, बाद में सब कुछ फिर से अँधेरे में डूब जाता. मेज़बान सोना चाहते थे और उन्हें अकेले में बातें भी करनी थीं. मगर कमारोव्स्की जाने का नाम ही नहीं ले रहा था. उसकी उपस्थिति पीड़ादायक थी, जैसी बलूत के भारी भरकम साइडबोर्ड की और खिड़की के पीछे दिसम्बर के बर्फीले अँधेरे की.

वह उनकी ओर नहीं, बल्कि उनके सिरों के ऊपर कहीं और देख रहा था, अपनी नशीली गोल-गोल आँखें इस दूर के बिंदु पर गड़ाये, और उनींदी, लड़खड़ाती ज़ुबान से एक ही अंतहीन, उबाऊ बात के बारे में बोले जा रहा था. इस समय उसे सुदूर पूर्व का शौक चढ़ा था.

इसी बारे में वह चबा-चबा कर बोले जा रहा था, मंगोलिया के राजनैतिक महत्व के बारे में अपने विचार लारा और डॉक्टर को विस्तारपूर्वक समझाये जा रहा था.

यूरी अन्द्रेयेविच और लरीसा फ़्योदरव्ना को पता ही नहीं चला कि बातचीत के किस मोड़ पर वह इस मंगोलिया में कूद पड़ा था. इस बात ने कि वे ऊँघ रहे थे, इस अनजान, पराये विषय की बोरियत को और ज़्यादा बढ़ा दिया था.

कमारोव्स्की कह रहा था:

“साइबेरिया, वाकई में नया अमेरिका है, जैसा कि उसे कहते हैं, अपने भीतर प्रचुर संभावनाएँ छुपाए हुए है. यह भावी महान रूस का उद्गम स्थल है, हमारे प्रजातंत्रीकरण की, सम्पन्नता की, राजनैतिक सुधार की कुंजी है. मंगोलिया के, बाहरी मंगोलिया के, सुदूर पूर्व के हमारे महान पड़ोसी के भविष्य के गर्भ में और भी ज़्यादा लुभावनी संभावनाएँ हैं. आप उसके बारे में क्या जानते हैं? आपको उबासियाँ लेने में शर्म नहीं आती और बिना जाने आँखें झपकाते रहते हैं, मगर इसका क्षेत्रफ़ल पंद्रह लाख वर्ग मील है, दुर्लभ खनिज पदार्थ पाये जाते हैं, फ़िलहाल यह देश पूर्वैतिहासिक अछूतेपन की स्थिति में है, जिसकी तरफ़ चीन, जापान और अमेरिका के लालची हाथ बढ़ रहे हैं, धरती के उस दूरदराज़ के कोने के किसी भी क्षेत्र में हमारे रूसी हितों को नुक्सान पहुँचाने के लिये, जिन्हें सभी प्रतिद्वन्द्वियों ने मान्यता दी है.

चीन उसके लामाओं और बौद्ध धर्मगुरुओं पर प्रभाव डालकर उसके सामन्ती-धार्मिक पिछड़ेपन का फ़ायदा उठा रहा है. जापान वहाँ के दास रखने वाले राजकुमारों का सहारा ले रहा है, जिन्हें मंगोलियन में – खशून कहते हैं. रेड कम्युनिस्ट रूस हमजिल्स, याने दूसरे शब्दों में, विद्रोही मंगोल चरवाहों के क्रांतिकारी संगठन में अपना मित्र ढूँढ़ता है. जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं मंगोलिया को स्वतन्त्रता पूर्वक चुनी गई कुरुल्ताय (स्टेट असेम्बली – अनु.) के अधिकार में फूलते-फलते देखना चाहता हूँ. व्यक्तिगत तौर पर हमें इस बात में दिलचस्पी होनी चाहिये. मंगोलियन सीमा में एक कदम, और दुनिया आपके कदमों में होगी, और आप – आज़ाद पंछी होंगे.

एक ऐसे दुखदाई विषय पर, जिसका उनसे कोई ताल्लुक नहीं था, दिखावटी विद्वत्तापूर्ण भाषण लरीसा फ़्योदरव्ना को गुस्सा दिला रहा था. इस खिंचती गई मुलाकात से उकताहट के मारे वह बेहद थक गई और उसने निश्चयपूर्वक कमारोव्स्की की ओर बिदा लेने के लिये हाथ बढ़ाया और बिना लाग-लपेट के अप्रियता से कहा;

“देर हो गई है. आपके जाने का समय हो गया है. मैं सोना चाहती हूँ”.

“उम्मीद है कि आप मेहमान का इतना अपमान नहीं करेंगी और ऐसे समय में मुझे दरवाज़े से बाहर नहीं निकालेंगी. मुझे यकीन नहीं है कि इस अनजान, अँधेरे शहर में मैं रात को रास्ता ढूँढ़ पाऊँगा.”

“इस बारे में पहले ही सोचना चाहिये था और इतनी देर तक नहीं बैठना चाहिये था. आपको किसी ने रोका नहीं था”.

“ओह, आप मुझसे इतने रूखेपन से क्यों बात कर रही हैं? आपने यह भी नहीं पूछा कि क्या यहाँ रहने के लिये मेरा कोई ठिकाना भी है?”

“इस बात में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं है. आप ख़ुद को अपमानित न होने देंगे. अगर आप यहाँ रात बिताने की अनुमति चाहते हैं, तो आम कमरे में, जहाँ हम लोग कातेन्का के साथ सोते हैं, मैं आपको नहीं सोने दूँगा. और बाकी के कमरों में चूहों के कारण परेशानी होगी.”

“मुझे उनसे डर नहीं लगता.”

“जैसा आप चाहें.”

 

3

“तुम्हें क्या हो गया है, मेरे फ़रिश्ते? कितनी रातों से तुम सोई नहीं हो, डाइनिंग टेबल पर खाने को हाथ नहीं लगाती हो, पूरे दिन बदहवास सी घूमती रहती हो. और बस, सोचती रहती हो, सोचती रहती हो. तुम्हें कौन सी चीज़ परेशान कर रही है? परेशान करने वाले विचारों को इतना महत्व नहीं देना चाहिये.

“हॉस्पिटल से फिर केयर-टेकर इज़ोत आया था. उसका घर में इस्त्री करने वाली के साथ लफ़ड़ा चल रहा है. वह यहाँ से गुज़र रहा था और मुझे धीरज देने के लिये यहाँ आया था. कह रहा था कि भयानक राज़ की बात है. तुम्हारा वाला दुर्भाग्य से बच नहीं सकता. इंतज़ार करो, आज-कल में ले ही जायेंगे. और पीछे-पीछे तुम्हें भी, बदनसीब औरत. ये. तुम कहाँ की उठा लाये, इज़ोत, मैंने पूछा. शांत रहो, तुम इत्मीनान कर सकती हो. वह बोला. एक्सेमिटी में कह रहे थे. एक्सेमिटी से, जैसे तुम, हो सकता है, अंदाज़ लगा सकते हो,  एक्सेक्यूटिव कमिटी समझना होगा.”

लरीसा फ़्योदरव्ना और डॉक्टर ठहाके लगाने लगे.

“वह एकदम सही है. ख़तरा बढ़ गया है और देहलीज़ पर दस्तक दे रहा है. फ़ौरन ग़ायब हो जाना चाहिये. सवाल सिर्फ यह है कि असल में कहाँ. मॉस्को जाने की कोशिश करने के बारे में तो सोचना भी नहीं चाहिये. तैयारियाँ करना ही इतना उलझन भरा है कि सबका ध्यान आकर्षित करेगा. दबे-छुपे जाना होगा, ताकि कोई कुछ न देखे. जानती हो, मेरी ख़ुशी? मेरा ख़याल है, कि तुम्हारे विचार पर अमल करें. कुछ समय के लिये हमें धरती में गड़प होना होगा. ये जगह वरिकीना ही होने दो. वहाँ करीब दो हफ़्तों के लिये, महीने भर के लिये जायेंगे.”

“शुक्रिया, मेरे अपने, शुक्रिया. ओह, मैं कितनी ख़ुश हूँ. मैं समझ सकती हूँ कि तुम्हारे भीतर हर चीज़ इस निर्णय के ख़िलाफ़ होगी. मगर बात आपके घर के बारे में नहीं है. उसमें ज़िंदगी बिताने के बारे में तुम सोच भी नहीं सकते. वीरान पड़े कमरों का नज़ारा, उलाहने, तुलना. क्या मैं समझती नहीं हूँ? दूसरों की पीड़ा पर अपनी ख़ुशी का निर्माण करना, आत्मा को जो प्यारा और पवित्र है, उसे पैरों तले कुचल देना. मैं तुमसे ऐसा बलिदान कभी भी स्वीकार नहीं करती. मगर बात यह नहीं है. आपका घर इतने ख़स्ता हाल में है कि कमरों को रहने लायक बनाना मुश्किल ही होता. मैं मिकूलीत्सिन के वीरान पड़े घर के बारे में सोच रही थी.”

“ये सब सही है. संवेदनशीलता के लिये धन्यवाद. मगर एक मिनट रुको. मैं पूरे समय पूछना चाहता हूँ और हर बार भूल जाता हूँ. कमारोव्स्की कहाँ है? क्या वह यहीं है या चला गया? उस दिन मेरी उसके साथ बहस के बाद, और जब मैंने उसे सीढ़ियों से धकेल दिया था, उसके बाद मैंने उसके बारे में कुछ नहीं सुना.”                   

“मुझे भी कुछ नहीं मालूम. ख़ुदा उसके साथ है. तुम्हें उसकी क्या ज़रूरत पड़ गई?”

“मैं बार-बार उसी ख़याल पर वापस लौटता हूँ कि हमें उसके प्रस्ताव पर कुछ अलग तरह से विचार करना चाहिये था. हम एक जैसी स्थिति में नहीं हैं. तुम पर बेटी की ज़िम्मेदारी है. अगर तुम मेरी मौत को भी साझा करना चाहो, तो भी तुम्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं है.

चलो, वरिकीना चले जायेंगे. ज़ाहिर है, कि कड़ाके की सर्दियों में, बिना खाने-पीने की चीज़ों के, बिना शक्ति के, बिना किसी उम्मीद के उस जंगली वीराने में जाना – पागलपन भरी बेवकूफ़ी है. मगर, मेरे दिल, अगर हमारे पास बेवकूफ़ी के अलावा कुछ बचा ही नहीं है, तो चलो, बेवकूफ़ी ही करते हैं. एक बार और झुक जाते हैं. अन्फीम से घोड़ा मांग लेंगे. उससे पूछेंगे, या अगर उससे नहीं भी, तो उसके अधीन व्यापारियों से आटा और आलू कर्ज़ के तौर पर मांग लेंगे, जो किसी भी विश्वास से सही नहीं कहा जायेगा.  

“हम उसे मनायेंगे कि हमारी मदद करने के बाद फ़ौरन वहाँ न आये, बल्कि आख़िर में आये, जब उसे वापस घोड़े की ज़रूरत होगी. कुछ समय तक हम अकेले रहेंगे. जायेंगे, मेरे दिल. एक सप्ताह में हम इतने पेड़ काट लेंगे और जला लेंगे, जिनसे सोच-समझ कर इस्तेमाल करने पर घर में साल भर के लिये ज़रूरी ईंधन का इंतज़ाम हो जाता.”

“और फिर से और फिर से. मेरी बातों में ज़ाहिर हो रही उलझन के लिये मुझे माफ़ करना. इस बेवकूफ़ी भरी करुणा के बिना तुमसे बातें करने का कितना मन हो रहा है! मगर हमारे पास वाकई में कोई विकल्प नहीं है. उसे चाहे जो नाम दे दो, मगर मौत वाकई में हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे रही है. हमारे अधिकार में कुछ गिने-चुने दिन ही बचे हैं. चलो, उनका अपनी मर्ज़ी से उपयोग करें. उन्हें ज़िंदगी को बिदा करने, जुदाई से पहले आख़िरी मुलाकात में बिताएँ. हर चीज़ से बिदा लें, जो हमें प्यारी थी, हमारी परिचित मान्यताओं से, उनसे, कि हम किस तरह जीने का सपना देखते थे और अंतरात्मा ने हमें क्या सिखाया है, उम्मीदों से बिदा लें, एक दूसरे से बिदा लें. फिर एक दूसरे से हमारे रात के गुप्त शब्दों को कहें, महान और प्रशांत, जैसे एशियाई महासागर का नाम है.

“तुम मेरी ज़िंदगी के अंतिम छोर पर यूँ ही नहीं खड़े हो, मेरे रहस्यमय, प्रतिबंधित फ़रिश्ते, युद्धों और विद्रोहों के आसमान के नीचे, तुम उसके आरंभ में भी, कभी बचपन के शांत आसमान के नीचे इसी तरह खड़ी थीं.   

“तुम उस समय, रात को, स्कूल की अंतिम कक्षा की विद्यार्थिनी, कॉफी के रंग की युनिफॉर्म में, हॉटेल के कमरे के पार्टीशन के पीछे, आधे अंधेरे में, बिल्कुल वैसी ही थीं, जैसी अभी हो, और वैसी ही गज़ब की ख़ूबसूरत.

उसके बाद जीवन में अक्सर मैंने उस सम्मोहक रंग को पहचानने की और उसे नाम देने की कोशिश की, जो तुमने उस समय मुझ पर उँडेला था, वह धीरे धीरे धुँधली पड़ती हुई किरण और स्तब्ध होती हुई आवाज़, जिसने तब से मेरे पूरे अस्तित्व को सराबोर कर दिया और दुनिया में हर चीज़ में प्रवेश करने की कुंजी बन गई, तुम्हारी मेहेरबानी से.          

“जब तुम, स्कूल की युनिफॉर्म में एक परछाई, हॉटेल के कमरे की गहराई के अंधेरे से बाहर आईं, तो मैं, एक लड़का, जो तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं जानता था, तुमसे मुख़ातिब ताकत की समूची पीड़ा से समझ गया: यह दुबली-पतली, कमज़ोर लड़की, दुनिया में कल्पनीय समूचे नारीत्व से सराबोर है, जैसे पूरी तरह विद्युत से आवेशित हो. अगर कोई उसके निकट जाये या उसे उँगली से छू दे, तो चिंग़ारी कमरे को रोशन कर देगी और या तो वह अपनी जगह पर ही मर जायेगा, या ज़िंदगी भर के लिये पीड़ादायक चाहत और दुख के चुम्बकीय आकर्षण से आवेशित हो जायेगा. मैं भटकते हुए आँसुओं से लबालब भर गया, मेरे भीतर हर चीज़ चमक रही थी और रो रही थी. मुझे अपने आप पर, लड़के पर, ख़ौफ़नाक रूप से दया आ रही थी, और उससे भी ज़्यादा दया आ रही थी तुम पर, लड़की पर. मेरा पूरा अस्तित्व विस्मित था और पूछ रहा था : अगर प्यार करना और विद्युत को आत्मसात करना इतना पीड़ादाई है, तो फिर कैसे, शायद, और ज़्यादा पीड़ादायी होता होगा एक औरत होना, ख़ुद विद्युत होना, प्रेम की प्रेरणा देना.

“देखो, आख़िरकार, मैंने यह कह दिया. इसकी वजह से पागल भी हो सकते हैं. मैं पूरी तरह इसमें डूबा हुआ हूँ.”               

लरीसा फ़्योदरव्ना पलंग के किनारे पर लेटी थी, पूरी पोषाक में और कुछ अस्वस्थ सी. वह गुड़ी-मुड़ी होकर पलटी और रूमाल से ख़ुद को ढाँक लिया.

यूरी अन्द्रेयेविच बगल में ही कुर्सी पर बैठा था और धीमी आवाज़ में बोल रहा था, काफ़ी देर रुक रुककर. कभी लरीसा फ़्योदरव्ना कुहनियों के बल कुछ उठती, अपनी ठोड़ी को हथेली से पोंछती और, मुँह खोलकर, यूरी अन्द्रेयेविच की ओर देखती. कभी उसके कंधे से लिपट जाती और, अपने आँसुओं पर ध्यान न देते हुए ख़ामोशी से और आनंद से रोती. आख़िर में वह उसकी ओर बढ़ी, पलंग के किनारे का सहारा लिया, और ख़ुशी से फुसफुसाई:

“यूरच्का! यूरच्का! कितने होशियार हो तुम. तुम सब कुछ जानते हो, हर बात का अंदाज़ लगा लेते हो. यूरच्का, तुम मेरी ताकत हो, मेरा सहारा और आधार हो, ख़ुदा मेरी ईश-निन्दा को माफ़ करे. ओह, मैं कितनी ख़ुशनसीब हूँ! जायेंगे, जायेंगे, मेरे प्यारे. वहाँ जाकर मैं तुम्हें बताऊँगी कि मुझे कौनसी बात परेशान कर रही है.”

उसने तय कर लिया कि उसका इशारा शायद अपनी संभावित, शायद, काल्पनिक, गर्भावस्था की ओर था, और वह बोला:

“मैं जानता हूँ.

 

 

4

 

वे सर्दियों की धूसर सुबह को शहर से बाहर निकले. यह काम-काज का दिन था. लोग रास्तों पर अपने-अपने काम से जा रहे थे. अक्सर परिचित लोग दिखाई दे जाते. ऊबड़-खाबड़ चौराहों पर, पुराने पानी के बूथों के पास एक ओर रखी बाल्टियों और काँवड़ों के साथ औरतों की लाईन लगी थी जिनके घरों के पास पानी के पम्प नहीं थे, और जो पानी के लिये अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थीं. डॉक्टर सावधानी से भीड़ में खड़ी औरतों को बचाते हुए तीर की तरह भागती सामदिव्यातव की व्यात्का की धूसर पीली, घुंघराले बालों वाली घोड़ी सव्रास्का को नियंत्रित कर रहा था.

तेज़ी से भागती हुई स्लेज तिरछी होकर ऊबड़-खाबड़, पानी गिरे और बर्फ से ढंके रास्ते से फिसलती जा रही थी और फुटपाथ पर चढ़ जाती, लैम्प पोस्ट और किनारे के पत्थरों से टकरा जातीं.

पूरे वेग से भागते हुए उन्होंने सड़क पर जाते हुए सामदिव्यातव को पीछे छोड़ दिया, उड़ते हुए उसके पास से गुज़र गये और पीछे मुड़कर भी नहीं देखा, जिससे यह पता लगे कि क्या उसने उनको और अपनी घोड़ी को पहचान लिया और चिल्लाकर उनसे कुछ कह तो नहीं रहा है. दूसरी जगह पर इसी तरह, बिना अभिवादन किये कमारोव्स्की से आगे निकल गये, यह निश्चित करते हुए कि वह अभी तक युर्यातिन में है.

रास्ते के उस पार से ग्लफ़ीरा तून्त्सेवा ज़ोर से चिल्लाकर बोली:

“और बोले, कि आप लोग कल चले गये. इसके बाद लोगों पर कैसे विश्वास करें. क्या आलू लेने जा रहे हैं?” और हाथ के इशारे से यह दिखाते हुए कि उसे जवाब सुनाई नहीं दे रहा है, उसने हाथ हिलाकर उन्हें बिदा कर दिया.

सीमा की ख़ातिर टीले पर, असुविधाजनक स्थान पर रोकने की कोशिश की, जहाँ रुकना मुश्किल था. घोड़ी को बगैर इसके भी पूरे समय लगाम खींच कर रोकना पड़ रहा था. सीमा ऊपर से नीचे तक दो या तीन चादरों में लिपटी थी, जो उसकी शरीरयष्टि को गोल लट्ठे जैसा कड़ा बना रही थीं. सीधे कदमों से बिना लड़खड़ाहट के वह रास्ते के बीचोंबीच स्लेज के पास आई और सुखी यात्रा की कामना करते हुए उनसे बिदा ली.

“जब वापस आएँगे, तो आपसे बातें करनी होंगी, यूरी अन्द्रेयेविच.”

आख़िरकार, शहर से बाहर निकल गये. हालांकि यूरी अन्द्रेयेविच, कभी-कभी सर्दियों में इस रास्ते से जा चुका था, मगर वह उसे गर्मियों के दिनों वाले रूप में याद था और अब उसे पहचान नहीं पा रहा था.

खाने के सामान और अन्य चीज़ों के थैले सामने की ओर फूस में गहरे दबा कर रख दिये गये और उन्हें कसकर बांध दिया गया.

यूरी अन्द्रेयेविच या तो चौड़ी स्लेज के फर्श पर, जिसे स्थानीय लोग – कशोव्का कहते हैं - घुटनों के बल खड़े होकर, या सामदिव्यातव के फेल्ट बूट में बाहर पैर लटकाये किनारे पर तिरछे बैठकर स्लेज चला रहा था.

दोपहर के बाद, जब सर्दियों के भ्रम के कारण सूर्यास्त से काफ़ी पहले ही महसूस होने लगता था कि दिन समाप्त हो रहा है, यूरी अन्द्रेयेविच निर्ममता से सव्रास्का पर चाबुक बरसाने लगा. वह तीर की तरह भागने लगी. काफ़ी इस्तेमाल होते रहे उतार-चढ़ाव वाले असमान रास्ते में घुसते हुए कशोव्का नाव की तरह ऊपर-नीचे उड़ रही थी. कात्या और लारा ओवरकोट पहने थीं, जो उनकी गतिविधियों में बाधा डाल रहे थे. जब स्लेज एक किनारे को झुकती या हिचकोले खाती तो वे चिल्लातीं और स्लेज की एक किनार से दूसरे तक लोटपोट करते हुए पेट दर्द करने तक हँसती और थैलियों के समान ख़ुद को भी फूस में छुपा लेतीं. कभी कभी डॉक्टर जानबूझकर, हँसने के लिये, स्लेज को तिरछा कर देता और, बिना कोई नुक्सान पहुँचाए लारा और कात्या को बाहर बर्फ पर गिरा देता. वह ख़ुद, लगाम के साथ रास्ते पर कुछ कदम घिसटकर सव्रास्का को रोकता, स्लेज को सीधा करके खड़ा करता और लारा और कात्या की डांट खाता, जो अपने आप को झटकते हुए स्लेज में बैठतीं, हँसती और गुस्सा होतीं.

“मैं आप लोगों को वह जगह दिखाऊँगा, जहाँ पार्टिज़ानों ने मुझे रोका था,” जब शहर से काफ़ी दूर निकल गये, तब डॉक्टर ने उनसे वादा किया, मगर वह अपना वादा पूरा न कर सका, क्योंकि जंगलों का सर्दियों वाला नंगापन, मौत जैसा सन्नाटा और चारों ओर के वीरानेपन ने उस जगह को इतना बदल दिया कि पहचानना असंभव हो गया.  – “ये रही!” जल्दी ही खेत में खड़े “मोरा और वित्चिन्कीन” के पहले इश्तेहार को दूसरा, जंगल में लगा इश्तेहार समझकर वह चिल्लाया, जिसके पास उसे पकड़ लिया गया था. जब वे इस दूसरे वाले के पास से गुज़रे, जो अपनी पहली जगह पर ही था, सक्मा चौराहे के पास बगिया में, तो इश्तेहार को पहचानना असंभव था, आँखों में चुभ रही चमचमाती बर्फ की घनी जाली के कारण, जिसने जैसे जंगल को चांदी पर काली नक्काशी में बदल दिया था. और इश्तेहार पर उनका ध्यान ही नहीं गया.  

वरिकीना में दिन रहते पहुँच गये और झिवागो के पुराने मकान के सामने खड़े हो गये क्योंकि रास्ते पर वही पहला घर था, मिकुलीत्सिन के घर की अपेक्षा ज़्यादा पास. तेज़ी से घर के भीतर घुसे, जैसे डाकू हों, - जल्दी ही अंधेरा होने वाला था. भीतर अंधेरा हो चुका था. जल्दबाज़ी में यूरी अन्द्रेयेविच ने आधे विनाश और गंदगी की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया. परिचित फर्नीचर का कुछ अंश सही-सलामत था. वीरान वरिकीना में शुरू किये गये विनाश को पूरा करने वाला कोई था ही नहीं. घर की चीज़ों में से यूरी अन्द्रेयेविच को कुछ भी नहीं मिला. मगर परिवार के प्रस्थान के समय वह वहाँ था भी तो नहीं, उसे मालूम नहीं था कि वे अपने साथ क्या ले गये हैं और क्या छोड़ गये हैं. इस बीच लारा ने कहा:

“जल्दी करना चाहिये. अभी रात हो जायेगी. सोचने के लिये समय नहीं है. अगर यहाँ रुकना है, तो – घोड़ी को सराय में, खाने-पीने के सामान को ड्योढ़ी में, और हमें यहाँ इस कमरे में. मगर मैं इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हूँ. हम इस बारे में काफ़ी बात कर चुके हैं. तुम्हें, और इसका मतलब है कि मुझे भी, मन पर बोझ महसूस होगा. ये यहाँ क्या है, आपका शयनकक्ष? नहीं, बच्चों का कमरा. तुम्हारे बेटे का छोटा-सा पलंग. कात्या के लिये छोटा पड़ेगा. दूसरी तरफ़ से – खिड़कियाँ साबुत हैं, दीवारों पर और फर्श पर कोई दरार नहीं है. इसके अलवा, शानदार भट्टी है, पिछली बार जब यहाँ आई थी, तो इसे देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा था. और अगर तुम ज़िद करते हो, कि हमें यहीं रहना है, हालाँकि मैं इसके विरुद्ध हूँ, तब मैं – कोट उतार फेंकती हूँ और पल भर में काम पर लग जाती हूँ. सबसे पहले भट्टी गरमाना है. गरमाना है, गरमाना है और गरमाना है. पहले चौबीस घंटे दिन-रात, बिना रोके. मगर तुम्हें क्या हो रहा है, मेरे प्यारे. तुम कोई जवाब ही नहीं दे रहे हो.”

“अभी. कोई बात नहीं है. माफ़ करना. नहीं, पता है, सचमुच में बेहतर होगा कि मिकुलीत्सिन का घर भी देख लें.”

 और वे आगे चल पड़े.

 

5

मिकुलीत्सिन के घर पर ताला था, जो दरवाज़े के कुन्दों में लटकाया गया था. यूरी अन्द्रेयेविच बड़ी देर तक उसे मारता रहा और उसने स्क्रू में चिपकी लकड़ी की कतरनों समेत उसे उखाड़ लिया. पहले वाले घर की तरह तेज़ी से घर के भीतर घुस गये, बिना गरम कपड़े उतारे, और ओवरकोटों में, टोपियों में और जूतों में कमरों के भीतर घुस गये.      

उनका ध्यान फ़ौरन घर के कुछ हिस्सों में, जैसे अवेर्की स्तिपानविच के अध्ययन कक्ष में रखी हुई चीज़ों पर पड़ी व्यवस्था की छाप ने आकर्षित कर लिया. यहाँ कोई रहता था, और वह भी कुछ ही समय पहले. मगर कौन? अगर मालिक और मालकिन या उनमें से कोई एक था तो वे कहाँ छुप गये और उन्होंने बाहर का दरवाज़ा उसमें फिट ताले से बंद न करके, लटकते हुए ताले से क्यों बंद किया था? इसके अलावा, अगर ये मालिक लोग थे और वे यहाँ लम्बे समय तक और निरंतर रहते थे, तो पूरे घर की सफ़ाई की गई होती, न कि अलग-अलग भागों की. भीतर घुस आये लोगों से कोई चीज़ जैसे कह रही थी कि ये मिकुलीत्सिन नहीं हैं. उन्होंने इस बात पर माथा पच्ची नहीं की. आजकल छोड़े हुए घर क्या कम हैं जिनका आधा सामान निकाल लिया गया हो? क्या ऐसे लोग कम थे, जो भगोड़े थे, जो छुपते फिर रहे थे?

“कोई श्वेत-ऑफ़िसर, जिसको ढूँढ रहे हैं”- उन्होंने एक राय से फ़ैसला किया. “आयेगा, रह लेंगे, सुलझा लेंगे.”

और फिर से, जैसे पहले भी हुआ था, अध्ययन कक्ष की विस्तीर्णता और खिड़की के पास रखी लिखने की मेज़ की चौड़ाई और सुविधाओं को निहारते हुए यूरी अन्द्रेयेविच ठिठक गया, मानो उसकी देहलीज़ पर जम गया हो. और उसने फिर से सोचा, कि कैसे ऐसी सादगी भरी सुविधाएँ धैर्यपूर्वक, फलदायी काम करने की प्रेरणा देती हैं.

मिकुलीत्सिनों के कम्पाऊण्ड में बनी छोटी-छोटी सहायक संरचनाओं में खलिहान से सटा हुआ अस्तबल भी था. मगर उस पर ताला लगा हुआ था, यूरी अन्द्रेयेविच को मालूम नहीं था कि वह किस हालत में है. समय बर्बाद न करने की दृष्टि से उसने फ़ैसला किया कि पहली रात को घोड़े को आसानी से खुलने वाले खलिहान में बांध देगा, जिस पर ताला नहीं लगा था. उसने सव्रास्का की ज़ीन खोल दी, और जब वह कुछ शांत हुई, तो उसे कुँए से लाया हुआ पानी पिलाया. यूरी अन्द्रेयेविच उसे स्लेज की तली से सूखी घास देना चाहता था, मगर वह बैठे हुए लोगों के नीचे चूरा बन गई थी, और घोड़े को खिलाने योग्य नहीं थी. सौभाग्य से, सराय और अस्तबल के ऊपर बनी चौड़ी अटारी में दीवारों के पास और कोनों में काफ़ी सूखी घास निकल आई.

रात में, बिना गरम कपड़े उतारे, ओवरकोट पहने-पहने सुख से मीठी, गहरी नींद सो गये, जैसे बच्चे दिन भर की शरारतों और भाग दौड़ के बाद सोते हैं,

 

6

जब उठे, तो यूरी अन्द्रेयेविच सुबह से खिड़की के पास रखी ललचाती हुई मेज़ की तरफ़ देखने लगा. उसके हाथ कागज़ पर लिखने के लिये खुजला रहे थे. मगर उसने अधिकार का आनंद शाम को उठाने का निश्चय किया, जब लारा और कातेन्का सो चुकी होंगी. और तब तक, कम से कम दो कमरों को व्यवस्थित करने के लिये गले-गले तक काम था.

शाम के काम के बारे में सपने देखते हुए उसने अपने सामने कोई महत्वपूर्ण उद्देश्य नहीं रखे. स्याही के प्रति जुनून, कलम और लिखने के काम का आकर्षण उस पर हावी हो रहा था.

उसका दिल चाह रहा था कि कागज़ पर कुछ घसीटे, कुछ लाईनें बनाये. पहले वह कोई पुरानी चीज़ याद करके लिखना चाहता था जो अब तक लिखी न गई हो, जिससे निठल्लेपन के कारण सुन्न पड़ गईं और इस अंतराल में ऊँघ रही योग्यताओं को झकझोर सके. और बाद में - उसे उम्मीद थी - कि उसे और लारा को यहाँ काफ़ी दिन रुकना संभव होगा और उसके पास कोई नई, महत्वपूर्ण चीज़ पर काम करना संभव हो सकेगा.

“क्या तुम व्यस्त हो? क्या कर रहे हो?”

“भट्टी गरमा रहा हूँ और गरमाये जा रहा हूँ. क्या बात है?”

“मुझे टब चाहिये.”

“ इस तरह से गरम करने पर ईंधन तीन दिनों से ज़्यादा नहीं चलेगा. हमारी झिवागो की पुरानी खलिहान में देखना पड़ेगा. हो सकता है वहाँ अभी तक कुछ पड़ा हो? अगर पर्याप्त मात्रा में ईंधन है, तो मैं थोड़ा-थोड़ा करके ले आऊँगा. कल यह काम करूँगा. तुम टब के बारे में पूछ रही थीं. कहीं दिखा तो था, मगर कहाँ – दिमाग़ से निकल गया, याद नहीं आ रहा है.”

“मेरा भी यही हाल है. कहीं तो उसे देखा था, मगर भूल गई. शायद किसी गलत जगह पर था, इसीलिये भूल रही हूँ. चलो, जाने दो. देखो, सफ़ाई के लिये मैं बहुत सारा पानी गरम कर रही हूँ. बचे हुए पानी से मेरे और कात्या के कुछ कपड़े धो लूँगी. तुम भी अपने सारे गंदे कपड़े दे देना. शाम को जब सफ़ाई कर लेंगे और अब क्या करना है, यह देख लेंगे, तो सोने से पहले हम सब नहा लेंगे.”

“अभी धोने के कपड़े इकट्ठा करता हूँ. धन्यवाद. अलमारियाँ और भारी चीज़ें हर जगह दीवार से दूर हटा दी हैं, जैसा तुमने कहा था.”

“अच्छा. टब के बदले बर्तनों वाले तसले में धो लूँगी. मगर वह बहुत चिकना हो रहा है. किनारों से चिकनाई धोनी होगी.”

“जैसे ही भट्टी गरम हो जायेगी, मैं उसे बन्द करके बाकी की दराज़ों को देखूँगा. हर कदम पर मेज़ में और अलमारी में नई-नई चीज़ें मिल रही हैं. साबुन, दियासलाई, पेन्सिलें, कागज़, लिखने का सामान. और ऐसी अप्रत्याशित चीज़ें भी दिखाई दे जाती हैं, जैसे, मेज़ पर रखा लैम्प जिसमें केरोसिन भरा है. यह मिकुलीत्सिनों का नहीं है, मुझे मालूम है. यह किसी और स्त्रोत से आया है.”

आश्चर्यजनक सफ़लता! ये सब, उसी रहस्यमय निवासी का है. जैसे ज्यूल वेर्न की रचना से. आह, तुम असल में क्या कहोगे! हम फिर से बातों में बह गये और बकवास करने लगे, और मेरा पानी उबल रहा है.”

वे भाग-दौड़ करने लगे, इधर उधर कमरों में भागे, हाथों में कोई न कोई सामान लिये और भागते हुए एक दूसरे से टकरा जाते या कातेन्का से टकरा जाते, जो अचानक रास्ते में प्रकट हो जाती और पैरों के पास कड़मड़ाती. बच्ची एक कोने से दूसरे कोने में डोल रही थी और उनके काम में बाधा डाल रही थी, और उनकी टिप्पणियों पर नाक फुला लेती. उसे ठण्ड लग रही थी और वह शिकायत कर रही थी.

“बेचारे आधुनिक बच्चे, हमारी बंजारों जैसी ज़िंदगी के शिकार, हमारे घुमक्कडपन के ख़ामोश नन्हे सहयोगी”, डॉक्टर सोच रहा था, और ख़ुद बच्ची से कह रहा था:

“अरे, माफ़ करना, प्यारी. भुनभुनाने की ज़रूरत नहीं है. झूठ और सनकीपन. भट्टी लाल गरम हो गई है.”

“भट्टी को, हो सकता है, गर्मी लग रही हो, मगर मुझे ठण्ड लग रही है.”

“तो फिर थोड़ा सब्र कर, कात्यूशा. शाम को मैं उसे दुबारा गरम–खूब गरम करूँगा, मगर मम्मा कहती है, कि वह तुम्हें अच्छी तरह नहलायेगी, तुम सुन रही हो? और फ़िलहाल, पकड़ो”. और उसने ठण्डे स्टोर-रूम से लिबेरियस के पुराने, कुछ टूटे, कुछ साबुत खिलौनों का फ़र्श पर ढेर लगा दिया, बिल्डिंग ब्लॉक्स, रेलगाड़ियों के डिब्बे और इंजिन, और नंबर लिखे गत्ते के टुकड़े डाल दिये जिन पर चिप्पी और पांसों से खेला जाता था.

“आह, आप क्या कर रहे हैं, यूरी अन्द्रेयेविच,” कातेन्का बडों के समान आहत हो गई. “ये सब पराया है. और छोटे बच्चों के लिये है. और मैं बड़ी हूँ.”

मगर एक ही मिनट बाद वह कालीन के बीचोंबीच आराम से बैठ गई, और उसके हाथों से सब तरह के खिलौने निर्माण सामग्री में बदल गये, जिससे कातेन्का ने शहर से लाई हुई गुड़िया नीन्का के लिये एक घर बना दिया बड़ी समझबूझ से और अधिक स्थाई, बजाय उन पराए, बदलते हुए बसेरों के जहाँ उसे ले जाया जाता था.

”कैसी सहज प्रवृत्ति है घर बसाने की, अथक आकर्षण घोसले के प्रति और व्यवस्था के प्रति!” किचन से बेटी का खेल देखते हुए लरीसा फ़्योदरव्ना बोली. “बच्चे बिना किसी झिझक से ईमानदार होते हैं और वे सत्य से लज्जित नहीं होते, और हम पिछड़े हुए दिखने के डर से तैयार हैं अपनी सबसे प्यारी चीज़ से बेईमानी करने के लिये, घृणित चीज़ों की तारीफ़ करते हैं और अगम्य बातों से सहमति दर्शाते हैं.”

“टब मिल गया,” अंधेरी ड्योढ़ी से उसे साथ लेकर आते हुए डॉक्टर ने उसकी बात काटते हुए कहा, “सचमुच में अपनी जगह पर नहीं था. टपकती हुई छत के नीचे फ़र्श पर, लगता है, शायद पतझड़ से पड़ा था.”

 

7

दोपहर के भोजन पर, जिसे अभी-अभी शुरू की गई सामग्री से तीन दिनों के लिये बनाया गया था, लरीसा फ़्योदरव्ना ने अभूतपूर्व व्यंजन परोसे, आलू का सूप और आलू के साथ मेमने का तला हुआ माँस परोसा. कातेन्का मज़े ले लेकर खा रही थी, वह हँसती रही, शरारत करती रही, और फिर, भरपेट खा लेने के बाद गरमाहट से सुस्त पड़ गई, उसने मम्मा के कम्बल से अपने आप को ढाँक लिया और फ़ौरन दीवान पर मीठी नींद में खो गई.

लरीसा फ़्योदरव्ना, सीधे स्टोव्ह के पास से आई, थकी हुई, पसीने से लथपथ, बेटी के समान आधी नींद में, और अपने बनाये खाने के प्रभाव से संतुष्ट, उसने मेज़ साफ़ करने की जल्दी नहीं की और आराम करने के लिये बैठ गई. यह यकीन करके कि बेटी सो रही है, सिर को हाथ पर रखे, वह मेज़ पर झुक गई बोली:

“मेहनत करने में मैं कोई कसर नहीं छोड़ती और इसी में अपनी ख़ुशी ढूँढ़ती, सिर्फ यह पता चल जाता  कि यह सब बेकार ही में नहीं हो रहा है और हमें किसी लक्ष्य की ओर ले जाने वाला है. तुम्हें हर पल मुझे याद दिलाना है, कि हम यहाँ इसलिये हैं कि एक साथ रह सकें. मेरी हिम्मत बढ़ाते रहो और होश में न आने दो. क्योंकि, साफ़-साफ़ कहूँ तो, अगर अपने पूरे होशो-हवास में देखें, कि हम क्या कर रहे हैं, हमारे साथ क्या हो रहा है? हमने अनजान घर पर धावा बोल दिया है, ज़बर्दस्ती उसमें घुस आये हैं, अपनी मर्ज़ी से उस पर कब्ज़ा जमा लिया है और पूरे समय ख़ुद को यह न देखने पर मजबूर कर रहे हैं कि यह ज़िंदगी नहीं, बल्कि थियेटर का कोई शोहै, जिसे गंभीरता से नहीं, बल्कि “जानबूझ कर” प्रस्तुत किया जा रहा है, जैसा बच्चे कहते हैं, कठपुतलियों का प्रहसन, मज़ाक की ख़ातिर.”

“मगर, मेरे फ़रिश्ते, तुम ख़ुद ही तो इस सफ़र के लिये ज़ोर दे रही थीं. याद करो, मैं कैसे काफ़ी देर तक विरोध कर रहा था और राज़ी नहीं था.”

“सही है. बहस नहीं कर रही हूँ. मगर अब मुझसे ग़लती हो गई है. तुम हिचकिचा सकते हो, सोच सकते हो, मगर मुझे सुसंगत और तार्किक होना चाहिये. हम घर के भीतर गये, तुमने बेटे का नन्हा-सा पलंग देखा और तुम्हारी तबियत ख़राब होने लगी, तुम दर्द के मारे बस बेहोश ही नहीं हुए. तुम्हारे पास ऐसा करने का हक है, मगर मुझे इसकी इजाज़त नहीं है, कातेन्का के लिये डर को, भविष्य के बारे में विचारों को, तुम्हारे प्रति मेरे प्रेम के सामने हटना होगा.”

“लरूशा, मेरे फ़रिश्ते, होश में आओ. अभी देर नहीं हुई है, हम फिर से अच्छी तरह विचार कर सकते हैं, निर्णय को बदल सकते हैं. पहले मैंने ही तुम्हें सलाह दी थी कि कमारोव्स्की की बातों पर ज़्यादा गंभीरता से सोचो. हमारे पास घोड़ा है. अगर चाहो तो कल युर्यातिन वापस चलते हैं. कमारोव्स्की अभी भी वहाँ है, गया नहीं है. हमने उसे अपनी स्लेज से रास्ते पर देखा तो था, मगर, मेरे ख़याल से, उसने हमें नहीं देखा. हम उसे अभी भी पकड़ सकते हैं.”

“मैंने अभी लगभग कुछ भी नहीं कहा है, और तुम्हारी आवाज़ में नाराज़गी झलकने लगी. मगर बताओ, क्या मैं सही नहीं हूँ? इस तरह, बिना उम्मीद के, बिना सोचे-समझे, युर्यातिन में भी छुप सकते थे. और अगर सुरक्षा ही ढूँढ़नी है, तो शायद, सोच-समझ कर, कोई योजना बनाकर करना चाहिये था, जैसा, आख़िरकार, इस पूरी जानकारी रखने वाले और गंभीर, हाँलाकि घृणित इन्सान ने सुझाव दिया था. मैं बिल्कुल नहीं जानती कि किसी और जगह के मुकाबले में, यहाँ. हम ख़तरे के कितने करीब हैं. अंतहीन, हवा के थपेड़े झेलता हुआ समतल क्षेत्र. और हम निपट अकेले. रात में हम बर्फ में दब जायेंगे, सुबह बाहर नहीं निकल पायेंगे. या हमारा रहस्यमय शुभचिंतक, जो इस घर में आता है, कोई डाकू निकले, और हमें काट दे. क्या तुम्हारे पास कोई हथियार भी है? नहीं, देख रहे हो. मुझे तुम्हारी बेफिक्री से डर लगता है, जिससे तुम मुझे भी संक्रमित कर रहे हो. इससे मेरे विचारों में उलझन पैदा हो गई है.”

“तो फ़िर ऐसी हालत में तुम क्या चाहती हो? मुझे क्या करने का हुक्म देती हो?”

“मैं ख़ुद भी नहीं जानती, कि तुम्हें क्या जवाब दूँ. मुझे पूरे समय अपने बस में रखना. लगातार याद दिलाते रहना कि मैं अंधेपन से तुम्हें प्यार करने वाली,  कुछ भी न समझने वाली गुलाम हूँ. ओह, मैं तुम्हें बताऊँगी. हमारे करीबी लोग, तुम्हारे और मेरे, हमसे हज़ार गुना बेहतर हैं. मगर बात क्या यही है?  प्यार का उपहार, हर किसी अन्य उपहार की तरह है. वह महान भी हो सकता है, मगर बिना आशीर्वाद के वह प्रकट नहीं होगा. और हमें जैसे आसमान में चूमना सिखाया गया और बाद में बच्चों की तरह भेज दिया गया जीने के लिये और साथ ही एक दूसरे पर इस योग्यता को आज़माने के लिये. सामंजस्य का कोई मुकुट, कोई पक्षपात नहीं, कोई स्तर, कोई माप नहीं, कोई ऊँचा नहीं, कोई नीचा नहीं, सभी अस्तित्वों का संतुलन, सब कुछ प्रसन्नता देने वाला, हर चीज़ आत्मा बन गई. मगर इस जंगली, हर पल घात लगाये बैठी कोमलता में कुछ बच्चों जैसा अदम्य, प्रतिबंधित है.

यह स्वेच्छाचारी, विनाशकारी प्रवृत्ति घर की शांति के लिये हानिकारक है. मेरा कर्तव्य है उससे डरना और उस पर विश्वास न करना”.

उसने डॉक्टर की गर्दन में हाथ डाल दिये और, आँसुओं से लड़ती हुई, अपनी बात ख़त्म की:

“समझ रहे हो, हम बिल्कुल भिन्न परिस्थितियों में हैं. पंख तुम्हें दिये गये हैं, ताकि अपने पंखों पर बादलों के पार उड़ जाओ, मगर मुझे, एक औरत को, ताकि धरती से चिपकी रहूँ और अपने पंखों से पिल्ले को ढाँककर विपत्तियों से बचा सकूँ.”

उसे ख़तरनाक हद तक वह सब अच्छा लग रहा था, जो वह कह रही थी, मगर उसने ऐसा दिखाया नहीं, ताकि ख़ुशामदी न प्रतीत हो. अपने आप को संयत करते हुए उसने टिप्पणी की:

“हमारे आवास की पड़ाव जैसी स्थिति वाकई में झूठी है और बेहद तनावपूर्ण है. तुम गहराई से कह रही हो. मगर इसे हमने नहीं बनाया. बदहवासी में फेंकते जाना – सबके भाग्य में है, ये समय के अनुसार ही है. मैं ख़ुद भी आज सुबह से लगभग इसीके बारे में सोच रहा था. मैं यहाँ लम्बे समय तक रहने के लिये हर तरह की कोशिश करना चाहता हूँ. कह नहीं सकता कि काम के बिना कितना उकता गया हूँ. मेरा मतलब खेतीबाड़ी के काम से नहीं है. एक बार हमारा पूरा परिवार इस काम में लग गया था, और वह सफ़ल रहा था. मगर उसे फिर से दुहराने की ताकत मुझमें नहीं है. मेरे दिमाग़ में वह बात नहीं है.

ज़िंदगी सभी तरफ़ से धीरे-धीरे व्यवस्थित होती जा रही है. हो सकता, फिर से कभी किताबें प्रकाशित होने लगेंगी.

मैं ये सोच रहा था, कि क्या सामदिव्यातव से इस बारे में समझौता किया जा सकता है, उसके लिये लाभदायक शर्तों पर, कि वह छह महीने हमारे खाने-पीने का इंतज़ाम करे, उस रचनात्मक काम के बदले जो मैं इस दौरान उसे करके दूँगा, जैसे मैं मेडिसिन की कोई गाईड लिख दूँ, या मिसाल के लिये कोई साहित्यिक रचना, कविताओं की कोई किताब. या फिर मैं किसी विश्व-प्रसिद्ध विदेशी रचना का अनुवाद कर दूँ. मैं भाषाएँ अच्छी तरह जानता हूँ, मैंने हाल ही में पीटर्सबुर्ग के एक बड़े प्रकाशक का, जो केवल अनुवादित रचनाएँ प्रकाशित करता है, इश्तेहार देखा था. इस तरह के कामों का, शायद, कोई विनिमय मूल्य होगा, जिसे पैसों में बदला जा सकता हो. मुझे इस तरह का कोई काम करने में ख़ुशी होगी”.

“धन्यवाद, कि तुमने मुझे याद दिलाया. मैं भी आज इसी तरह का कुछ सोच रही थी. मगर मुझे विश्वास नहीं है कि हम यहाँ टिक जायेंगे. बल्कि, मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि हमें जल्दी ही कहीं बहुत दूर फेंक दिया जायेगा. मगर फ़िलहाल, हमारे अधिकार में यह पड़ाव है, मेरी तुमसे विनती है. मेरी ख़ातिर, आने वाली रातों में कुछ घंटे कुर्बान करके वह सब लिख डालो, जो तुमने अलग-अलग समय पर अपनी याददाश्त से मुझे सुनाया था. उसका आधा हिस्सा खो गया है, और बचा हुआ लिखा नहीं गया था, और मुझे डर है, कि बाद में तुम सब भूल जाओगे और वह खो जायेगा, जैसा तुम कहते हो, कि तुम्हारे साथ अक्सर हुआ है.”

 

8

दिन ख़त्म होते-होते सबने गरम पानी से नहा लिया, जो कपड़े धोने के बाद काफ़ी मात्रा में बच गया था. लारा ने कातेन्का को नहलाया. यूरी अन्द्रेयेविच साफ़-सुथरेपन के प्रसन्न भाव से खिड़की के पास वाली मेज़ पर उस कमरे की ओर पीठ करके बैठा था, जिसमें लारा, महकती हुई, नहाने के गाऊन में, टर्किश तौलिये में गीले बालों का पगड़ी की तरह जूड़ा बांधे कातेन्का को सुला रही थी और ख़ुद भी सोने की तैयारी कर रही थी. शीघ्र ही आने वाली एकाग्रता की उम्मीद में लीन यूरी अन्द्रेयेविच अपने चारों ओर हो रही घटनाओं को जैसे किसी नाज़ुक और समग्र ध्यान के परदे से महसूस कर रहा था.

रात का एक बजा था, जब अभी तक सोने का बहाना करती हुई लारा सचमुच में सो गई. उसके और कातेन्का के ऊपर की और बिस्तर पर बदली हुई चादरें चमक रही थीं, साफ़, इस्तरी की हुई, झालरदार. लारा उन वर्षों में भी किसी तरह उन पर कलफ़ लगा लेती थी.

यूरी अन्द्रेयेविच को ख़ुशगवार, सुख से परिपूर्ण, ज़िंदगी की मीठी महक वाली ख़ामोशी ने घेर लिया. लैम्प का प्रकाश शांत पीलेपन से सफ़ेद कागज़ों पर पड़ रहा था और सुनहरी चमक से दवात के भीतर स्याही की सतह पर तैर रहा था. खिड़की के पीछे शीत ऋतु की बर्फ़ीली रात निलाई लिये चमक रही थी. यूरी  अन्द्रेयेविच बगल वाले ठण्डे और अंधेरे कमरे में गया, जहाँ से बाहर का दृश्य ज़्यादा साफ़ नज़र आता था और खिड़की से बाहर देखने लगा. पूरे चाँद का प्रकाश बर्फीले मैदान को मानो अण्डे की सफ़ेदी की चिपचिपाहट या सफ़ेद गोंद के स्पर्श से खींच रहा था.

बर्फीली रात की शान अवर्णनीय थी. डॉक्टर की आत्मा में शांति थी. वह रोशनी वाले, बढ़िया गरमाए गये कमरे में लौटा और लिखने लगा.

फ़र्राटेदार लिखाई में, इस बात का ध्यान रखते हुए, कि जो लिखा गया है उसका बाह्य रूप हाथ की जीवित गति को प्रकट करे और अस्तित्वहीन और मूक होते हुए अपनी पहचान न खो दे, उसने याद करके और क्रमशः बेहतर होती हुई, अपनी पूर्व आवृत्तियों से छिटकते हुए कुछ ज़्यादा सटीक और यादगार किस्म की , “क्रिसमस स्टार”, “शीत ऋतु की एक रात” और इसीसे मिलती जुलती अन्य कई कविताएँ लिखीं, जो बाद में भुला दी गईं, गुम हो गई और जिन्हें फिर कोई नहीं ढूँढ़ पाया था.

फिर पूरी हो चुकी और स्थिर हो चुकी रचनाओं से वह उन रचनाओं की तरफ़ बढ़ा जिन्हें कभी शुरू करके फेंक दिया था, वह उनके भाव में लीन हो गया और सिलसिले को आगे बढ़ाने लगा, ज़रा सी भी उम्मीद किये कि उन्हें फ़ौरन पूरा कर लेगा. फ़िर वह उनसे हट कर नई रचना की ओर आकर्षित हो गया.    

आसानी से कागज़ पर अवतरित हुए दो-तीन छंदों और कुछ तुलनाओं के पश्चात्, जिन्होंने ख़ुद उसे ही चौंका दिया था, काम उस पर हावी हो गया, और उसने उस चीज़ की समीपता को महसूस किया, जिसे प्रेरणा कहते हैं. रचनात्मकता को नियंत्रित करने वाली शक्तियों का पारस्परिक संबंध, जैसे दिमाग़ में बैठने लगा.

प्राथमिकता प्राप्त होती है न मनुष्य को और न ही उसकी आत्मा की स्थिति को, जिसे प्रकट करने के लिये वह वाक्यांश ढूँढ़ता है, बल्कि भाषा को प्राप्त होती है जिसके माध्यम से वह उसे व्यक्त करना चाहता है. भाषा, मातृभूमि और सौंदर्य तथा विचार का संचय, अपने आप ही मनुष्य के लिये सोचने और बोलने लगता है और पूरी तरह संगीतमय हो जाता है, न कि बाह्य रूप से श्रव्य ध्वनि के रूप में, बल्कि अपने भीतरी प्रवाह की तीव्रता और सामर्थ्य के रूप में. तब, नदी के प्रचण्ड प्रवाह के समान, जो अपनी ही गति से तली से पत्थरों को उलट-पुलट देती है और पवनचक्कियों के पहियों को घुमाती है, बहती हुई भाषा ख़ुद ही, अपने नियमों की सामर्थ्य से, पथ पर, चलते-चलते, मात्रा और छंद का और हज़ारों अन्य रूपों का और अधिक महत्वपूर्ण संयोजनों का निर्माण करती है, जो अंब तक अज्ञात, अलिखित, अनाम हैं.

ऐसे पलों में यूरी अन्द्रेयेविच ऐसा महसूस करता, कि मुख्य काम वह ख़ुद नहीं, बल्कि वह कर रहा है, जो उससे ऊपर स्थित है और उसका नियंत्रण कर रहा है, और वह है : वैश्विक विचार और काव्य की परिस्थिति, और वह, जो भविष्य में उसके लिये पूर्वनियोजित है, अगला कदम, जो उसे अपने ऐतिहासिक विकास में उठाना है. और उसे महसूस हुआ कि वह ख़ुद सिर्फ एक बहाना और संदर्भ बिंन्दु है, ताकि वह गतिमान हो सके.   

कुछ समय के लिये वह आत्म-भर्त्सना से, अपने आप के प्रति अप्रसन्नता से, ख़ुद को तुच्छ समझने की भावना से मुक्त हो गया. उसने नज़रें उठाईं, चारों ओर देखा.

उसने बर्फ जैसे सफ़ेद तकियों पर सोई हुई लारा और कातेन्का के सिर देखे. चादरों की स्वच्छता, कमरों की स्वच्छता, उनकी आकृतियों की स्वच्छता, जो रात की, बर्फ की, सितारों और चाँद की स्वच्छता में मिलकर डॉक्टर के दिल में प्रवेश कर चुकी एक उतनी ही महत्वपूर्ण लहर में परिवर्तित हो गई थी, जिसने उसे अस्तित्व की स्वच्छता की विजयी भावना से भाव विभोर होने और रोने पर मजबूर कर दिया.

“ख़ुदा! या ख़ुदा!” वह फुसफुसाने को तैयार था. “और यह सब मेरे लिये! मुझे इतना सारा किसलिये? तुमने अपने नज़दीक कैसे आने दिया, तुम्हारी इस अनमोल धरती पर, तुम्हारे इन सितारों तले, इस लापरवाह, शिकायत न करने वाली, अभागी, प्रिया के कदमों में कैसे भटकने दिया?”

रात के तीन बजे थे, जब यूरी अन्द्रेयेविच ने मेज़ से और कागज़ से आँखें उठाईं. निर्लिप्त तन्मयता से, जिसमें एकाग्रता से लीन था, वह - सुखी, शक्तिशाली, शांत - ख़ुद की ओर, वास्तविकता की ओर लौटने लगा. अचानक खिड़की के बाहर फ़ैली दूरियों की ख़ामोशी में उसने उदास, दुखी आवाज़ सुनी.

वह बगल वाले अँधेरे कमरे में गया, ताकि वहाँ से खिड़की से देख सके. मगर जब तक वह लिख रहा था, उस दौरान काँच पर बेहद पाला गिर गया था, उससे होकर कुछ भी देखना नामुमकिन था. यूरी अन्द्रेयेविच ने गोल किया हुआ कालीन खींचा जिसे बाहर वाले दरवाज़े का निचला हिस्सा बंद किया गया था, जिससे उसके नीचे से हवा न आये, कंधों पर ओवरकोट डाला और बाहर पोर्च में आ गया.

सफ़ेद आग ने, जिसके आगोश में लिपटी अनपिघली बर्फ चाँद की रोशनी में चकाचौंध कर रही थी, उसे जैसे अंधा कर दिया. पहले तो वह कहीं पर भी नज़र केन्द्रित नहीं कर सका, कुछ भी नहीं देख सका. मगर एक मिनट बाद उसने दूरी के कारण क्षीण हो गया लम्बा, कराहता हुआ विलाप सुना और तब मैदान के छोर पर खाई के पीछे चार लम्बी परछाईयाँ देखीं, जो छोटे से छींटे से बड़ी नहीं थीं.

एक कतार में भेड़िये खड़े थे, घर की दिशा में अपने थोबड़े किये और, चाँद की तरफ़ या मिकुलीत्सिन के घर की खिड़की से झरझर करते चाँदी जैसे प्रकाश की ओर सिर उठाये विलाप कर रहे थे. कुछ पल वे निश्चल खड़े रहे, मगर जैसे ही यूरी अन्द्रेयेविच समझ गया कि वे कुत्तों की तरह अपना पिछला हिस्सा नीचा करके मैदान से दूर हट गये, जैसे डॉक्टर का विचार उन तक पहुँच गया था. डॉक्टर देख नहीं पाया कि वे किस दिशा में छुप गये हैं.

“बुरी ख़बर है!”- उसने सोचा. “बस इन्हीं की कमी रह गई थी. कहीं बगल में ही, हमारे बिल्कुल पास, उनकी मांद तो नहीं है? शायद, खाई में भी हो सकती है. कितना डरावना है! और साथ ही, अस्तबल में मुसीबत की मारी सामदिव्यातव की यह सव्रास्का भी है. शायद, घोड़ी की ही ख़ुशबू उन्होंने सूंघ ली हो.”

उसने तय कर लिया कि फ़िलहाल लारा से कुछ नहीं कहेगा, जिससे कि उसे डरा न दे, वह भीतर आया, बाहर का दरवाज़ा बंद किया, बीच वाले, घर के ठण्डे से गरम हिस्से में खुलने वाले दरवाज़े बंद किये, उनकी सभी दरारों और खुले हुए हिस्सों को बंद किया और मेज़ की तरफ़ आया.

लैम्प पहले जैसी ही चमक और प्रसन्नता से जल रहा था. मगर वह और नहीं लिख सका. वह शांत नहीं हो सका. भेड़ियों और दूसरी अन्य उलझनों के सिवा दिमाग़ में कुछ आ ही नहीं रहा था. और वह थक भी गया था. इसी समय लारा जाग गई.

“तुम अभी भी जल रही हो और गर्म हो, मेरी उज्ज्वल मोमबत्ती!” नम, नींद से कुछ भारी हो गई फ़ुसफ़ुसाहट से उसने कहा. “एक मिनट मेरे पास बैठो, बगल में. मैं तुम्हें बताऊँगी कि मैंने कैसा सपना देखा था.”

और उसने लैम्प बुझा दिया.

 

9

दिन फिर से ख़ामोश व्यस्तता में बीत गया. घर में बच्चों की एक स्लेज मिली. लाल हो रही कातेन्का ज़ोर से हँसते हुए सामने वाले गार्डन के बर्फ से ढँके रास्तों पर बर्फ़ के छोटे से टीले से फ़िसल रही थी, जिसे डॉक्टर ने बर्फ के ढेर को फ़ावड़े से अच्छी तरह दबा-दबा कर और पानी सींचकर उसके लिये बनाया था. वह लगातार, चेहरे पर स्थिर हो गई मुस्कान से, वापस टीले पर चढ़ती, और स्लेज को रस्सी से ऊपर खींचती.  

जमाने वाली ठण्ड थी, बर्फ काफ़ी कड़ी हो रही थी. आँगन में धूप खिली थी. दोपहर की किरणों में बर्फ पीली दिखाई दे रही थी और उसके शहद जैसे पीलेपन में जल्दी हो रही शाम की मीठी, संतरे जैसी, मोटी तलछट समा गई थी.

कल के कपड़े धोने और स्नान से लारा ने घर में नमी भर दी थी.

खिड़कियाँ भुरभुरे तुषार से ढंकी थीं, भाप से नम हो गये वॉल-पेपर छत से फ़र्श तक काली धाराओं से ढँक गये थे. कमरों में अंधेरा छा गया, बेचैनी महसूस होने लगी. यूरी अन्द्रेयेविच घर की अधूरी छानबीन पूरी करते हुए, ईंधन और पानी ला रहा था, हर बार उसे कोई नई चीज़ दिखाई दे जाती, और वह लारा की मदद भी कर रहा था, जो सुबह से लगातार प्रकट होते हुए घर के कामों में व्यस्त थी.

बार बार किसी काम की गड़बड़ में उनके हाथ नज़दीक आते और एक दूसरे पर रह जाते, वे दूसरी जगह ले जाने के लिये उठाई हुई भारी चीज़ को फ़र्श पर रख देते, लक्ष्य तक न ले जाते हुए, और अविजित नज़ाकत की धुंध उन्हें निहत्था कर देती. फिर से उनके हाथों से सब कुछ गिर जाता और दिमाग़ से हर चीज़ निकल जाती. फिर से मिनट बीतते जाते और घंटों में बदल जाते और देर हो जाती, बिना निगरानी के छोड़ी हुई कातेन्का की या बिना दाना-पानी के खड़ी घोड़ी की याद आते ही दोनों घबराहट से सिर पकड़ लेते और सिर पीटते हुए गलती सुधारने और अधूरे काम को पूरा करने के लिये भागते और अंतरात्मा की भर्त्सना से दुखी होते.                

नींद की कमी के कारण डॉक्टर का सिर जैसे फ़टने लगता. उसमें मीठी धुंध छाई रहती, जैसे नशे के कारण हो, और पूरे बदन में चुभती हुई, प्यारी-सी कमज़ोरी महसूस होती. वह बेचैनी से शाम का इंतज़ार कर रहा था, ताकि रात में अधूरे छोड़े काम की ओर लौट सके.

आरंभिक काम का आधा हिस्सा उसके लिये उस उनींदी धुंध ने कर दिया, जो उसके भीतर समा गई थी, जिसमें आसपास का सब कुछ लिपटा हुआ था, और उसके विचार दुबके हुए थे. वह सामान्य अस्पष्टता, जो उसने हर चीज़ को दे दी थी, उस दिशा में जा रही थी जो रचना के अंतिम रूप धारण करने से पूर्व की सटीकता की होती है. कच्चे प्रारूप की अस्पष्टता की तरह, दिन भर की सुस्त अलसाहट ने रात के काम के लिये आवश्यक पूर्व आधार तैयार कर दिया था.

थकान की निष्क्रियता ने कुछ भी अनछुआ, अधूरा नहीं छोड़ा. हर चीज़ में परिवर्तन हुआ और उसने नया रूप धारण कर लिया.

यूरी अन्द्रेयेविच महसूस कर रहा था कि वरिकीना में अधिक स्थायी रूप से बसने के सपने पूरे होने वाले नहीं हैं, कि लारा से उसके जुदा होने का समय निकट ही है, कि वह उसे निश्चित रूप से खो देगा, और उसके बाद जीवन की प्रेरणा, और हो सकता है जीवन भी खो दे. दुख उसके दिल को खाये जा रहा था. मगर इससे भी ज़्यादा उसे थका रहा था शाम का इंतज़ार, और इस दुख को ऐसे रुदन में प्रकट करने की इच्छा कि हर कोई रो पड़े.

भेड़िये, जिन्हें वह दिन भर याद करता रहा था, अब चाँद के नीचे बर्फ़ पर खड़े भेड़िये नहीं थे, वे दुश्मन की ताकत के प्रतीक बन गये थे, जिसका उद्देश्य था डॉक्टर और लारा को मार डालना या उन्हें वरिकीना से भगा देना. इस शत्रुता के विचार ने बढ़ते-बढ़ते शाम तक इतना विकराल रूप धारण कर लिया मानो वीराने में किसी महाप्रलय पूर्व राक्षस के निशान मिले हों और खाई में परीकथाओं का एक अकराल-विकराल महासर्प घुस आया हो जो डॉक्टर के खून का प्यासा था और लारा को निगलना चाहता था.

 शाम हो गई. कल ही की तरह डॉक्टर ने मेज़ पर लैम्प जला दिया. लारा और कातेन्का कल की अपेक्षा ज़रा जल्दी सो गईं. रात को लिखा गया मज़मून दो तरह का था. परिचित, नये रूपों में ढाला हुआ बेहद सफ़ाई से, सुंदर अक्षरों में लिखा गया था. नया बेहद संक्षिप्त रूपरेखा के रूप में, बिंदुओं के साथ, समझ में न आने वाली घिचपिच लिखाई में था.         

इस घिचपिच को समझते हुए डॉक्टर को हमेशा की तरह निराशा महसूस हो रही थी. रात को पाण्डुलिपि के ये अंश उसकी आँखों में आँसू ला रहे थे और कुछ अप्रत्याशित सफ़लताओं से चौंका रहे थे. मगर अब ये काल्पनिक सफ़लताएँ उसे रोक रही थीं और बेवजह विस्तार से परेशान कर रही थीं.

पूरी ज़िंदगी वह मौलिकता के सपने देखता रहा जो सहज-सरल और मौन हो, बाह्य रूप से पहचानी न जाये और आम इस्तेमाल के और जाने-पहचाने सामान्य रूपों के आवरण में ढंकी हो, पूरी ज़िंदगी वह उस संयमित और बेबाक शैली को विकसित करने की दिशा में प्रयत्न करता रहा, जब पाठक और श्रोता विषयवस्तु को समझ लेते हैं, ख़ुद ही न जानते हुए कि वे कैसे उसे आत्मसात करते हैं. पूरी ज़िंदगी वह वह एक अगोचर शैली की खोज करता रहा, जो किसी का भी ध्यान आकर्षित न करे, और यह सोचकर भयभीत हो गया कि वह अभी तक इस आदर्श से कितना दूर है.

कल की रूपरेखाओं में वह प्रेम और भय और दुख और साहस की मिश्र भावनाओं को कुछ ऐसे साधनों से प्रकट करना चाह रहा था, जो सादगी से निकले प्रलाप से लेकर दिल की गहराई से निकली लोरी की सीमा तक पहुंचे, इस तरह कि वह शब्दों के बंधन से परे, अपने आप बहती जाये.

अब, अगले दिन, इन प्रयासों का अवलोकन करते हुए, उसने पाया कि उनमें कथावस्तु की कमी है, जो इन बिखरी हुई पंक्तियों को एक सूत्र में बांध सके. धीरे-धीरे लिखे हुए को बार-बार व्यवस्थित करते हुए यूरी अन्द्रेयेविच उसी काव्यात्मक पद्धति से साहसी ईगर की कथा रचने लगा. उसने विशालता दर्शाने वाले, खुले पंचपदी पद्य से शुरुआत की. कथावस्तु से स्वतंत्र, ख़ुद इस छंद में निहित सुश्राव्यता ने अपनी झूठी पारंपरिक मधुरता के कारण उसमें चिड़चिड़ाहट पैदा कर दी. उसने गुणदोष देखते हुए इस आडम्बरपूर्ण छंद को खारिज कर दिया, उसे चतुष्पदी तक सीमित कर दिया, जैसे गद्य में शब्दबाहुल्य से संघर्ष करते हैं. लिखना अधिक कठिन और लुभावना होता जा रहा था. काम बड़े जोश से चल रहा था, मगर फिर भी अनावश्यक बकवास उसमें घुस ही गई थी. उसने पंक्तियों को और कम करने के लिये ख़ुद को मजबूर किया. त्रिपदी में शब्द कसमसाने लगे, उनींदेपन के अंतिम निशान भी लिखने वाले से दूर उड़ गये, वह जाग गया, दहक उठा, पंक्तियों के बीच की संकीर्ण जगह ख़ुद ही बता रही थी कि उसे कैसे भरना चाहिये. वे चीज़ें जिन्हें मुश्किल से ही शब्दों से पुकारते हैं, ख़ुद ही गंभीरता से संदर्भित चौखट में प्रकट होने लगीं. उसने घोड़े के चलने की आवाज़ सुनी जो कविता की सतह पर भाग रहा था, जैसे शोपेन के गाथा-गीत में धीमी गति से चल रहे घोड़े के लड़खड़ाने की आवाज़ सुनाई देती है. सेंट जॉर्ज घोड़े पर सवार स्तेपी के असीमित विस्तार में जा रहा था, यूरी अन्द्रेयेविच पीछे से देख रहा था कि कैसे दूर जाते हुए वह सिकुड़ रहा है. यूरी अन्द्रेयेविच तप्त शीघ्रता से लिख रहा था, मुश्किल से शब्दों और पंक्तियों को  लिख पा रहा था, जो संयोग से सही स्थान पर, सही समय पर प्रकट हो रहे थे.               

उसने ध्यान ही नहीं दिया कि लारा कब पलंग से उठकर मेज़ के पास आ गई थी. अपने टखनों तक पहुँचते नाईट गाऊन में वह बहुत नाज़ुक, दुबली और ऊँची लग रही थी. यूरी अन्द्रेयेविच इस अप्रत्याशितता से चौंक गया, जब वह विवर्ण मुख से, भयभीत बगल में प्रकट हो गई, और हाथ आगे बढ़ाकर फुसफुसाहट से पूछने लगी:

“सुन रहे हो? कुत्ता रो रहा है. बल्कि दो कुत्ते हैं. आह, कितना डर लग रहा है, कैसा अपशगुन है! सुबह तक किसी तरह बर्दाश्त कर लेंगे, और चल पडेगे, चले जायेंगे. अब एक भी मिनट और यहाँ नहीं रुकूंगी.”

एक घण्टे बाद, काफ़ी देर मनाने के बाद, लरीसा फ़्योदरव्ना शांत हुई और फिर से सो गई. यूरी अन्द्रेयेविच बाहर ड्योढ़ी में आया. भेड़िये कल रात की अपेक्षा ज़्यादा निकट थे, और वे और भी जल्दी छुप गये. वे एक झुण्ड में खड़े थे, वह उन्हें गिन नहीं पाया. उसे लगा कि उनकी संख्या बढ़ गई है.

 

                              10           

वरिकीना में उनके आवास का तेरहवां दिन आ गया, जो परिस्थितियों में पहले के दिनों से भिन्न नहीं था. उसी तरह पूर्व संध्या को भेड़िये विलाप कर रहे थे, जो शायद सप्ताह के मध्य में गायब हो गये थे. उन्हें फिर से कुत्ते समझ कर, अपशगुन से डरी हुई लरीसा फ़्योदरव्ना ने, उसी तरह, अगली सुबह जाने का फ़ैसला किया. उसी तरह उसकी मनोदशा संतुलित अवस्था से दुखभरी परेशानियों के बीच डोलती रही, जो एक परिश्रमी औरत के लिये स्वाभाविक था, जिसे पूरे-पूरे दिन अपने दिल के भावों को प्रकट करने की और बेकार की नज़ाकत भरी विलासिता की इजाज़त नहीं थी.

हर चीज़ अपने आप को ठीक उसी तरह दुहरा रही थी, इसलिये जब दूसरे सप्ताह की सुबह लरीसा फ़्योदरव्ना फ़िर से, उसी तरह से, जैसे इससे पहले कई बार हुआ था, वापस जाने की तैयारी करने लगी, तो ये सोचा जा सकता था कि यहाँ गुज़ारे गये पिछले डेढ़ हफ़्तों का अस्तित्व ही नहीं था.

कमरों में, जिनमें उदास, बादलों से ढंके भूरे आसमान के कारण अंधेरा था, फिर से नमी हो गई थी. तुषार नर्म पड़ गया था, अंधेरे आसमान से, जो निचले बादलों से ढँका था, किसी भी समय बर्फ गिर सकती थी. अधूरी नींद के बोझिलपन से उत्पन्न आंतरिक और शारीरिक थकान यूरी अन्द्रेयेविच पर अपना असर दिखा रही थी. उसके विचार उलझ गये थे, ताकत कम होती जा रही थी, कमज़ोरी के कारण उसे ठण्ड महसूस हो रही थी और, ठण्ड से कंपकंपाते हुए और अपने हाथों को मलते हुए वह ठण्डे कमरे में घूम रहा था, यह न जानते हुए कि लरीसा फ़्योदरव्ना क्या फ़ैसला करती है और ख़ास उसीके फ़ैसले के अनुसार उसे क्या करना पड़ेगा.

उसके इरादे स्पष्ट नहीं थे. अभी, इस समय, वह अपना आधा जीवन दे देती, इस बात के लिये कि वे दोनों इतनी विश्रृंखलता से आज़ाद न होते, बल्कि किसी भी कठोर, मगर हमेशा के लिये स्थापित व्यवस्था के अधीन होते, कि वे नौकरी पर जाते, कि उनकी कोई ज़िम्मेदारियाँ होतीं, कि वे समझदारी से और ईमानदारी से जीवन गुज़ारते.                         

उसने दिन शुरू किया, हमेशा की तरह बिस्तर व्यवस्थित किये, कमरों को ठीक-ठाक किया और झाडू लगाई, डॉक्टर और कात्या को नाश्ता दिया. फिर वह सामान समेटने लगी और डॉक्टर से घोड़ा जोतने के लिये कहा. उसने दृढ़ता पूर्वक इस जगह से जाने का पक्का निर्णय ले लिया था.

यूरी अन्द्रेयेविच ने उसे रोकने की कोशिश भी नहीं की. हाल ही में शहर से उनके गायब होने के बाद, वहाँ चल रही गिरफ़्तारियों की गहमा-गहमी में वहाँ वापस लौटना सरासर बेवकूफ़ी थी. मगर इस भयानक बर्फीले रेगिस्तान में, उसके अपने ख़तरों के साथ, बिना किसी हथियार के अकेले बैठे रहने में भी कोई अक्लमन्दी नहीं थी.                         

इसके अलावा घास-फूस भी, जिसे डॉक्टर बगल के खलिहानों से घसीट कर लाया था, ख़त्म हो रहे थे, और नई व्यवस्था करने की संभावना दिखाई नहीं देती थी. बेशक, अगर वहाँ स्थाई रूप से बसने की संभावना होती तो डॉक्टर आसपास के इलाकों का चक्कर लगाता और घास-फूस का और खाद्य सामग्री का इंतज़ाम करने की कोशिश करता. मगर संक्षिप्त और काल्पनिक निवास के लिये ऐसी ज़ोखिम उठाने का कोई मतलब नहीं था. और हाथ झटक कर डॉक्टर घोड़ा जोतने के लिये गया.

वह अनाड़ीपन से जोत रहा था. सामदिव्यातव ने उसे सिखाया तो था, मगर यूरी अन्द्रेयेविच उसके निर्देश भूल जाता था. फ़िर भी, अनभ्यस्त हाथों से उसने वह सब कर लिया जो ज़रूरी था. चमड़े के पट्टे के लोहे की गांठ वाले सिरे को , जिससे उसने कमान को शैफ्ट से बांधा था, कई बार बल देकर एक तरफ़ बांध दिया, फिर घोड़े की कमर पर पैर टिकाकर  कॉलर के दोनों सिरों को कसकर खींचा, इसके बाद बाकी का सब काम ख़त्म करके घोड़े को ड्योढ़ी की तरफ़ लाया, वहाँ उसे बांध दिया और लारा से कहने के लिये भीतर गया कि चल सकते हैं.   

उसने उसे बेहद परेशान हालत में पाया. वह और कातेन्का बाहर जाने के लिये कपड़े पहनकर तैयार थीं, सामान बंधा हुआ था, मगर लरीसा फ़्योदरव्ना हाथ मरोड़ रही थी और अपने आँसुओं को रोकते हुए यूरी अन्द्रेयेविच से एक मिनट बैठने के लिये कह रही थी, वह कुर्सी पर बैठ जाती और उठ जाती, और अक्सर विस्मय से “है ना?” चिल्लाते हुए विलाप करती, और शिकायत करती ऊँची, गाती-सी आवाज़ में जल्दी-जल्दी कुछ असंबद्ध-सा बड़बड़ा रही थी:

“मेरा कुसूर नहीं है. मैं ख़ुद ही नहीं जानती कि यह कैसे हो गया. मगर क्या इस समय जा सकते हैं? जल्दी ही अंधेरा हो जायेगा. रास्ते में रात हो जायेगी. और वह भी तुम्हारे इस भयानक जंगल में, है ना? मैं वैसा ही करूँगी जैसा तुम कहोगे, मगर ख़ुद, अपनी ख़ुद की इच्छा से फ़ैसला नहीं कर पाऊँगी. कोई चीज़ मुझे रोक रही है. मेरा दिल ठिकाने पर नहीं है. जैसा तुम ठीक समझो, करो. है ना? तुम चुप क्यों हो और एक भी शब्द क्यों नहीं कह रहे हो? हमने पूरी सुबह बर्बाद कर दी, पता नहीं आधा दिन किस काम में बर्बाद कर दिया. कल ऐसा नहीं होगा, हम ज़्यादा सावधान रहेंगे, है ना? हो सकता है, एक और दिन रुक जाएँ? कल ज़रा जल्दी उठेंगे, जैसे ही उजाला होगा, करीब सात या छह बजे, निकल पड़ेंगे. तुम क्या सोचते हो? एक और शाम तुम भट्टी गरमाओगे, लिखोगे, एक और रात यहीं सोएँगे. आह, ये कितना अनूठा होता, जादुई-सा! तुम कुछ कहते क्यों नहीं हो? फिर से मेरा ही कोई कुसूर है, अभागी कहीं की!”

तुम बढ़ाचढ़ाकर कर रही हो. शाम होने में अभी बहुत देर है. हम बहुत पहले निकल रहे हैं. मगर, ख़ैर, जैसा तुम चाहो. अच्छी बात है. रुक जाते हैं. सिर्फ तुम शांत हो जाओ. देखो, तुम कितनी उत्तेजित हो गई हो. सच में, सामान निकाल लेते हैं, ओवरकोट उतार देते हैं. देखो, कातेन्का कह रही है कि उसे भूख लगी है. कुछ खायेंगे. तुम सच कह रही हो, आज का प्रस्थान बिना पूरी तैयारी के, आकस्मिक होता. सिर्फ परेशान न हो और ख़ुदा के लिये रोना नहीं. मैं अभी भट्टी गरमाता हूँ. मगर उसके पहले, घोड़ा जुता हुआ है और स्लेज भी ड्योढ़ी में ही है, मैं झिवागो की भूतपूर्व खलिहान में बचे खुचे ईंधन के लिये जाकर आता हूँ, यहाँ तो कुछ भी नहीं बचा है. मगर तुम रोना मत. मैं जल्दी वापस लौट आऊँगा.”

   

11

खलिहान के सामने बर्फ पर यूरी अन्द्रेयेविच की स्लेज के आने-जाने के गोल-गोल निशान थे, जब वह पहले कई बार यहाँ आया था. परसों कुछ ईंधन की लकड़ियाँ ले जाने से देहलीज़ के पास बर्फ रौंदी गई थी और उस पर कचरा गिर गया था.  

बादल, जिन्होंने सुबह से आसमान को ढाँक रखा था, अब छट गये थे. वह खाली हो गया था. हल्की बर्फ पड़ रही थी. वरिकीना का पार्क, जो विभिन्न दूरियों पर इन स्थानों को घेरता था, खलिहान के निकट आ रहा था, जैसे डॉक्टर के चेहरे को देखना चाहता हो और कुछ याद दिलाना चाहता हो. इन सर्दियों में बर्फ की खूब घनी पर्त जमी थी, खलिहान की देहलीज़ से ऊँची. उसके दरवाज़े की चौखट जैसे धंस गई थी, खलिहान जैसे झुक गया था. उसकी छत से जम गई बर्फ की कुकुरमुत्ते जैसी टोपी डॉक्टर के लगभग सिर के ऊपर लटक रही थी. छत के ठीक ऊपर, जैसे हँसिये के आकार का अभी-अभी निकला नया चाँद बर्फ में अपनी नुकीली किनार गड़ाये, भूरी गर्माहट भरी रोशनी से चमक रहा था.

हाँलाकि अभी दिन था और काफ़ी रोशनी थी, डॉक्टर को ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे वह देर शाम को अपनी ज़िंदगी के अंधेरे ऊँघते जंगल में खड़ा है. आत्मा पर इतना अंधेरा छाया था, उसे इतनी पीड़ा हो रही थी. और नया चाँद, जुदाई का पूर्वाभास देता हुआ अकेलेपन की मूरत के समान लगभग उसके चेहरे के सामने जल रहा था.         

थकान के मारे यूरी अन्द्रेयेविच गिरने-गिरने को हो रहा था. खलिहान की देहलीज़ से स्लेज में लकड़ियाँ फेंकते हुए, उसने एक बार में हमेशा से कम लकड़ियाँ इकट्ठा कीं. बर्फ जैसी लकड़ियों को, जिन पर बर्फ की पर्त जमी थी, ऐसी ठण्ड में हाथों से छूना, दस्तानों के बावजूद तकलीफ़देह था. जल्दी-जल्दी की भागदौड़ उसे गरमा नहीं रही थी. उसके भीतर कुछ रुक गया था और टूट गया था. उसने अपने प्रतिभाहीन भाग्य को जितना संभव था, कोसा और ख़ुदा की प्रार्थना करने लगा कि वह इस तस्वीर जैसी, उदास, आज्ञाकारी, भोली सुन्दरता की रक्षा करे और उसकी ज़िंदगी की हिफ़ाज़त करे. चाँद खलिहान के ऊपर खड़ा था और बिना गरमी दिये जल रहा था, चमक रहा था और रोशनी नहीं दे रहा था.

अचानक घोड़ी ने, उस दिशा में मुड़कर, जहाँ से उसे लाया गया था, सिर उठाया और पहले नीची आवाज़ में और सकुचाते हुए, और बाद में ज़ोर से और आत्मविश्वास से हिनहिनाने लगी.

“ये क्या कर रही है?” डॉक्टर ने सोचा. “ये किस ख़ुशी में? ऐसा नहीं हो सकता कि ये डर के कारण हो. डर के मारे घोड़े हिनहिनाते नहीं हैं, क्या बेवकूफ़ी है. क्या वह पागल है, जो भेड़ियों को आवाज़ से इशारा करेगी, अगर इसने उन्हें सूंघ लिया है. और इतनी ख़ुशी से हिनहिना रही है. तो शायद यह घर की कल्पना से हो, घर जाना चाहती हो. ठहर जा, अभी चलते हैं”.     

लकड़ियों के अलावा यूरी अन्द्रेयेविच ने खलिहान से छिपटियाँ और पेड़ से जूते के ऊपरी हिस्से की तरह गिर गई बर्च वृक्ष की छाल भी ले ली, एकत्रित की गई लकड़ियों को फूस की चटाई से ढाँक कर रस्सी से बांध दिया और, स्लेज की बगल में चलते हुए लकड़ियों को मिकुलीत्सिन के खलिहान की ओर ले चला.

कहीं दूर, दूसरी तरफ़, किसी अन्य घोड़े की स्पष्ट हिनहिनाहट के जवाब में घोड़ी फिर से हिनहिनाई. “ये किसका हो सकता है?” डॉक्टर ने चौंक कर सोचा. “हम समझ रहे थे कि वरिकीना वीरान है. मतलब, हम गलत थे”. उसके दिमाग़ में यह बात आ ही नहीं सकती थी कि उनके यहाँ मेहमान आये हैं, और घोड़े की हिनहिनाहट मिकुलीत्सिन के पोर्च की तरफ़ से, बगीचे से आ रही है. वह सव्रास्का को लम्बा चक्कर घुमाते हुए ले चला, फैक्ट्री की सहायक इमारतों के पीछे से, और घर को छुपाते हुए टीलों के पीछे से, उसका सामने वाला भाग उसे दिखाई नहीं दे रहा था.

बिना जल्दी किये (जल्दी करने की ज़रूरत क्या थी?), उसने लकड़ियों को खलिहान में फेंका, घोड़ी को खोला, स्लेज को खलिहान में छोड़ा, और घोड़ी को बगल वाले ठण्डे, खाली अस्तबल में ले गया. उसने उसे दायें कोने वाले खूँटे से बांधा, जहाँ हवा कुछ कम चल रही थी, और खलिहान से बची-खुची फूस की कुछ पूलियाँ लाकर उन्हें नांद की तिरछी जाली में डाला.

अशांत मन से वह घर की ओर गया. पोर्च के पास एक काफ़ी चौड़ी, किसानों वाली आरामदेह स्लेज से जुता हुआ, एक बढ़िया खाया-पिया, तगड़ा, बिना बधिया किया काला घोड़ा खड़ा था. वैसा ही चिकना और खाया-पिया, बढ़िया कोट पहने अनजान नौजवान घोड़े के आसपास, उसके पुट्ठों को थपथपाते हुए और उसके खुरों के ऊपर के पैर देखते हुए घूम रहा था.

घर के भीतर शोर सुनाई दे रहा था. छुप कर सुनना न चाहते हुए और कुछ भी सुनने की स्थिति में न होते हुए, यूरी अन्द्रेयेविच ने अनचाहे ही अपने कदम धीमे कर लिये और जैसे वह ठिठक गया. शब्दों को समझ न पाते हुए, उसने कमारोव्स्की, लारा और कातेन्का की आवाज़ें पहचान लीं. शायद वे पहले कमरे में थे, प्रवेश द्वार के पास. कमारोव्स्की लारा से बहस कर रहा था, और, उसके जवाबों की आवाज़ से पता चल रहा था कि वह परेशान थी, रो रही थी और कभी तीखेपन से उसका विरोध कर रही थी, कभी उससे सहमत हो रही थी. यूरी अन्द्रेयेविच को कुछ ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इस समय कमारोव्स्की इस समय उसी के बारे में बात कर रहा है, ख़ासकर कुछ इस तरह कि वह भरोसेमन्द आदमी नहीं है (“दो मालिकों का सेवक” – यूरी अन्द्रेयेविच को ऐसा लगा), कि पता नहीं, उसे कौन ज़्यादा प्रिय है, अपना परिवार या लारा, और यह कि लारा को उस पर निर्भर नहीं रहना चाहिये, क्योंकि डॉक्टर पर भरोसा करके, वह “दो ख़रगोशों के पीछे भाग रही है और दो कुर्सियों के बीच रह जायेगी”. यूरी अन्द्रेयेविच घर के भीतर गया.

पहले कमरे में, वाकई में, बिना गर्म कपड़े उतारे, फ़र्श तक पहुँचते ओवरकोट में कमारोव्स्की खड़ा था. लारा कातेन्का के ओवर कोट की ऊपरी किनार पकड़ कर खड़ी थी, कॉलर को खींचने की कोशिश कर रही थी और बटन को छेद में नहीं डाल पा रही थी. वह बच्ची पर गुस्सा हो रही थी, चिल्ला रही थी कि बच्ची इधर-उधर न हिले और उसके हाथ से छूट न जाये, और कातेन्का शिकायत कर रही थी : “ मम्मा, धीरे, तुम मेरा गला दबा रही हो”.  सब कपड़े पहने खड़े थे, जाने के लिये तैयार थे. जब यूरी अन्द्रेयेविच भीतर आया, तो लारा और विक्तर इपालीतविच फ़ौरन उसकी ओर भागे. “तुम कहाँ रह गये थे? हमें तुम्हारी इतनी ज़रूरत है!”

“नमस्ते, यूरी अन्द्रेयेविच! पिछली बार हम एक दूसरे से जिस बदतमीज़ी से पेश आये थे, उसे नज़र अंदाज़ करते हुए, मैं फ़िर से, जैसा कि देख रहे हैं, आपके पास बिना बुलाये आया हूँ.”

“नमस्ते, विक्तर इपालीतविच”.

“तुम इतनी देर कहाँ रह गये थे? सुनो, ये क्या कहने वाला है, और फ़ौरन अपने लिये और मेरे लिये फ़ैसला करो. समय नहीं है. जल्दी करना होगा.”

“हम खड़े क्यों हैं? बैठिये, विक्तर इपालीतविच. मैं कहाँ गायब हो गया था, लारच्का? तुम्हें तो मालूम है कि मैं लकड़ियाँ लाने गया था, और फिर घोड़े का इंतज़ाम कर रहा था. विक्तर इपालीतविच, कृपया बैठिये”.

“तुम चौंके नहीं? तुम आश्चर्य क्यों नहीं प्रकट कर रहे हो? हम अफ़सोस कर रहे थे, कि यह आदमी चला गया और हमने उसके प्रस्ताव को समझा नहीं, और देखो, वह फ़िर से तुम्हारे सामने है और तुम्हें अचरज नहीं हो रहा है. मगर और भी चौंकाने वाली ख़बर है. विक्तर इपालीतविच, उसे बताइये.”

“मुझे नहीं पता, कि लरीसा फ़्योदरव्ना का क्या ख़याल है, मगर, जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं ये कहूँगा, मैंने जानबूझ कर यह ख़बर फ़ैलाई कि मैं चला गया हूँ, मगर मैं कुछ और दिनों के लिये रुक गया, जिससे आपको और लरीसा फ़्योदरव्ना को नये सिरे से उन सवालों पर सोचने के लिये समय दूँ, जो हमने उठाये थे, और अच्छी तरह सोच-विचार करने के बाद, हो सकता है, एक समझदारी भरे निर्णय पर पहुँचे”.                              

“मगर अब और ज़्यादा स्थगित करना संभव नहीं है. अभी यहाँ से जाने के लिये सबसे अच्छा समय है. कल सुबह – मगर बेहतर है कि विक्तर इपालितविच ख़ुद ही तुम्हें बतायें”.

“एक मिनट, लारच्का. माफ़ कीजिये, विक्तर इपालितविच. हम ओवरकोटों में क्यों खड़े हैं? गरम कपड़े उतारें और बैठ जायें. बात तो आख़िर गंभीर है. ऐसे ही हड़बड़ी में नहीं हो सकती. माफ़ कीजिये, विक्तर इपालितविच. हमारी बहस कुछ नाज़ुक मामलों पर है. इन मामलों पर बहस करना हास्यास्पद और अटपटा है. मैंने कभी भी आपके साथ जाने के बारे में नहीं सोचा था. लरीसा फ़्योदरव्ना की बात कुछ और है. उन गिने चुने मौकों को छोड़कर, जब हमारी परेशानियाँ एक दूसरे से भिन्न थीं, और जब हमें याद आया कि हमारा अस्तित्व एक नहीं, बल्कि दो हैं, दो विभिन्न भाग्यों का है, मैंने सोचा, कि लारा को, ख़ासकर कात्या की ख़ातिर, और अधिक ध्यान से आपकी योजनाओं के बारे में सोचना चाहिये. और वह लगातार यह कर रही है, बार-बार इन संभावनाओं की ओर लौट रही है.”

“मगर सिर्फ इस शर्त पर कि तुम भी साथ चलोगे.”

“हम दोनों को ही जुदाई के बारे में कल्पना करना एक जैसा मुश्किल होगा, मगर, हो सकता है, अपने आप पर काबू करना होगा और यह बलिदान देना होगा. क्योंकि मेरे प्रस्थान के बारे में कोई बात हो ही नहीं सकती.”

“मगर, तुम अभी तक कुछ भी नहीं जानते. पहले सुनो. कल सुबह...विक्तर इपालितविच!”

“ज़ाहिर है, लरीसा फ़्योदरव्ना का इशारा उस जानकारी की ओर है, जो मैं लाया हूँ, और उसे सूचित कर चुका हूँ. युर्यातिन की रेल्वे लाईन पर सुदूरपूर्व शासन की एक सरकारी ट्रेन जाने के लिये तैयार खड़ी है. वह कल मॉस्को से पहुँची है और कल आगे जायेगी. यह रेलगाड़ी हमारे परिवहन-विभाग की है. उसमें आधे अंतर्राष्ट्रीय शयनयान हैं. मुझे इस ट्रेन से जाना होगा. मुझे उन लोगों के लिये जगहें दी गई हैं, जिन्हें मेरी कार्यकारी-समिति में निमंत्रित किया गया है. हम पूरे आराम के साथ जायेंगे. ऐसा मौका फ़िर कभी नहीं मिलेगा. मुझे मालूम है, कि आप यूँ ही हवा में बात नहीं करते हैं और हमारे साथ जाने के अपने विरोध को नहीं बदलेंगे. आप कठोर निर्णय लेने वाले व्यक्ति हैं, मैं जानता हूँ. मगर फिर भी. लरीसा फ़्योदरव्ना की ख़ातिर अपने उसूलों को तोड़िये. हमारे साथ चलिये, अगर व्लादिवस्तोक नहीं तो कम से कम युर्यातिन तक तो चलिये. और वहाँ चलकर देखेंगे. मगर ऐसी हालत में जल्दी करना होगा. एक मिनट भी नहीं खोना चाहिये. मेरे साथ आदमी है, मैं गाड़ी अच्छी तरह नहीं चला सकता. उसे पकड़कर हम पांचों मेरी स्लेज में नहीं आ सकते. अगर मैं ग़लत नहीं हूँ, तो सामदिव्यातव का घोड़ा आपके पास है. आप कह रहे थे कि उसे लेकर लकड़ियाँ लाने गये थे. अभी तक उसे खोला तो नहीं है?”

“नहीं, मैंने उसे खोल दिया है.”

“तब जल्दी से फिर से जोतिये. मेरा गाड़ीवान आपकी मदद करेगा. वैसे, आप जानते हैं. मगर जहन्नुम में जाये दूसरी स्लेज. किसी तरह मेरी स्लेज में ही जायेंगे. सिर्फ, ख़ुदा के लिये, जल्दी कीजिये. सफ़र के लिये, जो सबसे ज़्यादा ज़रूरी हो, वही लीजिये. घर वैसा ही रहेगा, जैसा है, बिना ताले के. बच्ची की ज़िंदगी बचाना ज़्यादा ज़रूरी है, न कि तालों की चाभियाँ समेटना”.

“मैं आपको समझ नहीं पा रहा हूँ, विक्तर इपालितविच. आप इस तरह कह रहे हैं, जैसे मैं जाने के लिये तैयार हूँ. ख़ुदा का नाम लेकर निकल पड़िये, अगर लारा ऐसा चाहती है. और घर के बारे में परेशान न हों. मैं रुकूँगा, और आपके जाने के बाद सब कुछ समेटूँगा और उसे बंद करूँगा.”

“तुम क्या कह रहे हो, यूरा? जानबूझकर यह बेवकूफ़ी किसलिये, जिसमें तुम ख़ुद ही विश्वास नहीं करते. “अगर लरीसा फ़्योदरव्ना ने फ़ैसला कर लिया हो तो”. और ख़ुद अच्छी तरह जानता है, कि लरीसा फ़्योदरव्ना के सफ़र में बिना उसके सहभाग के न कोई फ़ैसला हुआ है और ना ही होगा. तो फिर ये वाक्य क्यों : “ और घर मैं समेटूँगा और हर चीज़ का ख़याल रखूँगा”?

“मतलब, आप अपनी ज़िद छोड़ेंगे नहीं. तब एक और दरख़्वास्त है. लरीसा फ़्योदरव्ना की इजाज़त से मुझे आपसे दो शब्द कहना हैं और, अगर संभव हो, तो सीधे आँख से आँख मिलाकर.”

“ठीक है. अगर यह इतना ज़रूरी है, तो किचन में चलते हैं. तुम्हें कोई ऐतराज़ तो नहीं, लरूशा?”

 

12

 

“स्त्रेल्निकव को गिरफ़्तार कर लिया गया, उसे मौत की सज़ा सुनाई गई और सज़ा पर अमल भी कर दिया गया है.”

“कितना भयानक. क्या यह सच है?”

“ऐसा मैंने सुना, और मुझे इसमें यकीन है.”

“लारा से न कहिये. वह पागल हो जायेगी.”

“क्या बात करते हैं. इसीलिये तो मैंने आपको दूसरे कमरे में बुलाया है. इस सज़ाए-मौत के बाद उसके और बच्ची के ऊपर निश्चित रूप से ख़तरा निकट आ रहा है. उन्हें बचाने में मेरी मदद कीजिये. क्या आप हमारे साथ चलने से साफ़ इनकार कर रहे हैं?”

“मैंने आपसे कह तो दिया है. बेशक.”

“मगर आपके बगैर वह नहीं जायेगी. बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाये. तब आपसे दूसरी तरह की मदद की गुजारिश है. अपनी बातों से, झूठमूठ, ऐसा ज़ाहिर कीजिये कि आप पीछे हटने को तैयार हैं, ऐसा दिखाइये, जैसे आपको मनाया जा सकता है. मैं आपके जुदा होने की कल्पना नहीं कर सकता. न यहाँ, इस जगह, और ना ही रेल्वे स्टेशन पर, युर्यातिन में, अगर आप वाकई में हमें छोड़ने चल रहे हैं. ऐसा दिखाना है, कि वह यकीन कर ले, कि आप भी चल रहे हैं. अगर अभी, हमारे साथ नहीं, तो कुछ समय के बाद, जब मैं आपके सामने नई प्रस्तावना रखूंगा, जिसका फ़ायदा उठाने का आप वादा करते हैं. आपको उसे झूठा यकीन दिलाना होगा. मगर मेरी तरफ़ से ये सिर्फ खोखले शब्द नहीं हैं. ईमानदारी से आपको विश्वास दिलाता हूँ, कि जैसे ही आप अपनी इच्छा प्रकट करेंगे, मैं किसी भी समय आपको यहाँ से अपने यहाँ बुला लूँगा और आगे, जहाँ भी आप चाहें, भेजने का वादा करता हूँ. लरीसा फ़्योदरव्ना को विश्वास होना चाहिये कि आप हमें छोड़ने आ रहे हैं. अपनी पूरी सामर्थ्य से उसे विश्वास दिलाइये. जैसे, ऐसा दिखाईये कि आप घोड़े को जोतने के लिये भाग रहे हैं, और हमें फ़ौरन निकलने के लिये मनाइये, बिना इंतज़ार किये, जब तक आप घोड़ा जोतते हैं और हमारे पीछे-पीछे आकर रास्ते में हमें पकड़ लेते हैं”.

“मैं पावेल पाव्लविच को गोली मार दिये जाने की ख़बर से दहल गया हूँ और अपने होश में नहीं हूँ. मैं मुश्किल से आपकी बातें समझ रहा हूँ. मगर मैं आपसे सहमत हूँ. स्त्रेल्निकोव के साथ जो हुआ, उसके बाद, आज के तर्क के अनुसार लरीसा फ़्योदरव्ना और कात्या के ऊपर भी ख़तरा मंडरा रहा है. हम में से किसी को निश्चित ही गिरफ़्तार कर लिया जायेगा, और, उसके बाद, किसी न किसी तरह एक दूसरे से जुदा कर ही देंगे. उस हालत में, सही में, बेहतर होगा, कि आप ही हमें जुदा कर दें और उसे कहीं दूर, दुनिया के छोर पर ले जायें. इस समय, जब, मैं आपसे यह कह रहा हूँ, सब कुछ तो वैसे भी आपकी मर्ज़ी से ही तो हो रहा है. शायद, मैं बर्दाश्त न कर पाऊँगा, और अपने गर्व और स्वाभिमान को छोड़कर, आज्ञाकारिता से आपके पास रेंगता हुआ आऊँगा, जिससे आपके हाथों से पा सकूँ, उसको, और ज़िंदगी को, और अपने लोगों के पास समुंदर के रास्ते से जाने की और ख़ुद को बचाने की संभावना को. मगर मुझे इस सबके बारे में समझने का मौका दीजिये. आपके द्वारा दी गई ख़बर से मैं भीतर तक हिल गया हूँ. मैं पीड़ा तले दब गया हूँ, जो मुझसे सोचने और समझने की योग्यता छीन रही है. हो सकता है, कि आपके आगे सिर झुकाकर, मैं एक दुर्भाग्यपूर्ण गलती कर रहा हूँ, जिसे सुधारना असंभव होगा, जिससे पूरी ज़िंदगी भयभीत रहूँगा, मगर मुझे निर्बल करने वाली पीड़ा की धुँध में, मैं एक ही चीज़ कर सकता हूँ और वह है, यंत्रवत् आपसे सहमत हो जाऊँ और अंधे की तरह, बिना इच्छा के आपकी बात मानूँ. तो, मैं दिखावे के लिये, उसकी भलाई के लिये, अभी उससे कहता हूँ कि घोड़ा जोतने जा रहा हूँ और आप लोगों से मिल जाऊँगा, मगर ख़ुद यहाँ अकेला रह जाऊँगा. सिर्फ एक छोटी सी बात. आप इस समय, रात में कैसे जायेंगे? रास्ता जंगल से गुज़रता है, चारों ओर भेड़िये हैं, सावधान रहिये”.

“मुझे मालूम है. मेरे पास हथियार है और रिवॉल्वर है. परेशान न हों. वैसे, स्प्रिट कुछ कम लाया हूँ, बर्फ पड़ने की स्थिति में. पर्याप्त मात्रा है. बाँट सकता हूँ, चाहते हैं?”

 

13

“ये मैंने क्या कर दिया? मैंने क्या कर दिया? दे दिया, उसे त्याग दिया, हार मान ली. भाग उनके पीछे, पकड़, वापस ला. लारा! लारा!

नहीं सुन रहे हैं. हवा उल्टी दिशा में है. और, शायद, ज़ोर-ज़ोर से बातें कर रहे होंगे. उसके पास ख़ुश होने के, शांत होने के सभी कारण हैं. वह धोखे में आ गई, और उसे संदेह भी नहीं है, कि कैसे भ्रम में पड़ी है.

शायद उसके मन में ऐसे विचार उठ रहे होंगे. वह सोच रही है. सब कुछ बेहतरीन तरीके से, उसकी इच्छा के अनुरूप हुआ. उसका यूरच्का, सपने देखने वाला और ज़िद्दी, आख़िरकार, नरम पड़ ही गया, सृष्टि के निर्माता, तेरी जय हो, और वह जा रही है किसी भरोसे लायक जगह पर, ऐसे लोगों के पास जो उनसे अधिक बुद्धिमान हैं, कानून और व्यवस्था की सुरक्षा में, अगर फिर भी, अपनी बात पर अड़े रहकर और अपने स्वभाव के अनुसार, वह ज़िद पर उतर आता है और कल उनकी ट्रेन में नहीं बैठता, तो विक्तर इपालीतविच उसके लिये दूसरी ट्रेन भेजेगा, वह जल्दी ही उनके पास पहुँच जायेगा.

और फ़िलहाल वह, बेशक, अस्तबल में है, परेशानी और जल्दबाज़ी के कारण थरथराते, एक दूसरे से उलझते, उसकी बात न मानते हाथों से सव्रास्का को जोत रहा होगा और फ़ौरन पूरे जोश से पीछे-पीछे चाबुक बरसाते हुए निकल पड़ेगा, जिससे वह जंगल में घुसने से पहले, खेत में ही उन्हें पकड़ ले.

शायद, वह ऐसा ही कुछ सोच रही होगी. और उन्होंने ठीक से एक दूसरे से बिदा भी नहीं ली, सिर्फ यूरी अन्द्रेयेविच ने हाथ हिलाया था और वह मुड़ गया था, गले में चुभते हुए दर्द को निगलने की कोशिश करते हुए, मानो गले में सेब का टुकड़ा अटक गया हो.

डॉक्टर एक कंधे पर ओवरकोट डाले पोर्च में खड़ा था. खाली, ओवरकोट से बिना ढँके हाथ से उसने इतनी ताकत से छत के ठीक नीचे वाले पोर्च के खम्भे की गर्दन दबाई, जैसे उसका गला दबा रहा हो. अपनी पूरी चेतना से वह समूचे विस्तार में एक दूर के बिंदु से चिपका था. वहाँ, कुछ दूर तक, पहाड़ पर चढ़ते हुए रास्ते का छोटा सा टुकड़ा कुछ अलग-अलग खड़े बर्च वृक्षों के बीच से दिखाई दे रहा था. इस खुले हुए भाग में इस पल नीचे, अस्त होने के लिये तत्पर सूरक की रोशनी पड़ रही थी. वहाँ, इस प्रकाशित पट्टे पर किसी भी क्षण तेज़ी से भागती हुए स्लेज, उस उथली गहराई से प्रकट हो सकती थी, जिसमें वह कुछ समय के लिये समा गई थी.       

अलबिदा, अलबिदा,” इस पल की राह देखते हुए, बेआवाज़-बेसुध डॉक्टर, शाम की बर्फ़ीली हवा में, अपने सीने से, मुश्किल से साँस लेती ये आवाज़ें निकाल रहा था, “अलबिदा, हमेशा के लिये खो गईं मेरी एकमात्र प्यारी!

“आ रहे हैं, आ रहे हैं!” अधीर सूखेपन से वह अपने सूखे होठों से फुसफुसाया, जब स्लेज तीर की तरह नीचे से बाहर निकली, बर्च के वृक्षों को एक के बाद एक पार करते हुए, और उसका वेग कम हो गया और, ओह, मेरी ख़ुशी, आख़िरी वृक्ष के पास वह रुक गई.

ओह, कैसे उसका दिल धड़क रहा था, कैसे धड़क रहा था, पैर मुड़ रहे थे, परेशानी से वह पूरा मुलायम हो गया, नमदे की तरह, कंधे से फ़िसलते हुए ओवरकोट जैसा! “ओह, ख़ुदा. शायद तुमने उसे मुझे वापस लौटाने का फ़ैसला कर लिया है? वहाँ क्या हुआ है? वहाँ, दूर, सूर्यास्त के उस बिंदु पर क्या हो रहा है? क्या कारण है? वे क्यों खड़े हैं? नहीं. सब ख़तम हो गया. चल पड़े. आगे बढ़ गये. शायद उसने एक मिनट के लिये रुकने को कहा होगा, ताकि बिदा होने से पहले और एक बार घर को देख ले. या हो सकता है, कि वह यह यकीन कर लेना चाहती हो कि कहीं यूरी अन्द्रेयेविच निकल तो नहीं गया और उनके पीछे तो नहीं आ रहा है? चले गये. चले गये.   

अगर संभव हुआ, अगर सूरज जल्दी अस्त नहीं हुआ तो (अंधेरे में वह उन्हें नहीं देख पायेगा), उनकी झलक एक बार फ़िर, और इस बार वह अंतिम होगी, खाई के उस पार, मैदान में दिखाई देगी, जहाँ परसों रात को भेड़िये खड़े थे”.

और यह पल भी आया और गुज़र गया. गहरा लाल सूरज अभी तक बर्फीले टीलों की नीली रेखा पर गोल नज़र आ रहा था. बर्फ अधीरता से अनानास की मिठास सोख रही थी, जिससे वह उसे सराबोर कर रहा था. और वे दिखाई दिये, तेज़ी से गुज़रे गये. “अलबिदा, लारा, उस दुनिया में फिर मिलेंगे, अलबिदा मेरी हसीना, मेरी ख़ुशी, अथाह, अनंत, चिरंतन”. और वे ओझल हो गये. “मैं तुम्हें फिर कभी नहीं देखूँगा, कभी नहीं, ज़िंदगी में कभी नहीं, फिर कभी तुम्हें नहीं देख पाऊँगा”.

इस बीच अँधेरा होने लगा. बर्फ पर पड़े हुए धुँधलके के लाल-तांबे जैसे धब्बे जल्दी-जल्दी बदरंग होने लगे और बुझने लगे. अंतराल की विवर्ण कोमलता शीघ्रता से नीले धुँधलके में समाती जा रही थी, जो अधिकाधिक बैंगनी हो रहा था. उनके भूरी धुँध में विवर्ण-गुलाबी, जैसे अचानक उथले हो गये, आसमान पर नाज़ुकता से चित्रित रास्ते पर खड़े बर्च वृक्षों की लहरियेदार, सूक्ष्म हस्तलिखित रूपरेखा समाती जा रही थी.   

आत्मा के दुख ने यूरी अन्द्रेयेविच की संवेदना को प्रखर बना दिया था. वह हर चीज़ दस गुनी स्पष्टता से महसूस कर रहा था. आस पास की चीज़ें दुर्लभ विलक्षणता प्राप्त कर रही थीं, ख़ुद हवा भी. सर्दियों की शाम भी अभूतपूर्व चिंता से साँस ले रही थी, जैसे वह हर चीज़ की सहानुभूतिपूर्ण गवाह हो. जैसे इतना अंधेरा पहले कभी भी न हुआ था, और सिर्फ आज पहली बार शाम हो रही हो, अनाथ हो चुके, तनहाई से घिरे आदमी को सांत्वना देने के लिये. जैसे चारों ओर के जंगल टीलों पर न सिर्फ क्षितिज की ओर पीठ किये एक चित्रमाला बनाते हुए खड़े थे, बल्कि संवेदना प्रकट करने के लिये अभी-अभी धरती से बाहर आकर उन पर खड़े हो गये हैं.

डॉक्टर ने इस समय की मूर्तिमन्त सुंदरता को हाथ से लगभग झटक दिया, जैसे ज़बर्दस्ती गले पड़ गई सहानुभूति दर्शाने वालों की भीड़ को दूर हटा रहा हो, वह अपने निकट आईं सांझ की किरणों से फुसफुसाकर कहने ही वाला था, “धन्यवाद. इसकी कोई ज़रूरत नहीं है”.             

वह पोर्च में खड़ा रहा, बंद दरवाज़े के सामने मुँह किये, दुनिया से मुँह मोड़े. “अस्त हो गया मेरा सूरज चमकीला”, उसके भीतर कोई चीज़ मानो दुहरा रही थी और पुष्टि कर रही थी. गले की कंपकंपाहट के बिना इन शब्दों को एक साथ ज़ोर से कहने उसमें शक्ति नहीं थी, जो इसमें रुकावट डाल रही थी.                        

वह घर के भीतर गया. दुहरा, दो तरह का स्वगत भाषण उसके भीतर शुरू होकर पूरा हो गया: सूखा, प्रत्यक्ष रूप से कामकाजी स्वरूप का, अपने ख़ुद के संदर्भ में और प्रवाह जैसा, असीम, लारा के संदर्भ में. उसके विचार इस तरह चल रहे थे : “अब मॉस्को जाना है. और सबसे पहले – जीवित रहना है. अनिद्रा का शिकार नहीं होना है. सोना नहीं है. रातों को इतना काम करना है कि सिर चकराने लगे, जब तक कि थकावट अचेत नहीं कर देती. और एक बात और. फ़ौरन शयन कक्ष में भट्टी गरमाना है, ताकि बिना बात के रात में जम न जाऊँ.”

और वह अपने आप से यह भी कह रहा था: “हमेशा मेरी यादों में रहने वाली, मेरी प्यारी! जब तक मेरी कोहनियों के मोड़ तुम्हें याद करते हैं, जब तुम मेरे हाथों और होठों में हो, मैं तुम्हारे साथ रहूँगा. तुम्हारी ख़ातिर अपने आँसुओं को मैं किसी ऐसे रूप में बहाऊँगा, जो लाजवाब हो, यादगार हो. तुम्हारी याद के बारे में नाज़ुक, नाज़ुक, दर्द भरी पीड़ा के रूप में लिखूँगा. जब तक मैं यह नहीं कर लेता, मैं यहीं रहूँगा. और फ़िर ख़ुद ही चला जाऊँगा. ऐसी बनाऊँगा तुम्हारी तस्वीर. तुम्हारे नाक-नक्श कागज़ पर ऐसे बनाऊँगा, जैसे भयानक तूफ़ान के बाद, जिसने समुंदर को भीतर तक हिला दिया है, रेत पर सबसे ज़्यादा शक्तिशाली, सबसे दूर तक उछलती लहर के निशान रह जाते हैं. टूटी फूटी दिशाहीन रेखा में समुंदर अपनी तली से प्यूमिस पत्थर, कॉर्क, सींपियाँ, शैवाल, सबसे हल्की और भारहीन चीज़ें बाहर फेंकता है, जिन्हें वह उठा सकता है. यह है सबसे ऊँची लहर की अंतहीन दूरी तक फ़ैली तटीय सीमा. इसी तरह से ज़िंदगी के तूफ़ान ने तुम्हें मेरी ओर फेंका था, मेरे गौरव! इसी तरह तुम्हारी तस्वीर बनाऊँगा”.

वह घर के भीतर आया, दरवाज़ा बंद किया, ओवरकोट उतारा. जब वह उस कमरे में आया, जिसे लारा ने सुबह इतनी अच्छी तरह और प्रयत्नपूर्वक साफ़ किया था और जिसमें जल्दबाज़ी के प्रस्थान के कारण फिर से सब कुछ उलट-पुलट गया था, जब उसने बिखरे हुए और अव्यवस्थित बिस्तर को और बेतरतीबी से फर्श पर और कुर्सियों पर फेंकी हुई चीज़ों को देखा, तो वह, छोटे बच्चे की तरह, बिस्तर के सामने फर्श पर बैठ गया, पलंग की कड़ी किनार को सीने से चिपका लिया और, चादर के लटकते हुए किनारे में मुँह छुपाकर बच्चों की तरह फूटफूटकर और दिल खोलकर रोने लगा. यह कुछ देर तक चला. यूरी अन्द्रेयेविच उठा, उसने जल्दी से आँसू पोंछे, आश्चर्यचकित-बदहवास, थकी हुई-खोई खोई नज़र से उसने चारों ओर देखा, कमारोव्स्की की छोड़ी हुई बोतल ली, उसे खोला, उससे आधा गिलास भरा, उसमें पानी मिलाया, बर्फ डाली और प्रसन्नता से, बिल्कुल अभी-अभी बहाए दुखभरे आँसुओं की तरह इस मिश्रण के छोटे-छोटे घूँट धीरे-धीरे, लोलुपता से पीने लगा.

 

14

यूरी अन्द्रेयेविच के साथ कुछ अजीब-सी बात हो रही थी. वह धीरे-धीरे अपना मानसिक संतुलन खो रहा था. वह कभी भी इतनी अजीब तरह से नहीं रहता था. उसने घर की तरफ़ ध्यान देना बंद कर दिया, अपना ख़याल रखना बंद कर दिया, रातों को दिन में बदलने लगा और समय की गिनती भूल गया, जो लारा के जाने के बाद गुज़रा था.

वह पीता रहता और लिखता रहता, ऐसी रचनाएँ, जो उसे समर्पित होतीं, मगर उसकी कविताओं और टिप्पणियों की लारा, कुछ शब्द काटने और एक शब्द को दूसरे में बदलने के परिणामस्वरूप, अपनी प्रथम, वास्तविक छबि से, कात्या की सजीव माँ से दूर-दूर जा रही थी, जो इस समय कात्या के साथ सफ़र कर रही थी.            

ये काट-छाँट यूरी अन्द्रेयेविच सटीकता और अभिव्यक्ति की सशक्तता की वजह से करता था, मगर वे आंतरिक संयम से भी प्रेरित थी, जो व्यक्तिगत अनुभवों और वास्तविक रूप से घटित हुई घटनाओं को खुल्लम खुल्ला दिखाने की अनुमति नहीं देता था, ताकि उन व्यक्तियों को आहत और अपमानित न करे, जो वर्णित की गईं और अनुभव की गईं घटनाओं में सीधे सहभागी थे. अतः कविताओं में से वह सब निकल गया जो लहुलुहान, सुलगता, उष्ण था और घायल, अस्वास्थ्यकर के स्थान पर उनमें एक प्रशांत विस्तार प्रकट हुआ जो व्यक्तिगत घटना को सबके जाने-पहचाने सामाजिक स्तर तक ले गया. उसने इस ध्येय को प्राप्त करने की कोशिश नहीं की, मगर यह विस्तार अपने आप ही एक सुकून की तरह तैर गया, जिसे व्यक्तिगत रूप से उसने भेजा था जो सफ़र के रास्ते में थी, जैसे दूर से उसका अभिवादन हो, जैसे सपने में उसका आना हो या जैसे माथे पर उसके हाथ का स्पर्श हो. और कविताओं पर यह उदात्त प्रभाव उसके मन को भा गया.              

लारा के प्रति इस विलाप के साथ-साथ उसने अलग-अलग समय पर हर चीज़ के बारे में, प्रकृति के बारे में, रोज़मर्रा की ज़िंदगी के बारे में लिखी हुई आधी-अधूरी रचनाओं को भी पूरा कर लिया. जैसा कि उसके साथ पहले भी हमेशा होता था, इस काम को करते हुए व्यक्तिगत ज़िंदगी और समाज की ज़िंदगी के बारे में कई सारे विचार एक साथ और संयोगवश मानो उस पर टूट पड़े. 

उसने फ़िर से सोचा कि इतिहास की, उसकी, जिसे इतिहास का प्रवाह कहते हैं, कल्पना वह उस तरह नहीं करता, जैसी आम तौर पर की जाती है, और उसके सामने वह वनस्पतियों के साम्राज्य के समान प्रकट होती है. सर्दियों में बर्फ के नीचे पत्तेदार जंगल की नंगी शाखाएँ दुबली और दयनीय होती हैं, बूढ़े मस्से पर बाल जैसी. बसन्त ऋतु में कुछ ही दिनों में जंगल का रूप परिवर्तित हो जाता है, वह बादलों तक ऊँचा हो जाता है, उसकी पर्णाच्छादित भूलभुलैया में भटक सकते हैं, छुप सकते हैं. यह परिवर्तन प्राप्त होता है गति से, जो जानवरों की गति से ज़्यादा तेज़ है, क्योंकि जानवर, वनस्पतियों जितनी तेज़ी से नहीं बढ़ते हैं, और जिसकी कभी भी जासूसी नहीं की जा सकती. जंगल स्थानांतरित नहीं होता है, हम उसे ढाँक नहीं सकते, उसकी जगह बदलने का इंतज़ार नहीं कर सकते. हम उसे हमेशा अचल स्थिति में ही पाते हैं. और ऐसी ही अचल स्थिति में हम पाते हैं निरंतर बढ़ती हुई, सदा बदलती हुई समाज की ज़िंदगी को, इतिहास को, जिसके परिवर्तनों को परिलक्षित नहीं किया जा सकता.

टॉल्स्टॉय अपने विचार को सम्पूर्णता तक नहीं ले गया, जब उसने नेपोलियन को, शासकों को, जनरलों को पथप्रदर्शक मानने से इनकार कर दिया था. वह ऐसा ही सोचता था, मगर इसे पूरी स्पष्टता से नहीं कह पाया. इतिहास को कोई बनाता नहीं है, वह दिखाई नहीं देता, उसी तरह जैसे यह देखना नामुमकिन है कि घास कैसे बढ़ती है. युद्ध, क्रांतियाँ, सम्राट, रॉबेन्स्पेर जैसे लोग, ये उसके मूलभूत उत्तेजक, उसमें उफ़ान लाने वाले खमीर हैं. क्रांतियाँ लाते हैं प्रभावशाली, एकतरफ़ा कट्टर, संयमित प्रतिभाशाली व्यक्ति. वे कुछ घण्टों या कुछ दिनों में पुरानी व्यवस्था को उखाड़ फेंकते हैं. तख़्तापलट कई सप्ताह, अनेक साल चलते हैं और फिर दशकों तक, सदियों तक तख़्तापलट के लिये कारणीभूत उस सीमित भावना के आगे सिर झुकाते हैं, जैसे वह कोई मंदिर हो.

लारा के प्रति विलाप करते हुए वह उस मेल्यूज़ेयेवा की काफ़ी पहले की गर्मियों के बारे में अफ़सोस कर रहा था, जब क्रांति आसमान से धरती पर उतरे ख़ुदा जैसी थी, उन गर्मियों का ख़ुदा थी, और हर कोई अपने ही तरीके से पागलपन कर रहा था, और हरेक की ज़िंदगी जैसे अपने आप ही चल रही थी, न कि किसी व्याख्यात्मक उदाहरण की तरह, उच्च राजनीति की सत्यता की पुष्टि करते हुए.

इन विभिन्न विभिन्नताओं का चित्रण करते हुए उसने फिर से जाँच की और इस बात पर गौर किया कि कला हमेशा सौंदर्य की सेवा करती है, और सौन्दर्य है रूप के होने की खुशी, जबकि रूप ही अस्तित्व की मूल कुंजी है, हर सजीव वस्तु का कोई न कोई रूप होना चाहिये, ताकि उसका अस्तित्व रहे, और, इस तरह, कला. और त्रासदी भी, अस्तित्व की खुशी की कहानी ही है. इन विचारों और रेखांकनों से उसे भी ख़ुशी मिली, ऐसी दुःखद और आँसुओं से सराबोर, कि उसके कारण दिमाग़ थक गया और सिर दर्द करने लगा.

अन्फीम एफ़ीमविच उससे मिलने आया. वह साथ में वोद्का भी लाया था और उसे बेटी और कमारोव्स्की के साथ लारा के प्रस्थान के बारे में बताता रहा. अन्फीम एफ़ीमविच रेल की हैंड-कार से आया था. उसने डॉक्टर को घोड़ी का पर्याप्त ध्यान न रखने के लिये डाँटा और डॉक्टर की तीन-चार दिन रुक जाने की विनती के बावजूद उसे अपने साथ ले गया. मगर उसने वादा किया कि वह ख़ुद इस अवधि के बाद डॉक्टर को लेने आयेगा और उसे वरिकीना से हमेशा के लिये ले जायेगा.

कभी कभी खूब लिखने के बाद, खूब काम करने के बाद यूरी अन्द्रेयेविच को अत्यंत स्पष्टता से उस औरत की याद आती जो जा चुकी थी और उसके प्रति कोमलता और वियोग की तीव्रता से वह होश खोने लगता. जैसा कभी बचपन में शानदार गर्मियों के मौसम में और पंछियों की सीटियों के बीच उसे अपनी स्वर्गवासी माँ की आवाज़ का आभास होता, लारा के इतने अभ्यस्त होने के कारण, उसकी आवाज़ की इतनी आदत होने के कारण अब कभी कभी कान उसे धोखा देते. “यूरच्का” – उसे बगल वाले कमरे से उसकी आवाज़ का भ्रम होता.

इस सप्ताह दूसरी तरह का भ्रम पैदा करने वाली घटनाएँ भी उसके साथ हुईं. सप्ताह के अंत में, वह एक भयानक, बेवकूफ़ी भरे सपने के बाद अचानक जाग गया, जिसमें उसने देखा कि घर के नीचे अजगर का बिल है. उसने आँखें खोलीं. अचानक खाई का भीतरी हिस्सा आग से चमक उठा और किसी के गोलियाँ चलाने के शोर से गूँज उठा. अचरज की बात यह थी कि इस असाधारण घटना के एक मिनट बाद ही डॉक्टर फ़िर से सो गया, और सुबह उसने फ़ैसला कर लिया कि वह सब उसने सपने में देखा था.

 

15

   कुछ समय पश्चात् एक दिन यह घटना हुई. डॉक्टर ने आख़िरकार अपनी तर्कबुद्धि की आवाज़ को सुन लिया. उसने अपने आप से कह दिया, कि चाहे जो भी हो, अगर खुद को ख़त्म करना ही उसका लक्ष्य है तो ऐसा तरीका ढूँढ़ना होगा जो फ़ौरन कारगर हो और कम तकलीफ़देह हो. उसने अपने आप से वादा किया कि जैसे ही अन्फीम एफ़ीमविच उसे लेने आयेगा, वह फ़ौरन यहाँ से चला जायेगा.

शाम होने से पहले, जब अभी उजाला ही था, उसने बर्फ पर किसी के पैरों की तेज़ करकराहट सुनी. कोई तेज़-तेज़, निर्णायक कदमों से ख़ामोशी से घर की तरफ़ आ रहा था.

अजीब बात है. यह कौन हो सकता है? अन्फ़ीम एफ़ीमविच घोड़े पर आता. वीरान वरिकीना से होकर गुज़रने वाले थे ही नहीं. “मेरे लिये”, डॉक्टर ने सोचा. “या तो सम्मन् है या शहर में वापस बुलाया है. या, हो सकता है, गिरफ़्तार करने आया हो. मगर वे मुझे ले कैसे जायेंगे? उस हालत में दो लोगों को होना चाहिये था. ये मिकुलीत्सिन है, अवेर्किन स्तिपानविच”, मेहमान की चाल से, उसे पहचानकर, उसने ख़ुश होकर अनुमान लगाया. वह आदमी, जो अभी तक पहेली बना हुआ था, एक मिनट को टूटी हुई कुंडी वाले दरवाज़े के पास रुका, जिस पर अपेक्षित ताला नहीं लटक रहा था, और फिर विश्वास भरे कदमों से आगे बढ़ा, जानकारों जैसी चाल से, मालिक के समान रास्ते के सभी दरवाज़ों को खोलते हुए और उन्हें सावधानीपूर्वक अपने पीछे बंद करते हुए.

इन अजीब हरकतों को यूरी अन्द्रेयेविच ने लिखने की मेज़ से महसूस किया, जहाँ वह प्रवेश द्वार की ओर पीठ किये बैठा था. जब तक वह कुर्सी से उठा और उसने दरवाज़े की ओर मुँह किया, जिससे कि अजनबी से मिल सके, वह देहलीज़ पर खड़ा था, जैसे ज़मीन में गड़ा हुआ खड़ा था.

“आपको कौन चाहिये?” डॉक्टर के मुँह से अचानक निकला, जो किसी ख़ास व्यक्ति को संबोधित नहीं था, और जब कोई जवाब नहीं आया, तो यूरी अन्द्रेयेविच को आश्चर्य नहीं हुआ.

भीतर आने वाला व्यक्ति सुदृढ़, शानदार कद-काठी का, खूबसूरत चेहरे वाला, छोटे फ़र के जैकेट, फ़र की पतलून और गर्म बकरी की खाल के जूतों में था, उसके कंधे पर चमड़े की बेल्ट से बन्दूक लटक रही थी.

सिर्फ अनजान व्यक्ति के प्रकट होने का पल ही डॉक्टर के लिये अनपेक्षित था, उसका आगमन नहीं. घर के भीतर की चीज़ों ने और अन्य दूसरे लक्षणों ने यूरी अन्द्रेयेविच को इस मुलाकात के लिये तैयार कर दिया था. आने वाला, निःसंदेह वही व्यक्ति था, जो घर में पाई गई चीज़ों का मालिक था. उसका बाह्य रूप डॉक्टर को देखा हुआ और जाना पहचाना प्रतीत हुआ. शायद, मेहमान को भी चेतावनी दी जा चुकी थी कि घर ख़ाली नहीं है. घर को बसा हुआ देखकर उसे पर्याप्त आश्चर्य नहीं हुआ. हो सकता है, उसे आगाह कर दिया गया था, कि घर में उसे कौन मिलेगा. हो सकता है, वह ख़ुद भी डॉक्टर को जानता था.

“ये कौन है? कौन है ये?” यूरी अन्द्रेयेविच पीड़ा से याददाश्त पर ज़ोर डाल रहा था. “ख़ुदा, तेरी मर्ज़ी, मैंने इसे पहले एक बार कहाँ देखा है?” क्या यह संभव है? मई की गर्म सुबह, याद नहीं किस साल की. रेल्वे स्टेशन रज़्वील्ये. ख़तरे को दर्शाता कमिसार का रेल्वे कम्पार्टमेन्ट. अवधारणाओं की स्पष्टता, स्पष्टवक्ता, सिद्धांतों की गंभीरता, सच्चाई, सच्चाई, सच्चाई. स्त्रेल्निकव!”

 

16

वे न जाने कब से बातें कर रहे थे, कई घण्टों से, जैसे रूस में सिर्फ रूसी लोग करते हैं, ख़ासकर वे जो भयभीत और दुखी थे, और जो बदहवास और उन्मत्त हैं, जैसे उस समय वहाँ सब लोग थे. शाम होने लगी. अंधेरा होने लगा.  

असहज बातूनीपन के अलावा, जिससे स्त्रेल्निकव सबके साथ पेश आता था, वह बिना रुके किसी और, अपने की किसी कारण से बोलता जा रहा था.

उसका बोलना ख़त्म ही नहीं हो रहा था और अपनी पूरी ताकत से वह डॉक्टर के साथ वार्तालाप में उलझ रहा था, ताकि अकेलेपन से बच सके. क्या वह अपनी अंतरात्मा के कचोटने से भयभीत था या दुखद यादों से जो उसका पीछा नहीं छोड़ रही थीं, या ख़ुद के प्रति अप्रसन्नता ने उसे बेज़ार कर दिया था, जब इन्सान ख़ुद को ही बर्दाश्त नहीं कर सकता और अपने आप से नफ़रत करने लगता है और शर्म से मर जाना चाहता है? या उसने कोई भयानक, अपरिवर्तनीय फ़ैसला कर लिया है, जिसके साथ वह अकेला नहीं रहना चाहता था और जिसे पूरा करने में डॉक्टर के साथ बकवास करते हुए और उसकी सोहबत में वह जितनी संभव हो, देर कर रहा था?

अन्य सभी मामलों में अपने दिल की बात खुलकर कहते हुए स्त्रेल्निकव किसी न किसी तरह कोई महत्वपूर्ण रहस्य छुपा रहा था जो उसके मन पर बोझ डाल रहा था.

यह उस शताब्दी का रोग था, उस काल का क्रांतिकारी पागलपन. विचारों में सब लोग कुछ और थे, मगर शब्दों में और बाह्य आचरण में कुछ और. किसी की भी अंतरात्मा साफ़ नहीं थी. हर कोई काफ़ी हद तक सोच सकता था कि हर चीज़ के लिये वही दोषी है, गुप्त अपराधी है, धोखेबाज़ है जिसका पर्दाफ़ाश नहीं हुआ है. जैसे ही मौका मिलता, आत्म-भर्त्सना की कल्पना का शोर चरम तक पहुँच जाता. लोग कल्पनाएँ करते, अपने आप की निन्दा करते न सिर्फ भय के प्रभाव में, बल्कि उस विनाशकारी पीड़ादायक आकर्षण  के फ़लस्वरूप, स्वेच्छा से, गूढ़ अवचेतन अवस्था में और आत्म-निर्भत्सना के जुनून के कारण, जिसे सिर्फ हवा देते ही वह रुकने का नाम नहीं लेता.    

मृत्यु पूर्व की ऐसी कितनी ही स्वीकारोक्तियाँ, लिखित या मौखिक रूप में यह प्रभावशाली फ़ौजी अफ़सर और कभी कभी कोर्ट-मार्शल अधिकारी स्त्रेल्निकव पढ़ चुका था अथवा सुन चुका था. अब ख़ुद उस पर ही  इस तरह का अपना पर्दाफ़ाश करने का दौरा पड़ा था, वह अपने आप का पुनर्मूल्यांकन कर रहा था, हर चीज़ का सार प्रस्तुत कर रहा था, हर चीज़ को तप्त, दूषित, भ्रांतिपूर्ण विकृत स्वरूप में देख रहा था.

स्त्रेल्निकव बेतरतीबी से वर्णन कर रहा था, एक स्वीकारोक्ति से दूसरी पर छलांग लगा रहा था.

“ये चीता के पास हुआ था. क्या आप उन अजीब चीज़ों को देखकर चौंक गये थे जिनसे मैंने इस घर की अलमारियाँ और दराज़ भर दिये थे? ये सब फ़ौजी आवश्यकताओं की चीज़ें थीं, जो हमने रेड आर्मी के पूर्वी साइबेरिया पर कब्ज़ा करने के दौरान प्राप्त की थीं. ज़ाहिर है, मैं अकेला ही यह सामान अपने साथ ढोकर नहीं ले गया था. ज़िंदगी मुझे हमेशा विश्वासपात्र, समर्पित लोग देती रही. ये मोमबत्तियाँ, माचिस की तीलियाँ, कॉफ़ी, चाय, लिखने का सामान वगैरह कुछ चेक फ़ौजों की मिल्कियत थी, कुछ जापानी और अंग्रेज़ी फ़ौजों की. छलनी में चमत्कार, सही है ना? “सही है ना?” मेरी बीबी की पसन्दीदा अभिव्यक्ति थी, आपने शायद ग़ौर किया होगा. मैं नहीं जानता था, कि आपसे ये फ़ौरन कहना चाहिये या नहीं, मगर अब स्वीकार करता हूँ. मैं यहाँ उसे और अपनी बेटी को देखने आया था. मुझे काफ़ी देर से बताया गया, कि वे शायद यहाँ हैं. और मुझे देर हो गई. जब अफ़वाहों से और चुगलियों से मुझे आपकी उससे निकटता के बारे में पता चला और मुझे पहली बार “डॉक्टर झिवागो” यह नाम बताया गया, तो इन कई सालों में मेरे सामने तैर गये अनगिनत चेहरों में से मैंने न जाने कैसे एक बार पूछताछ के लिये मेरे पास लाये गये इस कुलनाम के डॉक्टर को पहचान लिया.”

“और क्या आपको अफ़सोस हुआ कि उसे गोली क्यों नहीं मार दी?”

स्त्रेल्निकव ने इस टिप्पणी पर ध्यान नहीं दिया. हो सकता है, उसने शायद सुना ही न हो, कि उसके साथ बातचीत कर रहे व्यक्ति ने उसके एकालाप में अपनी टिप्पणी जोड़ दी है. वह अनमनेपन से और सोच में डूबे-डूबे कहता रहा.

“बेशक, उसे लेकर मैं आपसे ईर्ष्या कर रहा था और अभी भी करता हूँ. क्या कुछ और हो सकता था? इन जगहों पर मैं सिर्फ पिछले कुछ महीनों से ही छुप रहा हूँ, जब सुदूर पूर्व में मेरे अन्य ठिकाने ख़त्म हो गये. मेरा झूठे आरोप में कोर्ट मार्शल होने वाला था. उसके नतीजे के बारे में आसानी से अंदाज़ लगाया जा सकता था. मैं नहीं समझता था कि मैंने कोई अपराध किया है. मेरे मन में उम्मीद थी कि भविष्य में, अच्छी परिस्थितियों में मैं अपने आप को निर्दोष साबित कर सकूँगा और अपने नाम पर कालिख नहीं लगने दूँगा. मैंने समय रहते ही उस क्षेत्र से गायब होने का फ़ैसला किया, गिरफ़्तार होने तक और इस दौरान छुपने का, भटकने का, फ़कीर की तरह रहने का. हो सकता है, कि अंत में मैं बच भी जाता. एक बदमाश नौजवान ने मेरा विश्वास जीत कर मुझसे धोखा किया.

मैं सर्दियों में साइबेरिया से पैदल पश्चिम की ओर चलता रहा, छुपता रहा, भूखा रहा. बर्फ में ख़ुद को छुपाता रहा, बर्फ़ से ढँकी रेलगाड़ियों में रातें गुज़ारता रहा, जिनकी अनंत कतारें उस समय साइबेरिया की मुख्य रेल लाईन पर बर्फ से दबी खड़ी थीं.

भटकते हुए मैं एक आवारा लड़के से टकरा गया, जो, मानो, मौत की सज़ा पाये लोगों की कतार में खड़ा था और पार्टिज़ानों द्वारा उन पर की गई सामूहिक गोलीबारी में पूरी तरह नहीं मरा था. शायद, वह मारे हुए लोगों के झुंड में से रेंगते हुए बाहर आया, साँस ली, लेटा रहा और फिर मेरी तरह, कई खाइयों और माँदों में घूमता रहा. कम से कम मुझे तो उसने ऐसा ही बताया. निकम्मा छोकरा, शातिर बदमाश, पिछड़ा हुआ, उन लोगों में से जो दो-दो साल एक ही कक्षा में पढ़ते हैं, अयोग्यता के कारण स्कूल से निकाला हुआ”.

जैसे-जैसे विस्तार से स्त्रेल्निकव बता रहा था, वैसे-वैसे डॉक्टर लड़के को पहचान रहा था.

“उसका नाम तिरेन्ती है, कुलनाम गलूज़िन?”

“हाँ”.

“तो पार्टिज़ानों के और गोलीबारी के बारे में सब कुछ सही है. उसने कुछ भी मन से नहीं गढ़ा.”

“लड़के में एक ही अच्छी बात थी, - वह अपनी माँ से पागलपन की हद तक प्यार करता था. उसके पिता कैद में मारे गये. उसे पता चला कि उसकी माँ जेल में है और उसका हश्र भी पिता जैसा ही होने वाला है, और उसने माँ को आज़ाद करवाने के लिये किसी भी हद तक जाने का फ़ैसला कर लिया. डिस्ट्रिक्ट इमर्जेन्सी कमिटी, जहाँ वह अपने अपराध स्वीकार करने और अपनी सेवाओं की पेशकश करने गया था, उसके सारे अपराध माफ़ करने के लिये तैयार हो गई, जिसकी कीमत उसे कोई महत्वपूर्ण सूचना देकर चुकानी थी. उसने उस जगह का पता बता दिया जहाँ मैं छुपा हुआ था. मैं उसकी गद्दारी की चाल को रोकने में कामयाब हो गया और समय रहते ग़ायब हो गया.                                

ग़ज़ब की कोशिशों से, हज़ारों साहसिक कारनामे करके मैंने साइबेरिया पार किया और यहाँ आ गया, इन जगहों पर, जहाँ मुझे एक सनकी के रूप में जानते हैं, और मुझसे मिलने की उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी, इतने दुःसाहस की मुझसे कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता था. और वाकई में मुझे और भी कई दिनों तक चीता के आसपास ढूँढते रहे, तब तक मैं कभी इस घर में, कभी  यहीं आसपास किसी और जगह पर छुपता रहा. मगर अब सब ख़त्म हो गया है. उन्होंने मुझे यहाँ भी ढूँढ़ निकाला. सुनिये. अँधेरा हो रहा है. वह समय आ रहा है, जिसे मैं पसंद नहीं करता, क्योंकि नींद तो कब से खो चुका हूँ. आप जानते हैं, कि यह कितना तकलीफ़ देह है. अगर आपने अभी तक मेरी सारी मोमबत्तियाँ जला नहीं दी हैं – ख़ूबसूरत, स्टीरिन की , है ना? – तो चलिये, कुछ देर और बातें करते हैं. चलिये, आप जितना बर्दाश्त कर पायेंगे, उतनी देर बातें करेंगे, पूरे आराम से, सारी रात, जलती हुई मोमबत्तियों की रोशनी में.”

“मोमबत्तियाँ सही-सलामत हैं. सिर्फ एक ही पैकेट खोला है. मैंने यहाँ मिले हुए केरोसिन से काम चला लिया.”

“क्या आपके पास ब्रेड है?”

“नहीं.”

“फिर आपने गुज़ारा कैसे किया? वैसे, मैं भी कैसी बेवकूफ़ी भरी बातें पूछ रहा हूँ. मालूम है, कि आलू से काम चलाया होगा.”

“हाँ. यहाँ जितना चाहो उतना आलू है. यहाँ के मालिक अनुभवी थे और बचत करना जानते थे. वे जानते थे, कि उसे कैसे संभाल कर रखा जाता है. पूरा आलू, सुरक्षित रूप से तहख़ाने में है. सड़ा नहीं और ठण्ड से जमा भी नहीं.”

अचानक स्त्रेल्निकव ने क्रांति के बारे में बताना शुरू किया.

 

17

“ये सब आपके लिये नहीं है. आप यह समझ नहीं पायेंगे. आप दूसरी तरह से बड़े हुए हैं. एक दुनिया थी शहर की सरहदों पर, रेल पटरियों की और मज़दूरों की बैरेक्स की दुनिया. गंदगी, जगह की तंगी, मज़दूर के भीतर के इन्सान को नीचा दिखाने की, औरतों का अपमान करने की. मम्मा के बेटों, अमीर घरों के विद्यार्थियों और व्यापारियों का हँसी उड़ाने वाला, नंगा, भष्ट आचरण था जिसे कभी दण्डित नहीं किया जाता था. लूटे हुए, अपमानित, आहत लोगों के आँसुओं और शिकायतों को मज़ाक में या चिड़चिड़ाहटभरी नफ़रत से खारिज कर दिया जाता था. कैसे शानदार परजीवी थे, जो सिर्फ इस बात में उल्लेखनीय थे कि वे कभी किसी बात से परेशान नहीं होते थे, कुछ नहीं खोजते थे, दुनिया को उन्होंने न तो कुछ दिया, न ही अपने पीछे कुछ छोड़ा!

मगर हमने ज़िंदगी को फ़ौजी अभियान की तरह स्वीकार किया, हमने उन लोगों के लिये पहाड़ भी हिला दिये जिन्हें प्यार करते थे. और हाँलाकि हम उन्हें दुख के सेवा कुछ न दे सके, मगर हमने उनका ज़रा भी अपमान नहीं किया, क्योंकि हम उनसे भी बड़े शहीद साबित हुए.

मगर, आगे बढ़ने से पहले, मैं आपको यह बताना अपना कर्तव्य समझता हूँ. बात ऐसी है. आपको यहाँ से निकल जाना होगा, फ़ौरन, बिना देर किये, अगर आप ज़िंदगी को कीमती समझते हैं. मेरे चारों ओर का घेरा कसता जा रहा है, और उसका अंजाम चाहे जो भी हो, आपको भी मेरे साथ उलझा लिया जायेगा, हमारी बातचीत के फ़लस्वरूप आप मेरे क्रियाकलापों में शामिल हो चुके हैं. इसके अलावा, यहाँ बहुत सारे भेड़िये हैं, मैंने पिछले एक-दो दिनों में उन पर गोलियाँ चलाई थीं.”

“ओह, तो ये आप गोलियाँ चला रहे थे?”

“हाँ. आपने, ज़ाहिर है, सुना था? मैं किसी और छुपने की जगह पर जा रहा था, मगर वहाँ तक न जाते हुए भी, अनेक लक्षणों से समझ गया कि वह घर खुला है, और वहाँ रहने वाले लोग, शायद, मर चुके हैं. मैं आपके पास ज़्यादा समय नहीं रुकूँगा, सिर्फ रात बिताऊँगा, और सुबह चला जाऊँगा. तो, आपकी इजाज़त से मैं अपनी बात आगे बढ़ाता हूँ.         

मगर क्या त्वेस्काया-याम्स्काया पर शानदार गाड़ियों में, तिरछी हैट और स्ट्रैप वाली पतलून पहने, अपनी लड़कियों के साथ तेज़ी से भागते शोहदे सिर्फ अकेले मॉस्को में, सिर्फ रूस में ही थे? स्ट्रीट्स, ईवनिंग स्ट्रीट्स, शताब्दी की ईवनिंग स्ट्रीट्स, दुलकी चाल से चलने वाले, अयालों वाले पीले-भूरे घोड़े हर जगह थे. युग को संगठित किसने किया, उन्नीसवीं सदी को एक ऐतिहासिक कालखण्ड किसने बनाया? समाजवादी विचार के उद्गम ने. क्रांतियाँ होती रहीं, निःस्वार्थ युवा बैरिकेड्स पर चढ़ गये. प्रचारक शिद्दत से सोचने लगे कि धन की पशुओं जैसी बेशर्मी पर लगाम लगाई जाये और गरीबों के आत्मसम्मान को कैसे बढ़ाया जाये, उसकी कैसे रक्षा की जाये. मार्क्सिज़्म प्रकट हुआ. उसने देख लिया कि बुराई की जड़ कहाँ है, उसका उपाय कहाँ है. वह सदी की महान शक्ति बन गया. ये सब शताब्दी की त्वेर्स्काया-याम्स्काया थीं, और गंदगी, और पवित्रता की चमक, और भ्रष्टाचार, और मज़दूरों की बस्तियाँ, घोषणाएँ और बैरिकेड्स.

आह, कितनी अच्छी थी वह, जब छोटी, स्कूल जाने वाली लड़की थी. आप समझ ही नहीं पायेंगे. वह अक्सर अपनी स्कूल की सहेली के पास उस बिल्डिंग में आती थी, जिसमें ब्रेस्त्स्काया रेल्वे के कर्मचारी रहते थे. पहले इस रेल्वे लाईन का यह नाम था, आगे उसके नाम कई बार बदले गये. मेरे पिता, जो आजकल युर्यातिन ट्रिब्युनल के सदस्य हैं, उस समय रेल्वे स्टेशन पर फोरमैन थे. मैं उस घर में जाता और उससे मिलता था. वह छोटी थी, बिल्कुल बच्ची, मगर सतर्कता का भाव, उस ज़माने की व्यग्रता उसके चेहरे पर, उसकी आँखों में पढ़ी जा सकती थी. उस समय के सभी विषय, उसके सारे आँसू और अपमान, उसकी सारी प्रेरणायें, उसका संचित प्रतिशोध और गर्वीलापन उसके चेहरे पर, और उसके अंग विन्यास में, उसकी बालसुलभ लज्जा और बेबाक सुडौलता के संम्मिश्रण में लिखी थी. उसके नाम से, उसके होठों से उस ज़माने पर दोषारोपण किया जा सकता था. आप मानिये, ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है. ये कुछ पूर्वनियोजित-सा होता है, एक विशेषता होती है. यह प्रकृति से आती है, इस पर आपका अधिकार होना चाहिये.”                

“आप उसके बारे में बहुत बढ़िया बात करते हैं. मैंने उसे उन्हीं दिनों देखा था, बिल्कुल वैसा ही, जैसा आपने उसका वर्णन किया है. उसके भीतर स्कूल की छात्रा ऐसे रहस्य की नायिका से मिल गई थी जो बचपन का नहीं होता. आत्मरक्षा के एक सतर्क हावभाव से उसकी परछाई दीवार पर फ़ैल गई थी. ऐसा मैंने उसे देखा था. ऐसी ही वह मुझे याद है. आपने इसका वर्णन चौंकाने वाले तरीके से किया.”

“देखा और याद है? और आपने इसके लिये क्या किया था?”

“ये बिल्कुल अलग सवाल है.”

“तो, देखिये, यह पूरी उन्नीसवीं सदी, पैरिस में अपनी तमाम क्रांतियों के साथ, रूसी उत्प्रवासियों की कई पीढ़ियों के साथ, गेर्त्सेन से लेकर, त्सारों की हत्या के सभी षड़यंत्र, कुछ सफ़ल और कुछ असफ़ल, दुनिया भर में मज़दूरों के सभी आंदोलन, यूरोप की पार्लियामेन्टों और विश्वविद्यालयों में पूरा मार्क्सिज़्म, विचारधाराओं की समूची नई प्रणाली, निष्कर्ष निकालने की मौलिकता और तत्परता, उपहास, दया के नाम पर विकसित अतिरिक्त दयाहीनता, यह सब अपने भीतर आत्मसात करके और सामान्य रूप में प्रदर्शित किया लेनिन ने, जिससे मूर्तिमन्त प्रतिशोध के रूप में उस पुराने पर टूट पड़े, जो किया गया था. उसके साथ ही रूस की अमिट, विशाल छबि उभरी, जो मानवता को सभी व्यथाओं और शिकायतों से मुक्ति दिलाने के लिये अचानक पूरी दुनिया के सामने मशाल के समान भभक उठी. मगर मैं आपसे यह सब किसलिये कह रहा हूँ? आपके लिये तो ये सिर्फ एक झुनझुना है, खाली आवाज़ें.

इस लड़की की ख़ातिर मैं युनिवर्सिटी गया, उसकी ख़ातिर शिक्षक बना और तब तक मेरे लिये अनजान इस युर्यातिन में काम करने के लिये गया. मैं किताबों के गट्ठे चाट गया और खूब सारा ज्ञान अर्जित कर लिया, जिससे यदि उसे मेरी सहायता की ज़रूरत पड़े तो उसके पास ही रहूँ और उसके काम आ सकूँ. मैं युद्ध पर गया, ताकि शादी के तीन सालों के बाद उसे फ़िर से जीत सकूँ, मगर फ़िर, युद्ध के बाद और कैद से वापस लौटने के बाद मैंने इस बात का फ़ायदा उठाया कि मुझे मृत समझ लिया गया था, और मैंने एक पराए, काल्पनिक नाम से ख़ुद को क्रांति में झोंक दिया जिससे पूरी तरह उस सबका हिसाब चुकाऊँ, जिसके कारण उसने दुख उठाए थे, जिससे इन दुःखद यादों को पूरी तरह धो सकूँ, जिससे कि विगत कभी भी वापस न आए, ताकि त्वेर्स्काया-याम्स्काया के शोहदों का अस्तित्व न रहे. और वे, वह और बेटी, मेरे पास रहें! कितनी कोशिशों से मैंने उन्हें देखने की, लपक कर उनके पास जाने की इच्छा को दबाया है! मगर मैं पहले अपनी ज़िंदगी के उद्देश्य को पूरा करना चाहता था. ओह, उन्हें कम से कम एक बार देखने के लिये अभी मैं क्या कुछ नहीं दे देता. जब वह कमरे में आती, जैसे खिड़की खुद-ब-खुद खुल जाती, कमरा रोशनी और हवा से लबालब भर जाता.”

“मुझे मालूम है कि आपको वह कितनी प्यारी थी. मगर माफ़ कीजिये, क्या आपको इस बात की कल्पना है कि वह आपसे कितना प्यार करती थी?”

“माफ़ी चाहता हूँ. आपने क्या कहा?”

“मैं कह रहा हूँ, कि आपको इस बात की कल्पना है कि आप किस कदर उसे प्यारे थे, दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यारे थे?”

“आपको यह कैसे मालूम है?”

“उसने ख़ुद ही मुझसे यह कहा था.”

“उसने? आपसे?”

“हाँ.”

“माफ़ कीजिये. मैं समझता हूँ, इस विनती को पूरा नहीं किया जा सकता, मगर, अगर यह शराफ़त के दायरे में आता हो, अगर आपके बस में हो, तो जहाँ तक संभव हो, उतना ठीक-ठीक बतायें कि उसने आपसे क्या कहा था.”

“बेहद ख़ुशी से. उसने आपको एक आदर्श, प्रामाणिकता की ऊँचाई पर एकमात्र व्यक्ति कहा, जैसा उसने फिर कभी नहीं देखा, और बोली, कि अगर क्षितिज पर कभी एक बार फिर उस घर की झलक मिल जाये, जिसमें वह कभी आपके साथ रहती थी, तो जहाँ से भी संभव हो, चाहे दुनिया के दूसरे छोर से ही क्यों न हो, वह रेंगते हुए, घुटनों के बल घिसटते हुए उसकी देहलीज़ तक जाती.”

“माफ़ी चाहता हूँ. अगर मैं किसी ऐसी सीमा में प्रवेश नहीं कर रहा हूँ, जो आपके लिये पवित्र है, तो याद कीजिये कि कब, किन हालात में उसने ऐसा कहा था?”

“वह ये कमरा साफ़ कर रही थी. और फिर कालीन झटकने के लिये बाहर चली गई.”

“माफ़ कीजिये, कौनसा? यहाँ दो हैं.”

“वह, जो बड़ा है.”

“ये उसके अकेले के बस की बात नहीं है. आपने उसकी मदद की थी?”

“हाँ.”

“आपने कालीन के आमने-सामने के सिरों को पकड़ा, वह पीछे की ओर झुकते हुए, हाथों को ऊपर उठाते हुए, जैसे झूले पर हो, और उड़ती हुई धूल से मुँह फेरकर, आँखें नाक सिकोड़ कर ठहाके लगाने लगी? सही है ना? कितनी अच्छी तरह जानता हूँ मैं उसकी आदतें! और फिर आप एक दूसरे के पास आये, भारी कालीन की तह लगाते हुए, पहले उसे आधा और फिर चौथाई किया, और वह मज़ाक कर रही थी और यह सब करते हुए कई सारे चुटकुले सुना रही थी? सही है ना? सही है ना?”

वे अपनी-अपनी जगह से उठे, अलग-अलग खिड़कियों के पास गये, विभिन्न दिशाओं में देखने लगे. कुछ देर की ख़ामोशी के बाद स्त्रेल्निकव यूरी अन्द्रेयेविच के निकट आया. उसके हाथ पकड़ कर और उसे सीने से लगाते हुए वह पहले जैसी शीघ्रता से आगे कहने लगा.

“माफ़ कीजिये, मैं समझता हूँ, कि कोई प्यारी चीज़, किसी ख़ज़ाने को छू रहा हूँ. मगर, यदि संभव है, तो मैं आपसे कुछ और पूछूँगा. सिर्फ जाईये नहीं. मुझे अकेला न छोड़िये. मैं ख़ुद ही जल्दी चला जाऊँगा. सोचिये, छह साल की जुदाई, छह साल का अकल्पनीय संयम. मगर मुझे लगा – अभी पूरी आज़ादी नहीं मिली है. पहले मैं उसे हासिल करूँगा, और तब मैं सम्पूर्ण रूप से उनका हो जाऊँगा, मेरे हाथ खुले होंगे. और मेरी सारी योजनाएँ धूल में मिल गईं. कल मुझे पकड़ लिया जायेगा. आप उसके अपने और घनिष्ठ व्यक्ति हैं. हो सकता है, कि आप कभी उससे मिलें. मगर नहीं, ये मैं क्या पूछ रहा हूँ? ये बेवकूफ़ी है. मुझे पकड़ लेंगे और सफ़ाई पेश करने का मौका भी नहीं देंगे. फ़ौरन झपट पडेंगे, चिल्लाते हुए, गालियाँ देते हुए मुँह बंद कर देंगे. क्या मुझे नहीं मालूम है कि ये कैसे किया जाता है?

 

18

आख़िरकार उसे अच्छी नींद आयेगी. काफ़ी लम्बे समय के बाद पहली बार यूरी अन्द्रेयेविच को पता ही नहीं चला कि कैसे बिस्तर पर लेटते ही उसे कब नींद आ गई. स्त्रेल्निकव रात में उसके पास ही रहा. यूरी अन्द्रेयेविच ने बगल वाले कमरे में उसे सुला दिया. उन कुछ पलों में, जब यूरी अन्द्रेयेविच जाग जाता था, जिससे करवट बदल सके, या फर्श पर फिसल गये कम्बल को उठा ले, उसे अपनी गहरी नींद का शक्तिवर्धक प्रभाव महसूस होता और वह प्रसन्नता से फ़िर सो जाता. आधी रात के बाद उसे बचपन के ज़माने के छोटे-छोटे, जल्दी-जल्दी बदलते हुए सपने आने लगे, समझदारी पूर्ण और विवरणों से भरपूर, जिन्हें आसानी से सच समझा जा सकता था.

जैसे, मिसाल के तौर पर, इटली के समुद्र तट पर वाटरकलर में बनाई गई माँ की तस्वीर, जो दीवार पर टंगी थी अचानक टूट गई, फ़र्श पर गिर गई और टूटते हुए काँच की आवाज़ ने यूरी अन्द्रेयेविच को जगा दिया. उसने आँख़ें खोलीं. नहीं, ये कुछ और ही है. ये शायद अंतीपव, लारा का पति, पावेल पाव्लविच, जिसका कुलनाम स्त्रेल्निकव है, फ़िर से, जैसे वाक्ख कहता है, शूत्मा में भेड़ियों को डराते हुए. मगर नहीं, ये क्या बकवास है. बेशक, दीवार से तस्वीर गिर गई है. वह टुकड़े-टुकड़े होकर फ़र्श पर पड़ी है – उसने फिर से वापस लौट आये, लम्बे सपने में इत्मीनान कर लिया.

बहुत देर तक सोने के कारण वह सुबह सिरदर्द लिये उठा. उसे फ़ौरन समझ में ही नहीं आया कि वह कौन है और कहाँ है, किस दुनिया में है. अचानक उसे याद आया : “ अरे, मेरे यहाँ स्त्रेल्निकव सो रहा है. देर हो गई है.कपड़े पहन लेना चाहिये. वह, शायद, उठ गया होगा, और, अगर नहीं उठा है, तो उसे उठाऊँगा, कॉफी बनाऊँगा, कॉफ़ी पियेंगे”.

“पावेल पाव्लविच!”

कोई जवाब नहीं आया. “मतलब, अभी तक सो रहा है. ख़ैर, गहरी नींद सोता है”.

यूरी अन्द्रेयेविच बिना जल्द्बाज़ी किये तैयार हुआ और बगल वाले कमरे में आया. मेज़ पर स्त्रेल्निकव की फ़ौजी कैप पड़ी थी, मगर वह ख़ुद घर में नहीं था. “लगता है, घूमने गया है”, डॉक्टर ने सोचा. “और बिना कैप के. अपने आप को सख़्त बना रहा है. और आज वरिकीना पर सलीब लगाकर शहर जाना है. देर हो गई है. फिर से देर तक सोता रहा. और हर सुबह ऐसा ही होता है”.

यूरी अन्द्रेयेविच ने चूल्हे में आग जलाई, बालटी ली और पानी लाने के लिये कुँए की तरफ़ जाने लगा. पोर्च से कुछ ही कदम दूर, रास्ते के बीचोंबीच, बर्फ में सिर घुसाए, स्त्रेल्निकव पड़ा था जिसने ख़ुद को गोली मार ली थी. उसकी बाईं कनपटी के नीचे बर्फ का गोला जम गया था, जो बहते हुए ख़ून के डबरे में भीगकर लाल हो गया था. ख़ून के छोटे-छोटे छींटे जो उछलते हुए एक ओर गिरे थे, बर्फ से मिलकर लाल गोले बनाते हुए लुढ़क रहे थे, लाल रसभरी की जमी हुई बेरियों की तरह.

          

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